'अग्निपथ' पर बोले रिटायर्ड अफसर- 4 साल का समय बहुत कम, आर्मी और जवान दोनों को नुकसान
सरकार की 'अग्निपथ' योजना पर आर्मी और एयर फोर्स के रिटायर्ड अधिकारियों का क्या कहना है?

अग्निपथ भर्ती योजना (Agnipath Recruitment Scheme) के खिलाफ देश के अलग-अलग राज्यों में विरोध प्रदर्शन जारी है. कई जगहों पर ये प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं. आर्मी (Army) में भर्ती की तैयारी कर रहे नौजवान भारी संख्या में सड़कों पर हैं. उनकी सरकार से कई मांगे और कई सवाल हैं. इस बीच इस योजना को लेकर आजतक के आशुतोष मिश्रा ने भारतीय सेना के कुछ रिटायर्ड अधिकारियों से बात की. आइए आपको बताते हैं कि 'अग्निपथ' को लेकर ये रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर क्या कहते हैं.
‘हमें बेहतर जवान नहीं मिलेंगे’रिटायर्ड डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने इस योजना के बारे में कहा,
‘जवान रिस्क लेने से कतराएगा’'ये नई योजना है और इससे पहले कभी ट्राई नहीं किया गया और न ही कोई पायलट प्रोजेक्ट किया गया है.रिक्रूटमेंट क्राइटेरिया वही है, लेकिन हम सेवा की शर्तों को बदल रहे हैं. पहले एक फौजी 2 से 3 साल तैयारी करके रिक्रूटमेंट लेकर आता था और सोचता था कि मैं जिंदगी भर यहां रहूंगा, लड़ूंगा. लेकिन अब वह 2 से 3 साल तैयारी करके सिर्फ 4 साल के लिए क्यों आएगा. अब वह दूसरी सरकारी नौकरियों में जाएगा. ऐसे में हमें बेहतर जवान नहीं मिलेंगे.'
जनरल विनोद भाटिया ने आगे कहा,
'हमारा जो रेजिमेंटल सिस्टम है, वह काम करता है. उनकी एक यूनिट की इज्जत है. चाहे वर्ल्ड वॉर देख लीजिए. हमारे जो सैनिक लड़े थे, वह ब्रिटिश आर्मी के लिए नहीं, अपनी यूनिट के लिए लड़े थे. सारागढ़ी की लड़ाई में भी हमारे जवान अपनी यूनिट के लिए लड़े थे. करगिल की लड़ाई में भी विक्रम बत्रा ने कहा था यह दिल मांगे मोर, ये उन्होंने अपनी यूनिट के लिए बोला था. आज हम उसी ताकत को बदलने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा जवान रिस्क नहीं लेगा और सोचेगा 4 साल बाद काम करके मैं घर चला जाऊंगा. इसलिए बहुत सारे पहलुओं को देखने की जरूरत है.'

जनरल विनोद भाटिया ने आजतक से बातचीत में ये भी कहा कि आज से 10-15 साल बाद सेना में आधे से ज्यादा अग्नि वीर हो जाएंगे, तब क्या होगा.
जनरल ने कहा,
‘ट्रेंड करने में काफी समय लगेगा’‘हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारे सोल्जर हैं, हम उसी को बदल रहे हैं. हम सोच रहे हैं फौज में जाकर वैल्यू सीखेगा, लेकिन यह उल्टा भी पड़ सकता है. अगर 10-15 फीसदी भी उल्टे पड़ गए तो कानून व्यवस्था खराब हो जाएगी और समाज का मिलिटराइजेशन होने लगेगा. साथ ही जब अग्निवीर रिटायर होकर घर जाएगा तो उसे वो इज्जत नहीं मिलेगी. गांव के लोग कहेंगे इसे रिजेक्ट कर दिया गया है. नई नौकरी मिलेगी या नहीं. ये सब सामाजिक समस्याएं उनके आगे खड़ी होंगी.’
आजतक के आशुतोष मिश्रा ने बीएसएफ के रिटायर्ड एडिशनल डीजी संजीव कृष्ण से भी इस योजना को लेकर बात की.
संजीव कृष्ण ने इस योजना के बारे में कहा,
'अग्नि वीरों को ट्रेंड करने में काफी समय लगेगा. इसलिए उनकी सर्विस का जब तक समय आएगा तब तक उनके रिटायरमेंट का समय पूरा हो जाएगा. जो भी ऐसी योजनाएं आएं, उसमें फोर्स की कॉम्बैट प्रिपेयर्डनेस को देखना चाहिए ना कि इकोनॉमी. लड़ने की क्षमता या कॉम्बैट फिटनेस के लिए जरूरी है कि सेना को एक लंबा समय दिया जाए, लेकिन 4 साल के टूर ऑफ ड्यूटी में 6 महीने इनकी ट्रेनिंग होगी, जो पहले 9 महीने की होती थी. यह जब 4 साल में सेना के लायक होंगे, तब तक इनका निकलने का टाइम हो जाएगा.'

बीएसएफ के रिटायर्ड एडिशनल डीजी संजीव कृष्ण ने एक और अहम पहलू पर बात करते हुए बताया,
क्या एयर फोर्स को फायदा होगा?'4 साल के अंदर 6 महीने की ट्रेनिंग भी होगी और तीन चार महीने ये छुट्टी पर भी जाएंगे. ऐसे में उनकी सर्विस जो मिलेगी सिर्फ 3 साल की मिलेगी. अभी जो ड्यूटी है वह 17 साल की है. 16-17 साल काम करने वाले जवान के पास जो अनुभव होता है, वह इनके पास नहीं होगा. साथ ही इनको पता है कि 4 साल में इनको चले जाना है. ऐसे में इनमें कमिटमेंट की कमी होगी.'
रिटायर्ड विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी ने भी इस योजना में कई कमियां बताईं. आजतक से बातचीत में उन्होंने कहा,
'इसकी कमियों का असर सेनाओं के कॉम्बैट कैपेबिलिटी पर पड़ेगा. मुझे लगता है 4 साल की जगह अगर यह ड्यूटी 10 से 12 साल की होगी तो इन अग्नि वीरों को ज्यादा सीखने का भी मौका मिलेगा और जब यह रिटायर होंगे, तब इनके अंदर गुणवत्ता और स्किल भी ज्यादा होगी. जिससे बाहरी दुनिया में भी इन्हें अच्छा काम मिल सकेगा. चार साल बाद एक युवा का जब तक एयर फोर्स में ट्रेनिंग और तकनीकी ट्रेनिंग का कोर्स पूरा होगा, तब तक उसके रिटायरमेंट का समय आ जाएगा. ऐसे में एयरफोर्स उसकी सुविधाएं कैसे ले पाएगी, लेकिन जो 25% रिटर्न किए जाएंगे वह जरूर एयरफोर्स के लिए कारगर होंगे.'
प्रफुल्ल बख्शी ने आगे कहा कि सोच के हिसाब से 'अग्निपथ' योजना की यह पहल अच्छी हो सकती है, लेकिन इसमें बहुत कुछ किया जाना बाकी है. सबसे पहले इसे पायलट बेस पर शुरू किया जाए और फिर इसके असर को देखते हुए इसे लागू किया जाए. इसको सबसे पहले पैरामिलिट्री फोर्स में लागू किया जाए और वहां पर टेस्ट नतीजों को देखा जाए.