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क्या है पात्रा चॉल घोटाले की पूरी कहानी?

राउत की गिरफ़्तारी के बाद उनके परिवार से मिले उद्धव ठाकरे

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Sanjay raut arrested
ईडी ने संजय राउत को किया गिरफ्तार (फोटो: पीटीआई)
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निखिल
1 अगस्त 2022 (Updated: 1 अगस्त 2022, 11:33 PM IST) कॉमेंट्स
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4 जुलाई को महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फडणवीस सरकार ने अपना बहुमत साबित किया. इस दौरान शिंदे समर्थक विधायकों को निशाने पर लेने के लिए एनसीपी-कांग्रेस के विधायकों ने ''ईडी-ईडी'' के नारे लगाए थे. कुछ देर बाद जब देवेंद्र फडणवीस बोलने के लिए खड़े हुए, तो उन्होंने इसका जवाब दिया. वो मराठी में बोले,

''कुछ लोग हमारी तरफ देखकर ''ईडी ईडी'' चिल्ला रहे थे. ये बिलकुल सही है. ये लोग ED की वजह से ही हमारे साथ आए हैं. बस ED का मतलब है एकनाथ और देवेंद्र.''

महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के खेल में प्रवर्तन निदेशालय माने ED का नाम लगातार आता रहा. दो सूचियां मीडिया में तैरती रहती थीं. एक उन विधायकों की, जो सूरत होते हुए गुवाहाटी पहुंचते थे. और दूसरी उन विधायकों की, जिनके खिलाफ ED द्वारा मामला कायम किया गया था. दोनों सूचियों का रोज़ मिलान होता था, टिप्पणीकार कयास लगाते थे कि अब कौन जाएगा, या आएगा.

यहां ये दर्ज करना आवश्यक है कि मोदी सरकार के धुर आलोचक भी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि केवल एक केंद्रीय एजेंसी के बल पर सरकार गिराई या बनाई जा सकती है. फिर जब महाराष्ट्र की नई सरकार ने विश्वास मत हासिल कर लिया, तो उसे पूरे घटनाक्रम के पटाक्षेप की तरह ही लिया गया. अदालत में मामला चल रहा है, लेकिन वहां से जल्द नतीजा आएगा, लगता नहीं.

बावजूद इसके, एक बार फिर महाराष्ट्र से ED द्वारा हाईप्रोफाइल गिरफ्तारी की खबर आई है. इस बार नंबर लगा है उद्धव ठाकरे के विश्वासपात्र, शिवसेना के राज्यसभा सांसद और ''सामना'' के एग्ज़ीक्यूटिव एडिटर - संजय राउत का. उन्हें पात्रा चॉल मामले में ED ने गिरफ्तार कर लिया है. तो आज हम समझेंगे कि संजय राउत एजेंसी के रडार पर कैसे और क्यों आए? हम जानेंगे, क्या है एक हज़ार करोड़ का पात्रा चॉल घोटाला.

जुम्मा जुम्मा चार दिन नहीं हुए थे, महाराष्ट्र से फिर इतने अपडेट आने लगे कि सभी को लाइव ब्लॉग चलाना पड़ रहा है. अपने बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले संजय राउत, 31 जुलाई को अपनी गिरफ्तारी के लिए चर्चा में आ गए. पात्रा चॉल मामले में संजय राउत को पहले भी कई समन जारी हुए थे. 31 को जब वो हिरासत में लिए गए, तब उनकी मां उनसे लिपट गईं. देर रात खबर आई कि संजय राउत को एजेंसी ने गिरफ्तार कर लिया है. आज सुबह उनका मेडिकल चेकअप हुआ और दोपहर में उन्हें विशेष प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट अदालत माने PMLA कोर्ट में पेश किया गया. यहां से राउत को 4 अगस्त तक के लिए ED की हिरासत में भेज दिया गया है.

जब तक महाअघाड़ी सरकार चली, तब तक संजय राउत का जलवा अलग ही रहा. शिवसेना में वो संवाद या कम्यूनिकेशन के मामले में सबसे ताकतवर लोगों की सूची में थे. बात सिर्फ सामना के संपादकीय तैयार करने, केंद्र या राजभवन की तरफ से आए बयानों का जवाब देने तक सीमित नहीं थी. शिवसेना के अंदर पार्टी के मुखिया उद्धव ठाकरे तक पहुंच का माध्यम भी संजय राउत ही थे. उद्धव से मिलना मुश्किल था, तो लोग राउत को अपनी बात बताते. सीएम साहब ने क्या कहा, वो भी राउत के ज़रिए काडर को मालूम चलता. एकनाथ शिंदे इस बात से भी खफा बताए जाते हैं कि जो बात या आदेश वो उद्धव ठाकरे से सुनना चाहते, वो उन्हें आदित्य ठाकरे या संजय राउत के मार्फत बताई जाती थी. मुंबई की राजनीति के प्रथम परिवार के करीबी और कभी ED पर उगाही नेटवर्क चलाने का आरोप लगाने वाले संजय राउत ED की ही चपेट में कैसे आ गए? जवाब है - पात्रा चॉल मामला.

पात्रा चॉल मामला क्या है, ये समझने से पहले ज़रूरी है कि आप चॉल शब्द का मर्म समझें. 20 अप्रैल 2017 को हिंदुस्तान टाइम्स पर नरेश कामथ और नेहा सेठ का एक दिलचस्प लेख छपा. इसमें उन्होंने मुंबई के चॉल कल्चर के बारे में बताया है. वो लिखते हैं,

"20 वीं सदी की शुरुआत में जब अंग्रेज़ सरकार ने उद्योगपतियों को बंबई में टेक्सटाइल मिल खोलने के लिए प्रेरित करना शुरू किया, तब मज़दूर तो कोंकण के इलाके से मिल गए, लेकिन इन्हें बसाने के लिए बंबई में जगह बहुत कम थी. तब मिल मालिकों ने चॉल या चाल बनाना शुरु किया. मिल के पास बनी इन इमारतों में एक मज़दूर परिवार के लिए बस 100 से 200 स्केयर फुट की जगह दी जाती. कमरे बस एक या दो. हर मंज़िल पर एक या दो बाथरुम, जिसे सब इस्तेमाल करते. इस तरह चाल में सैंकड़ों लोग एक-साथ बसते."

एक के बाद एक उद्योग लगे तो किराए के घरों की मांग आसमान छूने लगी. उस दौर में जिनके पास बंबई में ज़मीन थी, उन्होंने भी चाल बना ली, ताकि किराये से मुनाफा कमा सकें. ये महानगरों के बीचों-बीच बसे गावों की तरह थीं. जहां से निकलकर लोग ''शहर'' काम करने जाते और शाम को शहर से पनाह लेने लौट आते. खेलकूद से लेकर शादी ब्याह तक, सब चॉल के आंगन में ही कर लिया जाता.

जगह की कमी तो स्थायी थी. बीच बीच में बीमारियों और अपराध का दौर भी आता-जाता रहता. बावजूद इसके, मुंबई में लाखों परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी चाल में ही निकाल दी. इनकी आने वाली पीढ़ियां भी यहीं रहेंगी, क्योंकि कोई विकल्प नहीं है. बस एक बात बदल गई है. बीसवीं सदी में जो चॉल निम्न मध्यमवर्ग और सर्वहारा का सहारा थीं, आज उनपर देश और दुनिया के उद्योगपतियों की नज़र है. क्योंकि कभी बंबई के दूर दराज़ इलाकों में बनाई गईं चाल आज शहर के सबसे महंगे इलाकों में पड़ने लगी हैं - मुंबई सेंट्रल, आगरीपाड़ा, सायन, परेल, मडगांव, वर्ली वगैरह. चॉल की ज़मीन बेशकीमती हो गई है. इसीलिए हर कोई अब चॉल के रीडवलेपमेंट की बात करने लगा है. सरकार भी, उद्योगपति भी.

चॉल का रीडेवलपमेंट प्रायः एक जैसी स्कीम्स के तहत किया जाता है. इसमें चॉल की ज़मीन के दो या तीन हिस्से किए जाते हैं. एक हिस्से पर चॉल में रह रहे परिवारों के लिए ऊंची आवासीय इमारतें बनाई जाती हैं. बाकी ज़मीन को सरकार या तो अपनी किसी योजना के लिए इस्तेमाल करती है, या फिर राजस्व कमाने के लिए निजी हाथों में बेच देती है. अब ये योजना सुनने में जितनी अच्छी और सरल लगती है, वास्तव में वैसा है नहीं. क्योंकि मुंबई जैसे शहर में ज़मीन का काम काजल की कोठरी में जाने जैसा होता है. कितना भी सयाना जाए, कुछ न कुछ कालिख दामन पर आ ही जाती है. मुंबई में दर्जनों ऐसे मामले सामने आए हैं, जब झोपड़-पट्टी या चॉल के रीडवलपमेंट ने वहां पहले से रह रहे लोगों को बेघर कर दिया. इसीलिए जो चॉल गिरने को भी होती है, वहां से तक मकानमालिक और किराएदार निकलना नहीं चाहते.

चॉल के बसने और उसके रीडवलपमेंट की कमोबेश यही कहानी पात्रा चॉल मामले में भी देखने को मिलती है. मुंबई के उत्तर में गोरेगांव पड़ता है. यहां एक इलाका है सिद्धार्थ नगर. इसी सिद्धार्थ नगर को पात्रा चॉल के नाम से भी जाना जाता है. पात्रा चॉल में 47 एकड़ में कुल 672 घर बने हुए हैं. साल 2008 में महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी म्हाडा (MHADA) ने पात्रा चॉल को रीडेवलप करने का प्रोजेक्ट तैयार किया. रीडेवलपमेंट के तीन प्रमुख मकसद थे -

- पात्रा चॉल में पहले से रह रहे 672 परिवारों को फ्लैट बनाकर देना.
- MHADA के लिए फ्लैट्स तैयार करना.
- बची हुई ज़मीन को निजी हाथों में बेचना.

इसका ठेका दिया गया  गुरू आशीष कन्सट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड (GACPL) को. ठेके के लिए तीन पक्षों में करार हुआ, GACPL, पात्रा चॉल में रहने वाले लोग और MHADA. पात्रा चॉल की ज़मीन पर निर्माण के दौरान परिवारों के पास रहने को जगह नहीं होती. इसीलिए करार में ये भी लिखा गया कि जब तक GACPL चॉल के लोगों को फ्लैट नहीं दे देता, तब तक वो उन्हें हर महीने का किराया देगा. 36 महीनों के भीतर म्हाडा के फ्लैट और पात्रा चॉल के रहवासियों के घर बन जाने थे. इसके बाद GACPL बाकी ज़मीन पर निजी प्रोजेक्ट्स बनाकर अपने खर्च की भरपाई करता.

आज ये करार हुए 14 साल बीत गए हैं. लेकिन पात्रा चॉल के लोगों का 36 महीने वाला इंतज़ार खत्म नहीं हुआ. इंडियन एक्सप्रेस पर छपी वल्लभ ओज़रकर की रिपोर्ट के मुताबिक, पात्रा चॉल के लोगों को 2014-15 के बाद से किराया भी नहीं दिया गया. लोगों की शिकायत के बाद MHADA ने 12 जनवरी, 2018 को GACPL का कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने का नोटिस जारी किया. लेकिन तब तक 9 प्राइवेट डेवलपर्स ने GACPL से फ्लोर स्पेस इंडेक्स खरीदा लिया था. इसका मतलब एक करार हो गया था, कि इतनी ज़मीन पर, इतना निर्माण किया जा सकेगा. ये डेवलपर्स MHADA के नोटिस के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट चले गए. इसके बाद ये प्रोजेक्ट रुक गया. प्रोजेक्ट रुकने के बाद से पात्रा चॉल में रहने वाले परिवारों के पास एक ही मकसद रह गया है - कमेटी बनाकर अपने घर की मांग करना. वो कभी क्रमिक भूख हड़ताल करते हैं, तो कभी धरना देते हैं.

महाराष्ट्र के रिटायर्ड चीफ सेक्रेटरी जॉनी जोसेफ की अगुवाई वाली एक सदस्यीय कमेटी की सलाह पर जून, 2021 को महाराष्ट्र कैबिनेट ने फिर से पात्रा चॉल रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी. 2022 की फरवरी में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आदेश पर निर्माण कार्य फिर से शुरू हुआ. अब इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी MHADA की है.

अब इस मामले में ED की भूमिका को समझते हैं. एजेंसी का कहना है कि प्रवीण राउत और GACPL के दूसरे डायरेक्टर्स ने MHADA को गुमराह किया. ED के मुताबिक प्रवीण राउत, संजय राउत के करीबी हैं. उनके ऊपर आरोप है कि उन्होंने फ्लोर स्पेस इंडेक्स को नौ प्राइवेट डेवलपर्स को बेचा और 901 करोड़ 79 लाख रुपये इकट्ठा किए. लेकिन न पात्रा चॉल के लोगों के पुनर्वास के लिए एक भी फ्लैट बनाया और ना ही MHADA को एक भी फ्लैट बनाकर दिया.

लेकिन GACPL ने एक काम ज़रूर किया. पात्रा चॉल की जो ज़मीन निजी हाथों में बेची जानी थी, वहां मीडोज़ नाम का एक हाउसिंग प्रोजेक्ट लॉन्च किया और फ्लैट की बुकिंग करने वालों से पैसे ले लिए. ED का दावा है कि ये रकम 138 करोड़ के करीब है. ED को ये भी शक है कि जिन लोगों ने मीडोज़ प्रॉजेक्ट में फ्लैट खरीदे, उनमें से तकरीबन 100 जाली हैं. और बाद में ये लोग प्रभावशाली लोगों को दे दिए जाएंगे.

इस तरह अवैध गतिविधियों से लगभग 1 हज़ार 39 करोड़ 37 लाख रुपये इकट्ठा किए गए. ED के आरोपों की सूची यहीं खत्म नहीं होती है. एजेंसी का ये भी आरोप है कि प्रवीण राउत को रियल स्टेट कंपनी HDIL से 100 करोड़ रुपये मिले और इन पैसों को उन्होंने अपने रिश्तेदारों, करीबियों और संजय राउत के परिवार को ट्रांसफर कर दिया. आरोप है कि साल 2010 में प्रवीण राउत ने 'अवैध पैसों' में से 83 लाख रुपये संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत के खाते में ट्रांसफर किए. इनसे दादर में एक फ्लैट खरीदा गया. वर्षा और स्वपना पाटकर के नाम पर ही किहिम बीच पर कम से कम 8 प्लॉट खरीदने का भी आरोप है.

आर्थिक जगत की खबरों पर नज़र रखने वालों के दिमाग में HDIL आते ही कुछ खटका होगा. ठीक खटका है. HDIL के एक प्रमोटर का नाम है राकेश वधावन. राकेश वधावन और उनका बेटा सारंग वधावन GACPL में पार्टनर हैं. इन दोनों को अक्टूबर 2019 में ही ED ने हिरासत में लिया था. इल्ज़ाम था 4 हज़ार 355 करोड़ के पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में शामिल होने का. अब इन दोनों का नाम पात्रा चॉल की चार्जशीट में भी जुड़ गया है.

पात्रा चॉल मामले के तथ्य और आरोप हमने आपके सामने रख दिए हैं. अब इस मामले पर हो रही राजनीति पर आते हैं. इसका ज़िक्र आज PMLA अदालत में संजय राउत के वकील संजय मुंदरगी ने भी किया. उन्होंने दलील दी कि राउत की गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित है. मुंदरगी ने ये भी कहा कि संबद्ध संपत्ति के मालिकों ने कहा है कि पैसा प्रवीण राउत से मिला. स्वपना पाटकर अब कह रही हैं कि उन्हें धमकियां मिल रही हैं. वाकोला पुलिस ने जांच की है, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा.

मुंदरगी यहां उस शिकायत की तरफ इशारा कर रहे थे, जिसमें स्वपना ने दावा किया था कि उन्हें ED के सामने मुंह न खोलने को लेकर धमकी भरा पत्र मिला था. एक ऑडियो क्लिप भी वायरल हो रही है. दावा है कि संजय राउत ने कथित रूप से स्वपना को फोन पर धमकाया. इस क्लिप की पुष्टि अभी नहीं हुई है. मुंदरगी ने अदालत ये भी दावा किया कि ED की सारी दलीलों का संबंध गुरु आशीष या प्रवीण राउत से है. संजय राउत पर लगाए आरोप महज़ परिस्थिति जन्य हैं. मामला काफी पहले से चला आ रहा है. ऐसे में अचानक अब हरकत क्यों हो रही है? लेकिन अदालत ने राउत को एजेंसी की कस्टडी में भेज ही दिया. दाएं हाथ पर आंच आई, तो आज उद्धव ठाकरे भी सामने आए. वो आज राउत परिवार से मिले और प्रेस से भी.

इस तरह के बयानों की अंदाज़ा शिंदे गुट वाली शिवसेना और भाजपा दोनों को पहले से था. सीएम साहब ने तो 31 जुलाई को ही बयान दे दिया था. मराठी में शिंदे ने सवाल किया था कि अगर राउत ने कुछ गलत नहीं किया, तो फिर उन्हें जांच से डर क्यों है. आज उनके ही गुट के दीपक केसरकर ने दूसरे शब्दों में ये ही बात दोहराई.

इस बीच संजय राउत के यहां से बरामद 11 लाख रुपए को लेकर अलग खींचतान चल रही है. संजय राउत के भाई और विधायक सुनील राउत ने दावा किया है कि ये पैसा एकनाथ शिंदे का है. और अयोध्या जाने के लिए इस्तेमाल होने वाला था. सुनील ने ये दावा भी किया कि संजय के घर से कोई दस्तावेज़ ज़ब्त नहीं किया गया है.

चारों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है. शिवसेना के साथ साथ कांग्रेस ने भी राउत की गिरफ्तारी पर संसद में विरोध किया, जिसके बारे में हमने आपको शुरुआत में बताया था. लेकिन कभी राउत के साथ ''नाइंसाफी'' के मुद्दे को प्रधानमंत्री मोदी के सामने उठाने वाले शरद पवार कुछ नहीं कह रहे हैं. टिप्पणीकार इस चुप्पी के अलग अलग अर्थ खोज रहे हैं. सबसे बड़ा अर्थ तो यही है कि NCP पात्रा चॉल मामले में पड़ना नहीं चाहती. रही बात संजय राउत की, तो भले ED का कंविक्शन रेट 1 फीसदी हो. लेकिन कंविक्शन माने दोष साबित होने से पहले भी बहुत कुछ होता है. और उद्धव के संजय अब इस पूरे प्रकरण में उलझते नज़र आ रहे हैं. 

देखिए वीडियो: संजय राउत को जिस पात्रा चॉल केस में ED ने लपेटा है, क्या है उसकी पूरी कहानी?

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