रंजीत दिसले ने ऐसा क्या किया कि उन्हें दुनिया का बेस्ट टीचर घोषित किया गया है?
7 करोड़ रुपए से ज्यादा का इनाम मिला है
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महाराष्ट्र के सोलापुर के प्राइमरी टीचर रंजीत ने क्यूआर कोड के जरिए प्राइमरी एजुकेशन में बेहतरीन इनोवेशन किया. इसे अब NCERT भी अपनाने जा रही है.
सबसे पहले जानिए कि यह पुरस्कार क्या है और कौन देता है
यह पुरस्कार एक ब्रिटिश एनजीओ वर्के फाउंडेशन देता है. यह 2010 से दिया जा रहा है. वर्के फाउंडेशन क्लास 1 से लेकर 12वीं तक के टीचर्स को खास ट्रेनिंग देती है, जिससे टीचर्स की कमी को पूरा किया जा सके. इसे दुबई में रहने वाले एक भारतीय अरबपति सनी वर्के ने बनाया है. हर साल फाउंडेशन दुनिया भर के टीचर्स के बीच से एक टीचर चुनती है, और उसे ग्लोबल टीचर्स अवॉर्ड से सम्मानित करती है. इस बार यह पुरस्कार भारत के रंजीत सिंह दिसले को दिया गया है. यह पहली बार था, जब अवॉर्ड समारोह वर्चुअल था. इस समारोह को मशहूर ब्रिटिश एक्टर स्टीफन फ्रे ने होस्ट किया था.
पुरस्कार की घोषणा होते ही रंजीत दिसले ने भी एक घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि वह लगभग 7 करोड़ रुपए में से आधी रकम ही अपने पास रखेंगे. बाकी की रकम उन 9 दूसरे टीचर्स के साथ शेयर करेंगे, जो उनके साथ टॉप 10 की लिस्ट में थे. वे कहते हैं कि शिक्षक हमेशा देने और बांटने में यकीन करते हैं. बता दें कि इनाम की आधी राशि बांटने पर हरेक रनर-अप के हिस्से 40 हजार पाउंड यानी करीब 40 लाख रुपए आएंगे.
कौन हैं रंजीत सिंह दिसले?Wow! Here’s THE MOMENT Stephen Fry announced Ranjitsinh Disale as the Winner of The Global Teacher Prize 2020! Congratulations Ranjit! Watch here: https://t.co/9t5GXaIJ58
— Global Teacher Prize (@TeacherPrize) December 3, 2020
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रंजीत दिसले की कहानी शुरू होती है महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गांव से. आज भले ही लोग इसे दिसले की सफलता से जोड़कर देख रहे हैं, लेकिन यह सूखाग्रस्त क्षेत्र काफी गरीबी से जूझता रहा है. साल 2009 में दिसले जब वहां के प्राइमरी स्कूल में टीचर बनकर पहुंचे थे तो स्कूल के हाल बेहाल थे. स्कूल के नाम पर जो इमारत थी, वो बुरी हालत में थी. साफ लगता था कि वो पशुओं के रखने और स्टोर रूम के काम आती थी. लोगों को अपने बच्चों और खासकर लड़कियों को पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उनका मानना था कि इससे कुछ बदलने वाला नहीं. दिसले ने इसे बदलने का जिम्मा लिया. घर-घर जाकर बच्चों के अभिभावकों को पढ़ाई के लिए तैयार करना अकेला काम नहीं था. उनका इंतजार दूसरी चुनौतियां भी कर रही थीं. कोरोना महामारी के दौर में स्कूल पूरी तरह से बंद पड़े हैं. स्कूलों में डिजिटल लर्निंग हो तो रही है, लेकिन वो काफी नहीं. खासकर लड़कियां इसमें पीछे जा रही हैं क्योंकि उनके हाथ में मोबाइल कम ही आता है. वहीं इसी दौर में रंजीत सिंह दिसले देश के एक छोटे से गांव में लड़कियों की पढ़ाई में शानदार काम कर रहे थे.

रंजीत जब प्राइमरी स्कूल में टीचर बन कर पहुंचे तो स्कूल का हाल बहुत खराब था.
फिर लगाया तकनीकी दिमाग
रंजीत खुद इंजीनिरिंग के ड्रॉप आउट हैं. मतलब उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की लेकिन उसे पूरा नहीं कर सके. रंजीत भले ही प्राइमरी टीचर बने लेकिन उनके दिमाग में हमेशा तकनीक के जरिए बदलाव लाने की बात चलती रहती. जब उन्होंने स्कूल में पढ़ाई को लेकर आ रही समस्याओं का सामना किया तो उसका उपाय भी तकनीक में खोजा. उनके सामने सबसे बड़ा चैलेंज था भाषा का. मतलब लगभग सारी किताबें अंग्रेजी में थीं. इसके लिए दिसले ने एक-एक करके किताबों का मातृभाषा में अनुवाद किया. उन्होंने न सिर्फ अनुवाद किया बल्कि उसमें तकनीक भी जोड़ दी. ये तकनीक थी क्यूआर कोड देना, ताकि स्टूडेंट वीडियो लेक्चर अटेंड कर सकें. अपनी ही भाषा में कविताएं-कहानियां सुन सकें. इसके बाद से ही गांव और आसपास के इलाकों में बाल विवाह की दर में तेजी से गिरावट आई. महाराष्ट्र में किताबों में क्यूआर कोड शुरू करने की पहल ही सोलापुर के रंजीत दिसले ने की. इसके बाद भी दिसले रुके नहीं, बल्कि साल 2017 में उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को ये प्रस्ताव दिया कि सारा सिलेबस इससे जोड़ दिया जाए. इसके बाद दिसले का ये इनोवेशन पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया गया. इसे जब बहुत अच्छा रेस्पॉन्स मिला तो राज्य सरकार ने घोषणा की कि वह सभी श्रेणियों के लिए राज्य में क्यूआर कोड पाठ्यपुस्तकें शुरू करेगी. अब देश भर की किताबों के लिए NCERT ने भी ये घोषणा कर दी है.
Redesigned QR Coded textbook is helping my Ss to learn, reflect & collaborate in this pandemic. Well curated digital content, videos & assignments are making it personalized. Now you are just a scan away to enjoy #RemoteLearning
@VarkeyFdn
@TeacherPrize
#GTP2020
#TeachersMatter
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— Ranjitsinh (@ranjitdisale) April 12, 2020
क्या होता है क्यूआर कोड?
QR कोड का फुल फॉर्म है क्विक रिस्पॉन्स कोड. ये क्यूआर कोड अक्सर स्क्वायर आकार के होते हैं, जिसमें सारी जानकारी होती है. किसी सामान, फिर चाहे वो किताबें हों या अखबार या फिर वेबसाइट आजकल सबका एक क्यूआर कोड होता है. इसे आपने अक्सर खाने-पीने के सामान पर रेट लिस्ट के आसपास देखा होगा. शॉपिंग मॉल में इसे स्कैन करके पेमेंट होता है. इसे बारकोड की अगली जेनरेशन कहा जाता है, जिसमें हजारों जानकारियां सुरक्षित रहती हैं. अपने नाम के ही मुताबिक ये तेजी से स्कैन करने का काम करता है.

क्यूआर कोड को स्कैन करके ही फौरन पूरा जानकारी पाई जा सकती है.
और उमड़ पड़ी देश भर से बधाई
रंजीत दिसले को ग्लोबल अवॉर्ड की खबर जैसे ही सामने आई, बधाईय़ों का सिलसिला शुरू हो गया. उन्हें भारत सरकार के कई सीनियर मंत्रियों की भी शाबाशी मिली. दिसले की इस उपलब्धि और इनोवेशन को देश के सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने भी ट्वीट करके सराहा-
.@ranjitdisaleमहाराष्ट्र सरकार ने ट्वीट किया कि महाराष्ट्र को आप पर और राज्य पर गर्व है. देश को ऐसे उद्यमी शिक्षकों की आवश्यकता है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिक्षक रंजीत सिंह दिसले को बधाई दी.
को Global @TeacherPrize
जीतने के लिए बधाई। उन्होंने भारत में शैक्षिक पुस्तकों के लिए QR Code की क्रांति को गति दी, जो अपने आप में एक नवाचार था। अधिक महत्वपूर्ण बात, वह और अधिक नवाचारों को प्रोत्साहित करने के लिए साथी फाइनलिस्ट के साथ पुरस्कार राशि साझा कर रहे हैं।
— Prakash Javadekar (@PrakashJavdekar) December 4, 2020
महाराष्ट्राला तुमचा अभिमान वाटतो व अशा उपक्रमशील शिक्षकांची राज्य तसेच देशाला गरज आहे, असे सांगून मुख्यमंत्री उद्धव बाळासाहेब ठाकरे यांनी सोलापूर येथील जिल्हा परिषद शिक्षक रणजितसिंह डिसले यांचे ग्लोबल टीचर पुरस्कार मिळाल्याबद्दल अभिनंदन आणि कौतुक केले आहे.@ranjitdisale
— CMO Maharashtra (@CMOMaharashtra) December 4, 2020
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भी ट्वीट किया

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने रंजीत को उनकी सफलता पर बधाई दी.
इस पुरस्कार के लिए हजारों लोगों की एंट्री आती है. इस साल भी दुनियाभर के 140 देशों से 12,000 हजार शिक्षकों ने इसके लिए एंट्री भेजी थी. पिछले साल यह पुरस्कार केन्या के स्कूल टीचर पीटर तबीची को मिला था. ब्रिटेन के टीचर जेमी फॉरेस्ट को इस बार 45 हजार डॉलर का खास पुरस्कार दिया गया. उन्होंने कोरोना के वक्त अपनी गणित पढ़ाने वाली वेबसाइट DrFrostMaths.com को फ्री उपलब्ध कराया ताकि दुनियाभर में गणित पढ़ने वाले बच्चों को दिक्कत न हो.