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'पठान' के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों के पीछे असली वजह क्या है?

कोलकता फिल्म फेस्टिवल में अमिताभ बच्चन ने उठाया अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा

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'पठान' फिल्म का पोस्टर
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अभिनव पाण्डेय
16 दिसंबर 2022 (Updated: 16 दिसंबर 2022, 10:40 PM IST)
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भारत की हालत इन दिनों ''जेब में नहीं दाने, भैया चले भुनाने'' वाली हो गई है. LAC पर चीन गांव पर गांव बसाता जा रहा है, देश भर के राज्यों पर बीते 18 सालों में सबसे ज़्यादा कर्ज़ चढ़ गया है और भारतीय रिज़र्व बैंक लगातार GDP की ग्रोथ रेट का अपना अनुमान घटाता जा रहा है. लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये है कि शाहरुख खान के साथ एक गाने में दीपिका पादुकोण ने बिकीनी पहनकर अभिनय कर लिया. जिन मंत्रियों को नीति को लेकर बहस करनी चाहिए, वो गाने की आलोचना में व्यस्त हैं. पूर्व नौकरशाह स्क्रीनशॉट शेयर कर रहे हैं. लग ही नहीं रहा कि ये वही देश है, जिसके संविधान में वैज्ञानिक चेतना की बात कही गई है. वैज्ञानिक चेतना का मतलब इसरो वाले विज्ञान से नहीं है. इसका तात्पर्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने से है. कि आप कुछ बोलने से पहले सोचें कि कहां बैठा हूं, किससे बात कर रहा हूं, क्या बात कर रहा हूं. ये नहीं कि बिना कंट्रोल कुछ भी कह दें.

ये समझना ज़रूरी है कि दिक्कत है कहां. गाने में, दीपिका के अभिनय में, उनके कपड़ों में या फिर इस बात में, कि गाने में शाहरुख खान नज़र आते हैं. क्या ये विरोध सिर्फ एक गाने या एक पोशाक का विरोध है. या फिर असली खेल कुछ और ही है.

Shameplant के बारे में सुना कभी? कभी देखा है? हमें लगता है कई लोगों ने देखा होगा. एक पौधा होता है, देसज गांव में उसे छुईमुई का पौधा कहते हैं. उसकी पत्तियों पर हाथ लगाओ तो वो खुद पर खुद सिकुड़ आती हैं. इसी के नाम पर बहुत छोटी छोटी बातों से प्रभावित या प्रोवोक हो जाने वाले लोगों को छुई मुई कह दिया जाता है. हमारा मानना है कि ये छुई मुई का अपमान है. क्योंकि पौधा जो प्रतिक्रिया देता है, वो कुदरत ने बनाई है. विज्ञान के ज़रिए उसके कारणों को समझा जा सकता है. जबकि जिन्हें छुई मुई कह दिया जाता है, उनके बारे में ये नहीं कहा जा सकता. उनकी बातों का न कुदरत से कोई लेना देना होता है, और न ही विज्ञान से. कब किस बात पर इनकी भावनाएं आहत हो जाती हैं, पता ही नहीं चलता. कभी किसी के कहे से आहत होती हैं, कभी किसी के लिखे से आहत होती हैं.

अब इन भावुक लोगों की ये भावनाएं अद्भुत होती हैं. समय से ज़्यादा बलवान होती हैं. तभी तो सदियों पुरानी बात पर आहत हो जाती हैं, जो वर्तमान में चल रहा होता है, उससे आहत रहती हैं. और जो भविष्य में होने वाला होता है, उससे भी आहत होती हैं - कि ऐसा हो गया, तो हम आहत हो जाएंगे, और फिर आप देख लेना… फिलहाल भावनाएं एक गीत के वीडियो के स्क्रीनशॉट से आहत चल रही हैं. शाहरुख खान की फिल्म पठान, उस फिल्म का गाना 'बेशरम रंग'. बोल हैं - 

“बेशरम रंग कहां देखा दुनिया वालों ने, हमें तो लूट लिया मिलकर इश्क वालों ने.”

3 मिनट 13 सेकेंड का गाना है. इस गाने में अभिनेत्री दीपिका पादुकोड ने कम से कम 10 रंग के कपड़े पहने हैं. बाकी किसी रंग के कपड़ों पर कोई आपत्ति नहीं हुई, गाने के 2 मिनट 50 सेकेंड के हिस्से पर वो सैफरन या भगवा रंग की बिकिनी में हैं. यही वो सीन है, जिसपर भावनाएं आहत हो गईं...4 दिन पहले ये गाना आया. विवाद तभी से चल रहा है. पहले हमने इसे इग्नोर किया, फालतू की बहस समझा. मगर धीरे-धीरे मामला बढ़ता गया. और फिर शाहरुख खान का एक बयान आ गया.

शाहरुख कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शामिल हुए और अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा 'जिंदा हैं हम'. फिल्म के बॉयकॉट की मांग और गाने पर उठे विवाद के बीच ये शाहरुख खान पहला बयान था. किसी नाम नहीं लिया, मगर इशारों में बहुत कुछ कह दिया.  

एक और बॉलीवुड फ़िल्म का बॉयकॉट शुरू हो चुका है. एक और इसलिए क्योंकि इससे पहले हमने बॉयकॉट की झड़ी लगते देखी है. ‘ब्रह्मास्त्र’, ‘लाल सिंह चड्ढा’, ‘लाइगर’ और भी कई फ़िल्में के साथ ऐसा हो चुका है. कोई बड़ी हिंदी फ़िल्म आ रही हो और किसी न किसी वजह से कॉन्ट्रोवर्सी न हो, ऐसा हो नहीं पा रहा है. इस बार ये सौभाग्य प्राप्त हुआ है शाहरुख खान की अपकमिंग फ़िल्म ‘पठान’ को. शाहरुख का बयान उसी परिपेक्ष में जोड़कर देखा गया.

फिल्म का डॉयलॉग बोला और इसे विरोध करने वालों को जवाब समझा गया. वैसे भी अभिव्यक्ति से मुंह मोड़कर एक लंबी चुप्पी को लबों पर ओढ़ लेना भी बड़ा मुश्किल है. वो भी तब जब बात अपने घर तक पहुंचने लग जाए. आपने आखिरी बार अमिताभ बच्चन को सामाजिक और तात्कालिक मुद्दों पर बोलते सुना था, 2012-13 के आस-पास पेट्रोल-डीजल की महंगाई पर उनके ट्वीट देखने को मिल जाते हैं. लेकिन बीते 8 सालों में कभी किसी ऐसे मसले पर नहीं बोला, जिस पर विवाद हो रहा हो. ये पहला मौका था, जब उसी मंच से अमित बच्चन ने अपनी चुप्पी तोड़ी. बात और खुल गई.

अमिताम बच्चन जैसे मेगा स्टार ने पहली बार खुलकर यूं अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल उठाए तो चर्चा लाजमी थी. शाहरुख खान ने भी उसी मंच से बयान दिया. अब तक बात का बतंगड़ बन चुका था. मचों पर नहीं, सड़कों से भी तस्वीरें आने लगी. जबलपुर, भोपाल, दिल्ली देश के कई इलाकों से हिंदुत्ववादी संगठनों ने फिल्म पर बैन की मांग शुरू कर दी, किसी ने कहा गाने का वो सीन हटाया जाए. भगवा रंग की बिकनी पहन कर अश्लीलता फैलाई जा रही है, किसी ने कहा भगवा कलर का कपड़ा पहना और गाने का नाम बेशर्म रंग रख दिया.

किसी ने कहा ये संस्कृति का अपमान है. सोशल मीडिया पर सब को कहने-सुनने की आजादी है, कहने वाले कुछ भी कह सकते हैं. और ऐसा कहने वालों को कई लोग फ्रिंज एलीमेंट भी कहकर खारिज कर भी कर सकते हैं. मगर सरकार और उससे जुड़े नेता इस विवाद में कूद पड़ें तो कोई कैसे खारिज कर सकता है. दरअसल सोशल मीडिया पर छिटपुट तरीके से हो रहे कपड़े के रंग पर विवाद को पहली हवा मिली, मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बयान से.

गाने के एक सीन पर भी नहीं, सीन में पहने गए कपड़े और उस कपड़े के रंग पर. देश के दूसरे सबसे बड़े सूबे मध्य प्रदेश के गृहमंत्री कहते हैं सीन को एडिट नहीं किया गया तो मध्य प्रदेश में फिल्म नहीं रिलीज होने देंगे. इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं. किसी ने कहा ये गाना अश्लील लग रहा है तो पॉज करके-करके कौन देख रहा है? किसी ने कहा गृहमंत्री को ये मुद्दा इतना जरूरी क्यों लगा? वैसे ऐसा नहीं है कि पहली बार एमपी के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा की भावनाएं आहत हुई हों, इससे पहले भी कई छोटे-बड़े मसलों पर आहत हो चुके हैं.

वैसे मध्य प्रदेश का गृहमंत्री होने के नाते इनके पास आहत होने के कई विषय हो सकते थे. राज्य में अपराध बढ़ा है, अवैध खनन की समस्या है, सीरियल किलिंग के सबसे ज्यादा मामले सामने आए, आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ा. मगर इस पर भावनाएं आहत नहीं हुई. कुछ आंकड़े सामने रखते हैं. समझने की कोशिश की कीजिएगा. केंद्र और मध्यप्रदेश - दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार है. तो हम उम्मीद करते हैं कि इन आंकड़ों को लेकर माननीय नाराज़ नहीं होंगे. क्योंकि आंकड़े सरकारी हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो NCRB के 2022 में जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक

1. 2021 में मध्यप्रदेश में कुल चार लाख 75 हज़ार 918 प्रकरण दर्ज किए गए. ये बीते साल माने 2020 से 42 हज़ार अधिक हैं.

2. 2020 से 2021 के बीच मप्र में हिंसक अपराध 11.8 फीसदी बढ़ गए. 2020 में 23 हज़ार 287 हिंसक अपराध दर्ज किए गए थे और 2021 में 26 हज़ार 38 हिंसक अपराध दर्ज किए गए.

3.2021 में देशभर में 13 सीरीयल किलिंग के मामले दर्ज हुए थे. इनमें से सबसे ज़्यादा 4 अकेले मप्र से रिपोर्ट हुए थे.

4. भारत में नाबालिगों के खिलाफ अपराध के मामलों में मध्यप्रदेश लगातार दूसरे साल टॉप पर है. 2021 में 19 हज़ार 173 मामले दर्ज किए गए थे.

5. आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में भी मध्यप्रदेश नंबर 1 पर है. 2021 में ऐसे 2 हज़ार 627 मामले दर्ज हुए. एक अच्छी बात ये है कि अनुसूचित जाति-जनजाति से संबंधित मामलों में राज्य की पुलिस ने 99 फीसदी चालान भी प्रस्तुत कर दिए हैं.

6. दहेज हत्या के मामलों में मध्यप्रदेश देश में तीसरे नंबर पर है. 2021 में ऐसे 522 मामले दर्ज हुए. घरेलू हिंसा के मामले में मध्यप्रदेश पहले तीन राज्यों में आता है.

7. सीनियर सिटिज़न्स के खिलाफ अपराध के मामले में भी मध्यप्रदेश नंबर 1 है. 2021 में सूबे में 60 साल से ऊपर के लोगों के खिलाफ 5 हज़ार 273 मामले दर्ज हुए. 2020 में ऐसे 4 हज़ार 602 मामले दर्ज हुए थे. माने एक साल में 14.5 फीसदी का उछाल आया है.

असल समस्याएं ये हैं। मगर इस पर कोई आहत नहीं होता. और आहत होने वालों की लिस्ट में सिर्फ एमपी के नेता नहीं रहे. बात संसद के गलियारे तक पहुंच गई है. राजस्थान के सीकर से बीजेपी सांसद ने भी इसको भगवा का अपमान बता दिया, भोपाल वाली साध्वी प्रज्ञा ने भी सभी हिंदुओं से फिल्म के बहिष्कार की बात कर डाली.

राजनीति अपनी जगह है। मगर सवाल ये है कि क्या वाकई एक गाने के सीन पर इतना विवाद जरूरी है? जो भगवा साधु पहनते हैं और जो भगवा रंग की बिकनी दीपिका ने पहनी है, विरोध करने वालों को दोनों का फर्क समझ नहीं आता? असल जिंदगी हो या फिल्म हो. इस कलर के कपड़े पहले भी पहने जाते रहे हैं. और वो हर तरह के कपड़े होते हैं. पहले भी तमाम गानों में ऐसा हुआ है. जिनमें नायिका ने भगवा रंग के कपड़े पहने हैं. एक गाना अक्षय कुमार का है. कटरीना कैफ के साथ उनका 'दे दनादन' का गाना 'गले लग जा'. इसमें कटरीना ने भगवा रंग के कपड़े पहने हैं.

अक्षय कुमार की ही एक और फिल्म है भूल भुलैया. इसके टाइटल ट्रैक में अक्षय और दूसरे कलाकारों ने न सिर्फ भगवा पहना हुआ है, बल्कि कुछ मालाएं भी दिखती हैं, जिनका इस्तेमाल धार्मिक काज के लिए होता है. 'रंगीला' के 'तन्हा-तन्हा यहां पे जीना' गाने में भी उर्मिला ने भगवा रंग की ड्रेस पहनी हुई थी. 'मैंने प्यार क्यूँ किया' के गाने 'लगा-लगा रे' में सलमान खान के साथ सुष्मिता सेन ने भगवा रंग की साड़ी पहन रखी थी. कई लोगों ने बीजेपी सांसद रविकिशन, निरहुआ, मनोज तिवारी के पुराने गानों की तस्वीरें  निकाल दीं, जिसमें हीरोइन ने भगवा रंग के कपड़े पहने रखे हैं.

पहले विरोध नहीं हुआ तो अब क्यों? रंग को धर्म से जोड़कर देखना और उसे बिना बात के उछालना कैसे सही हो सकता है? रंग को सिर्फ़ रंग रहने ना दिया जाए, उसे धर्म क्यों बनाया जाए? शास्त्रों में या संविधान में क्या ऐसा कहा गया है क्या कि भगवा पहनकर नृत्य नहीं किया जा सकता? सबसे अहम बात हम रंग में इतनी देर से उलझे क्यों हुए हैं? रंग के पीछे का मर्म क्या है? उसे समझने की कोशिश क्यों नहीं हो रही? क्या फकत कपड़े के रंग की वजह से विवाद है या फिर इसके पीछे कुछ और है? एमपी के भोपाल की तस्वीरों को जरा ध्यान से देखिए.

फिल्म पठान के विरोध में पोस्टर लहराए जा रहे हैं. मगर जो उस पर लिखा उसे पढ़ने की जरूरत है. JNU टुकड़े-टुकड़े गैंग. इस्लामिक जिहाद. अब बताइए जरा जब गाने में भगवा रंग की बिकनी का विरोध हो रहा है तो बीच में JNU और इस्लामिक जिहाद कहां से आ गया? हम बताते हैं. पहले JNU. फिल्म की अभिनेत्री दीपिका पादुकोण 7 जनवरी 2020 को JNU पहुंची थीं. उस वक्त राइट और लेफ्ट विंग के छात्रों में मारपीट हुई थी. नकाबपोश कोमल तो याद ही होगी, तभी की बात कर रहे हैं. उस वक्त दीपिका घायल छात्राओं के साथ खड़ी नजर आईं थीं. वैसे कहा उन्होंने कुछ भी नहीं था. अब आइये इस्लामिक जिहाद पर. फिल्म का नाम है पठान. हीरो हैं शाहरुख खान. फिलवक्त नाम ही काफी है. रंग के पीछे विरोध का जो लबादा ओढ़ा गया है? कहीं वजह यही तो नहीं ? सवाल लोगों के मन में हैं, जवाब भी लोग जानते हैं.

रही बात दीपिका के भगवा रंग के छोटे कपड़े पहनने की, तो ये उनकी आज़ादी है. वो चाहे जैसे कपड़े पहनें. यदि आपको वो अश्लील लग रहा है, तो मत देखिए. कोई फिल्म, रिलीज होने से पहले. सरकार की ही संस्था Central Board of Film Certification की नजर से होकर गुजरती है. अगर कुछ गलत होता है तो वहीं रोक दिया जाता है. या उसे ठीक करने के लिए कहा जाता है. विरोध का अधिकार सबको है. पिक्चर, गाने या फिर किसी भी आर्ट फॉर्म को जमकर लताड़िए, विरोध कीजिए, पर उसके लिए दमदार तर्क होने चाहिए. मगर ये तरीका तो अजीब है. क्या विवेकानंद का देश इतना तर्कविहीन हो गया है कि उसे किसी के भगवे रंग के छोटे कपड़े पहनकर डांस करने से आपत्ति हो? गांधी का देश लॉजिक पर चलना चाहिए, ना कि बेसलेस इमोशंस पर.

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