ये कौन-सा चुनाव है, जिसमें सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही वोट डाल सकते हैं?
भारत में होने वाले चुनाव की ही बात कर रहे हैं.
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एमएलसी की कुछ सीटों पर ग्रेजुएट और टीचर्स ही वोट दे सकते हैं. (सांकेतिक फोटो-पीटीआई)
उत्तर प्रदेश. वो राज्य जहां विधानसभा के साथ विधान परिषद भी है. विधान परिषद यानी MLC की 11 सीटों के लिए इसी साल अप्रैल में चुनाव होना था, लेकिन कोरोना की वजह से नहीं हो पाया. अब उड़ती-उड़ती खबरें आ रही हैं कि ये चुनाव नवंबर में हो सकते हैं. बीजेपी समेत बाकी पार्टियां इस चुनाव की तैयारियों में जुट गई हैं.11 सीटों का ये चुनाव किस तरह का चुनाव है, आसान भाषा में आज इसी पर बात करेंगे. ये चुनाव है, शिक्षक और स्नातक क्षेत्र का चुनाव. अंग्रेजी में कहें तो Teachers Constituency and Graduate Constituency election.
भारत में सरकार चलाने का तरीका दो सदनों पर टिका है. केंद्र में लोकसभा और राज्यसभा हैं. राज्य में विधानसभा और विधान परिषद. हालांकि देश में इस समय सिर्फ छह ही राज्य हैं, जहां विधान परिषदें हैं. बिहार (58), कर्नाटक (75), महाराष्ट्र (78), तेलंगाना (40) और उत्तर प्रदेश (100). इनके अलावा, आंध्र प्रदेश में विधान परिषद के 58 सदस्य हैं. लेकिन आंध्र प्रदेश कह रहा है कि हमें विधान परिषद नहीं चाहिए. वहां सरकार विधान परिषद को खत्म करने के लिए प्रस्ताव पारित कर चुकी है. केंद्र से इस पर आगे बढ़ने की मांग कर रही है. अनुच्छेद-370 हटने के साथ जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने से पहले तक वहां भी विधान परिषद थी.
विधान परिषद के सदस्य कैसे चुने जाते हैं?
विधान परिषद के सदस्यों की संख्या अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है. फिर भी एक कॉमन पैरामीटर है- विधान परिषद में विधानसभा के एक-तिहाई से ज्यादा सदस्य ना हों, और कम से कम 40 तो हों ही. एक-तिहाई सदस्यों को विधायक मिलकर चुनते हैं. एक-तिहाई सदस्यों को नगर निगम, जिला बोर्ड वगैरह के सदस्य चुनते हैं. 1/12 सदस्यों को टीचर्स और 1/12 सदस्यों को रजिस्टर्ड ग्रेजुएट्स चुनते हैं. बाकी सदस्यों को राज्यपाल नॉमिनेट करते हैं. कार्यकाल 6 साल का होता है.विधान परिषद के जिन सदस्यों को टीचर्स और रजिस्टर्ड ग्रेजुएट्स चुनते हैं, उन्हें ही शिक्षक और स्नातक क्षेत्र का चुनाव कहते हैं. इस चुनाव में सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही वोट डाल सकते हैं. ये दो अलग-अलग चुनाव हैं. पर बहुत कुछ कॉमन है.
पहले बात करते हैं शिक्षक सीट की
उत्तर प्रदेश के चुनाव की बात हो रही है तो उदाहरण के लिए इसी राज्य को लेकर चलते हैं. यूपी में विधान परिषद की 100 सीटे हैं .इसमें आठ सीटें शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की हैं.ये आठ सीटें हैं
बरेली-मुरादाबाद डिविजन लखनऊ डिविजन गोरखपुर-फैजाबाद डिविजन वाराणसी डिविजन इलाहाबाद-झांसी डिविजन कानपुर डिविजन आगरा डिविजन मेरठ डिविजन

कौन दे सकता है वोट?
वोटर कार्ड होते हुए भी हर कोई इसमें वोट नहीं डाल सकता. वोट डालने के लिए आपका टीचर होना भी काफी नहीं है. इन आठ सीटों पर होने वाले MLC के चुनाव के लिए हाईस्कूल और उसके ऊपर पढ़ाने वाले टीचर्स वोट डाल सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें MLC चुनाव में वोटर बनना होता है. माध्यमिक विद्यालय, पब्लिक स्कूल, कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, पॉलिटेक्निक कॉलेज, सेंट्रल स्कूल और अन्य स्कूलों के टीचर्स वोट डाल सकते हैं. इसके अलावा मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों के टीचर्स को भी वोटिंग राइट होते हैं. इन्हें जिला विद्यालय निरीक्षक से साइन कराने होते हैं. अगर जिला विद्यालय निरीक्षक लिखकर दे दें कि फलां व्यक्ति टीचर हैं तो वो वोटर लिस्ट में नाम डलवा सकते हैं.
वोटर कैसे बनते हैं?
वो टीचर, जो कम से कम तीन साल से पढ़ा रहे हैं, वोटर बनने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. इसी तरह ऐसे टीचर, जिन्हें रिटायर हुए तीन साल से ज्यादा ना हुआ हो, वो भी वोट डाल के काबिल होते हैं. वोटर बनने के लिए टीचर्स को फॉर्म 19 भरना होता है. इसमें नाम, गांव, स्कूल-कॉलेज का विवरण भरना होता है. इनका प्रूफ देना होता है. घर के पते के लिए राशनकार्ड, वोटर आईडी, पासपोर्ट वगैरह. जिस स्कूल-कॉलेज में आप पढ़ा रहे हैं, उसका प्रूफ भी लगाना होता है. इस फॉर्म को प्रूफ के साथ Electoral Registration Officer (ERO) के यहां जमा करना होता है. इसके बाद आगे की प्रक्रिया पूरी करने के बाद लिस्ट में नाम दिखने लगता है. अब इसे आप ऑनलाइन भी चेक कर सकते हैं.
चुनाव होते कैसे हैं?
हर छह साल में चुनाव होते हैं. जिन टीचर्स के नाम वोटर लिस्ट में आ जाते हैं, वो वोट डालते हैं. ब्लॉक लेवल वोटिंग होती है. इन चुनावों के लिए भी अब कहीं-कहीं ईवीएम का इस्तेमाल होने लगा है. बाकी आगे की वही प्रक्रिया है. जिस उम्मीदवार को ज्यादा वोट मिलते हैं, वो विजेता घोषित कर दिया जाता है. एमएलसी बन जाता है.
कौन चुनाव लड़ सकता है?
हाईस्कूल के टीचर, प्रिंसिपल, कॉलेज के प्रोफेसर चुनाव लड़ सकते हैं.अब बात स्नातक क्षेत्र के चुनाव की
अब तक हमने बताया टीचर्स कोटे से एमएलसी बनने के बारे में. अब बात करते हैं Graduate Constituency election की. जैसा कि हमने आपको टीचर वाले में बताया, वही बातें यहां भी लागू होती हैं. उत्तर प्रदेश विधान परिषद में ग्रेजुएशन कोटे की आठ सीटें हैं. वही सीटें, जिनका जिक्र हमने टीचर वाले में किया है. इसमें भी वही लोग वोट डालते हैं, जिन्होंने कम से कम ग्रेजुएशन की पढ़ाई की हो. ग्रेजुएशन किए तीन साल हो गया हो, तो वोटर लिस्ट में नाम डलवाने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. एक बार वोटर लिस्ट में नाम आने के बाद वोट डाल सकते हैं. एमएलसी को चुनने वाले और एमएलसी के उम्मीदवार ग्रेजुएट होने चाहिए.ये चुनाव होता क्यों है?
संसदीय लोकतंत्र की पूरी व्यवस्था प्रतिनिधित्व के सिद्धांत पर चलती है. शिक्षकों और ग्रेजुएट को प्रतिनिधित्व देने के लिए इस कोटे से एमएलसी चुने जाते हैं. इस चुनाव को कराने का उद्देश्य यही है. विधान परिषद की संरचना और गठन करते समय संविधान निर्माताओं ने इस चीज को शामिल किया था. उसी समय से ये चुनाव हो रहे हैं. टीचर्स या ग्रेजुएट कोटे से चुने गए एमएलसी को भी विधायकों जितनी ही शक्तियां मिलती हैं. यहां तक कि वो मंत्री और मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं.
लेकिन एक बात को लेकर बार-बार सवाल उठते रहे हैं कि क्या ये चुनाव अपने उद्देश्य को पूरा कर पा रहे हैं? पहली बात तो ये कि हर टीचर वोट नहीं डालता. क्योंकि इसके लिए उन्हें अलग से खुद को वोटर के तौर पर रजिस्टर्ड करना होता है. उदाहरण के लिए कर्नाटक में 2007 के एक चुनाव में देखा गया कि टीचर्स कोटे से चुनाव के लिए सात लाख मतदाता योग्य थे, लेकिन इनमें से सिर्फ 60 हजार ने ही वोटर लिस्ट में अपना नाम डलवाया. 21,270 लोगों ने वोट डाला, जो कि योग्य वोटर्स का मात्र तीन प्रतिशत है. जीतने वाले कैंडिडेट को 11,423 वोट मिले. योग्य वोट का 1.6 प्रतिशत वोट. और वह एमएलसी बन गया.
चलते-चलते ये भी जान लीजिए कि उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी कभी ग्रेजुएट्स का चुनाव लड़कर एमएलसी चुने गए थे.
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