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क्या होती है शत्रु संपत्ति, जिसे मोदी सरकार बेचने की तैयारी कर रही है?

ऐसी कुल 9,400 संपत्तियां हैं.

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मुंबई में मौजूद जिन्ना हाउस के भी शत्रु संपत्ति होने की डिबेट चलती रहती है.
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मुबारक
24 जनवरी 2020 (Updated: 27 अगस्त 2024, 11:52 AM IST) कॉमेंट्स
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केंद्र सरकार देश में कुल 9,400 शत्रु संपत्तियां बेचने की तैयारी कर रही है. इनको बेचने से एक लाख करोड़ रुपए की कमाई का अनुमान है. इस काम के लिए सरकार ने तीन समितियां बनाई हैं. इससे पहले नवंबर, 2018 में तीन हजार करोड़ रुपए के बराबर शत्रु संपत्तियां बेचने का फैसला किया था.
अब आप पूछेंगे कि भैया ये एनिमी प्रॉपर्टी अर्थात शत्रु संपत्ति है क्या बला? तो आसान भाषा में बताए देते हैं.

शत्रु संपत्ति 

शॉर्ट में समझाएं तो शत्रु संपत्ति का सीधा सा मतलब है शत्रु की संपत्ति. दुश्मन की संपत्ति. फर्क बस इतना है कि वो दुश्मन किसी व्यक्ति का नहीं मुल्क का है. जैसे पाकिस्तान, चीन. 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ. जो लोग पाकिस्तान चले गए वो अपना सब कुछ तो उठाकर नहीं ले गए. बहुत कुछ पीछे छूट गया. घर-मकान, हवेलियां-कोठियां, ज़मीन-जवाहरात, कंपनियां वगैरह-वगैरह. इन सब पर सरकार का कब्ज़ा हो गया. आसान भाषा में यूं समझिए कि जिनका इन संपत्तियों पर मालिकाना हक़ था वो तो चले गए पराए मुल्क, जायदाद यहीं पर रह गई. अब इस जायदाद को भारत सरकार बेचने जा रही है.
शत्रु संपत्ति एक और तरह की भी होती है. जब दो देशों में युद्ध छिड़ जाए तब भी सरकार अपने दुश्मन देश के नागरिकों की मुल्क में मौजूद प्रॉपर्टी एक तरह से ज़ब्त कर लेती है. ताकि दुश्मन देश लड़ाई के दौरान उसका फायदा न उठा सके. ऐसा दुनिया भर में होता रहा है. वर्ल्ड वॉर के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन ने जर्मन्स की प्रॉपर्टी यूं ही कब्ज़े में कर ली थी.

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सबसे ज़्यादा मशहूर है राजा महमूदाबाद

1962 में भारत-चायना जंग हुई. 65 और 71 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ. उस वक़्त भी इंडिया ने भारत सुरक्षा अधिनियम के तहत इन देशों के नागरिकों की प्रॉपर्टी कब्ज़ा ली थी.  इस मामले के लिए 1968 में पारित एक शत्रु संपत्ति अधिनियम भी है. इस अधिनियम के तहत ऐसी तमाम संपत्तियों के मालिकान को अपनी जायदाद के रख-रखाव के लिए कुछ अधिकार भी हासिल हैं. हालांकि ये अधिकार साफ़-स्पष्ट नहीं है और इसी के चलते कई मामले अदालत में हैं. ऐसे तमाम मामलों में सबसे ज़्यादा मशहूर है राजा महमूदाबाद और उनके वारिसों का केस.

चार दशक से ज़्यादा चली सरकार से जंग

ये केस बड़ा दिलचस्प है. है तो लंबी दास्तान लेकिन थोड़े में समेटने की कोशिश करते हैं. मुहम्मद आमिर मुहम्मद खान नाम के एक शख्स ने चालीस साल से ज़्यादा अरसा अपने विरसे के लिए लड़ाई लड़ी है. इनका ताल्लुक यूपी के सीतापुर से है. यहां कभी उनके पुरखों की रियासत हुआ करती थी. महमूदाबाद रियासत. आज भी मुहम्मद आमिर मुहम्मद खान साहब को राजा महमूदाबाद कहके ही पुकारा जाता है.
जब बंटवारा हुआ था तब उनके पिताजी आमिर अहमद खान ईराक चले गए थे. बाद में सन 57 में उन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली. लेकिन बेटे ने नहीं ली. वो भारतीय नागरिक बने रहे. जब पाकिस्तान के साथ 65 की लड़ाई हुई, सरकार ने राजा महमूदाबाद की तमाम प्रॉपर्टी को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया. बेशुमार प्रॉपर्टी. लखनऊ, सीतापुर, नैनीताल में फैली हुई. राजा महमूदाबाद कोर्ट गए. इंदिरा गांधी से लेकर मोरारजी देसाई तक कई प्रधानमंत्रियों से गुहार लगाई. कुछ न हुआ. फिर कुछ हुआ भी तो न्यायपालिका के रास्ते.

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राजा महमूदाबाद

पहले मुंबई हाई कोर्ट ने और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला राजा के हक़ में दिया. कहा कि राजा साहब भारत के नागरिक हैं और किसी तरह से राष्ट्र के शत्रु नहीं है. लिहाज़ा उनकी सारी जायदाद उन्हें वापस कर दी जाए. लेकिन कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती.

भारत सरकार को लगा कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐसे तमाम केसेस का भट्टा बिठा देगा. एक नज़ीर बन जाएगा जिसकी वजह से सरकार को ऐसी बहुत सी संपत्तियों से हाथ धोना पड़ जाएगा. हुकूमत ने 1968 के बने इस एक्ट में संशोधन करने की सोची. 17 मार्च 2017 को ये अमेंडमेंट हो भी गया. नए कानून के हिसाब से एनिमी प्रॉपर्टी की व्याख्या बदल गई. अब वो लोग भी शत्रु हैं जो भले ही भारत के नागरिक हैं लेकिन जिन्हें विरासत में ऐसी संपत्ति मिली है जो किसी पाकिस्तानी नागरिक के नाम है. इसी संशोधन ने सरकार को ऐसी प्रॉपर्टी बेचने का भी अधिकार दे दिया. सो बेसिकली बात ऐसी हो गई कि इस तरह की तमाम संपत्तियों के मालिकाना हक़ स्टेट यानी हुकूमत के पास चले गए. नतीजतन राजा महमूदाबाद की सारी की सारी संपत्ति अब भारत सरकार की है.
संशोधित अधिनियम के मुताबिक़,

# कस्टोडियन को, जो कि अमूमन सरकार ही होती है, ऐसी प्रॉपर्टी का मालिक मान लिया गया. ये 1968 से ही प्रभावी माना गया. # भारतीय नागरिक शत्रु संपत्ति विरासत में किसी को दे नहीं सकते. # अब तक जितनी भी ऐसी संपत्तियां बेची जा चुकी हैं उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. # दीवानी अदालतों को ज़्यादातर मामलों में शत्रु संपत्ति से जुड़े मुकदमों पर सुनवाई का हक़ नहीं होगा. # मामले की सुनवाई सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही होगी.

कुल मिलाकर ये है कि भारत के किसी नागरिक ने ऐसी कोई प्रॉपर्टी खरीदी भी है तो उसे भी सरकार वापस ले सकती है. कानूनी तौर से.
भारत सरकार ने अब तक कोई 9,400 शत्रु संपत्तियों की पहचान की है. इनमें से ज़्यादातर पाकिस्तानी नागरिकों के नाम है. इन्हीं में से कुछ को भारत सरकार बेचने जा रही है. ज़्यादातर बिक्री उन शेयर्स की होगी जो शत्रु संपत्ति में आने वाली कंपनियों के हैं. ऐसी कुल 996 कंपनियां हैं जिनमें से सिर्फ 588 ही सक्रीय हैं. इन 996 कंपनियों में कुल 20,323 शेयरधारक हैं. इनके 6,50,75,877 शेयर सीईपीआई (कस्टोडियन ऑफ़ एनिमी प्रॉपर्टी ऑफ़ इंडिया) के कब्ज़े में हैं. मोदी सरकार इन्हीं शेयर्स को बेचकर तीन हज़ार करोड़ जुटाएगी.

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