What did Sadguru (Jaggi Vasudev) actually said about Lord Krishna and Yashoda relation which sparked controversy?
The Lallantop

यशोदा और कृष्ण के संबंध पर जग्गी वासुदेव की कही बातों पर विवाद, पूरा सच जान लीजिए

जग्गी वासुदेव की पौने दो मिनट की ये वीडियो क्लिप क्यूं वायरल हो रही है?
News pic
आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव (राइट) के एक प्रवचन की बातों को लेकर सवाल उठाते हुए कई ट्वीट वायरल हो रहे हैं. (तस्वीर: PTI).
pic
Invalid Date Invalid Date
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
ईशा फ़ाउंडेशन के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव फिर से चर्चा और विवाद में हैं. गौर करने की बात ये कि अबकी बार विवाद से उनका नाता जुड़ा है 16 साल पहले कही गई उनकी एक बात की वजह से. आइए विस्तार से पूरा मामला बताते हैं.

# प्राक्कथन

श्री कृष्ण. भारतीय धार्मिक परंपरा के शायद सबसे बड़े ग्लोबल आइकन. उनसे करोड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है. तो अगर उनके बारे में कोई बात निकलती है तो दूर तक जाती है. ऐसे में अगर कोई कह दे कि जो आपको पता है, दरअसल बात वो नहीं, कुछ और है, तो भक्त क्या करेंगे? और तब क्या करेंगे जब कोई आध्यात्मिक गुरु ही कथित तौर पर कृष्ण के विषय में कोई नई बात कह डाले? बात भी अत्यंत विवादास्पद.
हालांकि, हो ये भी सकता है कि जो कहा गया, उसका मतलब वो नहीं हो, जो निकाला जा रहा है. या ये कि वैसा कहा ही न गया हो.

# तो हुआ क्या है?

दरअसल जग्गी वासुदेव का एक वीडियो है, जिसमें वो कहते नजर आते हैं-
[…तीन ऐसे ही ट्वीट्स का स्क्रीन शॉट. तीन ऐसे ही ट्वीट्स का स्क्रीन शॉट.


हालांकि जो वीडियो वायरल हो रहा है, उस वीडियो में जग्गी वासुदेव कहीं भी lust या incestuous feeling (वासना के संदर्भ में) शब्द का उपयोग करते हुए नहीं दिखे. 
एक दूसरे ट्वीट में जग्गी की बात को कोट करके पूछा जा रहा है, "लोग उनका मथुरा, वृंदावन आना कब प्रतिबंधित करेंगे?":
How long before people ban him for entering Vrindavan and Mathura? 😂pic.twitter.com/3QxOuvoU6H

— Outlawed Tune (@DoabiHerdsman) April 3, 2021
एक तीसरा वर्ज़न ये रहा:

# दूसरा पक्ष

हमने इस पूरे विवाद पर ईशा फ़ाउंडेशन का पक्ष जाना. उन्होंने लिखित में अपनी बात रखी. उसका सार ये है-
यह संवाद लीला कार्यक्रम से निकाला गया है, जिसे सद्गुरु ने 2005 में कृष्ण की लीला का उत्सव मनाने के लिए संचालित किया था. इस वीडियो (जो ट्विटर वग़ैरह में इन दिनों वायरल हो रहा है) में सद्गुरु के शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश करने के लिए, साफ़ तौर पर किसी ने ओरिजनल कंटेंट को बड़ी चालाकी से एडिट किया है. ओरिजनल/असली वीडियो में सद्गुरु बताते हैं कि कैसे “अनेक अद्भुत महिलाएं थीं, जो सभी कृष्ण की भक्त थीं. कृष्ण, एक ऐसी ईश्वरीय शक्ति थे कि किसी के लिए भी उनका भक्त बनने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था. यही वजह है कि उनकी मां भी उनकी भक्त बन गई थीं.” इन हिस्सों को जानबूझकर निकाल दिया गया है.
वीडियो में सद्गुरु बताते हैं कि “कृष्ण शुरू से ही सर्व-समावेशी थे. एक बच्चे के रूप में, जब उन्होंने अपनी मां को यह दिखाने के लिए कि वे मिट्टी नहीं खा रहे हैं (या मिट्टी खा रहे हैं, जो भी था) तब भी वे सर्व-समावेशी थे. (कि मेरे अंदर ही सब कुछ समाहित है) जब उन्होंने गोपियों के साथ नृत्य किया, तब भी वे सर्व-समावेशी थे. उन्होंने कभी भी उनके साथ सुख भोगने के बारे में नहीं सोचा.”
कई वीडियो में सद्गुरु ने साफ़ तौर पर बताया है कि “भक्ति एक ऐसी चीज है जो भौतिक शरीर से परे है. यह मुक्ति पाने की एक सर्व-समावेशी प्रक्रिया है.”
रास का जो अर्थ है, हम कह सकते हैं कि यह जीवन का रस है. अंग्रेजी में इसके लिए शायद कोई सटीक शब्द नहीं है. यह 'जीवन के रस' की तरह है. तो जब हम गोविंदा कहते हैं, यानि एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन के रस से खेला.
अगर लोग ‘प्रेमी' शब्द को केवल यौन सम्बन्ध के रूप में प्रस्तुत करते हैं, तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. इस संस्कृति में, सभी भक्तों को प्रेमी माना जाता है. बहुत से लोग ऐसे हैं जो अभी भी कृष्ण के प्रति अपना प्रेम दर्शाने के लिए खुद को 'कृष्ण प्रेमी’ नाम देते हैं. यह हमारी संस्कृति में अब भी बहुत प्रचलित है. यहां सद्गुरु इस संदर्भ में बोल रहे हैं.
दुर्भाग्य से, इन शरारती एडिटर्स का मानना है कि प्रेम केवल यौन संबंध के संदर्भ में हो सकता है, और वे सद्गुरु के शब्दों को एडिट और विकृत करके इस झूठे परिप्रेक्ष्य को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं.
यह शरारत सद्गुरु के बारे में नहीं है, यह कृष्ण के बारे में है, और भारत की संस्कृति के बारे में भी है.
इसके अलावा, ईशा फ़ाउंडेशन की मीडिया टीम ने हमें बताया-
वो जो रास है, उसके बारे में कहा गया है कि वो एकदम इच्छाओं से परे मुक्त होकर नाचना था. आज भी मथुरा और कई जगहों पर नाम होता है कृष्ण प्रेमी. लोगों ने (इस पूरे कंटेट को) न केवल मिसअंडरस्टैंड किया है, बल्कि मिसरिप्रेजेंट भी किया है. (न केवल ग़लत समझा है, बल्कि तोड़-मरोड़ कर पेश भी किया है.)
अब इसपर ख़ुद जग्गी वासुदेव की भी टिप्पणी आ गई है:

# सच के सवाल

कुछ तथ्य जो इस वायरल हो रहे वीडियो के ऊपर सवालिया निशान खड़े करते हैं, वो यूं हैं-
# अव्वल तो ये वीडियो 2005 का है, तो आज क्यूं वायरल हो रहा है/किया जा रहा है?
# ये वीडियो चार घंटे सात मिनट का है, तो सवाल ये भी है कि क्या इसमें से पौने दो मिनट का वीडियो काटकर ले लेने से, क्या वाकई में बड़े वीडियो के अर्थ का अनर्थ हो जा रहा है? इसका जवाब जानने के लिए आप ये चार घंटे वाला वीडियो देख सकते हैं-
# तीसरा सवाल थोड़ा दार्शनिक है. सवाल, जो ज्ञानमीमांसा की आज तक की सबसे बड़ी पहेली बनी हुई है. कि किसी टेक्स्ट का कौन सा वर्ज़न सही मानें? वो जो कहा गया है, वो जो सुना गया है या फिर वो वर्ज़न जो इन दोनों वर्ज़न से अलग है? वो तीसरा वर्ज़न, जो कहने और सुनने वाले के पूर्वग्रहों से सर्वथा मुक्त है?

# निष्कर्ष

‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखईं तैसी.’
आपने वो कहानी तो सुनी होगी जिसमें सात लोगों की आंखों पर पट्टी बांधकर उन्हें हाथी के सामने खड़ा कर दिया जाता था. सात ऐसे लोग जिन्होंने अतीत में कभी हाथी नहीं देखा था. दरअसल ये हाथी जैन धर्म के दर्शन की उपज है. दर्शन जो हर ‘नय’ (वाक्य) के साथ ‘स्याद’ (एक तरह से ये भी सही है) जोड़कर बात करता है.
किसी स्टोरी की तह तक जाने के लिए हमें भी जैन धर्म के इस स्यादवाद का सहारा लेना चाहिए. आसान और आंग्ल भाषा में कहें तो ‘स्केप्टिसिज़्म इस दी ऑनली वे आउट.’ बाकी एक मूवी है, ’12 एंग्री मैन’ जिसका हिंदी एडॉप्शन ‘एक रुका हुआ फ़ैसला’ नाम से बना है. देखिएगा ज़रूर.
वैसे गांधी का दर्शन, जैन धर्म के इस ‘स्यादवाद’ से बहुत प्रभावित था.


ये भी देखें: कोरोना के बढ़ते केसेज की वजह से लगने वाले लॉकडाउन से बचने का बस यही एक तरीका है!

और भी

कॉमेंट्स
thumbnail