इमरान खान ने पाक आर्मी और देश के भविष्य पर क्या खुलासा कर दिया?
पाकिस्तान में इमरान ने अब क्या कर दिया?

आज की ख़बर एक शख़्स के कुछ उत्तेजक बयानों से जुड़ी है.
मसलन,
चुनाव का ऐलान नहीं हुआ तो देश में सिविल वॉर हो जाएगा.
अगर एस्टैबलिशमेंट ने सही फ़ैसला नहीं लिया तो सेना बर्बाद हो जाएगी. ये मैं लिखकर दे सकता हूं.
जानेंगे, पाकिस्तान में इस तरह की चेतावनी कौन दे रहा है?
- दूसरा टॉपिक दुनिया के सबसे बड़े नौसैनिक अभ्यास से जुड़ा है. इसमें भारत की क्या भूमिका है?
- और, अंत में चलेंगे मिडिल-ईस्ट. 21वीं सदी की सबसे बड़ी क्रांति का बीज जिस देश में बोया गया, वहां जजों को थोकभाव में बर्ख़ास्त क्यों किया जा रहा है?
पहले बात पड़ोस की. यानी पाकिस्तान की.
अंग्रेज़ी भाषा के शब्द अल्टीमेटम का एक अर्थ निकलता है, अंतिम चेतावनी. आमतौर पर, जब अंतिम चेतावनी की तारीख़ बीत जाती है, उसके बाद आर-पार की लड़ाई होती है. 01 जून को पाकिस्तान में एक अल्टीमेटम बीत गया. लेकिन आगे जिस हलचल की उम्मीद थी, वैसा कुछ नहीं हुआ.
दरअसल, 25 मई को पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ (PTI) का आज़ादी मार्च राजधानी इस्लामाबाद में दाखिल हुआ. PTI के मुखिया और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने रैली से पहले भरपूर माहौल बनाया. शहबाज़ सरकार को धमकाते रहे. कहते रहे कि चुनाव का ऐलान करो, वरना राजधानी से वापस नहीं जाऊंगा. 25 मई की सुबह उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया. इसमें उन्होंने कहा, आपलोग पहुंचिए, मैं लोगों का हुज़ूम लेकर आ रहा हूं.
उनके भरोसे पर PTI के हज़ारों कार्यकर्ता इस्लामाबाद पहुंच गए. शाम में वे डेमोक्रेसी चौक पर जमा होने लगे. डेमोक्रेसी चौक को डी-चौक के नाम से भी जाना जाता है. ये चौराहा पाकिस्तान में कई बड़े आंदोलनों का गवाह रहा है. डी-चौक की एक खासियत और है. ये रेड ज़ोन के बिल्कुल क़रीब है. रेड ज़ोन में पाकिस्तान की सत्ता बसती है. यहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दफ़्तर और घर हैं. संसद है. सुप्रीम कोर्ट है. चुनाव आयोग है. इसी वजह से रेड ज़ोन को अतिसंवेदनशील इलाका माना जाता है.
सरकार ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि PTI को डी-चौक पर रैली की इजाज़त नहीं होगी. सरकार ने सेना तैनात कर दी. इसके बावजूद PTI के कार्यकर्ता पीछे नहीं हटे. वे डी-चौक पहुंच गए. फिर टकराव हुआ. प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज़ किया गया. आंसू गैस के गोले दागे गए. लोग जगह खाली करते. जैसे ही पुलिस थमती, वे फिर जमा हो जाते. ये सिलसिला देर रात तक चला. लेकिन फिर भी इमरान नहीं आए.
वो पहुंचे 26 मई की सुबह. लेकिन डी-चौक पर नहीं. जिन्ना एवेन्यू पर. वहां उन्होंने छोटा-सा भाषण दिया. बोले, मैं पाकिस्तान सरकार को 06 दिनों का टाइम देता हूं. 06 दिनों के अंदर नेशनल असेंबली भंग करके चुनाव का ऐलान करो. वरना मैं फिर से इस्लामाबाद आऊंगा.
इस चेतावनी के बाद इमरान वापस लौट गए. अपने हज़ारों कार्यकर्ताओं को हक्का-बक्का छोड़कर. लोगों को उम्मीद थी कि इमरान डी-चौक पर उनके साथ बैठेंगे. लेकिन अंतिम समय पर उन्होंने अपना मन बदल दिया था. इसको लेकर शहबाज़ सरकार ने उनके ऊपर अराजकता फैलाकर भाग निकलने का आरोप लगाया.
01 जून को इमरान का अल्टीमेटम पूरा हो गया. वादे के मुताबिक उन्हें इस्लामाबाद पहुंचना था. इसकी बजाय वे एक चैनल पर पहुंच गए. इंटरव्यू देने. बोल न्यूज़ का ये इंटरव्यू इस समय पाकिस्तान में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. इमरान ने इंटरव्यू में क्या राज़ खोले?
- ख़ां साहब का सबसे चौंकाने वाला खुलासा उनके कार्यकाल को लेकर था. अभी तक दबी ज़ुबान से कहा जाता था कि इमरान सेना के वरदहस्त से सरकार चला रहे थे. सत्ता की चाबी उनके पास नहीं थी. इंटरव्यू में ख़ां साहब ने इस दावे पर मुहर लगा दी. उन्होंने कहा,
मेरे पास कभी भी प्रधानमंत्री की पूरी शक्तियां नहीं थीं. सबको पता है कि पाकिस्तान में सत्ता का केंद्र कहां पर है.
इमरान ने सीधे तौर पर सेना का नाम नहीं लिया. इतना ज़रूर बोले कि देश को दुश्मनों से बचाने के लिए सेना का ताक़तवर होना ज़रूरी है. साथ ही साथ, ये भी ज़रूरी है कि सरकार के हाथ भी मज़बूत बने रहें.
- इमरान ने आगे कहा,
“हमारी सरकार शुरुआत से ही कमज़ोर थी. हमें सहयोगी पार्टियों का मुंह देखना पड़ता था. हमारे हाथ बंधे हुए थे. हमें हर तरफ़ से ब्लैकमेल किया जाता था. हमारे पास सिर्फ़ सत्ता थी. शक्ति नहीं. हमें हमेशा उनके भरोसे रहना पड़ता था. उन्होंने बहुत कुछ अच्छा भी किया लेकिन कई चीज़ें नहीं होनी चाहिए थी. उनके पास पॉवर था. कई ताक़तवर संस्थाओं पर उनका सीधा नियंत्रण था.”
इमरान पूरे इंटरव्यू में सेना को दोषी बताने से बचते रहे. लेकिन उनकी बातें सुनकर साफ़ अंदाज़ा हो जाता है कि उनका इशारा किस तरफ़ है. इस बयान में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि, पाकिस्तान की राजनीति में मिलिटरी एस्टैबलिशमेंट से ताक़तवर कुछ भी नहीं.
इमरान सरकार में मंत्री रहीं शिरीन मज़ारी ने 13 मई को ही अप्रत्यक्ष तरीके से सेना पर एक आरोप मढ़ा था. उन्होंने कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान न्यूट्रल रहने का दावा करने वाले कतई न्यूट्रल नहीं थे. हालिया समय में न्यूट्रल टर्म को पाक सेना के साथ जोड़ा जाता है. जिस समय अविश्वास प्रस्ताव को लेकर तकरार चल रही थी, उस समय सेना ने कहा था कि उन्हें इस राजनीति में ना घसीटा जाए. उनका दावा था कि वे न्यूट्रल हैं और न्यूट्रल रहेंगे.
सच्चाई कुछ ऐसी है कि पाकिस्तान में सेना और न्यूट्रल, दो ध्रुवों की तरह अलग हैं. वैधानिक चेतावनी - इन दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं है.
- इंटरव्यू के दौरान इमरान ने पाकिस्तान को लेकर एक भविष्यवाणी भी की. उन्होंने कहा कि अभी जो चल रहा है वो देश के साथ-साथ एस्टैबलिशमेंट के लिए भी ख़तरनाक है. पाकिस्तान दीवालिया होने की कगार पर पहुंच चुका है. अगर ऐसा हुआ तो सबसे तगड़ा झटका सेना को लगेगा. ऐसी स्थिति में डि-न्युक्लियराइजेशन की नौबत आ सकती है. और, अगर पाकिस्तान ने परमाणु हमले को टालने की क्षमता खोई तो देश तीन टुकड़ों में बंट जाएगा. अगर इस समय सही फ़ैसला नहीं लिया गया तो पाकिस्तान का ख़ात्मा तय है.
- अब जानते हैं, इमरान ने अविश्वास प्रस्ताव की रात की क्या अंदरुनी कहानी बताई?
इमरान सरकार के ख़िलाफ़ 09 और 10 अप्रैल की दरम्यानी रात अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराई गई थी. दावा किया जाता है कि वोटिंग से कुछ देर पहले एक हेलिकॉप्टर इमरान के घर के अहाते में उतरा. इसमें ISI चीफ़ फैज़ हमीद और आर्मी चीफ़ क़मर जावेद बाजवा बैठे थे. उन्होंने 45 मिनट तक इमरान के साथ मीटिंग की. संदेश दिया गया, ख़ां साहब, बहुत हो गया. अब ज़िद छोड़ दीजिए. आपके जाने का वक़्त हो चुका है. इसके बाद ही अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराई जा सकी. जिसके बाद इमरान ख़ान को कुर्सी छोड़नी पड़ी.
इमरान ने इस दावे की पुष्टि तो नहीं की. लेकिन इतना ज़रूर कहा कि,
इतिहास किसी को माफ़ नहीं करता. मैं डिटेल में नहीं जाऊंगा. बस इतना कहूंगा कि जब इतिहास लिखा जाएगा, तब वो रात पाकिस्तान के इतिहास में काले अक्षरों में लिखी जाएगी. उस रात पाकिस्तान और यहां की संस्थाओं का भारी नुकसान हुआ था. जिन संस्थाओं ने पाकिस्तान की नींव को मज़बूती दी, उन्हीं ने इसे कमज़ोर कर दिया.
- और अंत में सबसे ज़रूरी सवाल, PTI की अगली रैली कब होगी?
अल्टीमेटम ख़त्म होने के बाद से ये सवाल लगातार पूछा जा रहा है. इमरान ख़ान विरोधियों के साथ-साथ अपने ही लोगों के दबाव का सामना कर रहे हैं. उन्हें अपनी नेतृत्व-क्षमता भी साबित करनी है और अपने कहे का मान भी रखना है. इमरान ने अभी कोई तारीख़ नहीं बताई. उन्होंने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे.
दरअसल, PTI ने प्रोटेस्टर्स की सुरक्षा की गारंटी के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. 01 जून को पार्टी की तरफ़ से याचिका दायर की गई. इसमें मांग की गई है कि रैली के दौरान पुलिस या सेना उनके लोगों पर किसी तरह की ज़्यादती नहीं करेगी.
अदालत ने इस्लामाबाद प्रशासन और खुफिया एजेंसियों को 25-26 मई की घटना पर रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है.
एजेंसियों को दो सवालों का जवाब देने के लिए कहा गया है,
पहला, इमरान ख़ान ने किस समय पर प्रोटेस्टर्स को डी-चौक पहुंचने के लिए कहा था?

और दूसरा, क्या रेड ज़ोन में दाख़िल होने वाली भीड़ नियंत्रण में थी या उनका रवैया अराजकता से भरा था?
उन्हें रिपोर्ट पेश करने के लिए सात दिनों का समय मिला है. इसका मतलब ये हुआ कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने में कम-से-कम एक हफ़्ते का समय तो लगेगा ही. यानी, इमरान का अगला आज़ादी मार्च एक हफ़्ते बाद ही होगा. इमरान ख़ान लोगों का सपोर्ट बरकरार रखने के लिए क्या करते हैं, ये देखने वाली बात होगी.
इमरान के इंटरव्यू पर मचे बवाल के बाद सरकार की तरफ़ से भी बयान जारी हुआ. प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ इन दिनों तुर्की के दौरे पर हैं. उन्होंने ट्वीट किया,
“एक तरफ़ मैं तुर्की में रिश्ते जोड़ रहा हूं, दूसरी तरफ़ इमरान नियाज़ी खुलेआम देश को धमका रहे हैं. अगर किसी को ये सबूत चाहिए कि वो शख़्स पीएम ऑफ़िस के लिए अनफ़िट है या नहीं तो उसे हालिया इंटरव्यू देख लेना चाहिए. आप अपनी राजनीति करो लेकिन सीमा पार करने की कोशिश ना करें. पाकिस्तान के बंटवारे की बात तो कतई ना करें.”
इमरान के इंटरव्यू के बाद विरोधी पार्टियां उनके ऊपर चढ़कर बैठ गईं है. कोई कह रहा है, ये दुश्मनों की भाषा है. किसी का मत है कि इमरान बाइपोलर डिसऑर्डर का शिकार हो गए हैं. कोई उन्हें नफ़रत और अराजकता फैलाना वाला बता रहा है.
पाकिस्तान का चैप्टर यहीं तक. अब सबसे बड़े नौसेनिक अभ्यास की कहानी जान लेते हैं.
29 जून से होनुलुलू और सेन डिएगो में रिम ऑफ़ द पैसिफ़िक (रिमपैक) नेवल एक्सरसाइज़ शुरू होने वाली है. ये अभ्यास 04 अगस्त तक चलेगा. इसमें 38 जंगी जहाज, 04 पनडुब्बियां, 170 से ज़्यादा लड़ाकू विमान और 25 हज़ार से अधिक पैदल सैनिक हिस्सा लेंगे. रिमपैक को दुनिया का सबसे बड़ा नौसैनिक अभ्यास माना जाता है. इसे यूएस नेवी का इंडो-पैसिफ़िक कमांड आयोजित करता है. इसका हेडक़्वार्टर पर्लहार्बर में है.
इस बार का अभ्यास ख़ास क्यों है?दरअसल, इस बार रिमपिक में अमेरिका ने क़्वाड के सदस्यों के अलावा साउथ चाइना सी की सीमा पर बसे पांच देशों को भी बुलाया है. क़्वाड में अमेरिका के अलावा भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं. क़्वाड लगातार इंडो-पैसिफ़िक में चीन के बढ़ते प्रभाव को काउंटर करने के लिए काम कर रहा है. पिछले दो सालों में क़्वाड की चार दफ़ा बैठक हो चुकी है. दो बार चारों देशों के नेता आमने-सामने बैठकर बात कर चुके हैं. 24 मई को क़्वाड की टोक्यो में बैठक हुई थी. उस दौरान भी चीन का मुद्दा सबसे अहम रहा था. क़्वाड की बैठक से ठीक पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने विरोधी बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि क़्वाड एशियन नेटो बनता जा रहा है. वांग ने ये आरोप भी लगाया था कि क़्वाड एशिया में कोल्ड वॉर शुरू कराने की मंशा रखता है.
ये तो हुई क़्वाड की बात, साउथ चाइना सी के मुहाने पर बसे किन देशों को बुलाया गया है?
कुल पांच देश हैं. फ़िलिपींस, मलेशिया और ब्रुनेई का चीन के साथ लगातार टकराव हो रहा है. इंडोनेशिया का साउथ चाइना सी में चीन के साथ तनाव बढ़ा है. इसके अलावा, रिमपैक में सिंगापुर को भी न्यौता दिया गया है.
रिमपैक की स्थापना 1971 में की गई थी. हर दो साल में ड्रिल होती है. अमेरिका वक़्त की ज़रूरत के हिसाब से देशों को हिस्सा लेने के लिए बुलाता रहता है. इस बार के अभ्यास में 26 देश हिस्सा ले रहे हैं.
रिमपैक के बाद चलते हैं मिडिल-ईस्ट. उस देश में, जहां 11 बरस पहले सदी की सबसे बड़ी क्रांति शुरू हुई थी. हम ट्यूनीशिया की बात कर रहे हैं. जहां एक फल-विक्रेता के शरीर में लगी आग ने पूरे मिडिल-ईस्ट को अपनी चपेट में ले लिया था. ट्यूनीशिया से शुरू हुई क्रांति कई अरब देशों में फैली. जिसके कारण कई देशों में जमे-जमाए तानाशाहों को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. इस क्रांति को अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है. ट्यूनीशिया अरब स्प्रिंग का गर्भगृह था.
अरब स्प्रिंग से उम्मीद थी कि मिडिल-ईस्ट में लोकतंत्र लौटेगा. लोगों को आज़ादी मिलेगी. तानाशाहों का अंत होगा. लेकिन अधिकतर उम्मीदों पर पानी फिर गया. यमन, सीरिया, लीबिया जैसे देश सिविल वॉर की चपेट में आ गए. बाकी देशों में ग़रीबी, भुखमरी, अस्थिरता जैसी समस्याओं ने जड़ जमा लिया है.
तुलनात्मक तौर पर ट्यूनीशिया इन सभी देशों से बेहतर स्थिति में था. वहां हालात काफ़ी बदले थे. लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति कैस सईद देश को वापस उसी दौर में ले जाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं.
सईद अक्टूबर 2019 में ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति बने थे. शुरुआत से ही उन्होंने सत्ता पर नियंत्रण के लिए हाथ-पैर मारते रहे. जुलाई 2021 में उन्होंने सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया. उन्होंने 2014 के संविधान को किनारे कर चुनी हुई संसद को भी भंग कर दिया था.
01 जून को कैस सईद ने 57 जजों को एक साथ बर्ख़ास्त कर दिया. आरोप ये कि सभी जज भ्रष्टाचार और आतंकियों को बचाने के अपराध में लिप्त थे. टीवी पर दिए संबोधन में उन्होंने कहा, हमने न्यायपालिका की सफ़ाई के कई मौके दिए. कई बार वॉर्निंग भी दी गई. लेकिन कोई बदलाव नहीं आया.
बर्ख़ास्त होने वाले जजों में सुप्रीम ज़्युडिशियल काउंसिल के पूर्व मुखिया युसुफ़ बज़ाकेर का नाम सबसे ख़ास है. सईद ने सुप्रीम ज़्युडिशियल काउंसिल को फ़रवरी में भंग कर दिया था. ये काउंसिल 2011 की क्रांति के बाद से ट्यूनीशिया में न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा कर रही थी.

राष्ट्रपति सईद दावा करते हैं कि वो ट्यूनीशिया में न्यायतंत्र में क्रांति लाना चाहते हैं. जानकारों का मानना है ये दावा एक दिखावा है. असल में वो अपनी निरंकुश सत्ता के रास्ते में कोई बाधा नहीं चाहते हैं. जजों की बर्ख़ास्तगी इसी कोशिश का एक क्रम है.
ट्यूनीशिया में धीमे-धीमे कैस सईद के ख़िलाफ़ माहौल तैयार हो रहा है. दमन के बावजूद लोग टुकड़ों में प्रोटेस्ट कर रहे हैं. क्या ये नए अरब स्प्रिंग की आहट है, ये दावा करना जल्दबाजी होगी. लेकिन इस संभावना से पूरी तरह इनकार भी नहीं किया जा सकता.
इस मामले में जो भी अपडेट्स होंगे, उन्हें हम आप तक पहुंचाते रहेंगे.
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