क्या ब्लॉकचेन तकनीक वाकई हमारे लिए इतनी उपयोगी है?
क्रिप्टो से लेकर चुनाव तक ब्लॉकचेन के यूज़ जान लो
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फोटो सोर्स - AajTak
लेकिन सवाल है कि क्या ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी वाकई इतनी पारदर्शी, सुरक्षित, और एक्सेप्टेबल टू यूज़ है जो इसका इस्तेमाल खरबों रुपए की क्रिप्टो इंडस्ट्री से लेकर इलेक्शन की वोटिंग प्रक्रिया तक में किया जा सकता है? आज इसी सवाल का जवाब ढूंढेंगे. ये भी बताएंगे कि क्रिप्टोकरेंसी की तेज़ रफ़्तार दौड़ को मज़बूत ज़मीन देने के बाद ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल और कहां हो रहा है. हमारी सरकार इस तकनीक को लेकर कितना उत्साहित है, और इसको पूरी तरह अपनाए जाने में दिक्कतें क्या हैं? शुरुआत से शुरू करते हैं, सबसे पहले समझते हैं कि ब्लॉकचेन तकनीक क्या है? ब्लॉकचेन तकनीक क्या है- किसी कॉलेज में स्टूडेंट्स के एग्जाम रिजल्ट्स का डेटा कैसे स्टोर किया जाता है? मोटा-माटी दो तरीके होते हैं, एक तो उन्हें लिखकर फाइल्स बनाकर कॉलेज के एग्जाम सेल में स्टोर कर लिया जाता है. और दूसरा कि रिजल्ट को कॉलेज की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाता है, जहां स्टूडेंट्स अपना-अपना रिजल्ट देख लेते हैं. लेकिन दोनों स्थितियों में इस पूरे डेटा पर कंट्रोल कॉलेज का ही रहता है. यानी सिर्फ कॉलेज इस डेटा को अपलोड, एडिट और डिलीट कर सकता है. हार्डकॉपी में रखे डेटा के साथ दिक्कत ये है कि उसे चूहे तक कुतर सकते हैं, यानी डेटा डैमेज हो सकता है. और वेबसाइट वाला डेटा? जब ट्विटर पर हाई प्रोफाइल लोगों के एकाउंट्स हैक किए जा सकते हैं तो फिर किसी कॉलेज की वेबसाइट हैक करना और सारा डेटा उड़ा देना बड़ी बात नहीं है. एक और मुद्दा ये भी है कि मान लीजिए किसी स्टूडेंट को अपने किसी सब्जेक्ट के मार्क्स का डिटेल चाहिए, यानी वो ये जानना चाहता है कि मुझे किस क्वेश्चन में कितने मार्क्स मिले, तब क्या होगा? वो कॉलेज में एक एप्लीकेशन देगा, कॉलेज का एग्जाम सेल रिलेटेड सब्जेक्ट के टीचर से उसकी कॉपी निकलवाएगा, और फिर उस कॉपी के मार्क्स क्वेश्चन-वाइज उस स्टूडेंट्स को बता दिए जाएंगे. ये लंबी प्रक्रिया होती है.
अब अगर कोई ऐसा सिस्टम हो, जिसमें टीचर्स हर स्टूडेंट की कॉपी चेक करते वक़्त एक-एक क्वेश्चन के हिसाब से मार्क्स डालते जाएं, और स्टूडेंट अपने मार्क्स को देख सके, दूसरा कि ये सिस्टम पूरी तरह डिसेंट्रलाइज्ड हो, यानी एग्जाम डेटा पर अकेले कॉलेज के एग्जाम सेल का कंट्रोल न हो, बल्कि हर वेरिफाइड यूजर उसमें डेटा ऐड कर सके, और तीसरा कि डेटा ऐड करने की प्रक्रिया का वेरिफिकेशन इतना जटिल हो कि कोई हैकर उसमें अनचाहा बदलाव न कर सके. तो आप कहेंगे ये सिस्टम शानदार है लेकिन हमारे कॉलेज को मिलेगा कहां से. जवाब है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी. ब्लॉकचेन कैसे काम करती है? ब्लॉकचेन पर डिसेंट्रलाइज्ड तरीके से डेटा स्टोर किया जाता है. माने डेटा को स्टोर करना, एडिट करना किसी एक के कंट्रोल में नहीं होता. चेन से जुड़ा कोई भी कंप्यूटर जिसे नोड कहते हैं वो ब्लॉकचेन में डेटा को ब्लॉक्स की शक्ल में स्टोर कर सकता है. हर ब्लॉक मोटा-माटी तीन चीज़ों से बनता है. पहली चीज़ है वो डेटा या जानकारी जिसे ब्लॉक में डाला जाना है, दूसरा हर ब्लॉक की अपनी एक यूनिक आइडेंटिटी होती है जिसे हैश(Hash) कहते हैं और तीसरा, हर ब्लॉक में अपने से पिछले ब्लॉक की आइडेंटिटी भी स्टोर की जाती है, यानी प्रीवियस ब्लॉक का हैश. और इसी प्रीवियस हैश की मदद से हर नया ब्लॉक पिछले ब्लॉक से जुड़ता जाता है और एक चेन बन जाती है- ब्लॉकचेन.

ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी (प्रतीकात्मक फोटो - Aaj Tak)
ब्लॉकचेन सुरक्षित क्यों है? ब्लॉकचेन की ख़ास बात ये है कि अगर किसी भी ब्लॉक में डेटा को बदलने की कोशिश करें तो उस ब्लॉक का हैश बदल जाता है, और हैश का प्रीवियस हैश से जो नाता है उसके चलते प्रीवियस हैश भी बदल जाता है. माने अगर एक ब्लॉक के डेटा को बदला जाए, तो पूरी ब्लॉकचेन में बदलाव हो जाएगा. और ये बदलाव ब्लॉकचेन से जुड़े सभी नोड्स पर दिखते हैं.
दूसरा, कि ब्लॉकचेन डिसेंट्रलाइज्ड होती है, इस पर किसी एक सेंट्रल एजेंसी या सेंट्रल नोड का कंट्रोल नहीं होता. इसे ऐसे समझिए कि किसी ब्लॉकचेन नेटवर्क में जितने भी कंप्यूटर या नोड्स जुड़े हैं सबमें ब्लॉकचेन की एक-एक कॉपी स्टोर होती है, और ये सभी नोड्स मिलकर इसे मैनेज या रन करते हैं.
अब मैनेज कैसे करते हैं? इसे भी समझिए. बिटकॉइन के ब्लॉकचेन नेटवर्क से जुड़े नोड्स में से कुछ माइनर्स कहे जाते हैं, यानी ये नोड्स माइनिंग का काम करते हैं. जब भी ब्लॉकचेन नेटवर्क में कोई नया डेटा ऐड किया जाता है, तब उस डेटा को वेरीफाई करने का काम इन्हीं माइनर्स का होता है.
हमने आपको बिटकॉइन माइनिंग के बारे में बताया था. बिटकॉइन में जब भी कोई नया ट्रांजिक्शन होता है, तब एक नया ब्लॉक बनता है, जिसमें ट्रांजिक्शन करने वाले दोनों नोड्स का एड्रेस और ट्रांजिक्शन की रकम स्टोर रहती है. इस ट्रांजिक्शन को बाकी सारे नोड्स रिकॉर्ड करते हैं. और माइनर्स इन्हें वेरीफाई करते हैं. ब्लॉक्स के वेरिफिकेशन का ये काम चौबीसों घंटे चलता है, जिसके बदले इन्हें प्रूफ ऑफ़ वर्क के तौर पर कुछ बेनिफिट भी मिलता है. इस वेरिफिकेशन की लम्बी बात आगे के एपिसोड्स में करेंगे. अब मान लीजिए कि ट्रांजिक्शन के दौरान कोई हैकर, नोड्स के इस नेटवर्क में घुस आता है जिसका नाम X है और वो चाहता है कि नोड A से नोड B को किए गए ट्रांजिक्शन का डेटा बदल जाए, यानी कि ट्रांजिक्शन A to B न होकर, A to X हो जाए तो दो काम होंगें, एक तो बाकी सारे नोड्स जो कि A to B ट्रांजिक्शन को वेरीफाई कर चुके हैं वो A to X ट्रांजिक्शन को वेरीफाई ही नहीं करेंगे. दूसरा कि ऐसे किसी घपले के लिए ब्लॉकचेन नेटवर्क में 51% नोड्स की मेजोरिटी परमीशन चाहिए होती है. सो अगर हैकर चाहें कि वो नोड्स को हैक करके फ़ाल्स वेरिफिकेशन कर ले तो ये प्रैक्टिकली मुमकिन नहीं है. क्योंकि बिटकॉइन जैसी एक बड़ी ब्लॉकचेन पर दुनिया भर के लाखों नोड्स हैं, जो एक-दूसरे से कनेक्टेड नहीं हैं और सबमें ब्लॉकचेन की एक-एक कॉपी स्टोर है. ऐसे में हैकर को सारे नोड्स को अलग-अलग जाकर हैक करना पड़ेगा. जिसमें सालों का वक़्त लग जाएगा. हालांकि कुछ लोग इसी पॉइंट पर आकर ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी की सेफ्टी पर सवाल भी खड़ा करते हैं.

बिटकॉइन माइनिंग (प्रतीकात्मक तस्वीर -Aaj Tak)
प्राइवेसी का मुद्दा- ब्लॉकचेन तकनीक पर किसी कॉलेज के स्टूडेंट्स का रिजल्ट पब्लिश करने की बात हो या या फिर इस तकनीक का इस्तेमाल करके वोटिंग कराए जाने की चर्चा, एक और सवाल मन में आता है कि जब ब्लॉकचेन तकनीक पर हो रही सारी डेटा एंट्री को इससे जुड़े हर कंप्यूटर पर देखा जा सकता है तो फिर लोगों की प्राइवेसी का क्या? माने ट्रांसपेरेंट होने के चक्कर में कहीं ऐसा तो नहीं कि एक व्यक्ति ने किसे वोट डाला है ये उसके अलावा भी सबको दिखे? किसी स्टूडेंट को कितने मार्क्स मिले, ये पूरे कॉलेज को पता हो, ब्लॉकचेन में इसका भी बढ़िया जुगाड़ है.
दरअसल किसी ब्लॉकचेन नेटवर्क से जुड़े हर कंप्यूटर के पास अपना एक पब्लिक एड्रेस और एक ‘प्राइवेट की’ (Private Key) होती है. बिल्कुल वैसे ही जैसे आपके सोशल मीडिया अकाउंट का यूजर नेम और आपका पासवर्ड. अब सोशल साइट है तो यहां आपका पब्लिक एड्रेस आपका नाम ही होता है, लेकिन ब्लॉकचेन में आपके कंप्यूटर का पब्लिक एड्रेस कुछ नंबर्स और लेटर्स का रैंडम कॉम्बिनेशन होता है. और जब आप ब्लॉकचेन पर कोई भी एक्टिविटी करते हैं तो सिर्फ आपका पंब्लिक एड्रेस ही शो होता है. न कि आपका नाम, पता या दूसरी कोई डिटेल.
तो जाहिर है ब्लॉकचेन तकनीक जिस पर बिटकॉइन काम करता है, उसमें कुछ तो खूबियां हैं, जिनके चलते इसे वाइडली एक्सेपटेबल बताया जाता है. अब ज़रा ये भी जान लेते हैं कि हाल-फिलहाल इसका इस्तेमाल कहां और कैसे हो रहा है. इस्तेमाल कहां कहां- ब्लॉकचेन तकनीक का यूज़ अब क्रिप्टोकरेंसी के अलावा भी कई जगह हो रहा है. NFT और मेटावर्स में ब्लॉकचेन का यूज़ कैसे हो रहा है. ये हम अगले एपिसोड्स में विस्तार से बताएंगे. कई भारतीय बैंकें और हमारी सरकार भी ब्लॉकचेन तकनीक के इस्तेमाल का ब्लूप्रिंट तैयार कर रही हैं. इसकी भी चर्चा होगी. लेकिन फिलवक्त दुनिया भर में ब्लॉकचेन तकनीक पर बनी ढेरों एप्लीकेशंस हैं. जो कई अलग-अलग यूज़-केसेज़ में आलरेडी काम कर रही हैं. मिसाल के तौर पर Algorand App ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करती है, और मनी ट्रांजैक्शन, गेमिंग और डिजिटल कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए एक बेहतर प्लेटफॉर्म मुहैया कराती है. इसी तरह US की Chainalysis नाम की फाइनेंस कंपनी भी ब्लॉकचेन तकनीक पर काम करती है और फाइनेंशियल इंस्टिट्यूट्स और सरकार को क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन को मॉनिटर करने की सुविधा देती है.

NFT (प्रतीकात्मक फोटो सोर्स - Business Today)
स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स ऐप्स- तमाम ऐसे प्लेटफॉर्म्स हैं जो ब्लॉकचेन के स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स पर काम करते हैं. और कई नई तकनीकी सुविधायें देते हैं, यहां स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट का मतलब भी समझ लीजिए. कॉन्ट्रैक्ट मतलब आप जानते ही हैं. किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच किसी लेन-देन वगैरह की शर्तों वाले एग्रीमेंट को कॉन्ट्रैक्ट कह सकते हैं. उसी तरह स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट भी ब्लॉकचेन पर होने वाले किसी ट्रांजैक्शन में शर्तें लागू करने का काम करते हैं. ये दरअसल एक तरह के कोड होते हैं जिन्हें ट्रांजैक्शन के साथ ही रिसीवर के एड्रेस पर भेज दिया जाता है, और जब ट्रांजैक्शन वेरीफाई हो जाता है तो फिर इन्हें बदला नहीं जा सकता. ऐसे समझिए कि अगर आपको ऑनलाइन कोई सामान फ्लिपकार्ट या एमजॉन पर ऑर्डर करना है तो आप बिना किसी ट्रस्ट इशू के एडवांस में भुगतान कर देते हैं, आपको भरोसा रहता है कि ऑर्डर डेलिवर हो जाएगा. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि एक नई शॉपिंग साइट ABC या XYZ है, आप यहां पेमेंट कर दीजिए, फलां प्रोडक्ट आपको डेलिवर हो जाएगा तो शायद आप भरोसा न करें. वजह कि आपने उस कंपनी का नाम ही पहली बार सुना है. लेकिन स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स के चलते अब ऐसा मुमकिन है. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स दरअसल एक तरीके के कोड होते हैं, जो ये शर्त तय करते हैं कि कोई काम तब हो जब उसके पहले वाला काम हो जाए. माने If और Then जैसा मामला. मान लीजिए आपने किसी ऐसी ई-कॉमर्स कंपनी पर ऑर्डर प्लेस किया है जो स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट का इस्तेमाल करती है, तो होगा यूं कि भुगतान कर देने के बाद जब तक आपको प्रोडक्ट की डिलीवरी नहीं मिलती तब तक कंपनी को भी प्रोडक्ट का पैसा नहीं मिलेगा. मोटा-माटी यही स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स का फायदा है, सिक्योरिटी फीचर के अलावा स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स से किए जाने वाले ट्रांजैक्शन बेहद तेज़ होते हैं. जिसके चलते तमाम कंपनीज़ चाहें वो फाइनेंस और रियल स्टेट की हों या हेल्थ सेक्टर की, आजकल ब्लॉकचेन बेस्ड स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स का इस्तेमाल कर रही हैं.
बतौर मिसाल स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स पर काम करने वाली कंपनी BurstIQ हेल्थ सेक्टर में सर्विसेज़ दे रही है जबकि अमेरिका की कंपनी Mediachain सिंगर्स को उनके गाने के बदले पैसा दिलाने का काम करती है और अप्रैल 2017 में Spotify इस कंपनी को एक्वायर कर चुकी है.
इनके अलावा भी तमाम ऐसी कंपनीज़ हैं जो ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल करके लोगों के आइडेंटिफ़िकेशन से लेकर, इलेक्शंस की वोटिंग तक के लिए प्लेटफॉर्म मुहैया करवा रही हैं.
हालांकि आने वाले वक़्त में ब्लॉकचेन तकनीक का भविष्य कैसा रहेगा? इस सवाल के जवाब में लोग पक्ष-विपक्ष में कई तर्क देते हैं, विपक्ष में खड़े लोगों का मानना है कि इंडस्ट्री में इस तकनीक को पूरी तरह अपनाए जाने में कई तरह की अड़चनें हैं. मसलन इसके यूज़र्स में ज़रूरी स्किल्स की कमी, पूरी और सटीक जानकारी न होना, इसमें आने वाला खर्च और भरोसे से जुड़ी शंकाएं. लेकिन हाल-फिलहाल हम इतना तो कह ही सकते हैं कि अगर ब्लॉकचेन तकनीक पर लाखों करोड़ रुपए की क्रिप्टोइंडस्ट्री खड़ी हो सकती है, तो आगे ब्लॉकचेन अपने और तमाम रंग दिखाए, इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.