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‘विकास’ में बाधा न आए, इसलिए हाथियों का घर छीन रही सरकार

सरकार का पूरा फैसला, और उसका मतलब समझ लीजिए.

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हाथियों को बचाए रखने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड सरकार का फैसला सवाल खड़े करता है. (सांकेतिक फाइल फोटो- PTI)
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अभिषेक त्रिपाठी
25 नवंबर 2020 (Updated: 25 नवंबर 2020, 02:56 PM IST) कॉमेंट्स
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उत्तराखंड को नेचुरल ब्यूटी के लिए जाना जाता है. जिम कॉर्बेट पार्क, हरिद्वार, ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग वगैरह. राज्य की ऐसी ही प्राकृतिक खूबसूरती में से एक है- शिवालिक एलिफेंट रिज़र्व. उत्तराखंड सरकार शिवालिक एलिफेंट रिज़र्व को हटाने का रास्ता साफ कर रही है. एलिफेंट रिज़र्व को डिनोटिफाई किया जा रहा है. कारण- ये जंगल विकास कार्य में बाधा बन रहे हैं. आइए, इस बारे में डिटेल में बताते हैं.

शिवालिक एलिफेंट रिज़र्व है क्या?

शिवालिक एलिफेंट रिज़र्व उत्तराखंड में विशाल हाथियों का इकलौता अभ्यारण्य है. ये एशियाई हाथियों का घर है, जो अफ्रीकन हाथियों के बाद धरती के दूसरे सबसे विशालकाय हाथी होते हैं. उत्तराखंड का ये क्षेत्र करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर का है, जहां इन हाथियों की मौजूदगी है. 28 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नोटिफिकेशन यानी अधिसूचना जारी करके इसे एलिफेंट रिज़र्व घोषित किया था.
हाथियों को अपना घर मिला तो कुनबा भी बढ़ा. ये ग्राफ देखिए.
Elephant Graph Report on Elephant Census से लिया गया ग्राफ.

उत्तराखंड सरकार की वेबसाइट forest.uk.gov.in
पर जाएंगे तो आपको एक रिपोर्ट मिलेगी. Report on Elephant Census
 नाम से. जो ग्राफ हमने ऊपर इस्तेमाल किया, वो इसी रिपोर्ट से लिया गया है. आप यहां देख सकते हैं कि 2001 में जब उत्तराखंड में हाथियों की गिनती की गई थी तो संख्या मिली, 1507. एक बार ये संख्या 2007 में गिरी, लेकिन बाकी हर बार की गिनती में बढ़ती रही. पिछली गिनती 2015 में हुई थी, और हाथी मिले, 1797. रिपोर्ट में भी एक जगह ये भी मेंशन है कि हाथियों की मौजूदगी के हिसाब से उत्तराखंड देश में नंबर-8 पर है. पहले नंबर पर केरल है.

हाथियों के घर से दिक्कत क्या है?

ऊपर जितनी भी बातें बताई गईं, उससे ये अंदाजा हमें मिलता है कि हाथियों के रहने के लिए उत्तराखंड एक मुफीद जगह है. या मुफीद जगह थी? क्योंकि सरकार शिवालिक एलिफेंट रिज़र्व को हटाने का रास्ता साफ कर रही है.
मंगलवार यानी 24 नवंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की अध्यक्षता में स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की एक बैठक हुई थी. बैठक में वन मंत्री डॉ. हरक सिंह भी शामिल थे. बैठक के बाद वन मंत्री ने बताया कि 2002 में राज्य सरकार ने प्रदेश के 17 फॉरेस्ट डिवीजन में से 14 को एलिफेंट रिजर्व के नाम से नोटिफाई किया था. यानी इतनी जगह हाथियों को दे दी गई थी. लेकिन इसकी वजह से तमाम ऐसे प्रोजेक्ट अटकने लगे, जिनका रास्ता एलिफेंट रिज़र्व से होकर गुजरता है. मंत्री का कहना है कि एलिफेंट रिजर्व के लिए केंद्रीय कानून या वाइल्डलाइफ एक्ट का कोई प्रावधान नहीं है. ये पेच हाल में उस वक्त फंसा, जब देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के रास्ते में एलिफेंट रिज़र्व आ गया. इस बार स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने एलिफेंट रिज़र्व खत्म करने का प्रस्ताव पास कर दिया. सरकारी भाषा में बोलें तो एलिफेंट रिज़र्व को डिनोटिफाई कर दिया.
Untitled Design (86) 2001 में जब उत्तराखंड में हाथियों की गिनती की गई तो संख्या मिली थी 1507. एक बार ये संख्या 2007 में गिरी, लेकिन बाकी हर बार की गिनती में बढ़ती रही. (सिंबोलिक फोटो- PTI)

डिनोटिफाई करने का मतलब?

नोटिफाई करने का मतलब यूं समझिए कि फलां जमीन को सरकार किसी ख़ास प्रयोजन से अपने अधिकार में ले ले, या आरक्षित कर ले कि साब अब सरकारी निर्देशानुसार इस जमीन पर यही काम होगा. इसके अलावा कुछ नहीं. 2002 में उत्तराखंड सरकार ने 5405 वर्ग किमी जमीन को एलिफेंट रिज़र्व के लिए नोटिफाई कर दिया था. अब डिनोटिफाई करके सरकार इस जमीन को खुल्ला छोड़ रही है. अब इस जमीन पर विकास कार्य हों सकेंगे. यानी आप सरकार से जमीन खरीदिए, ज़रूरी NOCs लीजिए और अपना काम करिए. डेढ़ हजार से ज़्यादा हाथी कहां जाएंगे? नहीं पता.
जिस मीटिंग में एलिफेंट रिज़र्व को डिनोटिफाई करने का फैसला लिया गया, उसी मीटिंग में एक और फैसला लिया गया. निलॉन्ग वैली में अब हर रोज़ 100 टूरिस्ट और 20 गाड़ियां जा सकेंगी. पहले ये अनुमति 25 टूरिस्ट और पांच गाड़ियों की थी. सरकार की प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं.

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