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सेटेलाइट तस्वीरों ने चीन के इस बड़े सीक्रिट की पोल खोल दी!

वहीं चीन का कहना है कि वह कम्बोडिया के साथ एक मॉडरनाइज़ेशन प्रोग्राम पर काम कर रहा है जिसका मकसद है कम्बोडिया की नौसेना को मजबूत करना. इसलिए ऑस्ट्रेलिया और बाकी पश्चिमी देशओ को चिंता करने की जरूरत नहीं है.

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Chinese navy ship
सांकेतिक फोटो (इंडिया टुडे)
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8 जून 2022 (Updated: 8 जून 2022, 01:12 IST)
Updated: 8 जून 2022 01:12 IST
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07 जून 2022 को अमेरिकी अख़बार द वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट छापी. इसमें खुफिया अधिकारियों के हवाले से दावा किया गया है कि चीन अपनी सीमा से बाहर दूसरा नेवल बेस बना रहा है. चुपके-चुपके. कहां? कम्बोडिया में. खुफिया अधिकारियों ने ये दावा सेटेलाइट इमेजरी के हवाले से किया है.

पहले थोड़ा कम्बोडिया के बारे में बात करते हैं  

- कम्बोडिया की आबादी लगभग दो करोड़ है. ये दक्षिण-पूर्वी एशिया में पड़ता है. वियतनाम, थाईलैंड और लाओस कम्बोडिया के पड़ोसी हैं. इस इलाके को इंडोचाइना के नाम से जाना जाता है. कम्बोडिया की 97 फीसदी से अधिक आबादी बौद्ध धर्म को मानती है. यही उनका राजकीय धर्म भी है. नोमपेन्ह कम्बोडिया की राजधानी है. यही उनका सबसे बड़ा शहर भी है.
- अगर भौगोलिक स्थिति की बात करें तो, कम्बोडिया भारत के पूरब में बसा है. म्यांमार और थाईलैंड के बाद. कम्बोडिया के वियतनाम आता है. जहां पर वियतनाम की पूर्वी सीमा खत्म होती है, वहां से साउथ चाइना सी शुरू हो जाता है. जिसको साधने के लिए दुनिया भर के ताक़तवर मुल्क़ गुत्थमगुत्थी होने के लिए तैयार बैठे हैं.

- कम्बोडिया का भारत से एक ऐतिहासिक कनेक्शन है. प्राचीन काल में उत्तर भारत से एक नागा साधु इस प्रदेश में आए. कम्बु स्वयंभु. उन्होंने यहां की एक राजकुमारी से शादी रचाई. उन दोनों ने मिलकर चेनला वंश की नींव रखी. कम्बु के नाम पर प्रदेश का नाम कम्बुजप्रदेश पड़ा. जिसे बाद में कम्पूचिया के नाम से भी जाना गया.

- जयवर्मन द्वितीय ने 802 ईस्वी में ख़मेर किंगडम की स्थापना की थी. इसे अंकोर साम्राज्य भी कहते हैं. ख़मेर वंश में एक से बढ़कर एक शक्तिशाली राजा हुए. जो भी नया राजा आता, वो पुराने वाले से बड़ा मंदिर बनवाने की कोशिश करता. इसी कड़ी में सूर्यवर्मन द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में अंकोरवाट मंदिर का निर्माण करवाया. जिसे दुनिया के सबसे बड़े मंदिर कैंपस का दर्ज़ा मिला है.

- 15वीं शताब्दी आते-आते पड़ोसी देश मज़बूत होने लगे थे. जबकि ख़मेर साम्राज्य की इमारत में दरारें दिखने लगी थी. 1431 में थाईलैंड ने कम्बोडिया को जीत लिया. अगले चार सौ सालों तक कम्बोडिया पर कब्ज़े को लेकर वियतनाम, म्यांमार और थाईलैंड में झगड़ा चलता रहा. इनकी लड़ाई में कम्बोडिया पिस रहा था. उसका आकार लगातार सिमटता रहा.

- फिर साल आया 1863. फ़्रांस इंडो-चाइना क्षेत्र में अपना कारोबार फैला रहा था. कम्बोडिया के राजा ने फ़्रांसीसी सरकार को एक मेसेज भिजवाया. बोले कि फ़्रांस कम्बोडिया को अपना उपनिवेश बना ले. फ़्रांस ने बात मान ली. इससे पड़ोसी देशों की हिम्मत टूट गई. राजा का पद बरकरार रहा. लेकिन वो पद बस कठपुतली का था. फ़्रांस ने 90 सालों तक शासन किया. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के समय कुछ बरस तक कम्बोडिया पर जापान का कब्ज़ा रहा. हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु गिराए जाने के बाद जापान ने बिना शर्त समर्पण कर दिया. जापान के जाते ही फ़्रांस वापस पुरानी स्थिति में आ गया.

- 1953 के साल में फ़्रांस ने कम्बोडिया को आज़ाद घोषित कर दिया. इसके बाद कम्बोडिया को अपनी नियति अपने हिसाब से तय करने का अधिकार मिला.

- 1970 के दशक में कम्बोडिया पोल पॉट नाम के एक सनकी तानाशाह की प्रयोगशाला बना था. उसके शासनकाल में लगभग 25 लाख लोगों की जान गई थी. आज भी कम्बोडिया के खेतों में पोल पॉट के सताए लोगों की हड्डियां मिलतीं है. इन खेतों को ‘किलिंग फ़ील्ड्स’ का नाम दिया गया है. (पोल पॉट के बारे में जानना हो तो आप हमारी सीरीज़ तानाशाह में इसे देख सकते हैं. वीडियो का लिंक डिस्क्रिप्शन में मिल जाएगा.)

- इन सबके अलावा, कम्बोडिया यूनाइटेड नेशंस, आसियान, ईस्ट एशिया समिट और नॉन-अलाइंड मूवमेंट जैसे संगठनों का सदस्य भी है.

ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी देश परेशान क्यों हैं?

पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियों ने सेटेलाइट इमेजरी के हवाले से एक दावा किया है. उनका कहना है कि चीन कम्बोडिया में गुप्त तरीके से एक नेवल बेस बना रहा है. कम्बोडिया इंडो-पैसिफ़िक रीज़न का हिस्सा है. चीन इस इलाके में अपना नियंत्रण बढ़ाने की फ़िराक़ में है. ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी देश इस पर लगाम कसना चाहते हैं. इसी वजह से दोनों धड़ों के बीच तनाव चलता रहता है. जैसे ही कम्बोडिया में चाइनीज़ नेवल बेस को लेकर ख़बरें आईं, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ का बयान आ गया. अल्बनीज़ इन दिनों इंडोनेशिया के दौरे पर हैं. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट्स चिंताजनक हैं. हम उम्मीद करते हैं कि चीन अपने इरादों को लेकर पारदर्शी रहेगा. वो ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा, जिससे इस इलाके की सुरक्षा और स्थिरता को नुकसान पहुंचे.

अल्बनीज़ के बयान के बाद चीन और कम्बोडिया, दोनों की सफ़ाई आई. कम्बोडिया के प्रधानमंत्री हैं, हुन सेन. उन्होंने कहा कि रिएम नेवल बेस को मॉडर्न बनाया जा रहा है. वहां एक बोट रिपेयरिंग फ़ैसिलिटी बन रही है. कम्बोडिया को अपनी ज़मीं पर विदेशी सेना की कोई ज़रूरत नहीं है.

यहां पर एक चिंता वाली बात है. हुन सेन जिस मॉडरनाइज़ेशन प्रोग्राम का ज़िक़्र कर रहे हैं, उसके लिए पैसा चीन दे रहा है. 08 जून को कम्बोडिया के रक्षामंत्री इस फ़ैसिलिटी की नींव रखने वाले हैं. दिलचस्प ये है कि उनके साथ-साथ कम्बोडिया में चीन के राजदूत भी मौके पर मौज़ूद रहेंगे. यानी, चीन का दखल कायम रहेगा.

इस मामले पर चीन का बयान है कि पश्चिमी देश बेमतलब में चिंता कर रहे हैं. रिएम में जो कुछ हो रहा है, उसका मकसद कम्बोडिया की नौसेना को मज़बूत बनाना है. इसके ज़रिए समंदर में होने वाले अपराधों पर लगाम लगाई जाएगी. चीन के दावों में कितनी सच्चाई है, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.

क्या है चीन और कम्बोडिया के संबंधों का इतिहास? 

ये बताने के लिए हम चीन और कम्बोडिया संबंध का एक ब्यौरा देते हैं. ताकि आपको अंदाज़ा लग जाए कि खुफिया रिपोर्ट्स से परेशान होने की ज़रूरत क्यों है?
- चीन और कम्बोडिया की दोस्ती का इतिहास कम-से-कम सात सदी पुराना है. 13वीं शताब्दी में झाऊ दगुआन नाम के एक चीनी राजदूत कम्बोडिया आए थे. वो एक साल तक तत्कालीन ख़मेर साम्राज्य के मेहमान बनकर रहे. इन संबंधों में प्रगाढ़ता आई, छह सौ बरस बाद. यानी, सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद. जब 1953 में कम्बोडिया आज़ाद हुआ. 1958 में चीन और कम्बोडिया ने आधिकारिक तौर पर डिप्लोमैटिक संबंध स्थापित किए. कम्बोडिया उन शुरुआती देशों में से था, जिन्होंने ताइवान की मान्यता देने से इनकार कर दिया था.

- चीन में 1949 के साल में माओ का कम्युनिस्ट शासन शुरू हुआ. माओ की विरोधी कुओमितांग पार्टी ने फ़ारमोसा या ताइवान में सरकार बना ली थी. च्यांग काई-शेक ताइवान के मुखिया थे. ताइवान पश्चिमी देशों का करीबी था. इसी वजह से यूनाइटेड नेशंस में माओ के चीन को मान्यता नहीं मिली. तब चीन ने कम्बोडिया से सपोर्ट मांगा था. चीन को 1970 के दशक में यूएन की सदस्यता मिली.

- 1967 तक चीन और कम्बोडिया के रिश्ते काफ़ी बेहतर हो चुके थे. उस समय कम्बोडिया के राजा थे, नॉरडम सिहानुक. उन्हें पता चला कि चीन उनकी नाक के नीचे एक कम्युनिस्ट आंदोलन की फ़ंडिंग कर रहा है. फिर चाऊ एन लाई ने कम्बोडिया के राजदूत को मिलने बुलाया. इसके बाद ही मामला शांत हुआ.

- 1970 में सिहानुक का तख़्तापलट हो गया. मार्शल लोन नोल ने अमेरिका की मदद से राजशाही ख़त्म कर दी. सिहानुक को देश छोड़कर जाना पड़ा. सिहानुक को चीन ने अपने यहां शरण दी थी. लोन नोल ने कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी. कम्युनिस्ट नेताओं को शहर छोड़कर गांवों में शरण लेनी पड़ी.

- इन्हीं कम्युनिस्ट नेताओं में एक सलोथ सोर भी था. उसे दुनिया पोल पॉट के नाम से जानती है. उसके गुरिल्ला सैनिकों ने लोन नोल की सरकार गिरा दी. पोल पॉट ने देश का नाम बदलकर डेमोक्रेटिक कम्पूचिया कर दिया. पोल पॉट को चीन का सपोर्ट था. चीन ने उसे पैसा दिया. हथियार दिए. उसके साथ व्यापारिक रिश्ते बनाए. चीन में सांस्कृतिक क्रांति का खाका खींचने वाले झेंग शेंकियाओ गुप्त तरीके से डेमोक्रेटिक कम्पूचिया के दौरे पर गए थे. वहां उन्होंने पोल पॉट के लिए संविधान तैयार करने में मदद की थी.

- 1979 में वियतनाम आर्मी ने पोल पॉट के नाराज़ धड़े के साथ मिलकर डेमोक्रेटिक कम्पूचिया पर हमला कर दिया. इसमें से एक हुन सेन भी थे. हुन सेन बाद में कम्बोडिया के प्रधानमंत्री बने. वो आज तक पद पर बने हुए हैं.
वियतनाम के हमले के बाद पोल पॉट को सत्ता छोड़कर भागना पड़ा. इस हमले के विरोध में चीन ने हनोई के कई शहरों पर बम बरसाए थे. चीन ने यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में मांग भी की थी कि वियतनाम की निंदा की जाए. उनके सैनिकों को वापस लौटने के लिए कहा जाए.

-  पोल पॉट के तख़्तापलट के बाद कम्बोडिया पर वियतनाम के नियंत्रण वाली सरकार का शासन रहा. इस दौरान चीन वियतनाम के विरोधी धड़े को समर्थन देता रहा. 1991 में पेरिस समझौते पर दस्तख़त हुए. इसके बाद वियत सेना वापस लौट गई.

- वियतनाम के प्रॉक्सी शासन के दौरान चीन के प्रभाव को काफ़ी नुकसान पहुंचा था. उस दौरान चीनी किताबों को बैन कर दिया. चाइनीज़ स्कूलों पर पाबंदी लगा दी गई. ख़ुद हुन सेन ने एक लेख लिखकर हर समस्या के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराया था. लेकिन वियत सैनिकों की घर-वापसी के बाद हुन सेन चीन के करीब हो गए. इसके पीछे की वजह क्या थी?

- 1993 में चुनाव के बाद कम्बोडिया में दो-दो प्रधानमंत्री बने. प्रिंस रणरिद्ध और हुन सेन. रणरिद्ध ताइवान की आज़ादी को मान्यता देने के पक्ष में थे. चीन को लगा कि ये मामला जम नहीं रहा है. ऐसे में उन्होंने हुन सेन को सपोर्ट देना शुरू कर दिया. इसके बाद दोनों देशों में रिश्ते मज़बूत होते चले गए. चीन ने करोड़ों डॉलर्स की रकम मदद के तौर पर भेजी है. ये पैसे कम्बोडिया की मिलिटरी को ताक़तवर बनाने के लिए इस्तेमाल हुए हैं. मिलिटरी के अलावा चीन का दखल कम्बोडिया के दूसरे सेक्टर्स में भी रहा है.

- इंडो-पैसिफ़िक में चीन की बढ़ती दावेदारी को चुनौती देने वाला सबसे बड़ा देश अमेरिका है. लेकिन अमेरिका के साथ कम्बोडिया के संबंध लगातार बिगड़े ही हैं. जून 2021 में अमेरिका की डिप्टी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट वेन्डी शेरमन ने रिएम नेवल बेस का दौरा करने की मांग की थी. उस समय रिपोर्ट्स चल रहीं थी कि इस बेस पर चीनी सैनिक भी रह रहे हैं. कम्बोडिया सरकार ने वेन्डी को दौरा तो करा दिया. लेकिन वेन्डी इससे खुश नहीं हुईं. उन्होने कहा कि उन्हें बीच में ही वापस लौटने के लिए कह दिया गया. इसके बाद से दोनों देशों के संबंध और ख़राब हो गए.

रिश्तों में बिगाड़ की एक वजह वियतनाम से जुड़ी है. अमेरिका, वियतनाम को सपोर्ट करता है. ऐतिहासिक तौर पर कम्बोडिया वियतनाम का कट्टर दुश्मन रहा है. जुलाई 2021 में अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने वियतनाम का दौरा भी किया था. अमेरिका वियतनाम में 20वीं सदी की सबसे भीषण और अपमानजनक हार झेल चुका है. इसके बावजूद पिछले दो दशक में दोनों देशों के रिश्तों में सुधार आया है. जानकारों का कहना है कि अमेरिका वियतनाम को कम्बोडिया के काउंटर के तौर पर देखता है.

मई 2022 में जापान की राजधानी टोक्यो में क़्वाड देशों की मीटिंग हुई. इस दौरान इंडो-पैसिफ़िक इकॉनमिक फ़्रेमवर्क (IPEF) की नींव रखी गई. IPEF में कुल 13 देश हैं. इनमें आसियान के कई देशों को शामिल किया गया. लेकिन कम्बोडिया को दरकिनार कर दिया गया.

इन्हीं वजहों से चीन के सीक्रेट नेवल बेस को लेकर छपी रिपोर्ट चौंकाने वाली है. चीन और कम्बोडिया भले ही इसका खंडन करें, लेकिन इसने इंडो-पैसिफ़िक में तनाव तो बढ़ा ही दिया है.
 

वीडियो: चीन कहां पर अपना गुप्त नौसैनिक अड्डा तैयार कर रहा है?

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