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गौतम अडानी: 10 हजार की पहली कमाई से दुनिया के दूसरे सबसे अमीर आदमी बनने की कहानी

Gautam Adani की पहली कमाई 10 हज़ार रुपये थी, लेकिन चार दशकों में वो दुनिया के दूसरे सबसे अमीर इंसान बन गए. इस रास्ते में वो मध्यवर्गीय रसोइयां थीं, जहां अब इसी आदमी की कंपनी के तेल में पूड़ियां तली जा रही हैं. वो बंदरगाह और एयरपोर्ट भी थे, जिनका संचालन अब उनके हाथ में है. आज जानिए गौतम अडानी की पूरी कहानी.

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गौतम अडानी आज बिजनेस के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम है (फोटो- इंडिया टुडे)
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आकाश सिंह
4 दिसंबर 2024 (Updated: 4 दिसंबर 2024, 11:59 PM IST) कॉमेंट्स
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जैसे तमाम कहानियों के होते हैं, वैसे ही इस कहानी के भी कई सिरे हैं. एक छोर पर आरोपों का पिटारा, जिसमें बंद है हिंडनबर्ग की रिपोर्ट, पराए मुल्क की अदालत में घूसखोरी का मुकदमा और सत्ताधारी पार्टी से नज़दीकियों के किस्से. पर शुरुआत वहां से भी हो सकती है, जब एक लड़के ने एक कोशिश की थी. 16 साल का एक ड्रॉपआउट, जो घर छोड़ मुंबई चला आया. पहली कमाई 10 हज़ार रुपये थी, लेकिन चार दशकों में वो दुनिया का दूसरा सबसे अमीर इंसान बन गया. इस रास्ते में वो मध्यवर्गीय रसोइयां थीं, जहां अब इसी आदमी की कंपनी के तेल में पूड़ियां तली जा रही हैं. वो बंदरगाह और एयरपोर्ट भी थे, जिनका संचालन अब उनके हाथ में है.

साथ ही कई सारी चुनौतियां भी आती रहीं, जैसे शेयर बाज़ार में गेंद की तरह गिरते उछलते स्टॉक्स. इस कहानी का एक अध्याय 26 नवंबर 2008 की रात का भी है, जब मुंबई के ताज होटल में आतंकवादियों ने हमला किया था. तमाम लोग बंधक बनाए गए थे, जिसमें ये लो-प्रोफाइल बिज़नेसमैन भी शामिल था. तब शायद उन्हें भी अंदाज़ा नहीं होगा कि सिर्फ एक दशक में वो राजनीति और बिजनेस की दुनिया के सबसे चर्चित कीवर्ड बनने जा रहे हैं. आप समझ ही गए होंगे कि आज हम किसकी बात करने जा रहे हैं. अडानी समूह और उसके फाउंडर-चेयरमैन गौतम अडानी की बात. 

Gautam Adani
गौतम अडानी की पहली कमाई 10 हजार रुपये थी (PHOTO- INDIA TODAY)
व्यवसाय

24 जून, 1962 को शांतिलाल अडानी और शांताबेन के घर गौतम अडानी का जन्म हुआ. परिवार में प्लास्टिक प्रेसिंग का कारोबार था. साल 1978 में स्कूल में पढ़ रहे 16 साल के गौतम अडानी ने टिकट लिया और मुंबई की ट्रेन पकड़ ली. शुरुआती संघर्ष की अवधि, तीन साल. गौतम अडानी के कज़न प्रकाशभाई देसाई ने उन्हें महेन्द्रा ब्रदर्स में काम दिलवाया, जहां उन्होंने हीरे छांटने का काम सीखा. तीन साल बाद, उन्होंने Zaveri Bazar में अपना खुद का डायमंड ट्रेडिंग ब्रोकरेज का काम शुरू किया. फिर कामयाबी का पहला स्वाद मिला. एक जापानी खरीदार को उन्होंने हीरे के व्यापार में मदद की और दस हजार रुपए का कमीशन कमाया. उस दौर में ये एक बड़ी रकम थी. अगले साल 1982 में गौतम अडानी के बड़े भाई ने एक प्लास्टिक मैन्युफैक्चरिंग की फैक्ट्री खरीदी. छोटे भाई को मदद का पैगाम भेजा गया. गौतम अडानी वापस अपने घर गुजरात पहुंचे. परिवार के बिज़नेस में हाथ बंटाने लगे. लेकिन रॉ मटेरियल की किल्लत छोटी प्लास्टिक फैक्ट्रियों को परेशान कर रही थी.

Gautam Adani Young
युवा गौतम अडानी (PHOTO- Google)

इस समस्या से निजात पाने के लिए गौतम अडानी ने “आपदा में अवसर” वाला तरीका अपनाया. 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने इंपोर्ट और एक्सपोर्ट पर कुछ छूट बढ़ाई. अडानी ने न सिर्फ अपने लिए रॉ मटेरियल इंपोर्ट किया बल्कि, आसपास की कई फैक्ट्रियों को भी रॉ मेटेरियल सप्लाई करना शुरू किया. कुछ साल बढ़िया प्रॉफिट कमाया. कितना कमाया, इसका अंदाज़ा ऐसे लगाइये कि 1988 में जब “अडानी एक्सपोर्ट्स” का IPO निकला तो वो 25 गुना ओवर सब्सक्राइब हुआ. माने जितने शेयर मार्केट में उतारे गए. उससे 25 गुना ज्यादा लोग इस कंपनी के शेयर को खरीदने के इच्छुक थे. और ये उस दौर की बात है, जब IPO के लिए ऑनलाइन सिस्टम नहीं था और न ही इतने लोग स्टॉक मार्केट में रुचि लेते थे.

1991 में आया एक टर्निंग पॉइंट. नरसिम्हा राव की सरकार बनी. वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की नीति अपनाई. भारत को दुनिया के बाजार से जोड़ दिया. इसका फायदा देश के साथ अडानी को भी हुआ. एक्सपोर्ट, इंपोर्ट का बिजनेस और तेजी पकड़ने लगा. “अडानी एक्सपोर्ट्स” अब एक बड़ी कंपनी बन गई. 1998 आते-आते अडानी ने कोयले की ट्रेडिंग शुरू कर दी. इसमें भी जमकर फायदा हुआ, उसे भी समझेंगे, पहले उन चीज़ों पर फोकस करते हैं जो अडानी एम्पायर की नींव बने.

एम्पायर की नींव

1991 के उदारीकरण हो चुका था. कहानी अब गुजरात आ गई. रईस फिल्म में शाहरुख खान का किरदार कहता है कि “रत्ना मैडम सही कहती थीं. गुजरात का समुद्र तट सबसे लम्बा है.” उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल इसी समुद्रतट को डेवलप करना चाहते थे, जिससे धंधा और रोज़गार दोनों बढ़े. कैरगिल (Cargill) नाम की एक अमेरिकी कंपनी को मौका मिला. कच्छ के इलाके में एक जेट्टी बनाने का आइडिया था, जिससे समुद्र से नमक निकाला जा सके. जेट्टी का मतलब एक बहुत छोटे साइज़ का पोर्ट, जहां नाव से सामान लोड और अनलोड किया जाता है. जेट्टी बनाई गई. यहां तक सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन फिर ये प्रोजेक्ट अधर में लटक गया. हुआ यूं कि अमेरिकी कंपनी को प्लान बाद में कुछ समझ नहीं आया. अडानी मौके की फिराक में थे. उन्हें पहले से ही अंदाज़ा था कि अमेरिकी कम्पनी ये काम नहीं कर पाएगी.

Adani Ports and SEZ Ltd
अडानी समूह के अधीन एक पोर्ट (PHOTO- Adani Ports)

अब तक धीरूभाई अम्बानी जामनगर को एक पोर्ट टाउन में कन्वर्ट कर चुके थे. उसी तरह अडानी भी इस जेट्टी को एक प्रॉफिटेबल पोर्ट में बदलना चाहते थे. केशुभाई पटेल ने जाते-जाते साल 2001 में जेट्टी के बदले अडानी को पोर्ट बनाने की परमिशन दे दी. अडानी को 30 साल की लीज मिली. पोर्ट बना और आज ये पोर्ट देश का सबसे बड़ा प्राइवेट पोर्ट है. 2007 में अडानी ग्रुप की एक कंपनी “मुंद्रा पोर्ट एंड स्पेशल इकनोमिक ज़ोन लिमिटेड” का IPO निकला. जो 116 गुना ओवर सब्सक्राइब हुआ. बाद में इस कंपनी का नाम अडानी पोर्ट्स पड़ गया. और इसके पास मुंद्रा के अलावा और कई पोर्ट्स की जिम्मेदारी आ गई.

मौजूदा समय में ‘अडानी पोर्ट्स’ भारत में कुल 13 पोर्ट्स मैनेज करती है. जिसमें पश्चिम बंगाल का हल्दिया पोर्ट, केरल का विलिंजम पोर्ट, तमिलनाडु का कट्टुपली पोर्ट भी शामिल है. अडानी पोर्ट्स अडानी ब्रांड की सबसे बड़ी पहचान है. हालांकि किसी मझे हुए बिजनेसमैन की तरह अडानी ने अपने व्यापार को दूसरे सेक्टर्स में भी फैलाया.मिसाल के तौर पर, एडिबल ऑयल - वही जो हम और आप खाना बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. इसमें भी अडानी ग्रुप का बड़ा स्टेक है. साल 1999 में अडानी ग्रुप ने सिंगापुर की Wilmar इंटरनेशनल के साथ पार्टनरशिप में एक कंपनी बनाई. अडानी wilmar लिमिटेड. फॉर्च्यून तेल इसी अडानी wilmar लिमिटेड का प्रोडक्ट है

विस्तार का दौर

2007 तक गौतम अडानी देश के 10वें सबसे अमीर इंसान बन चुके थे. उनकी जेब में पैसा था, क्रेडिबिलिटी थी और उसके साथ इन्वेस्टर्स का भरोसा भी. एक कंपनी को बड़ा बनाने के लिए ये जरूरी ईंधन है. 2009 में शुरुआत हुई अडानी पावर की. अडानी के पास मुंद्रा में ज़मीन थी, जहां उनका पावर प्लांट लगा. और वो देश के सबसे बड़े कोल इम्पोर्टर थे ही, तो पावर जनरेशन का काम उनके लिए आसान हो गया. साल 2014 आते-आते, अडानी पावर देश भारत की सबसे बड़ी प्राइवेट बिजली उत्पादक कंपनी बन गई.

Gautam Adani Power
अडानी पावर (PHOTO- Aaj Tak)

इसके साथ अडानी ग्रुप को भारत में कई सारे एयरपोर्ट्स को मैनेज करने का काम मिल गया. जैसे मुंबई और दिल्ली के एयरपोर्ट. एयरपोर्ट्स के कंट्रोल को लेकर कई बार अडानी ग्रुप पर आरोप भी लगे. विपक्ष ने कहा कि सरकार से उनकी साठ-गांठ है, उन्हें अतिरिक्त फायदा मिला है लेकिन ये बात कभी भी कचहरी से प्रमाणित नहीं हो सकी.

बाद के दौर में अडानी ग्रुप ने ग्रीन एनर्जी में भी इन्वेस्ट किया. 2015-16 में नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से इतर, 175 गीगावॉट रिन्यूएबल एनर्जी प्रड्यूस करने का टार्गेट रखा. 100 गीगावॉट सोलर एनर्जी का टारगेट मार्च 2023 तक रखा गया था. ये टारगेट्स काफी महत्वाकांक्षी थे, लेकिन इन लक्ष्यों ने अडानी को उनकी ग्रीन एनर्जी प्लान्स के लिए फ्यूल दिया.

पैरामीटर्स क्या कहते हैं?

अडानी ग्रुप की तरक्की MBA वालों के लिए एक केस स्टडी हो सकती है. कैसे? किसी कंपनी की परफॉरमेंस कैसी है, इसके लिए कुछ बेसिक पैरामीटर्स देखे जाते हैं. जैसे कंपनी पर क़र्ज़ कितना है, प्रॉफिट और सेल्स कितनी है और सालाना इनमें कितनी बढ़त हो रही है. या फिर कंपनी के शेयर्स कितने बढे हैं? इन सभी पैरामीटर्स को समझते हैं. सबसे पहले बात क़र्ज़ की.

उधारी

साल 2023-24 तक अडानी ग्रुप ने करीब 2 लाख 41 हज़ार करोड़ का क़र्ज़ लिया है. इन्हें दो हेड्स में बांटा जा सकता है. पहला, लॉन्ग टर्म लोन्स, माने वो लोन जिसे चुकाने की अवधि 1 साल से ज्यादा होती है. ऐसे लोन अक्सर कंपनियां बिज़नेस बढ़ाने या किसी नए प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए लेती हैं. दूसरा, वर्किंग कैपिटल लोन्स, माने वो लोन जिसे पेबैक करने की अवधि 1 साल से कम होती है. इस पैसे का इस्तेमाल अक्सर कंपनियां अपने रोजमर्रा के काम जैसे एम्प्लॉई को सैलरी देने या रेंट चुकाने में करती हैं और आमदनी होते ही चुका देती हैं.  

लॉन्ग टर्म लोन्स

अडानी ग्रुप के कुल क़र्ज़ में से 92% यानी 2 लाख 22 हज़ार करोड़ रुपए लॉन्ग टर्म लोन के फॉर्म में लिया गया कर्ज़ था. ये लोन अडानी ग्रुप ने किन अलग-अलग सोर्सेज से जुटाए? सबसे ज्यादा पैसा अडानी ग्रुप ने भारतीय बैंकों से जुटाया है. तकरीबन 75 हज़ार 800 करोड़ रुपए. सबसे ज्यादा उधार स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से मिला. इसके अलावा एक्सिस बैंक, ICICI, PNB और यस बैंक ने भी बड़े लोन अमाउंट्स समय-समय पर सैंक्शन किये हैं. इसके अलावा विदेशी बैंकों ने करीब 61 हज़ार करोड़ रुपये लॉन्ग टर्म लोन के फॉर्म में दिए हैं.

अडानी ग्रुप ने काफी बड़ा अमाउंट कैपिटल मार्केट से भी उठाया है. कैपिटल मार्केट से पैसा उठाने के लिए बॉन्ड्स इशू किये जाते हैं. बॉन्ड में पैसा भुगतान की तारीख लिखी होती है. बॉन्ड खरीदने वाले को मूल के साथ निर्धारित ब्याज भी दिया जाता है. CNBC की रिपोर्ट के मुताबिक अडानी ग्रुप ने भारतीय कैपिटल मार्केट से करीब 12 हज़ार करोड़ रुपये जुटाए हैं. जबकि विदेशी कैपिटल मार्किट से 69 हज़ार करोड़ रुपये जुटाए हैं.

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अडानी समूह पर कर्ज

ये तो हुई बात लॉन्ग टर्म लोन्स की. अब समझते हैं वर्किंग कैपिटल लोन्स की. अडानी ग्रुप के कुल क़र्ज़ का 8% यानी करीब 19 हज़ार करोड़ रुपये, वर्किंग कैपिटल की शक्ल में है. इसमें से करीब 12 हज़ार 223 करोड़ रुपये भारतीय बैंकों से जुटाए गए. कुल मिलाकर बात ये कि अडानी ने करीब 36% पैसा भारतीय बैंकों से जुटाया है. अगस्त 2024 में CNBC में एक रिपोर्ट छपी. इसके मुताबिक अभी तक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने अडानी ग्रुप को करीब 27 हज़ार करोड़ रुपये का क़र्ज़ दिया है. इसके अलावा करीब 9 हज़ार 200 करोड़ रुपये का कर्ज़ एक्सिस बैंक ने दिया है. PNB ने अभी तक करीब 7 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया है. अडानी को अभी तक मिले कुल क़र्ज़ में लगातार भारतीय बैंकों की हिस्सेदारी बढ़ रही है. बैंकों के अलावा अडानी ग्रुप ने LIC से भी 5 हज़ार 790 करोड़ रुपये का क़र्ज़ लिया है.

अब यहां उठता है एक बड़ा सवाल? फाइनेस का ABC समझने वाला भी पूछेगा कि अडानी ग्रुप को इतना कर्ज़ा मिल क्यों रहा है, वो भी हालिया घटनाक्रम, यानी हिन्डनबर्ग रिपोर्ट और बाकी इल्जामों के बावजूद. ये सवाल सिंपल नहीं है. क्योंकि सिर्फ भारतीय बैंक ही नहीं, विदेशी फ़ाइनेंशियल इंस्टीट्यूट्स भी अडानी पर दांव लगाए जा रहे हैं. दुनिया के तमाम सवालों की तरह इस सवाल का जवाब भी एक चीज से जुड़ा है - मुनाफ़ा.  

प्रॉफिट

तमाम कर्ज़ों के बावजूद इन्वेस्टर्स के लिए अडानी ग्रुप भरोसे का सौदा है. अडानी ग्रुप का प्रॉफिट कितना है? कंपनियों का हाल जानने के लिए अक्सर दो तरीके के प्रॉफिट कैलकुलेट किये जाते हैं.

पहला है ऑपरेटिंग प्रॉफिट. सिंपल कैलकुलेशन. साल भर में कितना खर्च हुआ और कितने की सेल हुई. साल 2013 में अडानी ग्रुप की कंपनियों का कुल ऑपरेटिंग प्रॉफिट करीब ढाई हज़ार करोड़ रुपए था. जो 2022 में बढ़ते हुए करीब साढ़े 14 हज़ार करोड़ रुपए हो गया. और पिछले वित्त वर्ष माने साल 2023-24 में अडानी ग्रुप का प्रॉफिट करीब 83 हज़ार करोड़ हो गया. माने 1 दशक में ऑपरेटिंग प्रॉफिट 33 गुना बढ़ गया. 

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अडानी समूह का प्रॉफिट

प्रॉफिट का दूसरा पैमाना है नेट प्रॉफिट. ऑपरेटिंग प्रॉफिट से टैक्स, क़र्ज़ की EMI जैसे खर्च घटने के बाद जो असल बचत निकलती है, उसे नेट प्रॉफिट कहते हैं. साल 2009 में अडानी ग्रुप का नेट प्रॉफिट करीब 500 करोड़ रुपए था. जो 2024 में 30 हज़ार करोड़ के पार हो गया. माने सिर्फ 15 साल में प्रॉफिट 60 गुना बढ़ा.

शेयर

अडानी ग्रुप की बड़ी कंपनियों पर नज़र डालें तो ग्रुप की पैरेंट कंपनी अडानी एंटरप्राइसेज है. जनवरी 1999 में एक शेयर का दाम 6 रुपये था. 29 नवंबर 2024 में इसके शेयर की वैल्यू 2409 रुपये है. माने 25 सालों में 39718% की बढ़त हुई. अडानी ग्रुप की एक और कंपनी है. अडानी पोर्ट्स. साल 2007 में ये कंपनी स्टॉक मार्केट में लिस्ट हुई. महज 17 सालों में इसके शेयर का भाव 531% बढ़ा.

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अडानी समूह की ग्रोथ

अगली कंपनी का उदाहरण तो और भी इंटरेस्टिंग हैं. अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड. ये कंपनी जून 2018 में लिस्ट हुई. मात्र 6 साल में इस कंपनी के शेयर का प्राइस करीब 3967% बढ़ा है. 29 रुपए का शेयर आज 1197 रुपये का है. हालांकि, दो महीने पहले इस शेयर की वैल्यू 1800 से भी ज्यादा थी. हाल फिलहाल में थोड़ा गिर गया. बहरहाल ये हालत तब है, जब हिंडनबर्ग की दो रिपोर्ट्स में अडानी पर मैनिपुलेशन इत्यादि के आरोप लगाए गए और अमेरिका वाला प्रकरण अभी चल ही रहा है. कम्पनी के शेयर तुलनात्मक रूप से अब भी मजबूत हैं.

ऊपर हमने डिस्कस किया कि अडानी ग्रुप पर बहुत सा क़र्ज़ है. लेकिन क़र्ज़ से डरते हैं हम आप जैसे लोग. सरमायादारी निज़ाम यानी कैपिटलिज्म में क़र्ज़ कोई बुरी चीज़ नहीं होती. क़र्ज़ असल में एक टूल है व्यापार फैलाने का. क़र्ज़ से इन्वेस्टर्स का भरोसा भी कम नहीं होता, बशर्ते कम्पनी क़र्ज़ चुकाने में सक्षम हो. पर ये हमें कैसे पता की अडानी क़र्ज़ चुकाने में सक्षम हैं?

दरअसल आप जब भी क़र्ज़ के लिए आवेदन करते हैं. तब सबसे पहले बैंक आपकी आमदनी और आपकी संपत्ति के बारे में जानकारी इकट्ठा करता है. स्वाभाविक है, बिना आमदनी के क़र्ज़ तो नहीं चुकाया जा सकता है. वैसे ही कंपनियों के साथ भी किया जाता है. इसके लिए कंपनी के प्रॉफिट के मुकाबले कंपनी पर कितना क़र्ज़ है. इसे कैलकुलेट किया जाता है. इसे डेट टू EBITDA रेशिओ कहते हैं. इसको आप ऑपरेटिंग प्रॉफिट भी कह सकते हैं. दोनों में बहुत बारीक़ सा फर्क है. पर समझने के लिहाज से इसे एक ही माने. किसी कंपनी के लिए ये रेशिओ जितना कम हो उतना अच्छा होता है. पिछले पांच सालों में अडानी ग्रुप की कंपनियों का डेट टू EBITDA राशिओ लगातार घटा है. 

Adani ebitda ratio
डेट टू EBITDA रेशिओ
बिज़नेस के जरिये कूटनीति

अडानी ग्रुप का तमाम हिसाब किताब समझने के बाद चलिए समझते हैं कि अडानी ग्रुप के गिरने या चढ़ने का भारत पर क्या असर पढ़ सकता है. इतने बड़े स्तर के किसी भी उद्योगपति की चाल, देश को कैसे प्रभावित करती है. कूटनीति के चश्मे से देखें तो देशों के बीच 2 तरह की कूटनीति का इस्तेमाल होता है. एक वो जो अक्सर आप हेडलाइंस में देखते हैं. जब दो देशो के राष्ट्राध्यक्ष मिलते हैं. लेकिन डिप्लोमेसी का दूसरा तरीका भी है. इसमें काम आते हैं बिजनेस घराने. उदाहरण के लिए Apple, Coca-Cola, McDonald's, और General Electric. ये तमाम कंपनियां अमेरिका की आर्थिक कूटनीति का अहम हिस्सा हैं. इन कंपनियों से क्या असर पड़ता है?

व्यापार संबंध: अमेरिकी कंपनियां अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत करती हैं, जिससे अमेरिका का राजनीतिक भोकाल बढ़ता है. इन कंपनियों के ज़रिए अमेरिकी जीवनशैली, व्यापारिक आदतें और कल्चरल वैल्यूज को दुनियाभर में फैलाया जाता है जो इवेंचुअली व्यापार में ही मदद करती हैं.

संस्कृतिक प्रभाव: कंपनी ब्रांड्स जैसे Coca-Cola, Nike, और Starbucks के जरिए अमेरिका अपनी संस्कृति को दुनियाभर में फैलाता है. इसी तरह, अमेरिकी मीडिया कंपनियां जैसे Disney, Netflix, और Warner Bros पूरी दुनिया में अमेरिका के कल्चरल स्टैंडर्ड और वैल्यूज़ का प्रचार करती हैं.

निर्भरता बनाना: जब किसी देश की इकॉनमी अमेरिकी कंपनियों पर निर्भर हो जाती है, तब ये अमेरिका का राजनीतिक दबाव बनाने का एक तरीका बन जाता है.

अमेरिका के उदाहरण से हम अडानी ग्रुप या किसी और भारतीय कम्पनी की वैल्यू समझ सकते हैं. भारत की कई कंपनियां चाहें वो सरकारी हो या प्राइवेट, वो दूसरे देशों में इन्वेस्ट करती हैं. मिसाल के तौर पर, NTPC, जो भारत की सरकारी बिजली उत्पादन कंपनी है. ये बांग्लादेश में 1320 मेगा वाट का पावर प्लांट बना रही है. बिजली उत्पादन एक स्ट्रेटेजिक सेक्टर है. इससे दूसरे देश में प्रभाव बढ़ता है. रिलायंस इंडस्ट्रीज भी भूटान में कई हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है. वेदांता ग्रुप और फोक्सकोन के बीच पिछले दिनों, सेमीकंडक्टर डील हुई थी. इसके अलावा डिज्नी और रिलायंस के बीच की डील भी भारतीय कंपनियों के बढ़ते पावर का सिंबल है. अंत में ये सारी डील्स मुनाफा देखकर की जाती हैं. लेकिन इनसे दो देशों के बीच संबंधों पर असर पड़ता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता. इसे डिप्लोमेसी की भाषा में सॉफ्ट पावर कहते हैं. अडानी जैसे विशालकाय कॉरपोरेट समूह कैसे भारत के लिए सॉफ्ट पावर की तरह काम करते हैं? आज हम अडानी समूह की बात कर रहे हैं, वरना ये बात टाटा या अंबानी जैसे किसी भी बड़े समूह के लिए भी कही जा सकती है.

विदेशों में अडानी ग्रूप के कई प्रोजेक्ट्स और इंवेस्टमेंट्स हैं. जैसे-

-ऑस्ट्रेलिया में कोयले की खदानें

-इजरायल का हाइफा पोर्ट

-श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में भी अडानी पोर्ट्स की 51% हिस्सेदारी है. ये पोर्ट हिन्द महासागर में एक बेहद स्ट्रेटेजिक लोकेशन पर स्थित है.

- नेपाल, भूटान, केन्या और फिलीपींस में बिजली उत्पादन की डील.

ये सारे प्रोजेक्ट्स अडानी ग्रुप के लिए तो फायदे का सौदा हैं ही. लेकिन भारत की जियोपॉलिटिकल पकड़ को बढ़ाने में भी मदद करते हैं. पर कारोबार और राजनीति दोनों का बड़ा ताल्लुक़ अर्थशास्त्र से है. इसलिए दोनों अक्सर एक-दूसरे में सने लिपटे रहते हैं और इसीलिए कभी-कभी लगते हैं आरोप. भारत की विपक्षी पार्टियां अक्सर कहती हैं कि सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी से नजदीकी की वजह से अडानी तमाम मुश्किलों से बच निकलते हैं. हालांकि अडानी जैसी बड़ी कंपनी के प्रोजेक्ट्स किसी भी प्रदेश में रोज़गार और तरक्की के अवसर लाने की क्षमता रखते हैं. इसीलिए उनकी दोस्ती सिर्फ भाजपा से ही नहीं है. पत्रकार आर.एन. भास्कर ने अपनी किताब - गौतम अडानी: रीइमेजनिंग बिज़नेस इन इंडिया एंड द वर्ल्ड - में लिखा है,

 “उन्होंने कांग्रेस सरकार, बीजेपी सरकार, नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस, केरल में लेफ्ट पार्टियों, और यहां तक कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी के साथ भी प्रोजेक्ट्स पूरे किए हैं,”

अडानी इस बात को भी खारिज करते हैं कि उनके बिज़नेस साम्राज्य का उभार मोदी के सत्ता में आने से जुड़ा है. वे ज़ोर देकर कहते हैं कि उनके उद्यमी सफर में तीन बड़े बदलाव, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की नीतियों की वजह से आए. पर राजनीतिक आरोप अपनी जगह हैं और वो इतने बड़े एम्पायर के साथ नत्थी आते ही हैं. देखना होगा कि नए आरोपों से, जो दूसरे देश में लगे हैं, ये कंपनी कैसे निपटती है.

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