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छुट्टियों वाले मालदीव के चुनाव में भारत और चीन क्यों भिड़ गए?

क्या चीन, मालदीव को हड़प लेगा?

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Chinese President Xi Jinping and Indian PM Narendra Modi
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के पीएम नरेंद्र मोदी
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साजिद खान
27 सितंबर 2023 (Published: 08:40 PM IST) कॉमेंट्स
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मालदीव! नाम तो सुना ही होगा. हॉलीडे डेस्टिनेशन के लिए मशहूर इस मुल्क की पहचान यहीं तक सीमित नहीं है. और क्या है? ये समझने के लिए पहले एक क़िस्सा सुनिए. तारीख़, 03 नवंबर 1988.
जगह, विदेश मंत्रालय का दफ़्तर, नई दिल्ली. सुबह के साढ़े 06 बजे फ़ोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ़ से घरघराती आवाज़ आई, वी आर अंडर अटैक. प्लीज सेव अस. यानी, हम पर हमला हो रहा है. हमारी मदद कीजिए.

ये गुज़ारिश नई दिल्ली से लगभग 03 हज़ार किलोमीटर दूर बसे एक शहर से आई थी. मालदीव की राजधानी माले से. वहां राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को कुर्सी से हटाने की कोशिश चल रही थी. विद्रोही गुट राजधानी में तबाही पर उतारु था. तब गयूम ने बदहवासी में फ़ोन मिलाना शुरू किया. श्रीलंका और पाकिस्तान ने हाथ जोड़ लिए. बोले, हम कुछ नहीं कर पाएंगे.

ब्रिटेन और अमेरिका मदद के लिए राज़ी थे. मगर उन्हें मालदीव पहुंचने में काफ़ी वक़्त लग सकता था. वे बोले, भारत से बात करके देखो. फिर गयूम ने नई दिल्ली फ़ोन किया. भारत ने हामी भर दी. उस समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी कोलकाता में थे. उन्हें फौरन नई दिल्ली आने के लिए कहा गया. वो आए. सुबह 09 बजे मीटिंग चालू हुई. उससे पहले ही इंडियन आर्मी मिशन की तैयारी शुरू कर चुकी थी.

दोपहर के साढ़े 03 बजे भारतीय सेना के लगभग 04 सौ जवानों ने माले के लिए उड़ान भरी. उनके पास बहुत कम जानकारी उपलब्ध थी. इमरजेंसी मीटिंग में रेफ़रेंस के लिए एक टूरिस्ट गाइड बुक दिखाई गई थी. वहीं पर सैनिकों ने पहली बार राष्ट्रपति गयूम की तस्वीर भी देखी. जिन्हें बचाने के लिए पूरा ऑपरेशन चलाया जा रहा था.

खैर, भारत की फ़ौज माले में उतरने में सफल रही. हुलहुले एयरपोर्ट पर पहरा बिठाया. फिर वे गयूम को सुरक्षित ठिकाने पर ले गए. अगली सुबह तक अधिकांश विद्रोही मारे जा चुके थे. मास्टरमाइंड अब्दुल्लाह लुत्फ़ी अरेस्ट हो चुका था. और, गयूम अपने देश और इंटरनैशनल प्रेस को संबोधित कर रहे थे.

उसी रोज़ एक संबोधन और हुआ. राजीव गांधी का. संसद में बोले, मालदीव हमारा सबसे करीबी और दोस्ताना पड़ोसी है. उसने मदद की अपील की थी. हमें गर्व है कि हमारी सेना उन्हें बचाने में कामयाब रही.

ये ऑपरेशन कैक्टस था. जिसके ज़रिए भारत ने मालदीव को बर्बाद होने से बचाया था. मालदीव ने उस समय इसका मान रखा था. लेकिन 35 बरस बाद माहौल काफ़ी बदल चुका है. यहां एक ऐसा धड़ा पनपा है, जो ‘इंडिया आउट’ का कैंपेन चलाता है. और, चीन के साथ गलबहियां करने की बात करता है. इसी वजह से मालदीव, भारत और चीन के बीच जारी प्रभुत्व की जंग का मैदान बन गया है. इसमें किसका पलड़ा भारी होगा? ये 30 सितंबर 2023 को मालूम चलेगा. उस दिन क्या है? राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग है. दो कैंडिडेट हैं. एक भारत का समर्थक है, जबकि दूसरा चीन का. इसलिए, ये चुनाव मालदीव की जनता के साथ-साथ पूरे इलाके का भविष्य भी तय करने वाला है.

तो, आइए जानते हैं,

- मालदीव की पूरी कहानी क्या है?
- वहां का राष्ट्रपति चुनाव इतना खास क्यों बना?
- और, भारत और चीन के लिए क्या दांव पर लगा है?

मालदीव, हिंद महासागर में बसे द्वीपों की श्रृंखला वाला देश है. लगभग 12 सौ द्वीप हैं. लगभग 200 पर इंसानों की बसाहट है. ज़मीनी सीमा किसी भी देश से नहीं लगती. सबसे नजदीक में भारत और श्रीलंका हैं. मालदीव के पास महज 300 वर्ग किलोमीटर ज़मीन है. ये उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से भी आधा है. इससे आप आकार का अंदाज़ा लगा सकते हैं.

आबादी, लगभग 05 लाख 22 हज़ार है.
सुन्नी इस्लाम राजकीय धर्म है. 98 फीसदी से अधिक लोग मुस्लिम हैं.
बाकी में ईसाई, बौद्ध और हिंदू आते हैं.

राजधानी माले है. मुल्क की आधी आबादी यहीं बसी है.
नई दिल्ली से हवाई मार्ग से माले की दूरी लगभग 03 हज़ार किलोमीटर है.
सबसे नजदीक में लक्षद्वीप का मिनिकॉय है. मालदीव से उसकी दूरी महज 130 किलोमीटर है. एक समय उसने मिनिकॉय पर अपना दावा ठोका था. 1976 में उसने भारत का क्लेम मान लिया.

करेंसी का नाम है, मालदीवी रुफिया. एक रुफिया में लगभग साढ़े 05 भारतीय रुपये आएंगे.
इंटरनैशनल मॉनिटरी फ़ंड (IMF) के मुताबिक, जीडीपी 60 हज़ार करोड़ रुपये है.
प्रति व्यक्ति आय लगभग 16 लाख रुपये है. भारत से सात गुणा ज़्यादा.
2022 में दोनों देशों के बीच लगभग 04 हज़ार करोड़ रुपये का कारोबार हुआ. इसमें से 98 फीसदी से अधिक राशि का सामान भारत ने निर्यात किया.

क्या-क्या बेचा?

रिफ़ाइंड पेट्रोलियम, आटा, सब्ज़ी, दाल, चावल, अंडे, दवाईयां आदि.

मालदीव से क्या खरीदा?

मछली, वाद्ययंत्र, स्क्रैप मेटल आदि.

अब हिस्ट्री जान लेते हैं.

पुरातत्वविदों को मालदीव में इंसानों की पहली बसाहट का निशान 15 सौ ईसापूर्व का मिला है. दावा है कि शुरुआती बाशिंदे भारत से आए थे. उसके बाद श्रीलंका से. वे अपने साथ बौद्ध धर्म लाए. फिर 12वीं सदी में अरब देशों के व्यापारियों ने दस्तक दी. उनके साथ इस्लाम आया. तब मालदीव में बौद्ध राजा धोवेमी का शासन था. वो इस्लाम से प्रभावित हुए. उन्होंने अपना धर्म बदल लिया. नाम रखा, मोहम्मद अल-आदिल. देखा-देखी जनता ने भी इस्लाम अपना लिया. आठ शताब्दियों के बाद इसका प्रभाव बरकरार है.

फिर आई 16वीं सदी. उपनिवेशवाद का दौर शुरू हुआ. यूरोप से मालदीव पहुंचने वाला पहला देश पुर्तगाल था. उसने 1568 से 1583 तक शासन किया. लेकिन स्थानीय शासकों ने उन्हें खदेड़ दिया. 17वीं सदी में डचों ने सीलोन (अब श्रीलंका) पर कब्ज़ा किया. फिर वे मालदीव में भी आए. बाद में सीलोन में ब्रिटेन का नियंत्रण हो गया. और, तब मालदीव भी डचों के हाथ से निकलकर ब्रिटेन के पास आया.

फिर 1965 में मालदीव आज़ाद हो गया. उस टाइम शासन कैसे चलता था?

देश की कमान सुल्तान के पास होती थी. प्रधानमंत्री भी होते थे. लेकिन उनके पास नाममात्र की शक्तियां थीं. नई शासन-व्यवस्था के लिए 1968 में जनमत-संग्रह कराया गया. इसमें सुल्तान का पद खत्म करने पर सहमति बनी. फिर राष्ट्रपति का पद बना. इब्राहिम नासिर पहले राष्ट्रपति बने. 10 बरसों तक इस पद पर रहे. बीच में उन्होंने प्रधानमंत्री का पद भी खत्म करा दिया. और, ख़ुद सर्वेसर्वा बन गए.

1978 में नासिर रिटायर हो गए. तब कुर्सी आई मौमून अब्दुल गयूम के पास. गयूम 30 बरसों तक राष्ट्रपति रहे. 06 चुनाव जीते. फिर 2008 में पहली बार लोकतांत्रिक चुनाव हुए. अलग-अलग पार्टियों को चुनाव लड़ने का मौका मिला. उससे पहले राष्ट्रपति कैंडिडेट को संसद नॉमिनेट करती थी. उसके नाम पर हां या ना करना होता था. 1978 से 2003 तक सिर्फ एक कैंडिडेट गयूम के नाम पर वोटिंग हुई. हर बाद गयूम को 90 फीसदी से अधिक वोट मिलते थे.

2008 में ये सिस्टम बदला. उस चुनाव में मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) के मोहम्मद नशीद ने अब्दुल गयूम को हरा दिया. गयूम ने भी अपनी पार्टी बना ली थी. वो सातवां टर्म लेना चाहते थे. नाकाम रहे. 2010 में राजनीति से संन्यास ले लिया.

मालदीव में राष्ट्रपति बनने के लिए 50 प्रतिशत से अधिक वोटों की दरकार होती है. अगर कोई भी कैंडिडेट पहले राउंड में आंकड़ा पार नहीं कर पाए तो दूसरे राउंड की वोटिंग होती है. वहां पहले राउंड में टॉप पर रहे 02 उम्मीदवारों के बीच भिड़ंत होती है. 2008 और 2013 में मामला सेकेंड राउंड में गया था. 2018 में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने पहले ही राउंड में 58 फीसदी वोट जुटा लिए थे.
लेकिन 2023 में कहानी बदल गई है. इस बार मुकाबला दूसरे राउंड में पहुंचा है. जिसके लिए 30 सितंबर को वोटिंग होनी है.

दूसरे राउंड में कौन-कौन दावेदारी पेश कर रहे हैं?

- पहले हैं, मोहम्मद सोलिह.

मोहम्मद सोलिह

मालदीव की आज़ादी से एक बरस पहले पैदा हुए थे. सेकेंडरी स्कूल तक की ही पढ़ाई कर पाए. 1994 में पहली बार सांसद चुने गए. 2003 में सरकार के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया. MDP के फ़ाउंडिंग मेंबर्स में से हैं. 2008 के राष्ट्रपति चुनाव में जीते मोहम्मद नशीद उनके रिश्तेदार हैं. नशीद की बहन से सोलिह की शादी हुई है. 2018 में सोलिह 58 फीसदी से अधिक वोट पाकर राष्ट्रपति बने.
2023 में दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. पहले राउंड में 39 फीसदी वोट मिले.

- दूसरे कैंडिडेट हैं,  मोहम्मद मुइज्जु.

मोहम्मद मुइज्जु

फिलहाल वो राजधानी माले के मेयर हैं. उनकी पार्टी का नाम है, पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (PNC). ये पार्टी 2019 में बनी. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के सपोर्ट से. यामीन 2013 से 2018 तक राष्ट्रपति थे. उनके ख़िलाफ़ मानवाधिकार उल्लंघन और भ्रष्टाचार के आरोप लगे. 2019 में करप्शन के एक केस में 11 बरस की सज़ा हुई. फिलहाल जेल में हैं. मुइज्जु को उनका उत्तराधिकारी माना जाता है.
मुइज्जु ने ब्रिटेन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है.

2012 में पॉलिटिक्स में आए थे. कैबिनेट मिनिस्टर बने. राजधानी को इंटरनैशनल एयरपोर्ट से जोड़ने वाला पुल उनकी निगरानी में बना. इस पुल में चीन का पैसा लगा है. और भी कई चाइनीज़ प्रोजेक्ट्स में उनकी भागीदारी है. 2021 में मुइज्जु ने माले के मेयर का चुनाव जीता. उन्होंने सत्ताधारी MDP के कैंडिडेट को हराया था. तभी से उन्हें सोलिह के प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा जा रहा था. बाद में पार्टी ने उनको टिकट भी दिया. पहले राउंड की वोटिंग में मोइज्जु को 46 प्रतिशत वोट मिले. उन्हें जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा है.

ये तो हुई मालदीव की कहानी. लेकिन इसकी चर्चा भारत और चीन में क्यों हैं?

इसकी वजह है, दोनों उम्मीदवारों की विदेश-नीति.
सोलिह को ‘इंडिया फ़र्स्ट’ का समर्थक माना जाता है. हालांकि, वो इससे इनकार करते हैं. कहते हैं, एक से दोस्ती का मतलब दूसरे से दुश्मनी नहीं है. लेकिन उनके आलोचक ये मानने के लिए तैयार नहीं हैं.

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