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जिस पर भारत में देशद्रोह का आरोप लगा, उसे नोबेल किस बात के लिए मिला

एमनेस्टी इंटरनेशनल का झमेलों से पुराना रिश्ता है.

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फोटो - thelallantop
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ऋषभ
16 अगस्त 2016 (Updated: 16 अगस्त 2016, 10:51 AM IST) कॉमेंट्स
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बंगलुरु में मानवाधिकार संस्था 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' पर 'देशद्रोह' का आरोप लगाकर FIR की गई है. इस संस्था ने 'कश्मीर में मानव अधिकारों' को लेकर एक इवेंट किया था. 'ब्रोकन फैमिलीज़' के नाम से. इसमें कश्मीर के तीन परिवार वहां पर आर्मी द्वारा हुए अत्याचार पर बोलने वाले थे. इसमें माछिल एनकाउंटर में मरे शहजाद अहमद खान का परिवार भी था. पर इवेंट में हंगामा हो गया. ABVP और दूसरे संगठनों के सदस्यों ने वहां नारेबाजी की. आरोप है कि उस इवेंट में 'आज़ादी' वाले नारे लगे थे. वैसे ही नारे जो फ़रवरी 2016 में JNU में लगे थे.
ये केस इन धाराओं के तहत दर्ज हुआ है:124A (देशद्रोह), 153A (समाज में द्रोह फैलाना), 142 (अवैध इकठ्ठा होना), 147 (दंगा-फसाद)
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अभी एक अभियान चला रखा है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पेटीशन डाली गई है. जिसपे जनता का ऑनलाइन सपोर्ट लिया जा रहा है. इसमें धारा 124A को निरस्त करने की बात की गई है. कहा गया है कि ये ब्रिटिश राज का कानून है, लोगों को प्रताड़ित करने के लिए. महात्मा गांधी को भी इस धारा में गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने इस कानून के बारे में कहा था:
IPC के कानूनों में ये कानून राजकुमार है. लोगों की स्वतंत्रता को दबाने का हथियार.
धारा 124A के मुताबिक:
सरकार के खिलाफ नफरत, घृणा या किसी तरह का द्वेष फैलाना देशद्रोह है.
Section 124A of the Indian Penal Code defines sedition as any act or attempt "to bring into hatred or contempt, or… excite disaffection towards the government.”
पर एमनेस्टी इंटरनेशनल का इस तरह के झमेलों से पुराना रिश्ता रहा है. कभी टॉर्चर के खिलाफ काम करने के लिए इनको 1977 में नोबेल पीस प्राइज भी मिला, तो कभी सरकारों ने इन पर केस भी किया. क्या है एमनेस्टी इंटरनेशनल का इतिहास? 1961 में ब्रिटेन के अखबार 'ऑब्जर्वर' में एक आर्टिकल छपा. The Forgotten Prisoners. ब्रिटिश वकील पीटर बेनसन का लिखा. उन्होंने ये आर्टिकल लिखा था पुर्तगाल में दो छात्रों को जेल होने के खिलाफ. उन्होंने वहां की सरकार के खिलाफ बोला था. इस आर्टिकल के बाद एक कैंपेन शुरू हुआ : Appeal for Amnesty 1961. मानव अधिकारों के लिए पूरी दुनिया के लोगों से अपील की गई.
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पीटर का आर्टिकल

उसी साल बेल्जियम, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, स्विट्ज़रलैंड और अमेरिका के इच्छुक लोग मिले और तय किया कि 'विचारों की स्वतंत्रता' के लिए एक स्थायी संगठन बनाया जाये. पीटर के चैम्बर में ही ऑफिस बना. फिर दुनिया के तीन अलग-अलग जगहों से तीन कैदियों को इस संस्था ने अडॉप्ट कर लिया. इरादा था कि सबको पता चले कि ये संगठन किसी एक जगह के पक्ष में नहीं है. मानव अधिकार दिवस 10 दिसम्बर को एमनेस्टी इंटरनेशनल की कैंडल जलाई गयी. जो इस संगठन का सिंबल बन गया.
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बेल्जियम के झंडे के सहारे अत्याचार दिखाने की कोशिश: एमनेस्टी इंटरनेशनल
जब इंडिया में आए जनवरी 1962 में घाना, चेकोस्लोवाकिया, पुर्तगाल और ईस्ट जर्मनी में रिसर्च के लिए लोग भेजे गए. कैदियों के बारे में स्टडी करने के लिए. एक फंड भी बनाया गया. लोगों की मदद के लिए. फिर नेल्सन मंडेला का ट्रायल चल रहा था साउथ अफ्रीका में. वहां भी लोग गए. धीरे-धीरे कई देशों में ऑफिस खुला और एमनेस्टी इंटरनेशनल एक स्थायी संगठन बन गया. अब स्टडी और मदद दोनों काम होने लगे.
कुछ सालों के बाद UN ने इस संस्था को 'कंसल्टेटिव स्टेटस' दे दिया. इसके बाद एमनेस्टी इंटरनेशनल ने तीन देशों की अपनी रिपोर्ट को पब्लिश किया. साथ ही UN में पेटीशन डाली कि 'मृत्युदंड' को ख़त्म किया जाये. उसी वक़्त एक ऑफिस इंडिया में भी खुला.
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इस्लामिक देशों में औरतों को पत्थर से मारने की प्रथा 'संगसार'

1971 में इसने 700 कैदियों को रिहा करवाया. अपनी दसवीं सालगिरह मनाई. और 'कैदियों के टॉर्चर' के खिलाफ कैंपेन शुरू कर दिया. उसी दौरान ब्राज़ील में राजनीतिक वजहों से एक प्रोफेसर लुइज़ बेसिलियो को जेल भेज दिया गया था. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस मामले में बड़ा काम किया. प्रोफेसर ने भी इस बात को बाद में माना था. फिर चिली में इन लोगों को बुलाया गया लोगों पर हुए अत्याचार पर रिपोर्ट बनाने के लिए.
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चीन में मृत्युदंड के खिलाफ एमनेस्टी इंटरनेशनल का पोस्टर
टॉर्चर के खिलाफ लड़ाई ने दिलाया नोबेल पीस प्राइज 1974 में UN ने इनके टॉर्चर के खिलाफ प्रस्ताव को मंजूर कर लिया. एमनेस्टी इंटरनेशनल के सदस्य सीन मैकब्राइड को इसी काम के लिए नोबेल पीस प्राइज दिया गया. 1976 में दुनिया के कई नामी कलाकारों ने इसके लिए चैरिटी शो किया. उसी वक़्त कई संगठनों ने मिलकर 'इंटरनेशनल बिल ऑफ़ राइट्स' पब्लिश किया. 1977 में संगठन को नोबेल पीस प्राइज दिया गया. 1978 में UN ह्यूमन राइट्स प्राइज मिला. उसी साल अर्जेंटीना में हुए तख्तापलट के बाद लगभग 3000 लोगों के गायब होने की रिपोर्ट लाई गई.
1987 में रिपोर्ट आई कि अमेरिका में मृत्युदंड 'रेस' से प्रभावित है. निष्पक्ष नहीं है. 1989 में When The State Kills के नाम पर दुनिया में दिए जाने वाले मृत्युदंडों का ब्योरा दिया गया. 1991 में कई देशों में मिलिट्री लड़ाई और तख्तापलट के चलते होने वाले अत्याचारों पर रिपोर्ट दी गयी. तब तक पूरी दुनिया में लोग इस संगठन से जुड़ चुके थे. 1996 के आस-पास इस संगठन ने रिफ्यूजी मामलों पर बहुत ज्यादा फोकस किया. फिर International Criminal Court के लिए वकालत की, जो 1998 में मंजूर भी हो गया.
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एमनेस्टी इंटरनेशनल का पोस्टर: हथियार बेचना केला बेचने से आसान है
नए मिलेनियम में इराक से लेकर चीन तक की कहानियां सामने आईं 2002 के बाद इस संगठन ने अपना ध्यान सूडान, म्यांमार और इराक में हो रहे अत्याचार पर फोकस किया. वहां से काफी रिपोर्ट्स लाई गईं. 2006 में नेल्सन मंडेला को एक प्रोग्राम का अम्बेसडर बनाया गया, जहां उन्होंने एमनेस्टी इंटरनेशनल के काम की बड़ाई की. 2008 में बीजिंग ओलिंपिक के दौरान संगठन ने चीन में हो रहे अत्याचारों पर रिपोर्ट दी. वहां से जल्दी कोई रिपोर्ट नहीं आती. फिर चीन में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा फांसी होती है. संगठन ने इसके खिलाफ आवाज उठाई.
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बीजिंग ओलम्पिक और मृत्युदंड: एमनेस्टी इंटरनेशनल का पोस्टर

2009-10 में दुनिया में औरतों के सपोर्ट में कई कैंपेन लांच किये गए. औरतों के प्रति हिंसा, उनकी पढ़ाई-लिखाई को फोकस में रखा गया. म्यांमार की 'राजनैतिक बंदी' आंग सान सू की को सम्मानित किया गया.
अभी दुनिया के लगभग 150 देशों में एमनेस्टी इंटरनेशनल के 30 लाख सदस्य हैं. मृत्यदंड, विचारों की स्वतंत्रता, औरतों के अधिकार, बिजनेस-राजनीति की मिलीभगत, जनजातियों के अधिकार, रिफ्यूजी समस्या को लेकर हर जगह लड़ाई जारी है. भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल की सफलता और विवाद 2010 में भारत सरकार ने ओडिशा के नियामगिरी पहाड़ियों में वेदांता कंपनी के बॉक्साइट प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया. वहां की जनजाति 'डोंगरिया कोंड' ने इसके खिलाफ कैंपेन कर रखा था. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसमें बड़ी मदद की थी. क्योंकि इस प्रोजेक्ट से जनजातियों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा था.
भारत में 'लैंड एक्वीजीशन' को लेकर भी एमनेस्टी इंटरनेशनल का एक विवाद हुआ. एक तरफ भारत सरकार Make In India कैंपेन चला रही थी. वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत में लैंड एक्वीजीशन से जुड़े किसानों के दर्द को पूरी दुनिया को दिखा रहा था.
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जर्मनी में मेक इन इंडिया का प्रचार

कुछ लोग इसे सहीं मानते हैं. कुछ कहते हैं कि ये भारत की इमेज को दुनिया में गिराने की साजिश है. क्योंकि उद्योग लगेंगे तो कुछ लोगों को तो दिक्कत होगी ही. और बिना उद्योग के भारत का काम अब चलेगा नहीं.
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जर्मनी में एमनेस्टी इंटरनेशनल का लगाया पोस्टर: भारत के किसानों की समस्याओं के बारे में

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