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बाबर की धरती पर बड़ा बवाल हो गया है!

कराकलपाकस्तान में क्या बखेड़ा हुआ कि इमरजेंसी लगानी पड़ गई?

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What was the ruckus in Karakalpakstan that emergency had to be imposed? (Photo-AP, Twitter)
कराकलपाकस्तान में क्या बखेड़ा हुआ कि इमरजेंसी लगानी पड़ गई? (फोटो-AP,Twitter)
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4 जुलाई 2022 (Updated: 4 जुलाई 2022, 20:35 IST)
Updated: 4 जुलाई 2022 20:35 IST
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आज हम जिस देश की कहानी सुनाने वाले हैं, उसकी छाप भारत के अतीत पर तो पड़ी ही, गाहे-बगाहे उसके निशान वर्तमान के चेहरे पर भी दिख जाते हैं. ये कहानी उज़्बेकिस्तान की है. उज़्बेकिस्तान का भारत से क्या रिश्ता? दरअसल, आज से 539 बरस एक बालक पैदा हुआ था. उसका नाम था, ज़हीरुद्दीन मोहम्मद बाबर. उसने बाद में भारत में मुग़लिया सल्तनत की स्थापना की. मुग़ल सल्तनत से भारत को क्या मिला या सल्तनत ने हमसे क्या छीना? इसको लेकर लंबी बहस हो सकती है. आज हम उस तरफ़ नहीं जाएंगे. बस इतना जान लीजिए कि जिस क़स्बे में बाबर पैदा हुआ, वो मौजूदा समय में उज़्बेकिस्तान में ही है.
ये तो हुआ इंडिया कनेक्शन. आज उज़्बेकिस्तान की चर्चा क्यों?

दरअसल, 02 जुलाई को उज़्बेकिस्तान के एक प्रांत कराकलपाकस्तान का माहौल बदला-बदला दिखा. सड़कों पर मिलिटरी की गाड़ियां थीं. हवाओं में आंसू गैस घुली थी. ज़मीन की सतह लाल थी. आम लोगों के ख़ून से. हर तरफ़ चीख-पुकार बरपा था. लोग अपने हिस्से के अधिकार बचाने आए थे, लेकिन उन्हें अपनी जान बचाने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही थी. जब सरकार का मन इतने से भी नहीं भरा, तब समूचे प्रांत में इमरजेंसी लगाने का ऐलान कर दिया गया.

आज हम जानेंगे,

- कराकलपाकस्तान की पूरी कहानी क्या है?
- कराकलपाकस्तान में क्या बखेड़ा हुआ कि इमरजेंसी लगानी पड़ गई?
- और, आगे क्या हो सकता है?

साथ में सुनाएंगे, एक पुल की कहानी. ये पुल ना सिर्फ़ नदी के दो किनारों को जोड़ रहा है, बल्कि इसने एक देश का साबका आधुनिकता से भी कराया है. क्या है पूरा मसला, विस्तार से बताएंगे.
उससे पहले परिचय की रस्म पूरी कर लेते हैं.

भारत से ऊपर, रूस के नीचे और चीन से बाईं तरफ़ के इलाके को मोटे तौर पर सेंट्रल एशिया कहा जाता है. इस इलाके में पांच देश आते हैं - ताजिकिस्तान, किर्ग़िस्तान, कज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान. दूसरी सदी ईसापूर्व में चीन से एक व्यापारिक मार्ग की बुनियाद रखी गई हुई. ये रास्ता एशिया को यूरोप से जोड़ता था. इसे इतिहास में सिल्क रूट के नाम से जाना जाता है. सिल्क रुट इतना लंबा था कि कोई व्यापारी अकेले दम पर पूरा सफ़र तय नहीं कर सकता था. वे छोटे-छोटे टुकड़ों में यात्राएं करते थे. सिल्क रूट एक चेन की तरह काम करता था. लोकेशन की वजह से उज़्बेकिस्तान को सिल्क रूट का दिल भी कहते हैं.

फिर सातवीं सदी आई. इस्लाम धर्म का उदय हुआ. अरब अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने निकले. वे सेंट्रल एशिया भी आए. उन्होंने सेंट्रल एशिया का साबका इस्लाम से कराया. बड़ी संख्या में लोगों का धर्म-परिवर्तन किया गया. इसकी छाप आज भी दिखती है. सेंट्रल एशिया के देशों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं.

अरबों के जाने के बाद पर्शियन शासक आए. उनके बाद तुर्क और फिर मंगोल. 1363 ईसवी में तैमूरलंग ने मंगोलों को खदेड़ दिया. उसने समरकंद में अपनी राजधानी बसाई. उसी के वंशज बाबर ने आगे चलकर मुग़ल साम्राज्य की शुरुआत की. तैमूर वंश के पतन के बाद सेंट्रल एशिया को अलग-अलग नगर-राज्यों में बांट दिया गया. उनके शासकों को ख़ान की पदवी दी गई. ख़ानों ने 19वीं सदी के मध्य तक अपना शासन बखूबी चलाया. उसके बाद ये एक-एक कर रूसी साम्राज्य के क़ब्ज़े में आते चले गए. 1865 में रूस ने ताशकंद को जीत लिया. 1920 तक पूरा सेंट्रल एशिया रूस का हिस्सा बन चुका था.

1917 में रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई. आख़िरी ज़ार निकोलस द्वितीय की हत्या कर दी गई. इसके साथ ही रूस में ज़ारशाही का पतन हो गया. सेंट्रल एशिया के इलाके रूसी साम्राज्य से अलग होने के लिए छटपटा रहे थे. वहां क्रांतियों का दौर शुरू हो गया था. ऐसे में रेड आर्मी ने दखल दिया. 1924 तक रेड आर्मी ने समूचे इलाके को शांत करा लिया था. तब तक सोवियत संघ की स्थापना हो चुकी थी. और, सोवियत संघ में जोसेफ स्टालिन का शासन आ चुका था. स्टालिन ने सोवियत संघ के सदस्यों की सीमाओं का पुनर्गठन किया. इसके तहत उज़्बेकिस्तान और उसके पड़ोसी देशों का जन्म हुआ.

स्टालिन के पुनर्गठन में एक इलाका पीछे छूट गया. इसे कराकलपाकस्तान का नाम दिया गया. कराकलपाक सेंट्रल एशिया में एक अल्पसंख्यक समुदाय है. उज़्बेकिस्तान के बाहर कम ही लोग इसके बारे में जानते हैं. इनका ताल्लुक तुर्कों से रहा है. 18वीं सदी से पहले तक ये समुदाय घुमंतू था. उनका कहीं स्थायी ठिकाना नहीं था. 18वीं सदी में ये लोग अरल सागर के दक्षिण में आकर बस गए. 1920 के दशक में कराकलपाक प्रांत की स्थापना हुई. इसे कज़ाख ऑटोनॉमस सोशलिस्ट सोवियत रिपब्लिक का हिस्सा बनाया गया. 1932 में कराकलपाक को ऑटोनॉमस रिपब्लिक बना दिया गया. चार बरस बाद इसे उज़्बेकिस्तान में शामिल कर दिया गया. सेंट्रल एशिया के बाकी इलाकों को सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक का दर्ज़ा मिला. लेकिन कराकलपाक पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया. ये सेंट्रल एशिया का इकलौता ऑटोनॉमस रिपब्लिक था. सोवियत संघ ने इस इलाके में कपास की खेती के लिए अरल सागर का भरपूर दोहन किया. नतीजा ये हुआ कि अरल सागर सिकुड़ने लगा. इसके इलाके रेगिस्तान में तब्दील होने लगे. एक समय तक सेंट्रल एशिया की सबसे उपजाऊ ज़मीन बंजर हो गई.

फिर आया 1980 का दशक. सोवियत संघ में दरारें साफ़-साफ़ दिखने लगीं थी. 1990 में कराकलपाकस्तान की संसद ने संप्रभु होने का ऐलान कर दिया. हालांकि, ये ऐलान बहुत कारगर नहीं रहा. 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया. अगस्त में उज़्बेकिस्तान ने आज़ादी का ऐलान किया. 1993 में कराकलपाकस्तान को उज़्बेकिस्तान में मिला लिया गया. बदले में उन्हें ऑफ़र दिया गया. कहा गया कि 20 साल बाद जनमत-संग्रह कराओ और आज़ादी पाओ.

कराकलपाकस्तान के संविधान में उनकी आज़ादी के अधिकार को मान्यता मिली है. इसमें लिखा है कि, ‘कराकलपाकस्तान एक संप्रभु डेमोक्रेटिक रिपबल्कि है. ये फिलहाल उज़्बेकिस्तान का हिस्सा है. रिपब्लिक ऑफ़ कराकलपाकस्तान को उज़्बेकिस्तान से अलग होने का पूरा अधिकार है. बशर्ते जनमत-संग्रह में यहां के लोग अलग होने के प्रस्ताव को को मंज़ूरी दें.’ उज़्बेकिस्तान ने 20 साल बाद जनमत-संग्रह कराने का वादा किया था. लेकिन इस वादे के 29 साल बाद भी जनमत-संग्रह नहीं हो सका है.

कराकलपाकस्तान की आबादी 12 से 15 लाख के आसपास है. ये उज़्बेकिस्तान की कुल आबादी का लगभग पांच प्रतिशत है. अगर एरिया की बात की जाए तो, कराकलपाकस्तान 30 प्रतिशत से अधिक हिस्से को कवर करता है. हालांकि, इसका अधिकतर हिस्सा रेगिस्तान है. इस वजह से ये उज़्बेकिस्तान के सबसे पिछड़े इलाकों में से है.

कराकलपाकस्तान के पास वो सबकुछ है, जो एक देश होने के लिए चाहिए. जैसे, अपना संविधान, अपना झंडा, विधायिका, कार्यपालिका और अपनी न्यायपालिका भी है. इन सबके बावजूद उसके पास अपनी नियति तय करने का अधिकार नहीं है. उसके अधिकतर ज़रूरी मामलों में उज़्बेकिस्तान सरकार का निर्णय अंतिम होता है. कराकलपाकस्तान की संसद महज रबर स्टांप की तरह काम करती है. हालांकि, एक धड़ा इस यथास्थिति से संतुष्ट नहीं है. ये धड़ा 

कराकलपाकस्तान में प्रोटेस्ट करते लोग (Twitter)

 की पूर्ण आज़ादी की मांग करता रहता है. उज़्बेकिस्तान सरकार ऐसे लोगों से बड़ी सख़्ती से निपटती है.

 

02 जुलाई को यही देखने को मिला. 2016 से उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपति हैं, शवक़त मिज़ियेयोव. उनकी सरकार संविधान में बदलाव करके कराकलपाकस्तान के अलग होने के अधिकार को छीनना चाहती है. जैसे ही ये प्लान बाहर आया, कराकलपाकस्तान की राजधानी न्युकुस में बवाल हो गया. प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए. उन्होंने सरकारी इमारतों पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की. फिर सेना आई. टैंक उतारे गए. गोलियां चलीं और फिर सड़कों पर ख़ून बहने लगा. सेंट्रल एशिया के बाकी देशों की तरह ही उज़्बेकिस्तान में भी प्रेस पर पाबंदियां है. मीडिया पर सरकार का नियंत्रण है. जो कुछ भी ख़बर बाहर आती है, वो काफ़ी छनकर निकलती है. अभी तक प्राप्त जानकारी के मुताबिक, प्रोटेस्ट में 18 लोगों की मौत हो चुकी है. दो सौ से अधिक लोग घायल हैं. पांच सौ से अधिक को गिरफ़्तार किया है. राजधानी न्युकुस की सड़कों पर सेना गश्त कर रही है. 02 जुलाई की रात राष्ट्रपति ने कराकलपाकस्तान में एक महीने के लिए आपातकाल लगाने का ऐलान किया. इसके तहत, किसी को भी प्रांत से बाहर जाने या बाहर से अंदर आने की इजाज़त नहीं होगी.

प्रोटेस्ट के बाद राष्ट्रपति ने संविधान में बदलाव का प्लान पीछे खींच लिया है. उन्होंने न्युकुस का दौरा भी किया. उन्होंने कहा कि प्रोटेस्ट में शामिल लोग देश की शांति भंग करना चाहते हैं. उज़्बेकिस्तान विरोधियों के दमन के लिए कुख़्यात रहा है. जानकारों का कहना है कि भले ही सरकार ने संविधान बदलने का प्लान छोड़ दिया हो, लेकिन आने वाले दिनों में बचे-खुचे विपक्ष का दमन कार्यक्रम ज़ोर-शोर से चलने वाला है.

अब सुर्खियों की बारी.

आज की पहली सुर्खी तुर्किए से है. तुर्किए के अधिकारियों ने एक रूसी मालवाहक जहाज़ को ज़ब्त कर लिया है. ये जहाज रूस के क़ब्जे वाले यूक्रेनी इलाके से निकला था. इसमें अनाज भरा था. अभी ये पता नहीं चल सका है कि ये अनाज यूक्रेन से चुराया गया था या रूस का अपना था. यूक्रेन लगातार रूस पर अनाज चोरी का आरोप लगाता रहा है. उसका कहना है कि रूस ने उसके इलाके से साढ़े चार हज़ार टन अनाज़ की चोरी की है. यूक्रेन ने पहले ही तुर्किए से इस जहाज़ को ज़ब्त करने की अपील की थी. ज़ब्त जहाज इस समय बंदरगाह के गेट पर ही खड़ा है. 04 जुलाई को पूरे मामले की जांच की जाएगी. उसके बाद ही पूरा सच पता चल सकेगा. यूक्रेन को उम्मीद है कि ज़ब्ती के बाद उसका अनाज वापस किया जाएगा.

रूस का अनाज़ चोरी के आरोपों पर क्या कहना है? रूस ने इन आरोपों से पल्ला झाड़ लिया है. उसने चोरी से साफ़ मना कर दिया. यूक्रेन को पिछले कुछ समय से समुद्री रास्ते से अपना अनाज़ लाने-ले जाने में काफ़ी मुश्किल हो रही थी. अफ़्रीका और यूरोप के कई देश गेहूं और सूरजमूखी के तेल के लिए यूक्रेन पर निर्भर हैं. इसका पूरी दुनिया पर असर पड़ रहा था. युद्ध की शुरुआत में रूस ने यूक्रेन के स्नेक आईलैंड पर कब्ज़ा कर लिया था, यूक्रेन उसी रास्ते अपना अनाज़ ले जाता था. अब यूक्रेन ने वापस उस आइलैंड पर जीत हासिल कर ली है. कहा जा रहा है कि हालिया घटनाक्रम रूस के लिए बड़ा झटका साबित होने वाला है. क्या ये युद्ध में यूक्रेन को बढ़त दिला पाएगा, ये देखने वाली बात होगी.

दूसरी सुर्खी डेनमार्क से है, डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में मास शूटिंग की ख़बर है. हमलावर ने एक मॉल में अंधाधुंध गोलियां चलाई. मॉल में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया. लोग बाहर की ओर भागने लगे. कुछ लोग मॉल की दुकान में ही छिप गए. इस गोलीबारी में 3 लोगों की मौत हो चुकी है. कई घायल भी हुए हैं. हमलावर 22 साल का युवक है. उसका नाम डैनिश बताया जा रहा है. पुलिस ने उसको गिरफ़्तार कर लिया है.

शूटिंग के बाद मॉल के बाहर लोग (AP)

पुलिस का कहना है कि इस घटना में आतंकी साजिश की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता. उन्होंने जांच की बात की है. अभी ये पता नहीं चल सका है कि हमले की साज़िश में डैनिश के अलावा भी कोई शामिल था या नहीं. घटना के बाद डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन का बयान आया, उन्होंने कहा कि

‘ये हमला समझ से परे है. हमारे देश की राजधानी आमतौर पर लोगों के लिए सुरक्षित रही है, लेकिन हालात कुछ ही सेकंड में बदल गए. मैं इस मुश्किल घड़ी में लोगों को एक-दूसरे के लिए खड़े रहने के लिए कहती हूं.’

आज की हमारी तीसरी और अंतिम सुर्खी ऑस्ट्रेलिया से है. ऑस्ट्रेलिया इन दिनों बाढ़ की चपेट में है. बीते शुक्रवार से ही ऑस्ट्रेलिया में मूसलाधार बारिश हो रही है. इसकी वजह नदियों में पानी भर गया है. बांध ओवरफ़्लो हो रहे हैं. कई इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए हैं. ऑस्ट्रेलिया में पिछले डेढ़ साल में ऐसा चौथी बार हो रहा है, जब तेज़ बारिश की वजह से बाढ़ जैसे हालात पैदा हुए हैं. बाढ़ की वजह से देश के करीब 50 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. ऑस्ट्रेलिया के सिडनी और उसके आसपास के क्षेत्रों के तीस हज़ार से अधिक निवासियों को अल्टीमेटम दिया गया है. अल्टीमेटम में कहा गया है कि वे अपने घरों को खाली कर दें या अपने घरों को कभी भी छोड़ने के लिए तैयार रहें. सिडनी में बाढ़ की वजह से एक व्यक्ति की मौत भी हो गई है. पश्चिमी सिडनी में पररामट्टा नदी पर एक छोटी नाव पलट गई थी. जिसमें सवार व्यक्ति नदी में गिर गया. उसे बचाया नहीं जा सका.

 

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