The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Tarikh Youngest Param Veer Chakra Awardee Yogendra Singh Yadav fought valiantly During Kargil War

कारगिल में 17 गोली खाकर लड़ने वाले परमवीर चक्र विजेता की कहानी

सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव सिर्फ 19 साल के थे जब उन्होंने टाइगर हिल की लड़ाई लड़ी

Advertisement
योगेंद्र सिंह यादव
योगेंद्र को उनके अदम्य साहस के लिए परमवीर चक्र प्रदान किया गया. वे उन गिने चुने वीरों में से एक हैं जिन्हें जीवित रहते यह सर्वोच्च सम्मान मिला. (तस्वीर: Wikimedia)
pic
कमल
10 मई 2022 (Updated: 8 मई 2022, 07:35 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

वो कौन सी धौंकनी है जो 12 गोली लगने के बाद भी सीने में सांस भरती रहती है? टाइगर हिल की चोटी पर निगाह जमाए ग्रेनेडियर योगेंद्र का मन इसी सवाल पर अटका था. तीन बार ग्रेनेड के टुकड़े शरीर पर लगे थे. हाथ हिलाए नहीं हिलता था, न बाजू काम कर रही थी ना टांग. योगेंद्र ने निगाह ऊंची की तो पीछे एक लम्बे बाजू की जैकेट पहने एक आदमी दिखा. योगेंद्र ने आंखें बंद कर ली. शख्स ने योगेंद्र की राइफल उठाई और तीन गोलियां बाजू और टांग में मार दी. इसके बाद राइफल की नली सीधे छाती की ओर आई और फायर हो गई.

26 जुलाई 1999 के रोज़ कारगिल की लड़ाई पूरी हुई. भारत ने कारगिल से पाकिस्तान की नॉर्दन लाइट इंफेंट्री को पीछे खदेड़ दिया. चार लोगों को मरणोपरांत परमवीर चक्र सम्मान की घोषणा हुई. इनमें एक नाम योगेंद्र सिंह यादव का भी था. 19 साल का लड़का जो 15 गोली खाकर भी अकेले लड़ता रहा. जिसके शुरुआती साहस का ही नतीजा था कि बाकी प्लैटून टाइगर हिल पर कब्ज़ा कर पाई.

आज ही के दिन यानी 10 मई, 1980 को बुलंदशहर के औरंगाबाद अहिर गांव में योगेंद्र का जन्म हुआ. फौजी का घर था, जज्बे की कोई कमी नहीं थी. पिता करण सिंह यादव कुमाऊं रेजिमेंट का हिस्सा होते हुए 1965 और 1971 की जंग में लड़े थे. 16 की उम्र होगी जब योगेंद्र ने फौज की भर्ती में हिस्सा लिया. जिंदगी के उजले पलों का हिसाब किताब करें तो 5 मई, 1999 को योगेंद्र की शादी हुई थी. तब वे केवल 19 साल के थे. नई दुल्हन के साथ 15 दिन भी नहीं बीते थे कि जम्मू से वॉर के लिए कॉल आ गया. पाकिस्तान कारगिल पर कब्ज़ा कर बैठ गया था. 20 मई, 1999 को उन्होंने जम्मू में रिपोर्टिंग की.

इजराएल भारत की मदद के लिए आया

योगेंद्र 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन का हिस्सा थे. 12 जून को उन्होंने तोलोलिंग हिल पर कब्ज़े की लड़ाई लड़ी. फिर बात टाइगर हिल की आई. कारगिल अभियान की सबसे कठिन लड़ाई. टाइगर हिल के ऊंचाई 16700 फ़ीट थी.

Bofors
कारगिल युद्ध के दौरान बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल हुआ था (तस्वीर: Getty)

जिस पर आर्मी ने एक बार मई में चढ़ने की कोशिश की थी. लेकिन आसपास की पहाड़ी से होने वाली गोलाबारी से भारत को बहुत नुकसान हुआ था. इसलिए तय हुआ कि टाइगर हिल पर दूसरी कोशिश तभी की जाएगी जब आसपास की पहाड़ियों पर कब्ज़ा हो जाएगा. 3 जुलाई के रोज़ लेह राजमार्ग से तोपों से लगातार टाइगर हिल पर गोले बरसाए गए. चूंकि ऊंचाई बहुत ज्यादा थी इसलिए नीचे से हमले का असर लिमिटेड ही रहने वाला था.

ऐसे में एयरफोर्स की मदद ली गई. मिराज को इस काम में लगाया गया. दुनिया की किसी एयरफ़ोर्स ने इससे पहले इतनी ऊंचाई पर ऐसे किसी ऑपरेशन को अंजाम नहीं दिया था. तब इज़रायल ने इस काम में भारत की मदद की. दरअसल भारत को लेजर टार्गेटिंग पॉड्स की जरुरत थी. जिनकी खेप पहुंचने में अभी काफी वक्त था.

तब इजराएल ने अपने इंजीनियर भेजे. और मिराज में इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल टार्गेटिंग पॉड्स इनस्टॉल करने में मदद की. मिराज 2000 से टाइगर हिल पर 1000 पाउंड के बम बरसाए गए. चौतरफा हमले का मकसद था कि पाकिस्तानी फौज ओवरव्हेल्म हो जाए. इसके बाद सेना ने टाइगर हिल पर चढ़ाई शुरू की. पूर्व की तरफ से चोटी पर जाने के लिए 90 डिग्री पर चढ़ना होता था. बाकी जगह से रास्ता बेहतर था, लेकिन उन रास्तों पर पाकिस्तानी आर्टिलरी लगातार निशाना बनाए रहती. इसलिए वहां से चढ़ना लगभग असंभव था.

टाइगर हिल की सीधी चढ़ाई

3 जुलाई की रात पहली कोशिश हुई. रात भर रस्सी के सहारे चढ़ने के बाद सुबह 11 बजे 7 लोग चोटी के नजदीक पहुंच गए. लेकिन तभी ऊपर से इतनी भारी गोलाबारी हुई कि टीम को वापस लौटना पड़ा. 5 जुलाई को 18 ग्रेनेडियर्स के 25 सैनिकों ने दोबारा चढ़ाई शुरू की. टीम को दो लोग गाइड कर रहे थे. योगेंद्र सिंह यादव नंबर 1 और योगेंद्र सिंह यादव नंबर 2.

Tiger
टाइगर हिल (तस्वीर: Getty)

अबकी बार दोबारा गोलीबारी हुई लेकिन 7 सैनिक ऊपर चढ़ने में सफल हो गए. बाकी 17 को दोबारा पीछे हटना पड़ा. गोलीबारी के बाद पाकिस्तानी सैनिक नीचे देखने आए कि कोई जिन्दा तो नहीं बचा. योगेंद्र और उनके साथियो ने उन्हें पास आने दिया और नजदीक आते ही उन पर फायरिंग कर दी. आठ पाकिस्तानी सैनिक वहीं मारे गए. दो ने ऊपर लौटकर खबर दी कि 7 लोग नीचे मौजूद हैं.

अबकी बार 35 पाकिस्तानी लौटे और उन्होंने योगेंद्र और उनके साथियों को घेर लिया. योगेंद्र बताते हैं कि उस तरफ से ग्रेनेड से हमला हुआ. उनके अधिकतर साथी इस हमले में मारे गए. ग्रेनेड के 3 टुकड़े योगेंद्र के हाथ, कंधे और पैर में लगे.

कुछ दूर एक पत्थर के पीछे छुपकर उन्होंने अपने एक साथी से फर्स्ट ऐड किट मांगा. उनके साथी ने पट्टी निकालकर उसका पैकेट फाड़ा ही था कि तभी ग्रेनेड का एक और टुकड़ा योगेंद्र की आंख के नीचे लगा. कुछ देर के लिए योगेंद्र को लगा कि उनकी आंख चली गई है. कुछ देर बाद रौशनी आई तो उन्होंने देखा कि सामने वाले साथी को कनपट्टी पर गोली लगी थी, पट्टी का पैकेट ज्यों का त्यों हाथ में रखा हुआ था, खून से भीगा हुआ.

सीने पर चली गोली

योगेंद्र खुद भी खून से लथपथ थे. पास पड़े एक स्लीपिंग बैग से उन्होंने खून साफ़ करने की कोशिश की. फिर किसी तरह रेंगते हुए आगे बढ़े. पाकिस्तानी फौज के सामने अब वो अकेले थे, और किसी रिइन्फोर्समेंट के आने की संभावना भी न्यूनतम थी. पाकिस्तानी फौजियों को लगा सब मारे गए. तब योगेंद्र ने मौका देखकर एक ग्रेनेड बंकर की तरफ उछाला. जो बंकर में मौजूद तीन पाकिस्तानी सिपाहियों को ले उड़ा.

Pvc
परम वीर चक्र सम्मान के साथ योगेंद्र सिंह यादव (तस्वीर: Getty)

योगेंद्र माउंटिंग दीवार की ओट लेकर बैठे हुए थे. शरीर जवाब दे चुका था. लेकिन सांस अभी भी चल रही थी. उन्होंने गर्दन उठाई तो देखा दो पाकिस्तानी सैनिक उनके सर के ऊपर खड़े थे. उनमें से एक ने योगेंद्र की राइफल उठाई और उनके हाथ और पैर में गोली मार दी. इसके बाद उसने राइफल का निशाना सीने की तरफ किया और फायर कर दिया. मृत्यु अंतिम सत्य है, लेकिन योगेंद्र के लिए वो अंतिम दिन अभी नहीं आया था.

हुआ ये कि योगेंद्र की ऊपरी जेब में उनका बटुआ रखा था. और गोली सीधे वहां लगी जहां बटुए में कुछ सिक्के इकट्ठे हो गए थे. इसलिए उनकी जान बच गई. योगेंद्र को मरा समझकर पाकिस्तानी फौजी आगे बढ़ गए. तब योगेंद्र ने एक ग्रेनेड निकाला और उनकी तरफ उछाल दिया. ग्रेनेड जाकर पाकिस्तानी फौजी के जैकेट के हुड में अटका. उसके सर के परखच्चे उड़ गए.

इसके बाद योगेंद्र ने अपने बाकी बचे एक हाथ से फायरिंग जारी रखी और मौका देखकर पास में बहते हुए एक नाले में कूद गए. वहां से बहते और लुड़कते हुए नीचे आ पहुंचे. योगेंद्र 400 मीटर नीचे एक पत्थर के सहारे लटके थे जहां उन्हें उनके साथियों ने उन्हें देखा.

मरणोपरांत परम वीर चक्र की घोषणा हुई

योगेंद्र को बेस पर ले जाया गया. उन्हें दिखाई देना भी बंद हो गया था. कमाडिंग ऑफिसर खुशहाल सिंह ने पूछा तो योगेंद्र ने जवाब दिया, “साहब मैं आपकी आवाज़ पहचानता हूं. जय हिंद साहब.' इसके बाद योगेंद्र ने उन्हें टाइगर हिल पर मौजूद बंकरों का हाल बताया. और साथ ही बताया कि पाकिस्तानी नीचे MSG बेस पर हमला करने आ रहे हैं. इसके बाद योगेंद्र बेहोश हो गए.

Param Veer
राष्ट्रपति के आर नारायण से परम वीर चक्र प्राप्त करते हुए योगेंद्र (तस्वीर: Getty)

इस युद्ध में अदम्य साहस दिखाने के लिए योगेंद्र का नाम परम वीर चक्र के लिए चयनित हुआ. लेकिन शुरुआती घोषणा में उन्हें  मरणोपरांत ये सम्मान देने की घोषणा हुई थी. बाद में जब योगेंद्र के पत्नी ने बताया कि योगेंद्र अस्पताल में सही सलामत हैं, तब जाकर गलती का पता चला.

हमने बताया था योगेंद्र की टीम में दो योगेंद्र यादव थे. दूसरे योगेंद्र यादव युद्ध में लड़ते हुए मारे गए थे. इसी चक्कर में ये गलतफहमी हुई थी. चूंकि परम वीर चक्र की सेलेक्शन प्रक्रिया दुनिया में सबसे टफ मानी जाती है, इसलिए इस चक्कर में सेना की बहुत किरकिरी भी हुई थी. बाद में आर्मी चीफ ने खुद हॉस्पिटल पहुंचकर योगेंद्र से माफी मांगी थी. और इस मामले में जांच के आदेश भी दिए थे. साल 2021 में योगेंद्र नायब सूबेदार के पद से रिटायर हुए. साथ ही उन्हें राष्ट्रपति द्वारा कैप्टन की मानद उपाधि भी प्रदान की गई.

तारीख: क्या था शाह बानो केस जिसने भारतीय राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया?

Advertisement