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क्या थी राजमाता गायत्री देवी और इंदिरा गांधी के बीच रंजिश की वजह?

जयपुर राजघराने की महारानी गायत्री देवी को दुनिया की सबसे सुन्दर औरत माना जाता था

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Gayatri Devi
जयपुर राजघराने की महारानी गायत्री देवी और इंदिरा गांधी (तस्वीर: Getty)
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कमल
23 मई 2022 (Updated: 19 मई 2022, 06:51 PM IST) कॉमेंट्स
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20 अक्टूबर 1962 की एक शाम. मीनू मसानी के घर एक प्राइवेट पार्टी का आयोजन था. मीनू मसानी लोकसभा में स्वतंत्र पार्टी के लीडर हुआ करते थे. जयप्रकाश नारायण को पार्टी में बतौर मुख्य अतिथि निमंत्रण मिला था. और उस शाम वो नागा जनजाति की भारत से अलग राज्य की मांग पर अपनी राय रख रहे थे. गम्भीर माहौल की बीच यकायक पार्टी में एक महंगी फ़्रेंच परफ़्यूम की ख़ुशबू उड़ी तो सबने दरवाज़े की ओर देखा. वहां आयशा थीं.  फ़िरोज़ी और नीले रंग की शिफ़ोन की साड़ी पहने हुए. अपनी बादामी आखों से उन्होंने चारों तरफ़ देखा तो सब उनके एहतराम में खड़े हो गए.

आयशा ने देरी के लिए सबसे माफ़ी मांगते हुए लोगों से बैठ जाने को कहा और खुद भी वहीं दरी पर बैठ गई. अपनी किताब बुक ऑफ़ अनफ़र्गेटबल वुमेन में ख़ुशवंत सिंह लिखते हैं,

“इसके बाद आयशा ने एक सुनहरे डिब्बे से कासनी रंग की सिगरेट निकाली और सुलगा ली. सभा ये सब देख ही रही थी कि जय प्रकाश नारायण बोले, “देखो ज़माना कैसा बदल गया है, एक महारानी आम आदमी के चरणों में बैठी है”

इसके बाद आयशा खड़ी हुई और सबके सामने उन्होंने अपनी बात रखी. अंग्रेज़ी में बोलने के बाद उन्होंने कहा, “माफ़ करिए मेरी पैदाइश बंगाल की है और शादी राजपूतों में हुई है. इसलिए मेरी हिंदुस्तानी थोड़ी तंग है.”

ख़ुशवंत सिंह बताते हैं कि उनके पास बैठे एक शख़्स ने उनके कान में कहा, “इनकी बंगाली और राजस्थानी तो और भी ख़राब है. इन्हें सिर्फ़ अंग्रेज़ी या फ़्रेंच में बोलना आता है.”

कूच बिहार की राजकुमारी

आयशा यानी गायत्री देवी का जन्म आज ही के दिन यानी 23 मई 1919 को कूच बिहार राजघराने में हुआ था. उनकी मां इंदिरा राजे खुद बड़ौदा की राजकुमारी हुआ करती थीं. जब आयशा का जन्म हुआ, उन दिनों राइडर हैगर्ड की लिखी हुई किताब “शी: अ हिस्ट्री ऑफ़ एडवेंचर” बड़ी फ़ेमस हुआ करती थी. इसमें एक जादुई रानी का किरदार है. इसी किरदार के ऊपर इंदिरा राजे ने अपनी बेटी का नाम आयशा रखा था.

गायत्री देवी और मान सिंह द्वितीय (तस्वीर: getty)

12 साल की उम्र थी जब आयशा की मुलाक़ात जयपुर राजघराने के महाराजा सवाई मान सिंह से हुई और पहली ही नज़र में वो 21 साल के महाराजा को दिल दे बैठी. साल 1940 में दोनों ने शादी भी कर ली. इस तरह आयशा बन गई महारानी गायत्री देवी. उस दौर में उन्हें दुनिया की सबसे सुंदर औरतों में से एक गिना जाता था. और वोग मैगज़ीन ने एक ऐसी ही लिस्ट में उन्हें स्थान भी दिया था.

उन्हें पोलो खेलने और शिकार करने का बहुत शौक़ था. साल 1962 में उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा र 1 लाख 92 हज़ार वोट पाकर चुनाव जीत भी लिया. इतनी बड़ी जीत के चलते उनका नाम गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल हुआ. इस चुनाव को जीतने के बाद महारानी गायत्री देवी की राजनैतिक पारी की शुरुआत हुई. 20 अक्टूबर की 1962 की शाम का जो किस्सा हमने आपको शुरुआत में सुनाया था, उसकी पहली किस्त उसी दोपहर लिख दी गई थी.

प्रधानमंत्री नेहरू से कहासुनी

उस रोज़ लोकसभा में चीन को लेकर गरमागरम बहस हुई. बॉर्डर पर चीन के अतिक्रमण को लेकर विपक्ष प्रधानमंत्री नेहरू पर हमलावर था. और नेहरू किसी तरह अपने नीतियों का बचाव कर रहे थे.

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ मीनू मसानी (तस्वीर: Wikimedia Commons)

लोकसभा की गैलरी से नज़र डालो तो पुरुष सांसदों और महिला सांसदों के बीच फ़र्क साफ़ मालूम पड़ता था. कॉलर चढ़ाए ट्रेड यूनियन के नेताओं समेत धोती-कुर्ता पहने सांसदों के बीच औरतें सलीके से पहनी साड़ी में नज़र आती. सरकार की तरफ़ वाली बेंच में प्रधानमंत्री नेहरू के अग़ल-बग़ल बैठी थीं, स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर सुशीला नायर, उप विदेश मंत्री लक्ष्मी मेनन और उप वित्त मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा, जिनके बारे में किस्सा मशहूर था कि एक बार एक अमेरिकी सीनेटर उनसे पहली मुलाक़ात में कहा था, “आज तक आपसे सुंदर डेप्युटी फ़ाइनैन्स मिनिस्टर से मुलाक़ात नहीं हुई.”

सदन में दूसरी तरफ़ विपक्ष की बेंच पर मौजूद थीं. गायत्री देवी. जयपुर की महारानी और स्वतंत्र पार्टी की मेम्बर. नेहरू चीन के मसले पर बोल रहे थे. बीच में महारानी ने नेहरू को टोकते हुए कहा, “अगर आपको किसी भी चीज के बारे में कुछ भी पता होता तो आज हम इस मुसीबत में नहीं होते”

नेहरू ने सुने को अनसुना करते हुए अपनी बात जारी रखी. महारानी गायत्री थोड़ी संसदीय भाषा में दोबारा अपनी बात दोहराने लगी. तब नेहरू ने नज़र उठाकर कहा, “मैं एक औरत के साथ ज़बान नहीं लड़ाना चाहता.” नेहरू के साथ गायत्री देवी का राजनैतिक विरोध था. लेकिन जब कांग्रेस की कमान इंदिरा गांधी के हाथ में आई तो ये अदावत पर्सनल हो गई.

इंदिरा गांधी से अदावत

दरअसल गायत्री और इंदिरा एक दूसरे को बचपन से जानते थे. दोनों ने गुरुदेव रबींद्रनाथ ठाकुर के बनाए पाठा भवन शांतिनिकेतन स्कूल में पढ़ाई की थी. ख़ुशवंत सिंह लिखते हैं, “इंदिरा खुद से खूबसूरत किसी और औरत को बर्दाश्त नहीं कर सकती थी. एक बार सदन में उन्होंने गायत्री देवी को कांच की गुड़िया कहकर बुलाया था.”

लोगों से मुखातिब होती हुई राजमाता गायत्री देवी (तस्वीर: Getty)

देश की राजनीति के ये दो ताकतवर परिवार हमेशा एक दूसरे के विरोध में रहे. गायत्री देवी ने कांग्रेस के उम्मीदवार को लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव में हराया था. इंदिरा और गायत्री देवी के रिश्ते को लेकर तब इंडिपेंडेंट अख़बार की एक रिपोर्ट में छपा था,

“गायत्री की सदन में मौजूदगी इंदिरा को बहुत ज़्यादा खलती थी. पाठा भवन के दिनों से ही इंदिरा गायत्री के चलते रियासतों के विशेषाधिकार और प्रिवी पर्स से अपने पिता से भी ज़्यादा नफ़रत करने लगी थीं”  

इमरजेंसी के दौरान दोनों की बीच अदावत खुलकर सामने आई. किस्सा मशहूर है कि इंदिरा ने महारानी को जेल में डालकर जयगढ़ के क़िले में फ़ौज भेज दी थी.

इस किस्से को लेकर कई सारी किंवदंतियां बनी हुई हैं. मसलन ये कि इंदिरा ने सेना को आदेश दिया था कि जयपुर राजघराने के सारे बेशक़ीमती आभूषण और हीरे-जवाहरात जो उन्होंने छुपाकर रखे हैं, उन्हें खोदकर लाना है. किंवदंती में ये भी शामिल है कि इंदिरा ने बाद में कहा था कि वहां फ़ौज को कुछ नहीं मिला, जबकि कई ट्रक सोना हड़प लिया गया था. जयपुर में कई गाइड आज भी सैलानियों को ये किस्सा सुनाते हैं.

एक और किंवदंती है, जिसके अनुसार ये सब कुछ संजय गांधी के इशारे पर हुआ था. संजय गांधी ने हिंदू मुस्लिम दंगों का बहाना बनाकर आमेर में सात दिन का कर्फ़्यू लगा दिया था. और उसके बाद सेना को खुदाई करने भेजा. खुदाई में 60 ट्रक सोना, चांदी और जवाहरात मिले. सबकी नजरों से बचाकर इसे जयपुर से दिल्ली ले जाया गया. वहां नई दिल्ली के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इंदिरा गांधी ने दो विशाल प्लेन तैयार रखे हुए थे. वहां से संजय और इंदिरा ने उस खजाने को स्विट्जरलैंड भिजवा दिया.

जयपुर किले में गढ़ा खजाना

प्रामाणिक रूप से क्या हुआ था. इसके बारे में खुद महारानी गायत्री देवी ने बताया था. असल में ये बात इमरजेंसी से पहले ही है. तब तक महारानी गायत्री देवी को जेल में नहीं डाला गया था. इंदिरा जयप्रकाश नारायण और जॉर्ज फ़र्नांडिस के नेतृत्व में हो रहे जनआंदोलनों से झल्लाई हुई थीं. इसलिए उन्होंने ध्यान भटकाने के लिए कारोबारी घरानों और विपक्ष के नेताओं के खिलाफ छापेमारी शुरू करवा दी. 

इंदिरा गांधी (तस्वीर: Getty)

गायत्री देवी बताती हैं,

”इन छापेमारियों में ग्वालियर और जयपुर के पूर्व-राजघरानों के प्रति विशेष दुराग्रह रखा गया क्योंकि ग्वालियर की राजमाता और मैं संसद में विपक्ष के सदस्य थे.”

11 फ़रवरी 1975 की बात है. इमरजेंसी लागू होने में अभी चार महीने बाकी थे. उस रोज़ राजमाता गायत्री देवी अपनी छत पर नाश्ता कर रही थी, जब एक नौकर ने आकर उन्हें इत्तिला की कि कुछ लोग उनसे मिलने आए हैं. गायत्री देवी नीचे पहुंची तो पता चला वो लोग इनकम टैक्स ऑफिसर थे. महारानी गायत्री देवी की मोती डूंगरी वाली प्रॉपर्टी की छानबीन की गई. उनके हर घर, हर ऑफ़िस, सिटी पैलेस, म्यूजियम, रामबाग़ पैलेस होटल, उनके बच्चों के घरों और दिल्ली में सांसद आवास पर भी छापे मारे गए. इसके अलावा जयगढ़ फ़ोर्ट पर भी छापा मारा गया. यहीं से गढ़ा हुआ सोना मिलने की कहानियां शुरू हुई.

एक दिन जब इनकम टैक्स अधिकारी मोती डूंगरी के आंगन में छानबीन कर रहे थे तो उन्हें ज़मीन में दबे सोने के सिक्के मिले. इन सिक्कों को राजा मान सिंह द्वितीय ही नाहरगढ़ के किले से मोती डूंगरी लाए थे. जयपुर रियासत का जब भारतीय संघ में विलय हुआ, उससे पहले ये सिक्के नाहरगढ़ किले के खजाने में रखे हुए थे.

गायत्री देवी बताती है,

“इस सोने का जिक्र जयपुर रियासत के आखिरी बजट में किया गया था. और एक-एक सिक्के का हिसाब था. लेकिन इसके बाद भी ये उत्पीड़न जारी रहा."

खजाने का क्या हुआ?

इसके बाद की कहानी किंवदंतियों से ज़रा मुख़्तलिफ़ है. द ट्रिब्यून में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार टैक्स अधिकारियों को जो सोना मिला था उसमें 26 लाख के गोल्ड बिस्किट, और शाहजहां के वक्त की सोने की मुहरें थीं, जिनकी क़ीमत लगभग 8 करोड़ रुपये थी.

मोती डूंगरी का किला (फ़ाइल फोटो)

इस मामले में 30 साल तक कोर्ट में केस चला. लेकिन चूंकि जयपुर रियासत के पास पूरा हिसाब था, इसलिए ये सिक्के ट्रकों में भरकर कहीं ले जाए नहीं गए.  बल्कि जयपुर राजघराने की मिल्कियत ही बने रहे. इसके कुछ महीने बाद जून 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी घोषित करवा दी तो उसके बाद अपने विरोधियों को जेल भेजना शुरू किया. पूर्व-महारानी गायत्री देवी को भी तिहाड़ जेल डाल दिया गया. वहां पांच महीने उन्हें रहना पड़ा. उनके सबसे बड़े बेटे ब्रिगेडियर भवानी सिंह (सौतेले) को भी जेल में डाल दिया गया

जेल से रिहा होने के बाद गायत्री देवी ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. ये कहते हुए कि जिस देश में एक तानाशाह का राज हो, वहां लोकतंत्र की क़ीमत ही क्या है. इंदिरा और गायत्री देवी के बीच अदावत ताउम्र जारी रही. यहां तक कि संजय गांधी की मृत्यु पर गायत्री देवी ने इंदिरा को फ़ोन किया लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया. 29 जुलाई 2009 को गायत्री देवी की एक बीमारी के चलते मृत्यु हो गई.

तारीख: कारगिल वॉर में सीने में लगी गोली लेकिन लड़ना नहीं छोड़ा

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