अपने ही परिवार का कातिल क्यों बन गया था नेपाली राजकुमार?
साल 2001 में नेपाल के शाही महल में हुए हत्याकांड में 9 लोगों की हत्या कर दी गई थी. एक हफ्ते के अंदर नेपाल ने तीन राजा देखे
नेपाल की राजशाही में एक प्रथा हुआ करती थी. राजा की मृत्यु पर 11 वें दिन एक ब्राह्मण को आमिष भोजन कराया जाता. इसके बाद ब्राह्मण राजा का भेष बनाकर ब्राह्मण हाथी या घोड़े पर बैठता और काठमांडू से बाहर चला जाता. इस प्रथा को कट्टो कहते थे. माना जाता था कि इस प्रथा के बाद ही राजा की आत्मा देश छोड़ पाती थी. जून 2001 में एक ही हफ्ते में दो बार इस प्रथा को पूरा किया गया. राजा बीरेंद्र शाह और उनके बाद राजा दीपेंद्र शाह की एक ही हफ्ते में मृत्यु हो गई थी. अब सवाल ये कि दो-दो महाराजा कैसे?
दरअसल दीपेंद्र, बीरेंद्र शाह के बेटे थे. और बीरेंद्र की मृत्यु के बाद उन्हें राजा बनाया गया था. लेकिन फिर 3 दिन बाद दीपेंद्र की भी मृत्यु हो गई. कहानी इतनी सी होती तो भी हैरतअंगेज़ थी. लेकिन कहानी में असली मोड़ तब आया जब पता चला कि दीपेंद्र ने ही राजा बीरेंद्र की हत्या की थी. और सिर्फ उन्हीं की नहीं, रानी ऐश्वर्या और दीपेंद्र के छोटे भाई निराजन समेत कुल 9 लोगों की हत्या कर दी गई थी. आज 1 जून है और आज की तारीख का संबंध है एक शाही हत्याकांड से.
नेपाल की राजशाही पर श्रापशुरुआत 1769 से. नेपाल की लोक कथाओं के अनुसार बात तब की है जब पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल की तीन रियासतों को जीतकर खुद को राजा घोषित कर दिया. काठमांडू जाते हुए एक बार उनकी मुलाक़ात एक सन्यासी से हुई. भूखे सन्यासी को देखकर राजा ने उसकी ओर एक दही का कटोरा बढ़ाया. सन्यासी ने कटोरा लिय, लेकिन सिर्फ थोड़ा सा चख कर वापस राजा को दे दिया. राजा ने ये सोचकर कि दही झूठा हो गया है,
जमीन पर फेंक दिया. दही जमीन पर गिरा और राजा के पांवों की दसों उंगलियों पर लग गया. ये देखकर सन्यासी को क्रोध आया. उसने राजा से पूछा कि दही क्यों फेंका तो राजा ने जवाब दिया, ‘जूठा दही खाना राजा को शोभा नहीं देता’. इसके बाद सन्यासी ने राजा को धिक्कारते हुए कहा, अगर तूने दही खा लिया होता तो तेरी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती.
कहानी के अनुसार चूंकि गिरा हुआ दही राजा की दासों उंगलियों पर लगा था, इसलिए उसी दिन तय हो गया था कि 10 पुश्तों बाद राजशाही ख़त्म हो जाएगी. नेपाल के लोग मानते हैं कि राजा बीरेंद्र के साथ जो साल 2001 में हुआ वो इसी सन्यासी के दिए श्राप का फल था. क्या हुआ था उस रोज़? चलिए जानते हैं.
आज ही की तारीख यानी 1 जून, 2001 की बात है. उस रोज़ नेपाल के शाही महल, नारायणहिति पैलेस में एक पार्टी का आयोजन किया गया था. ये एक प्राइवेट पार्टी थी, जिसका आयोजन हर शुक्रवार को किया जाता था. ताकि शाही परिवार के सभी लोग साथ में खाना खा सकें. उस दिन शाही भोग का आयोजन राजकुमार दीपेंद्र की तरफ से किया गया था. अपनी ही पार्टी में दीपेंद्र रात साढ़े सात बजे के आसपास पहुंचे. यहां कुछ देर शराब पीने के बाद उन्होंने बिलियर्ड्स रूम का रुख किया. जहां उनके छोटे भाई राजकुमार निराजन और डॉक्टर राजीव शाही बिलियर्ड्स खेल रहे थे. कुछ देर बाद जब दोनों को अहसास हुआ कि दीपेंद्र के पांव लड़खड़ा रहे हैं तो उन्होंने दीपेंद्र को उनके कमरे में ले जाकर सुला दिया. लेकिन दीपेंद्र सोए नहीं.
शाही महल में कत्लेआमवो बाथरूम पहुंचे. यहां उल्टी करने के बाद उन्होंने एक 9 एमएम की पिस्टल, एक MP5K सबमशीन गन और कोल्ट एम- 16 राइफ़ल ली और दुबारा पार्टी में पहुंच गए. तब तक नेपाल नरेश भी पार्टी में पहुंच चुके थे. दीपेंद्र को हथियार इकठ्ठा करने का शौक था. इसलिए किसी ने उनकी तरफ तब तक कुछ खास ध्यान नहीं दिया, जब तक दीपेंद्र की बंदूक से चली एक गोली महल की छत को जाकर न लगी. सबको लगा, गलती से ट्रिगर दब गया होगा. लेकिन ये गलतफहमी भी कुछ ही देर में दूर होने वाली थी. दीपेंद्र ने इसके बाद बन्दूक का निशाना राजा बीरेंद्र की तरफ किया और तीन गोलियां चला दीं. नेपाल नरेश वहीं पर गिर पड़े.
इससे पहले किसी को समझ आता कि क्या हो रहा है, वहां गोलियों की बौछार होने लगी. दीपेंद्र पर जैसे कोई भूत सवार था. उन्होंने अपने भाई निराजन और बहन श्रुति को भी नहीं छोड़ा. 8 लोगों को अपना निशाना बनाने के बाद दीपेंद्र ने सीढ़ियों का रुख किया.महारानी ऐश्वर्या सीढ़ियां चढ़ रही थीं. दीपेंद्र ने उनके पीछे से गोली चलाई और वो जाकर सीधे महारानी के सर में लगी.
इसके बाद दीपेंद्र ने बन्दूक अपनी कनपट्टी पर रखी और फायर कर दी. पूरे घटनाक्रम को सिर्फ 2 या ढाई मिनट लगे होंगे. नेपाल नरेश की सांस अभी भी चल रही थी. उन्हें अस्पताल ले जाया गया. उसी गाड़ी में दीपेंद्र भी थे. और वो भी अभी जिन्दा थे.
इधर अस्पताल में दीपेंद्र का ऑपरेशन चल रहा था. वहीं नेपाल की जनता पूरे घटनाक्रम से अनजान थी. अगले दिन दोपहर 11 बजे घोषणा हुई कि नेपाल नरेश की मृत्यु हो गयी है और राजकुमार दीपेंद्र को नया राजा घोषित किया जाता है. नेपाल का स्टेट टेलीविजन इस घटना पर खामोश था. क्या हुआ, कैसे हुआ, जनता को इसका पता विदेशी न्यूज चैनल्स से चल रहा था. सबके मन में एक ही सवाल था. हुआ क्या और किया किसने?
कौन था इस हत्याकांड के पीछेअस्पताल से महाराजा बीरेंद्र के डॉक्टर और उनके छोटे भाई के दामाद राजीव शाह ने एक प्रेस कांफ्रेंस की. उन्होंने बताया कि उस रोज़ नशे की हालत में दीपेंद्र पार्टी में आया और उसने अपनी बन्दूक से राजा-रानी समेत 9 लोगों को मार गिराया. लेकिन कई लोगों को इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था. नेपाल नरेश और युवराज दीपेंद्र जनता में खासे लोकप्रिय थे. और दीपेंद्र ऐसा क्यों करेंगे, इसे लेकर भी साफ-साफ़ कुछ बताया नहीं जा रहा था. इस प्रेस कांफ्रेंस में एक और खास बात कही गई थी.
डॉ राजीव शाह ने दीपेंद्र के चचेरे भाई पारस की खूब तारीफ़ की थी. शाह के अनुसार पारस ने अपनी जान पर खेलकर उस दिन कई लोगों की जान बचाई थी. ये बात भी लोगों के गले नहीं उतरी. चूंकि पारस की छवि लोगों के बीच अच्छी नहीं थी और उन पर एक बार तेज़ ड्राइव करते हुए लोगों को कुचल देने का आरोप का भी लगा था.
बहरहाल घटना के तीन दिन बाद दीपेंद्र की भी मृत्यु हो गई. तब पारस के पिता और राजा बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र को नेपाल नरेश बनाया गया. ज्ञानेंद्र उस दिन काठमांडू में न होकर कहीं और थे. राजकुमार पारस समेत ज्ञानेंद्र के परिवार के सभी लोगों की जान बच गई थी. इसलिए ये अफवाह भी उड़ी कि गद्दी पाने के लिए ज्ञानेंद्र और पारस ने मिलकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया.
अफवाहों का कारण ये भी था कि हत्या के पीछे दीपेंद्र का क्या मकसद हो सकता है?
इस बात का जवाब किसी के पास नहीं था. सवाल का जवाब पाने के लिए एक जांच कमिटी बनाई गई. इस कमिटी में नेपाल के चीफ जस्टिस केशव प्रसाद उपाध्याय और नेपाली संसद के स्पीकर तारानाथ राणाभट शामिल थे. एक हफ्ते की जांच के बाद रिपोर्ट सामने आई. रिपोर्ट में सैकड़ों गवाहों के बयान से बताया गया कि इस हत्याकांड के पीछे दीपेंद्र ही था. अब सिर्फ एक सवाल बचा था. दीपेंद्र ने ऐसा क्यों किया?
हत्याकांड के पीछे था एक रिश्तामाना जाता है कि पूरा मामला था, दीपेंद्र और देवयानी के इश्क का. दोनों की मुलाक़ात लन्दन में हुई. और वहीं पर दोनों में प्यार हुआ था. दीपेंद्र जब लन्दन से नेपाल लौटे तो उन्होंने अपनी मां महारानी ऐश्वर्या को देवयानी के बारे में बताया. और कहा कि वो देवयानी से शादी करना चाहते हैं. लेकिन जैसे ही महारानी ऐश्वर्या ने ये सुना, वो बिफर पड़ी. देवयानी का ताल्लुक ग्वालियर घराने से था. और ऐश्वर्या और देवयानी के परिवारों में पुरानी अदावत थी.
महारानी ऐश्वर्या को ये हरगिज मंजूर नहीं था. ऐश्वर्या चाहती थी कि दीपेंद्र की शादी सुप्रिया शाह से हो. दीपेंद्र की बहन श्रुति भी सुप्रिया की दोस्त थीं. लेकिन दीपेंद्र अड़े हुए थे कि वो शादी करेंगे तो सिर्फ देवयानी से. इस बात को लेकर परिवार में कई बार बहस हो चुकी थी.
दीपेंद्र ने कई बार महारानी ऐश्वर्या को समझाने की कोशिश की. लेकिन ऐश्वर्या ने अल्टीमेटम देते हुए कहा कि अगर वो शादी की जिद पर अड़े रहे तो उन्हें राजशाही से बेदखल कर दिया जाएगा.
जून 2001 में हुआ हत्याकांड इसी आपसी रंजिश का नतीजा था.
हालांकि इस हत्यकांड को लेकर लेकर आगे कई और खुलासे भी हुए. साल 2009 में राजकुमार पारस ने दावा किया कि दीपेंद्र ने हत्याकांड की प्लानिंग बहुत पहले से कर ली थी. हालांकि उनके प्राइवेट सेक्रेटरी सौजन्य जोशी ने इस बात को मनगढ़ंत बताया था, जिस कारण उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा था.
हत्याकांड में भारत का नाम कैसे आयाइस हत्याकांड के पीछे एक कारण ये बताया जाता है कि महाराजा बीरेंद्र नेपाल को राजशाही से लोकशाही की तरफ ले जा रहे थे. और इसी बात को लेकर बाप बेटे में ठन गई थी. ये भी कहा गया कि दीपेंद्र की हथियारों की एक डील को भी राजा ने कैंसिल कर दिया था.
चूंकि पड़ोस का मामला था, इसलिए भारत का भी नाम इस हत्याकांड से जुड़ा. साल 2010 में शाही पैलेस के मिलिट्री सेक्रेटरी जनरल विवेक शाह ने एक किताब लिखी, ‘माइले देखेको दरबार’. हिंदी में तर्जुमा करें तो ‘राजमहल, जैसा मैंने देखा’. किताब में उन्होंने दावा किया कि ये सब भारत का किया धरा था. ताकि नेपाल में लोकतंत्र आ सके. नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और कम्यूनिस्ट नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने भी खुले मंच पर कहा था कि इस हत्याकांड के पीछे भारतीय इंटेलिजेंस एजेन्सी RAW का हाथ है.
हांलांकि जैसा कि ऐसी बातों के साथ होता है. ये बातें सिर्फ कांस्पीरेसी थियोरी बनकर रह गयी. जो कि नेपाल के जनमानस में आज भी जिन्दा है. और कुछ सच हो न हो इतना जरूर है कि इस घटना ने नेपाल में राजशाही के उल्टी गिनती शुरू कर दी. साल 2005 में नेपाल में सिविल वॉर की शुरुआत हुई. देखते-देखते ऐसा जन आंदोलन खड़ा हो गया कि 28 मई 2008 को नेपाल की राजशाही का अंत हो गया. और वहां एक लोकतांत्रिक सरकार ने सत्ता की जगह ले ली.
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