तारीख़: रूस के इस राजा ने अपने ही बेटे की हत्या क्यों कर दी थी?
4 दिसंबर, 1533 को तीन की उम्र में हुई थी ताजपोशी.
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इवान द टेरिबल की पूरी कहानी जान लीजिए.
आज है 04 दिसंबर. ये तारीख़ जुड़ी है एक ताजपोशी से. तीन साल के बच्चे की ताजपोशी. जो आठ साल का हुआ, तो उसकी मां को ज़हर देकर मार डाला गया. वो बच्चा देश का राजा था, लेकिन उसे भरपेट खाना तक नहीं मिलता था. जब वो सोचने-समझने लायक हुआ, तब उसने ऐसा तांडव मचाया कि उसके नाम में हमेशा के लिए ‘टेरिबल’ (खौफ़नाक) शब्द जुड़ गया.ये कहानी है इवान वासिलियेविच चतुर्थ. उसे दुनिया ‘इवान द टेरिबल’ के नाम से भी जानती है. उसके पिता का नाम था वासिली तृतीय. वो मॉस्को के राजा थे. वंश का नाम था रुरिक. ये कौन थे? ये जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा.

वासिली तृतीय.
ऐसे बना रूस
डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे. ये तीनों देश मिलकर स्कैंडिनेविया कहलाते हैं. आठवीं सदी की बात है. यहां के राजाओं ने एक मिलिटरी कैंपेन शुरू किया. वे नदियों के किनारे चलते थे. वहां बसी बस्तियों में लूटपाट मचाते हुए आगे बढ़ते जाते थे. इन राजाओं को पश्चिम में ‘वाइकिंग्स’ कहा जाता था. जबकि पूरब में आकर ये ‘वारंगियन’ कहलाए.
उस दौरान रूस अलग-अलग कबीलों में बिखरा हुआ था. जब वारंगियन वहां पहुंचे, तब कबीलों ने राजकुमार रुरिक से एक गुज़ारिश की. वे बोले,
‘आपकी ताक़त के सामने हम नहीं टिक सकते. हम आपकी अधीनता स्वीकार करते हैं. आप इन बिखरे कबीलों को एक कर दीजिए’.राजकुमार रुरिक ने बात मान ली. 862 ईस्वी में रुरिक वंश की स्थापना हुई. यहां रहनेवालों को ‘रुस’ का नाम मिला. इसी के आधार पर देश का नाम ‘रूस’ पड़ा.
राजा, जिसे भरपेट खाना तक नहीं मिलता था
ये तो हुआ रुरिक वंश का इंट्रो. अब अपनी कहानी पर लौटते हैं. वासिली तृतीय का शासन बड़ा मज़बूत था. अंदर से भी और बाहर भी. उन्होंने अपने पिता इवान द ग्रेट के परचम को कायम रखा था. लेकिन फिर एक अनहोनी हुई. एक दिन शिकार खेलते समय उनकी जांघ में दर्द शुरू हुआ. इसका इलाज नहीं हो सका. 3 दिसंबर, 1533 को उनकी मौत हो गई.

इवान द टेरिबल.
उस समय इवान चतुर्थ की उम्र थी, मात्र तीन साल. 4 दिसंबर को उसको अपने पिता की गद्दी पर बिठा दिया गया. इवान चतुर्थ मॉस्को का राजा बन गया. उसकी उम्र कम थी, इसलिए उसकी मां ‘ग्लिंसकाया’ ने उसके नाम से शासन चलाया. लेकिन पांच बरस बाद ही मां का साया भी उठ गया. कहा जाता है कि कुलीनों ने साज़िश के तहत, ज़हर खिलाकर उसकी मां को मारा था. उसने ये घटना याद रखी थी और आगे चलकर इसका बदला भी लिया.
रूस का पहला ज़ार
मां की मौत के बाद उसका जीना और मुहाल हो गया था. जिन लोगों को इवान चतुर्थ की देख-रेख में रखा गया था, वो उसे भरपेट खाना तक नहीं देते थे. उसे मारा-पीटा भी जाता था. दुत्कार की तो आदत पड़ गई थी. ये सब एक राजा के साथ हो रहा था. इस वजह से इवान चतुर्थ उखड़ गया. वो गुस्सैल हो गया. उसका मूड अचानक बदल जाता था. इसका नतीजा बाद में पूरे रूस को भुगतना पड़ा.
फिर 1547 का साल आया. मॉस्को में ज़ारशाही की स्थापना हुई. इवान चतुर्थ पहला ज़ार बना. ये शब्द लैटिन भाषा के ‘सीजर’ से लिया गया था. जिसका मतलब होता है ‘सम्राट’. ज़ारशाही रूस में 1917 की बोल्शेविक क्रांति तक कायम रही.
ज़ारशाही तो अगले 370 सालों तक कायम रही. लेकिन रुरिक वंश नहीं. वहां पतन की शुरुआत हो चुकी थी. वजह, इवान चतुर्थ का गुस्सा.
सबसे पहले उसने कुर्सी पर अपनी पकड़ मज़बूत की. फिर वो अपने असली रंग में आया. पहला निशाना बना कुलीन वर्ग. उसने ‘ऑपरिचिना’ की पॉलिसी इंट्रोड्यूस की. इसके तहत, रूसी कुलीनों की संपत्तियां ज़ब्त की जाने लगीं. उन्हें सरेआम मारा जाने लगा. दरअसल, इवान चतुर्थ को शक था कि ये लोग उसके ख़िलाफ़ साज़िश रच रहे हैं.
अपने ही बेटे की हत्या क्यों की?इवान चतुर्थ का शासन कई मायनों में खास रहा. उसने कुलीनों के प्रभाव को खत्म किया. इससे मॉस्को सत्ता का केंद्र बन गया. वो साहित्य और कला का भी शौकीन था. वो रूस को सबसे शक्तिशाली बनाना चाहता था, लेकिन उसके गुस्से और मतिभ्रम ने रूस को उल्टी दिशा में धकेल रखा था. इसका सबसे भयानक परिणाम तब देखने को मिला, जब एक दिन उसने अपने बड़े बेटे ‘इवान इवानोविच’ की हत्या कर दी. इवान इवानोविच का अजन्मा बच्चा भी इस सनक का शिकार बना.

गुस्से की वजह से एक दिन उसने अपने ही बेटे की हत्या कर दी.
मार्च, 1584 में इवान चतुर्थ की मौत हो गई. तब कुर्सी मिली, उसके छोटे बेटे फ़्योदोर को. वो इसे संभालने में नाकाम रहा. उसे शासन चलाने में कोई इंटरेस्ट भी नहीं था. 1598 में फ़्योदोर मर गया. उसको कोई बच्चा नहीं था. इस तरह रुरिक वंश पर वहीं फुल-स्टॉप लग गया.
यहीं से रूस में ‘टाइम ऑफ़ ट्रबल्स’ की शुरुआत हुई. देश में अराजकता थी. जो भी नया राजा कुर्सी पर बैठता, उसकी हत्या हो जाती. ये इकलौती समस्या नहीं थी. 1601 में रूस में अकाल पड़ा. इसमें एक-तिहाई आबादी मारी गई थी. इन सबके बीच बाहरी आक्रमण भी जारी था. रूस पर हर तरफ से मार पड़ रही थी. इससे उबरने में रूस को लंबा समय लगा. इवान द टेरिबल ने अपना नाम साकार कर दिया था. उसने अपने ही देश की खुशी में पलीता लगा दिया था. जो आनेवाले कई दशकों तक रूस को दुख देता रहा.
आज की तारीख़ में बस इतना ही. हम नई तारीख़ों पर नए दिलचस्प क़िस्सों के साथ हाज़िर होते रहेंगे. शुक्रिया.