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मुगलों की वो 5 उपलब्धियां, जो झूठ हैं

ये जबर्दस्ती थोप दिया गया है कि हर कुछ यही लोग करते थे.

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14 फ़रवरी 2021 (Updated: 14 फ़रवरी 2021, 05:46 IST)
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कहावत है कि इतिहास जीतने वाले के हिसाब से लिखा जाता है. अगर हिटलर या दुर्योधन इतिहास में विजेता होते तो क्या उन्हें सिकंदर, अशोक और अकबर की तरह महान नहीं माना जाता. आज के शासक दाराशिकोह और औरंगज़ेब के बहाने गुड मुगल और बैड मुगल की बात कर रहे हैं. इतिहास को फिर से लिखने की बात हो रही है. ये कोई पहला मौका नहीं है जब ऐसा हुआ हो. इससे पहले कम्युनिस्ट और उससे पहले अंग्रेज़ इतिहासकारों ने अपनी-अपनी विचारधारा और सहूलियत के हिसाब से इतिहास को लिखा और व्याख्या की.
पर आज मौका है 14 फरवरी का. आज बाबर का जन्मदिन होता है. बाबर ने जिस मुगलिया सल्तनत की नींव हिंदुस्तान में रखी उसमें यहां पर कई चीजें बदलीं. मुगलों ने कई चीज़ें दीं, कुछ बाद में उनके नाम से जोड़ दी गईं. चलिए इसी बहाने हम बात करेंगे उन मिथकों की जिनमें कहा जाता है कि मुगल नहीं होते तो ये नहीं होता, वो नहीं होता-

1. बाबर हिंदुस्तान के प्रेम में था

बाबर ने अपनी डायरी तुजुके बाबरी में काफी कुछ अच्छा और बुरा दोनों लिखा है. उसमें हिंदुस्तान के बारे में क्या लिखा है, आप खुद ही पढ़ लीजिए.
“हिंदुस्तान दिलचस्प मुल्क है. यहां के लोग खूबसूरत नहीं हैं. सामाजिक तानाबाना भी बहुत समृद्ध नहीं है. लोगों में शायरी करने का हुनर नहीं है. तमीज़, तहज़ीब और बड़ा दिल नहीं है. कला और शिल्प में सही अनुपात नहीं है. अच्छे घोड़े, मीट, अंगूर, तरबूज़ यहां नहीं होते. बाज़ारों में रोटी, अच्छा खाना या बर्फ नहीं मिलती है. गुसलखाने और मदरसे नहीं हैं.”
बाबर ने हिंदुस्तान की दो चीज़ों की तारीफ खूब की है, पहली आम की और दूसरी हिंदुस्तानियों के पास मौजूद सोने की.  दरअसल बाबर ने जो लिखा है वो उसके परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल सही है. समरकंद से आया एक आदमी एक बिलकुल अलग भूगोल और समाज में पहुंच जाता है और अपने हिसाब से चीज़ों को लिखता है. उसको आज के समीकरणों के हिसाब से देखना गलत है.

2. मुगल न होते तो हिंदुस्तान में खूबसूरत इमारतें न होतीं

तर्क दिया जाता है कि मुगल न होते तो लालकिला न होता, ताजमहल न होता, तमाम खूबसूरत इमारतें नहीं होती. कुछ हद तक बात सच भी है. मगर अंग्रेज़ों के अपने हिसाब से लिखे गए इतिहास और आज़ादी के बाद लंबे समय तक गोरों की लिखी हर बात को प्रमाणिक मानने की हमारी फितरत ने हिंदुस्तान की विरासत में तमाम चीज़ों का क्रेडिट छीन लिया. अगर ताजमहल नहीं भी होता तो भी अजंता, ऐलोरा की गुफाएं, सांची का स्तूप, खजुराहो के मंदिर, दक्षिण के भव्य मंदिर, तंजौर की मूर्ति कला, मौजूद होते. शेरशाह सूरी का ग्रैंड ट्रंक रोड और मकबरा होता. बीजापुर का गोल गुंबद होता. उड़ीसा के मंदिर होते. बहुत चीजें हैं.

3. बाबर न होता तो बिरयानी न होती

बिरयानी शब्द फारसी के बिरिंज बिरियां से बना है. इसका अर्थ होता है तले हुए चावल. बिरयानी को आज के हिंदुस्तान की सबसे चर्चित डिश कहा जाए तो गलत नहीं होगा. बिरयानी खिलाना तो एक राजनीतिक मुहावरा बन चुका है. मुगल चिकन बिरयानी के नाम हिंदुस्तान भर में ठेले से लेकर पांच सितारा तक कइयों की दुकानदारी चल रही है. मगर बिरयानी को मुगलों से जोड़ना गलत है. गौर करिए हिंदुस्तान में लखनवी और हैदराबादी बिरयानी सबसे पॉपुलर नाम हैं. आगरे या फतेहपुर सीकरी की बिरयानी आपने नहीं सुनी होगी. बाबर तुर्क था और बिरयानी फारसी खाना है. बाद के मुगल बादशाह पुलाव के शौकीन थे. वैसे बिरयानी की बात चली ही है तो बता दें कि बिरयानी का मुगलों के अलावा चावल से भी रिश्ता नहीं है. ईरान में रुमाली रोटी के संग रखे हुए मसालेदार भुने गोश्त के कॉम्बिनेशन को बिरयानी कहते हैं.
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ईरान में बिरयानी फोटो- लिविंग फ्राइंगपैन.कॉम

ये कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि आज मुगल खाने के नाम पर जो परोसा जा रहा है उसमें ज़्यादातर मुगल है ही नहीं. मुगलई के नाम पर जो कबाब और निहारी हम खा रहे हैं. वो मुगल सल्तनत के बाद के दौर में नवाबों और ज़मींदारों के यहां की ईजाद है.

4. गंगा जमुनी तहज़ीब और उर्दू मुगल लाए

गंगा जमुनी तहज़ीब का नाम आते ही अकबर का नाम ज़ेहन में आता है. मगर सूफीवाद, उर्दू और गंगा जमुनी तहज़ीब जैसी चीज़ें हिंदुस्तान में बाबर के आने से पहले ही थीं. अमीर खुसरो बाबर से कम से कम 250-300 साल पहले ही "ज़िहाले मिस्किन मकुन तगाफुल दुराए नैना बनाए बतिया" लिखकर उर्दू की शुरुआत कर चुके थे. निज़ामुद्दीन औलिया भी खुसरो के समकालीन थे. जिनकी मज़ार को आज भी साझा हिंदू मुस्लिम विरासत का प्रतीक माना जाता है. तो अकबर जिस हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा दे रहे थे, वो बादशाह सलामत की अपनी खोज नहीं थी. अकबर अपने से पहले मौजूद दरगाहों और मजारों की संस्कृति को बढ़ा रहे थे.

5. मुगल पहले आए, यूरोपियन बाद में आए

वास्को डि गामा 1498 में हिंदुस्तान पहुंचा था. जबकि बाबर 1526 में हिंदुस्तान आया. तो इतिहास की इस धारणा को भूल जाइए कि मुगल पहले आए थे और यूरोपियन बाद में. इतिहासकारों के मुताबिक गुजरात जीतने वाला अकबर पुर्तगालियों की बेहतर नौसेना के चलते गोवा की तरफ नहीं गया था. यहां तक कि उसने कुछ जगहों पर पुर्तगालियों से समझौते भी किए थे.

तो फिर मुगलों ने दिया क्या?

अगर कोई इस बात पर खुश हो कि मुगलों की हिंदुस्तान में कोई खास विरासत नहीं है तो ये गलतफहमी है. अगर गौर करें तो देखेंगे हिंदुस्तान में अंग्रेज़ों की बनवाई हुई ज़्यादातर इमारतें लाल रंग की होती हैं. जानकार बताते हैं कि इसके पीछे की वजह ज़्यादातर मुगल इमारतों का लाल पत्थर का बना होना है. अंग्रेज़ हिंदुस्तान में गिनती में बहुत कम थे और मुगलों के अंदाज़ को अपनाकर जनता के मन में शासक वाली इमेज बनाए रखना चाहते थे. इसीलिए अंग्रेज़ों ने अपनी इमारतों में कई ऐसे पहलू शामिल किए जिनमें मुगल आर्किटेक्चर की झलक मिलती है.
हिंदुस्तान में बंदूकों और तोप का इस्तेमाल सबसे पहले बाबर ने किया. बारूद के आने से युद्ध करने का तरीका बदला. मुगलों ने शेरो-शायरी को काफी बढ़ावा दिया. बाबर तुर्की में कविताएं लिखता था. अकबर ने ब्रजभाषा में छंद लिखे. रहीम तो अकबर के सेनापति थे. तुलसीदास ने खुद लिखा है कि अकबर ने उनको मनसबदारी देने की पेशकश की थी. “तुलसी अब क्या होइए नर के मनसबदार” इसके अलावा हिंदुस्तानी संगीत में खयाल गायकी मुगलों के समय में फली फूली. तबले और सितार की खोज खुसरो खां (अमीर खुसरो नहीं) ने इसी दौर में की.  मुगलों ने खूब सारे बाग भी बनवाए. कुल्फी और फालूदा को भी मुगलों ने मशहूर किया. इसके साथ ही खाने में फलों का चलन भी मुगलों के समय में बढ़ा.
कुल मिला कर बात ये है कि इतिहास को लिखते समय हर बार लिखने वाला जाने अनजाने अपने समय और सोच के हिसाब से मिलावट कर देता है. कल्पनाएं सच बन जाती हैं और सच हास्यास्पद मिथक लगने लगता है. पढ़ने वालों को चाहिए कि इतिहास को इतिहास ही रहने दें, हास्य की इति न बना दें.


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