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कंडोम के ऐड, फैशन टीवी और 'डांस फ्लोर पर राधा' से दिक्कत थी सुषमा स्वराज को

उनका एक पहलू ये भी था

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सुषमा स्वराज के नेतृत्व में बीजेपी 1998 का दिल्ली विधानसभा चुनाव हार गई थी.
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सिद्धांत मोहन
7 अगस्त 2019 (Updated: 7 अगस्त 2019, 11:49 AM IST) कॉमेंट्स
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सुषमा स्वराज. अब इस दुनिया में नहीं हैं. पिछली सरकार में विदेश मंत्री थीं. और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में उनकी गिनती होती थी. लेकिन सुषमा स्वराज का सफ़र सीधा भाजपा से जुड़ने के पहले समाजवादी राजनीति से होता हुआ जाता है. वो समाजवादी राजनीति नहीं, जो आज अखिलेश-मुलायम की गिरफ्त में है, बल्कि वो राजनीति, जिससे जॉर्ज फर्नांडिस जुड़े रहे.
लेकिन जनता पार्टी और फिर भाजपा में अपने राजनीतिक करियर को धार देने वाली सुषमा स्वराज के पांच कदम ऐसे हैं, जिनकी वजह से उनकी सरासर आलोचना की जाती रही है. कहा जाता है कि सुषमा स्वराज ने ये कदम इसलिए उठाए थे, जिससे उनकी छवि भाजपा के कथित राष्ट्रवादी और पुरातनवादी ढांचे में और सटीक बैठ सके. लेकिन वे क्या कदम हैं, जिनकी वजह से सुषमा लिबरल और प्रगतिशीलों के साथ-साथ बहुत सारे युवाओं की आलोचना का शिकार हुई थीं.
कहा, कंडोम भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है
वाजपेयी की सरकार थी. सुषमा स्वराज केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री थीं. देश नया-नया डिजिटल हो रहा था. सेक्स से फैलने वाले AIDS और अन्य रोगों की रोकथाम के लिए देश में जागरूकता की बातें हो रही थीं. और इसी सिलसिले में टीवी पर कंडोम के विज्ञापन आने लगे थे. नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाईजेशन का ध्येय था कि कंडोम के विज्ञापनों को ज्यादा से ज्यादा दिखाया जाए, जिससे इन रोगों की रोकथाम में मदद मिल सके. कंडोम के विज्ञापन कामुक किस्म के होते थे, और कथित तौर पर राष्ट्रवादी विचारधारा को इन विज्ञापनों से चोट पहुंचती थी.
Sushma Swaraj

सुषमा स्वराज ने इन विज्ञापनों का विरोध करना शुरू कर दिया. कहा कि एड्स महज़ सेक्स करने की वजह से नहीं फ़ैल रहा है. उन्होंने कहा कि इसके फैलने की और वजहें भी हैं. साथ ही साथ उन्होंने ये भी कहा कि कंडोम भारतीय परंपरा के खिलाफ हैं, और खबरों की मानें तो सुषमा स्वराज ने कहा था कि “खुद पर नियंत्रण और केवल एक ही साथी के साथ सेक्स” से ही एड्स की रोकथाम हो सकती है. उन्होंने कंडोम के विज्ञापनों पर रोक लगाने की भी बात की. और सरकार ने रोक लगा दी. इस बात पर तब काफी हंगामा हुआ था. विपक्ष ने सरकार को रूढ़िवादी करार दे दिया था. फिर 2004 में सत्ता परिवर्तन हुआ तो टीवी चैनलों पर कंडोम के विज्ञापन फिर से आने लगे.
Fashion TV बंद करा दिया था
टीवी पर एक चैनल आता है Fashion TV. छोटे में FTV कहते हैं. फैशन शो आते रहते हैं. देश-दुनिया के मॉडल तरह-तरह के कपड़े पहनकर रैंप पर कैटवाक करते हैं. बिकनी शो और तमाम तरह के शो आते रहे हैं. वाजपेयी की सरकार थी. स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा सुषमा स्वराज के पास सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी था. उन्होंने आंखें तरेरी FTV पर. बात ये निकलकर आई कि इस टीवी पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं हैं. उस समय रमेश बैस सूचना प्रसारण मंत्रालय में राज्यमंत्री थे. मीडिया से बातचीत में कह दिया कि भारतीय संस्कृति के खिलाफ जाता कोई भी कार्यक्रम बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. सुषमा स्वराज ने भी तब कहा था कि वे FTV की हर महीने मॉनिटरिंग करवा रही हैं. और सारे साक्ष्यों के साथ वे इस पर निर्णय लेंगी.
सुषमा स्वराज (फोटो: रॉयटर्स)
सुषमा स्वराज (फोटो: रॉयटर्स)

FTV को बैन कर दिया गया. बहुत हल्ला उड़ा. भारत की फैशन इंडस्ट्री में भी बवाल और विरोध होने लगा. लेकिन सरकार अपने फैसले से पीछे नहीं हटी. मामला इतना बड़ा हो गया कि टीवी के निदेशक फ्रांसुआ थिले भारत आ गए और भारत में मौजूद अधिकारियों से इस बाबत मीटिंग करके मामले को सुलझाने का प्रयास करने लगे. मामले को सुलझाने में एक कमिटी की राय ली गयी लेकिन खबरें बताती हैं कि कमिटी में मौजूद फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी को छोड़कर सभी ने इस चैनल को बंद करवाने का समर्थन किया था. कई सारे कलाकारों और फिल्म अभिनेताओं ने भी सरकार के इस निर्णय को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताया था.
फायर फिल्म में अभिनेत्रियों के किसिंग सीन का विरोध
दीपा मेहता की फिल्म आई थी. नाम “फायर”. 1996 में आई थी. फिल्म का शूटिंग के समय ही विरोध होना शुरू हो गया था. फिल्म में लेस्बियन संबंधों पर बात थी. नंदिता दास के किरदार का नाम ‘सीता’ था और शबाना आजमी के किरदार का नाम था ‘राधा’. दोनों फिल्म के एक दृश्य में एक दूसरे को किस करती हैं.
शबाना आजमी ने एक प्रोग्राम में सरकार और आलोचनाओं पर कुछ बातें कहीं. इसे लेकर उनकी आलोचना हो रही है. उन्हें ऐंटी-बीजेपी बताया जा रहा है.
कहा गया कि शबाना आजमी ने अपनी दोस्ती को भुनाकर फिल्म को पास करा लिया

इस समय भी सुषमा स्वराज सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सम्हाल रही थीं. फिल्म का विरोध हुआ. शिवसेना विरोध में सबसे आगे थी. फिल्म सेंसर बोर्ड में फंसी, तो फिल्म को Adult यानी वयस्क सर्टिफिकेट दे दिया गया. और वो भी इस कंडीशन पर नंदिता दास का नाम बदलकर नीता कर दिया जाए. पास होने के बाद फिल्म सिनेमा घरों में गयी. सिनेमा घरों में तोड़-फोड़ शुरू हो गयी. खबरें बताती हैं कि फिल्म का हिंसक विरोध हुआ तो भाजपा के बड़े नेता, मुरली मनोहर जोशी समेत, फिल्म के विरोध को जायज़ ठहराने लगे.
इस मामले में सूचना प्रसारण मंत्रालय और सुषमा स्वराज के रोल की बहुत आलोचना हुई थी. और दूसरी तरफ भाजपा की साथी शिवसेना ने भी सुषमा स्वराज को फिल्म को सर्टिफिकेट देने पर आड़े हाथों ले लिया था. बाल ठाकरे ने कहा था, “सुषमा स्वराज और शबाना आजमी दोस्त हैं. हो सकता है कि शबाना आजमी ने फिल्म का सर्टिफिकेट पाने के लिए दोस्ती का इस्तेमाल किया हो.”
राधा डांस फ्लोर पर कैसे आ सकती है??
फिल्म “स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर” आई थी. आलिया भट्ट, सिद्धार्थ मल्होत्रा और वरुण धवन. गाना था “राधा”. राधा ऑन द डांस फ्लोर, राधा लाइक्स टू पार्टी, राधा लाइक्स तो मूव दैट देसी राधा बॉडी, और राधा से जुड़े इन बोलों पर सुषमा स्वराज ख़फा हो गयीं.
खबरें चलीं कि सुषमा स्वराज ने संघ की मीटिंग के साथ-साथ पार्टी के नेताओं से भी कहा कि वे इस गाने से खुश नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिल्ली में एक गौरक्षा पर एक कार्यक्रम आयोजित किया था. यहां सुषमा मौजूद थीं. उन्होंने कहा कि उन्हें दो फिल्मों में हिन्दू आस्था पर हमले का पता चला है. एक फिल्म थी “स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर” और दूसरी फिल्म थी “ओह माय गॉड”, जिसमें परेश रावल भगवान पर फैले पाखण्ड को नकारते हैं.
सुषमा स्वराज अच्छा बोलती थीं. बड़े जोश से बोलती थीं. हिंदी की चैंपियन थीं. लेकिन भाषाओं के लिए उनकी मुहब्बत बस हिंदी तक नहीं थी (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़)

राधा वाले गाने पर बात करते हुए सुषमा ने कहा कि बहुत सारे नाम हैं, क्यों सिर्फ राधा नाम का ही इस्तेमाल होता है. उन्होंने ये भी कहा कि वे इस मसले को सदन में उठाएंगी. सुषमा ने ये भी कहा था कि फिल्म निर्माता दूसरे धर्मों का चुनाव क्यों नहीं करते हैं?
करण जौहर ने स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर बनायी थी, और सुषमा स्वराज का बयान सामने आते ही मामले ने भयानक तूल पकड़ लिया. और फिल्म इंडस्ट्री सुषमा स्वराज और इस पूरे कैम्पेन की मुखालफ़त के रंग में देखी गयी थी.
इसके अलावा कुछ और बातें हैं. मसलन, जैसे कैलेंडरों पर से अजन्ता की अप्सराओं को प्रतिबंधित कराना या दिल्ली की निर्भया के लिए “ज़िंदा लाश” शब्द का प्रयोग करना, इन सभी फैसलों-कदमों पर सुषमा स्वराज की अच्छी-खासी आलोचना हुई, प्रगतिशीलों के निशानों पर आ गयीं, लेकिन लगभग हरेक बार, उनकी पार्टी को इससे फायदा ही पहुंचा.


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