सुशील मोदी को फिर से डिप्टी सीएम की गद्दी न मिली तो क्या, अब ये रिकॉर्ड बनाने जा रहे हैं
सुशील मोदी से पहले किस-किसने इस लिस्ट में नाम लिखाया, ये भी जान लीजिए
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सुशील मोदी चारों सदनों के सदस्य बनने वाले बिहार के तीसरे नेता होंगे. (फाइल फोटो)
देश की संसदीय और विधायी व्यवस्था में सरकारें दो स्तर पर बनती हैं. एक केन्द्रीय स्तर पर, और दूसरी राज्य स्तर पर. केन्द्रीय स्तर पर संसद के दो सदन होते हैं - लोकसभा और राज्यसभा. राज्य स्तर पर विधानसभा होती है. कुछ राज्यों में विधानसभा के साथ-साथ विधान परिषद भी है. जो व्यक्ति को अपने जीवनकाल में चारों सदन (लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद) का सदस्य रहा हो, उसे विशिष्ट न कहें तो क्या कहेंगे.
इस समय हम ये सब क्यों बता रहे हैं? इसलिए कि बिहार के उप-मुख्यमंत्री रहे भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने राज्यसभा उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया है. राज्यसभा की यह सीट केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई है. विधानसभा के अंकगणित को देखते हुए सुशील मोदी की यह जीत तय लग रही है. अगर वह राज्यसभा पहुंचने में कामयाब होते हैं, तो उन विशिष्ट लोगों के क्लब में शामिल हो जाएंगे, जो लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद- चारों के सदस्य रह चुके हैं.
सुशील मोदी के सियासी सफर की शुरूआत पटना यूनिवर्सिटी से हुई थी, यहां 1973 में वह छात्र संघ के महामंत्री चुने गए थे. उसी साल लालू प्रसाद यादव पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष बने थे. इसके बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, जेपी आंदोलन और भारतीय जनता पार्टी के साथ सुशील मोदी की राजनीतिक गाड़ी पटरी पर दौड़ती रही. वह पहली बार 1990 में पटना मध्य की विधानसभा सीट से जीतकर विधायक बने. लगातार तीन बार जीते. विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे. 2004 में भागलपुर से लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुँचे, लेकिन डेढ़ साल बाद नवंबर 2005 में नीतीश कुमार की सरकार में उप-मुख्यमंत्री बना दिए गए. इसके बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, और बिहार विधान परिषद के सदस्य बन गए. तब से लगातार विधान परिषद के सदस्य हैं. अब राज्यसभा जाने की तैयारी में हैं. यानी 3 घर सुशील मोदी पहले ही देख चुके हैं, अब चौथे घर यानी राज्यसभा में जाने की तैयारी में हैं.

सुशील मोदी ने पटना में राज्यसभा उपचुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया.
लेकिन सुशील मोदी अकेले ऐसे नेता नहीं हैं. उनसे पहले कुछ और नेता भी चारों सदनों के सदस्य रह चुके हैं. आइए जानते हैं कि इन्हीं के बारे में-
1.विश्वनाथ प्रताप सिंह -
विश्वनाथ प्रताप सिंह. देश के प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा केन्द्र सरकार में वाणिज्य, वित्त और रक्षा मंत्री रहे थे. 1969 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश की सोरांव विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बने. 1971 में फूलपुर लोकसभा सीट जीतकर संसद पहुंचे. 1980 में जब उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, तब वह विधान मंडल के किसी भी सदन के सदस्य नही थे. ऐसे में मुख्यमंत्री बनने के बाद वह पहले विधान परिषद के सदस्य बने, और फिर 1981 में तिंदवारी से विधायकी का उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. वीपी सिंह 1983 में राज्यसभा के लिए चुने गए, और केन्द्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बने. उसके बाद 1988 में अमिताभ बच्चन के इस्तीफे से खाली हुई इलाहाबाद लोकसभा सीट से उपचुनाव जीते. 1989 और 1991 का लोकसभा चुनाव उन्होंने फतेहपुर से जीता, और देश के प्रधानमंत्री बने. राष्ट्रीय राजनीति में वीपी सिंह के दो प्रयोग- बोफोर्स और मंडल ने सियासत को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया.

पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह (बाएं) भी चारों सदनों के सदस्य रहे हैं.
2. नारायण दत्त तिवारी -
एन. डी. तिवारी 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. एक बार उत्तराखंड के सीएम की कुर्सी पर बैठे. आन्ध्र प्रदेश के राज्यपाल की गद्दी संभाली. इसके अलावा योजना आयोग के उपाध्यक्ष, देश के वित्त और विदेश मंत्री के रूप में भी काम किया था. तिवारी पहली बार विधायक बने थे 1952 में, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर नैनीताल से. उसके बाद 60 के दशक में कांग्रेस में शामिल हो गए. 70 के दशक में मुख्यमंत्री बने. 1980 में कांग्रेस के टिकट पर नैनीताल लोकसभा सीट से जीतकर संसद पहुँचे. लेकिन 1984 में जब उन्हें दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाया गया, तब वह विधानमंडल के किसी सदन के सदस्य नही थे. इसलिए विधान परिषद से निर्वाचित हुए. 1985 में जब उनकी केन्द्र में वापसी हुई, तब भी वह संसद के किसी सदन के सदस्य नहीं थे. उस समय राजीव गांधी उन्हें राज्यसभा के रास्ते दिल्ली लेकर आए. 1988 में जब उन्हें तीसरी बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, तब भी वह विधान मंडल के सदस्य नही थे. इस दफा भी उन्हें विधान परिषद के रास्ते ही विधान मंडल में एंट्री करनी पड़ी. 1991 के लोकसभा चुनाव में नारायण दत्त तिवारी अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी बाजी हार गए. नैनीताल की लोकसभा सीट गंवा बैठे. वह दौर था, जब बीच चुनाव में ही कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या हो गई थी. उससे कांग्रेस के लिए सहानुभूति लहर पैदा हुई. तिवारी को कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार बताया जा रहा था. लेकिन इधर तिवारी चुनाव हारे, उधर पीवी नरसिंह राव की लाॅटरी लग गई. और वह प्रधानमंत्री बन गए.

एन डी तिवारी दो राज्यों के मुख्यमंत्री भी रहे थे.
3. शंकरराव चव्हाण -
शंकरराव चव्हाण 2 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. देश के वित्त मंत्री और गृह मंत्री भी रहे थे. भारत के सबसे लंबे समय तक गृह मंत्री रहने का रिकॉर्ड इन्हीं के नाम है. चव्हाण पहली बार 1984 से 86 तक, और दूसरी बार 1991 से 96 तक होम मिनिस्टर रहे थे. अयोध्या में बाबरी ढांचा उनके गृह मंत्री रहते ही गिराया गया था. शंकरराव चव्हाण पहली बार 1956 में बम्बई विधान परिषद के सदस्य बने थे. (उस वक्त बंबई एक राज्य हुआ करता था, और उसमें मौजूदा महाराष्ट्र और गुजरात के अधिकांश इलाके शामिल थे). उसके बाद 1960 में चव्हाण भाकुर सीट से चुनाव जीतकर पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा पहुँचे. 1980 में नांदेड़ से लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुँचे. 1988 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने. 1991 से 96 के दौरान गृह मंत्री के साथ-साथ राज्यसभा में सदन के नेता भी रहे.

महाराष्ट्र के नेता शंकरराव चव्हाण के सियासी सफर की शुरूआत विधान परिषद से हुई थी.
4. राजनाथ सिंह -
राजनाथ सिंह अभी देश के रक्षा मंत्री हैं. इससे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री के अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के गृह मंत्री भी रहे हैं. राजनाथ 1977 में पहली बार उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर विधानसभा सीट से जनता पार्टी के विधायक बने थे. 1991 में जब कल्याण सिंह सरकार में उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया गया, तब वह विधान परिषद में थे. उनके शिक्षा मंत्री रहने के दौरान ही उत्तर प्रदेश में परीक्षाओं में नकल विरोधी अध्यादेश लाया गया था. राजनाथ 1994 में पहली बार भाजपा के टिकट पर राज्यसभा पहुँचे. वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वह हैदरगढ़ विधानसभा सीट का उपचुनाव जीतकर विधान मंडल पहुँचे. 2009 में पहली बार गाजियाबाद से लोकसभा का चुनाव जीता. इस समय लखनऊ से लोकसभा के सदस्य हैं.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सीट के साथ सदन भी बदलते रहे हैं.
5. कलराज मिश्र -
कलराज मिश्र इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं. इसके पहले वह राज्य सरकार और केन्द्र सरकार में मंत्री के उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं. कलराज को 1978 में पहली बार जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजा था. 1986 में पहली बार भाजपा से विधान पार्षद यानी विधान परिषद के सदस्य बने. 2012 में पहली बार लखनऊ ईस्ट विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने. लोकसभा का पहला चुनाव कलराज ने 2014 में जीता, उत्तर प्रदेश के देवरिया से. इस तरह कलराज मिश्र भी चारों सदनों के सदस्य रहे हैं.

कलराज मिश्र बहुत बाद में चुनावी राजनीति में उतरे
6. लालू प्रसाद यादव -
सुशील कुमार मोदी की तरह लालू प्रसाद यादव भी पटना यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट पाॅलिटिक्स और जेपी आंदोलन की उपज हैं. 1977 के लोकसभा चुनाव में लालू भारतीय लोकदल के टिकट पर छपरा लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने थे. 1980 में लोकदल के टिकट पर सोनपुर से विधानसभा गए. 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वह बिहार विधान परिषद के रास्ते विधान मंडल पहुँचे. वर्ष 2000 में लालू यादव पहली बार बिहार से राज्यसभा के सदस्य बनाए गए.

लालू प्रसाद यादव फिलहाल चारा घोटाले में सजायाफ्ता हैं
7. मायावती -
मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं हैं. वह पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी थीं. लेकिन इससे पहले 1989 में ही वह उत्तर प्रदेश की बिजनौर लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सांसद निर्वाचित हो चुकी थीं. इतना ही नहीं, 1994 में बसपा के टिकट पर ही उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भी जा चुकी थीं. 1996 में पहली बार बिल्सी विधानसभा सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनी गईं. 2007 में जब मायावती चौथी बार यूपी की सीएम बनीं, तब वह उत्तर प्रदेश विधान मंडल के किसी भी सदन की सदस्य नहीं थीं. और इस दफा उन्होंने विधान परिषद का रास्ता अख्तियार किया, और विधान मंडल पहुँचीं.

बसपा सुप्रीमों मायावती फिलहाल किसी सदन की सदस्य नही हैं
8. नागमणि
नागमणि बिहार में शोषित दल के नेता रहे पूर्व मंत्री जगदेव प्रसाद के बेटे हैं. 1977 में पहली बार कुर्था विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बने थे. 1994 में जनता दल के टिकट पर राज्यसभा पहुँचे. 1999 में बिहार की चतरा (अब झारखंड में) लोकसभा सीट से राजद के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद सांसद बने. लेकिन जल्दी ही राजद छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए, और अटल बिहारी वाजपेयी की तब की सरकार में राज्य मंत्री बने.

बिहार के नेता नागमणि भी चारों सदनों के सदस्य रह चुके हैं.
2005 में जब विधानसभा चुनाव हो रहा था, तब नागमणि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल हो गए. उनकी पत्नी जदयू के टिकट पर कुर्था से विधायक बन गईं, जबकि खुद नागमणि विधान पार्षद बने. इस तरह चारों सदनों का सदस्य रहने वालों की लिस्ट में नागमणि भी शामिल हुए.