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एन टी रामाराव : बाथरूम से निकाले गए तो ऐसी पार्टी बनाई जिसने इंदिरा गांधी तक को चुनौती दे डाली

आज एन टी रामाराव की 25वीं पुण्यतिथि है.

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एन टी रामाराव ने 1983 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ आन्ध्र प्रदेश से कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था.
18 जनवरी 2021 (Updated: 17 जनवरी 2021, 03:05 IST)
Updated: 17 जनवरी 2021 03:05 IST
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यह 80 के दशक के शुरुआती दिनों की बात है. तेलगु फ़िल्मों के जाने-माने अभिनेता नंदमूरि तारक रामाराव यानी एन टी रामाराव (NTR) नेल्लोर के दौरे पर थे. नेल्लोर आन्ध्र प्रदेश का छोटा शहर है, और उस दौर में छोटे शहरों में अच्छे होटलों की कमी हुआ करती थी. लिहाजा रामाराव सरकारी सर्किट हाउस चले गए. लेकिन जब वे वहां पहुंचे तो उन्हें पता चला कि यहां भी सारे कमरे बुक हैं. केवल एक कमरा खाली है. लेकिन सर्किट हाउस के केयर-टेकर ने उन्हें बताया कि खाली कमरा भी दरअसल खाली नहीं है. राज्य सरकार के एक मंत्री के नाम पर बुक उसे बुक कराकर रखा गया है.

लेकिन एन टी रामाराव के कद और उनके स्टारडम को देखते हुए केयर-टेकर ने डरते-डरते मंत्री जी के आने से पहले कुछ घंटों के लिए उन्हें इस कमरे के इस्तेमाल की इजाजत दे दी. कमरे में जाने के बाद रामाराव बाथरूम में नहाने चले गए. अभी वो नहा ही रहे थे कि तब तक मंत्री जी धमक पड़े. जब मंत्री जी ने अपने कमरे को किसी दूसरे व्यक्ति को देखा तो सर्किट हाउस के केयर-टेकर पर बरस पड़े. उसे खूब खरी-खोटी सुनाई. इसके बाद एन टी रामाराव को सर्किट हाउस का कमरा खाली करना पड़ा.

इस घटना ने रामाराव को अंदर तक झकझोर दिया. इसके कुछ ही दिनों बाद एन टी रामाराव चेन्नई पहुंचे. अपने मित्र नागी रेड्डी को आपबीती सुनाई. उनकी कहानी सुनकर नागी रेड्डी ने उनसे कहा,


"भले ही तुम कितनी भी दौलत और शोहरत हासिल कर लो, लेकिन असली पावर तो नेताओं के पास ही होती है." 

ये बात सुनने के बाद रामाराव ने फैसला कर लिया कि वो अपनी राजनीतिक पार्टी बनाएंगे.


राजनीति में दमदार दस्तक

यह 1982 का साल था. राजीव गांधी कांग्रेस पार्टी के महासचिव थे. टी अंजैया आन्ध्र प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे. एक दिन राजीव गांधी अपनी पार्टी के कामकाज के सिलसिले में हैदराबाद पहुंचे. उन्हें देखने के लिए हैदराबाद के बेगमपेट हवाई अड्डे पर बड़ी भीड़ इकठ्ठा हो गई. हवाई अड्डे पर राजीव गांधी को रिसीव करने मुख्यमंत्री टी अंजैया भी पहुंचे. हवाई अड्डे के अंदर अप्रत्याशित रूप से बड़ी भीड़ देखकर राजीव गांधी खफा हो गए. इस अव्यवस्था के लिए सरेआम सबके सामने टी अंजैया को खूब खरी-खोटी सुनाई. राजीव ने टी अंजैया को इतनी बुरी तरह डांटा था कि अगले दिन आन्ध्र प्रदेश के अखबारों में यह पहले पन्ने की सुर्खियां बना गया.

"मैं  लगभग 60 साल का हो गया हूं. 300 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुका हूं, और अब लोगों की सेवा करना चाहता हूं."

अब यहीं एन टी रामाराव को सुनहरा मौका दिख गया. 29 मार्च 1982 को हैदराबाद में उन्होंने अपनी नई पार्टी का ऐलान कर दिया. नाम रखा तेलगुदेशम. रामाराव ने राजीव गांधी द्वारा टी अंजैया के अपमान को आन्ध्र प्रदेश के लोगों का अपमान बताया, और लोगों से कांग्रेस को सबक सिखाने का आह्वान किया. साथ ही उन्होंने कहा, 9 महीने बाद हुए आन्ध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में रामाराव की अपील का व्यापक असर दिखा. उनकी पार्टी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर आन्ध्र प्रदेश में दो-तिहाई बहुमत हासिल कर लिया. पार्टी खड़ी करने के महज 9 महीनों के अंदर दो-तिहाई बहुमत से सरकार बना लेने की घटना को तब देश के राजनीतिक मिज़ाज में एक बड़े बदलाव के तौर पर देखा गया. दिल्ली से लेकर दक्षिण भारत तक के अखबारों में संपादकीय लिखे जाने लगे कि आन्ध्र प्रदेश की जनता का राजनीतिक मिज़ाज भी अब तमिलनाडु की तरह फिल्म स्टार्स के ग्लैमर से प्रभावित होने लगा है.
इसके बाद एन टी रामाराव ने सरकार के माध्यम से अपनी लोकप्रियता को और पुख्ता करने की ओर कदम बढ़ाए. गरीबों को 2 रुपये किलो चावल, छात्रावासों में नाममात्र की फीस पर कमरा, सरकारी बसों में स्टूडेंट्स के लिए विशेष पास जैसे कदम वे उठाने लगे.
वाजपेयी और आडवाणी के साथ एन टी रामाराव
वाजपेयी और आडवाणी के साथ एन टी रामाराव
NTR का करिश्मा

लेकिन एन टी रामाराव में ऐसा क्या था कि उन्होंने समूचे आन्ध्र की जनता को इस कदर सम्मोहित कर रखा था कि उनकी लोकप्रियता के आगे कोई टिकता नहीं था? चलिए बताते हैं.

एन टी रामाराव का जन्म 28 मई, 1923 को कृष्णा जिले के निम्माकुरु गांव में हुआ था. लेकिन गांव में पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था न होने के कारण वह विजयवाड़ा में अपने मामा के यहां आ गए. वहीं से ग्रेजुएशन किया. उसके बाद मद्रास सिविल सेवा की परीक्षा पास की. कुछ दिनों तक सब-रजिस्ट्रार के रूप में भी काम किया. लेकिन उनका मन-मिज़ाज नौकरी-चाकरी करने वाला नहीं था. लिहाजा नौकरी छोड़कर फिल्मों में काम करने लगे.

1949 मे उनकी पहली फिल्म मना देसम रिलीज़ हुई. इस फिल्म में उन्होंने पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभाई थी. इसके कुछ दिनों के बाद वह अंग्रेजी नाटक पिजारो पर आधारित एक फिल्म पल्लेतुरी पिल्ला में लीड एक्टर के तौर कर सामने आए. यह फिल्म तेलगु भाषियों के बीच सुपरहिट साबित हुई. इसके बाद तेलगु फिल्मों में एन टी रामाराव का सितारा चल निकला. उन्होंने तेलगु भाषी लोगों के बीच उसी प्रकार की लोकप्रियता हासिल की, जिस प्रकार की लोकप्रियता तमिल फिल्मों के माध्यम से एम जी रामचंद्रन ने हासिल की थी. रामाराव ने 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. अपने फिल्मी करियर के दौरान उन्होंने ज्यादातर हिंदू देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं पर आधारित फिल्में की और राम, कृष्ण, भीष्म आदि के किरदार निभाए.


जब रामाराव की सरकार बर्खास्त कर दी गई

यह 1984 का साल और अगस्त का महीना था. आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन टी रामाराव अपनी बाइपास सर्जरी कराने अमेरिका चले गए. लेकिन उनके अमेरिका जाते ही हैदराबाद में उनके खिलाफ साजिशें शुरू हो गईं. 14 अगस्त 1984 को व्हीलचेयर पर बैठकर रामाराव अमेरिका से वापस हैदराबाद पहुंचे, और 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर निभाई जाने वाली औपचारिकताएं निभाईं. लेकिन उसी दिन राजभवन में एक दूसरा खेल चल रहा था. राज्यपाल ठाकुर रामलाल राजभवन में तेलगुदेशम के बागी नेता एन भास्कर राव से मिल रहे थे. भास्कर राव राज्यपाल से मिलकर उन्हें समझा रहे थे कि उनके पास तेलगुदेशम के 99 विधायकों का समर्थन हासिल है. यदि उन्हें कांग्रेस के 57 विधायकों का समर्थन मिल जाता है तो 294 सदस्यों की विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा यानी 148 का नंबर आसानी से पूरा हो जाएगा.

यह सब सुनकर ठाकुर रामलाल ने बिना भास्कर राव के दावे की जांच-परख किए और बिना एन टी रामाराव को फ्लोर टेस्ट का मौका दिए सीधे राज्य सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश दिल्ली भेज दी. अगले दिन यानी 16 अगस्त को रामाराव की सरकार बर्खास्त कर दी गई. आनन-फानन में एन भास्कर राव को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई दी गई. साथ ही, बहुमत साबित करने के लिए एक महीने का समय भी दे दिया.


ठाकुर रामलाल
राज्यपाल ठाकुर रामलाल के एक फैसले के बाद आन्ध्र में हिंसा भड़क उठी थी.

इसके बाद आन्ध्र समेत पूरे देश की सियासत में भूचाल आ गया. 16 अगस्त को आन्ध्र प्रदेश में भड़की हिंसा में 26 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए. उधर दिल्ली में समूचा विपक्ष एन टी रामाराव के समर्थन में खड़ा हो गया. जनता पार्टी, लोक दल, भाजपा, कांग्रेस (एस), वामपंथी दल- सब के सब रामलाल और उसके पीछे खड़ी कांग्रेस के खिलाफ सड़क पर उतर गए. आनन-फानन में एन टी रामाराव अपने समर्थक विधायकों को लेकर दिल्ली पहुंचे, राष्ट्रपति भवन में परेड के लिए. बताते चलें कि तब रामाराव के समर्थन में राष्ट्रपति भवन में परेड करने वाले विधायकों में आज के उप-राष्ट्रपति और तब भाजपा विधायक रहे एम वेंकैया नायडू भी शामिल थे. उस परेड में आन्ध्र विधानसभा के 161 विधायक शामिल हुए थे जो बहुमत के आंकड़े से 13 ज्यादा थे.

यह घटनाक्रम इतना तूल पकड़ लेगा, किसी को अंदाजा नहीं था. विदेशी मीडिया में दिन-रात इसका लाइव टेलीकास्ट शुरू हो गया. भारत में उस समय सैटेलाइट चैनलों का दौर नहीं था, लेकिन प्रिंट मीडिया ने अपनी भूमिका को बखूबी निभाया. राज्यपाल ठाकुर रामलाल और केन्द्र के इस निर्णय के विरोध में कई बड़े अखबारों ने पहले पन्ने पर संपादकीय छापना शुरू कर दिया.

ब्रिटेन का अखबार इकोनोमिस्ट तो एक कदम और आगे निकल गया. उसने इंदिरा गांधी का एक कार्टून छाप दिया, जिसमें इंदिरा गांधी को हिंदू देवी काली के रूप में दिखाया. इंदिरा गांधी को एक हाथ में शस्त्र और दूसरे हाथ में मनी बैग लिए हुए दिखाया गया.

उधर परेड के बाद देश के तमाम विपक्षी नेता संसद से लेकर हैदराबाद तक जम गए. संसद में कई दिनों तक भारी हंगामा चलता रहा. अंततः इंदिरा गांधी को बयान देना पड़ा, ' इस मामले में केन्द्र की कोई संलिप्तता नहीं है, और सब निर्णय राज्यपाल के स्तर पर हुए हैं.'

लेकिन इंदिरा की सफाई के बावजूद यह सवाल उठना लाजिमी था कि आखिर राज्यपाल की सिफारिश पर अंतिम मुहर तो केन्द्र ने ही लगाई थी. ऐसे में केन्द्र खुद को कैसे अनभिज्ञ बता सकता है?


चंद्रशेखर के साथ एन टी रामाराव.
चंद्रशेखर के साथ एन टी रामाराव.

उधर हैदराबाद और आन्ध्र प्रदेश में प्रदर्शन और तोड़-फोड़ का सिलसिला जारी था. इस घटना को एक पखवाड़ा बीतते-बीतते राज्यपाल ठाकुर रामलाल को इस्तीफा देना पड़ा. उसके बाद विवाद रहित और साफ छवि के नेता माने जाने वाले डॉ शंकर दयाल शर्मा को राज्यपाल बनाकर भेजा गया. लेकिन यह मामला उतने से भी शांत नही होना था. मामला तब शांत हुआ, जब बहुमत साबित करने की कोई संभावना न देखकर रामलाल के अप्वाइंट किए मुख्यमंत्री एन भास्कर राव ने इस्तीफा दिया. और तब जाकर 16 सितंबर 1984 को एन टी रामाराव ने फिर आन्ध्र प्रदेश की सत्ता संभाली और अपना कार्यकाल पूरा किया. उनके कार्यकाल के दौरान ही अक्टूबर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के पक्ष में पूरे देश में जबरदस्त सहानुभूति लहर चली. लेकिन यह रामाराव की लोकप्रियता का ही असर था कि आन्ध्र प्रदेश इस सहानुभूति लहर से अछूता रहा और वहां की 42 में से 30 सीटें तेलगुदेशम ने जीती. राष्ट्रीय मोर्चा के ताजिंदगी अध्यक्ष

1988-89 में जब बोफ़ोर्स घोटाले के मुद्दे पर विपक्षी दल एकजुट होने लगे. तब एन टी रामाराव पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर अपनी भूमिका निभाते नजर आए. उन्हें राष्ट्रीय मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया. इस भूमिका में उन्होंने लेफ्ट से लेकर राइट तक यानी वाम दलों से लेकर भाजपा तक को राष्ट्रीय मोर्चा से जोड़कर रखने और इस विरोधाभासी गठबंधन को, जब तक संभव हो सके, चलाने में बड़ी भूमिका निभाई. यह रामाराव की पहल का ही असर था कि लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सभी विपक्षी दल एक स्ट्रैटजिक एलायंस पर सहमत हो गए और लोकसभा चुनाव में गठबंधन को जीत मिली. और तब जाकर वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने. तब से लेकर अपने पूरे जीवनकाल में एन टी रामाराव ही राष्ट्रीय मोर्चा के अध्यक्ष रहे.


वीपी सिंह और एन टी रामाराव
वीपी सिंह और एन टी रामाराव
दूसरी शादी और दामाद का 'धोखा'

एन टी रामाराव की पहली शादी 40 के दशक में उनके मामा की बेटी से हुई थी. पहली शादी से उनके 12 बच्चे हुए. लेकिन 80 के दशक में उनकी पत्नी का देहांत हो गया. 1993 में रामाराव ने 70 साल की उम्र में एक 33 वर्षीय तेलगु लेखिका लक्ष्मी शिव पार्वती से शादी कर ली. हालांकि उनकी इस शादी के विरोध में उनका पूरा परिवार खड़ा था. लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी.


एन टी रामाराव और लक्ष्मी पार्वती.
एन टी रामाराव और लक्ष्मी पार्वती.

1994 में आन्ध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए और इस चुनाव में तेलगुदेशम को बड़ी कामयाबी मिली. तेलगुदेशम को 216 सीटें जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस को केवल 26 सीटें मिली. एन टी रामाराव एक बार फिर आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने अपने दामाद एन चंद्रबाबू नायडू को भी मंत्री बनाया. चंद्रबाबू नायडू को वित्त मंत्री बनाया गया था. उनकी हैसियत सरकार में नंबर 2 की हुआ करती थी. लेकिन सत्ता में असली धमक रामाराव की दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती की महसूस की जा रही थी. परिवार से लेकर सत्ता तक लक्ष्मी पार्वती की धमक को रामाराव का परिवार और उनकी पार्टी के अधिकांश विधायक सहन करने की स्थिति में नहीं थे. नतीजतन सत्ता संभालने के 9 महीने के भीतर ही यानी अगस्त 1995 आते-आते उनकी पार्टी में विद्रोह हो गया. और इस विद्रोह का बिगुल किसी और ने नहीं बल्कि रामाराव के दामाद और राज्य के वित्त मंत्री चंद्रबाबू नायडू ने ही बजाया था. इस विद्रोह में नायडू के साथ डेढ़ सौ से ज्यादा विधायक खड़े थे. दिलचस्प बात यह है कि खुद रामाराव के बेटों ने भी चंद्रबाबू नायडू का साथ दिया था. अब इतने बड़े विद्रोह के बाद रामाराव के पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था. उनके इस्तीफे के साथ ही तेलगुदेशम रामाराव गुट और नायडू गुट में विभाजित हो गया. नायडू गुट के चंद्रबाबू नायडू नए मुख्यमंत्री बने. रामाराव ने उन्हें धोखेबाज, दगाबाज और इस तरह की आलोचना के लिए डिक्शनरी में मौजूद लगभग सारे शब्द कहे. वे अपनी पार्टी को फिर से संगठित करने की तैयारी करने लगे.


चंद्रबाबू नायडू कभी एन टी रामाराव के बेहद विश्वस्त हुआ करते थे.
चंद्रबाबू नायडू कभी एन टी रामाराव के बेहद विश्वस्त हुआ करते थे.

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. सत्ता छोड़ने के 5 महीने के भीतर ही 18 जनवरी 1996 को तड़के हार्ट अटैक के कारण उनका देहांत हो गया. और इसके बार तेलगुदेशम की राजनीति की विरासत के अकेले दावेदार बनकर चंद्रबाबू नायडू उभरे. वह आज भी आन्ध्र प्रदेश की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाते हैं और अब तक मुख्यमंत्री पद पर 14 बरस बिता चुके हैं.


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