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जब बोलती फिल्में बनने लगीं, तब उनमें दिखाते क्या थे?

ये सवाल अगर आपका भी है, तो हम सबसे शुरू की दो फिल्में पढ़ा के दिखाए देते हैं.

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फोटो - thelallantop
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आशीष मिश्रा
19 जनवरी 2017 (Updated: 19 जनवरी 2017, 09:52 AM IST) कॉमेंट्स
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आज हम सुनाएंगे आपको किस्सा तब का जब फिल्मों ने बस बोलना सीखा ही था. आपने ये तो जाना होगा कि दे दे खुदा के नाम पे प्यारे पहला गाना था. 1931 में फिल्में आई. ऐसा हुआ वैसा हुआ. लेकिन ये तो सबको पता है, आज पढ़िए, जो बोलती फिल्में सबसे पहले आईं. उनकी कहानी क्या थीं.

आलम आरा 

Alam ara आलम आरा जोसेफ डेविड का पारसी नाटक था. जिसपर आर्देशिर ईरानी ने पहली पिच्चर बनाई थी. आलम आरा की कहानी ऐसी कि कमारपुर के बादशाह होते हैं आदिल सुल्तान. आदिल की दो बीवियां नौबहार और दिलबहार. नौबहार अच्छी-भली जबकि दिलबहार दुष्ट. बादशाह ऊपर-ऊपर से दोनों को चाहते लेकिन नौबहार पर अंदर-अंदर ज्यादा मोहाते. बादशाह को एक्कय दुःख रहता कि उनके कोई बच्चा न है. एक फकीर के जादू-मंतर से नौबहार को बेटवा होता है. दिलबहार भुकुर जाती है. उसको लगता है कि अब तो हमको कोई भाव ही न देगा.
अब दिलबहार चलती है चाल और सल्तनत के सिपहसालार पर डोरे डालने लगती है. लेकिन सिपहसालार ठहरा वन वूमन मैन. दिलबहार की दाल नही गलती. खिसियाकर वो सिपहसालार को फंसवाकर जेल में डलवा देती है. उस बेचारे के बीबी-बच्चे सल्तनत से ब्लैकलिस्टेड कर दिये जाते हैं. और जंगल में ठोकरें खाते हैं.
जंगल में एक शिकारी के तीर से सिपहसालार की पत्नी की मौत हो जाती है. मरते-मरते सिपहसालार की बीवी शिकारी को अपनी रामकथा बताती है और वादा लेती है कि बिटिया बड़ी हो जाए तो उसे सारी बात बता दे. यही बच्ची होती है हमारी-आपकी आलम आरा. शिकारी उसे पालता है. उधर कमारपुर में बादशाह का बेटा भी पलता है. बादशाह का बेटा जवान होता है. उसके जवान होते होते ही आलमआरा कूदी मारती है और वो भी जवान हो जाती है. हर लव स्टोरी की तरह शहजादा और आलमआरा मिलते हैं. दिलबहार शहजादे को मारने की प्लानिंग भी करती है लेकिन उसका राज खुल जाता है. उसको अपनी करनी का फल मिलता है. और शहजादे का आलमआरा से ब्याह हो जाता है.

शीरीं फरहाद

shirin farhad शीरी फरहाद फिल्म सन 1931 में ही आई थी. ये शीरीं फरहाद की फेमस लव स्टोरी पर बेस्ड थी. जिसमें फारस में एक मूर्ति बनाने वाला लड़का होता है. नाम होता है फरहाद. राजकुमारी शीरीं को बहुत प्यार करता है. लेकिन शीरीं की नजर कहां किसी पत्थर तोड़ने वाले पर पड़े. बेचारा थक-हारकर पहाड़ पर चला जाता है. शीरीं की याद में बंसी बजाता है.
शीरीं को ये बात पता चलती है तो वो फरहाद से मिलती है. उसके प्यार में पड़ जाती है. राजा को पता चलता है तो वो उनकी शादी को तैयार नही होता. फिर सोचता है न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी फरहाद से कहता है तुम पहाड़ के बीच चट्टानों से नहर खोद दो तो बिटिया ब्याह दें. राजा फरहाद को हल्के में लेता है. सोचता है कहां पहाड़ तोड़ पाएगा. पर फरहाद निकल जाता है दशरथ मांझी. सब तोड़-ताड़ खोद-खाद बराबर कर देता है.
नहर पूरी होने को होती है तो राजा को पता चलता है. फरहाद को बरगलाने को वो एक बुढ़िया से ये कहलवा के भेज देता है कि शीरीं तो मर गई. रोटी-कलपती बुढ़िया जैसे ही फरहाद के पास पहुंच ये संदेशा देती है. फरहाद अपने औजार खुद को मार मर जाता है. नहर पूरी तो होती है. पर नहर में पानी की बजाय बहता है फरहाद का खून. शीरीं को पता चलता है तो वो भी मर जाती है. फरहाद की कब्र खुलती है और शीरीं उसमें समा जाती है. जीते-जी एक नहीं हो पाते तो मरकर एक हो जाते हैं.
हासिल: हम भी बद्री भइया को देखे हैं'तुमसे गोली वोली न चल्लई. मंतर फूंक के मार देओ साले'

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