दिल्ली के 'मजनू का टीला' का नाम कैसे पड़ा, क्या है इसकी कहानी?
'मजनू का टीला' का नाम कैसे पड़ा, क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी और यहां मौजूद गुरु नानक देव जी का गुरूद्वारा किसने बनवाया था? जानिए इसके पीछे चलने वाली कहानियां.
"हुस्न हाज़िर है मुहब्बत की सज़ा पाने को…कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को", साल 1976 में आई लैला-मजनू फिल्म का ये गाना आपने कई बार सुना होगा. गाना चर्चित है. जब भी कहीं प्रेम की परिभाषा गढ़ने या बताने की कोशिश की जाती है तो प्रेम का पहला चरण "लैला-मजनू" के नाम से ही शुरू किया जाता है.
आप सोच रहे होंगे कि आज अचानक हम लैला-मजनू का जिक्र क्यों कर रहे हैं? क्योंकि हम कुछ बताने जा रहे हैं. अगर आप दिल्ली के रहने वाले हैं या दिल्ली घूमने गए हैं तो आपने ‘मजनू का टीला’ (Majnu Ka Tila) का नाम कभी न कभी सुना जरूर होगा. मजनू का टीला नाम सुन कर ऐसा लगता है, जैसे इस जगह पर मजनुओं का जमावड़ा लगता होगा. या मजनू से इसका कोई पुराना नाता रहा होगा. लेकिन इसके पीछे की कहानी कुछ और ही है.
Majnu Ka Tila का नाम कैसे पड़ा?
लोक मान्यताओं के मुताबिक, सिकंदर लोदी के शासन काल में ईरान से आए ‘मजनू’ नाम के एक सूफी संत यहां मौजूद एक टीले पर रहते थे. ये पूरा इलाका यमुना नदी के पास था, इसलिए संत परोपकार की भावना से लोगों को मुफ्त में नदी पार कराते थे. जिसके चलते यहां के स्थानीय लोगों ने इस जगह को 'मजनू का टीला' कहना शुरू कर दिया. हालांकि अब उत्तरी दिल्ली के इस इलाके का आधिकारिक नाम न्यू अरुणा नगर कॉलोनी है.
कैसे बना ‘मजनू का टीला गुरुद्वारा’?
मजनू का टीला के नाम से यहां एक गुरुद्वारा भी है. ऐसा माना जाता है कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी जब यहां आए थे तो मजनू ने उनकी खूब सेवा की. जिससे खुश होकर उन्होंने यहां कुछ दिन और रुकने का फैसला किया. इलाके के लोगों का दावा है कि स्वयं गुरु नानक देव ने ये घोषणा की थी कि ये जगह मजनू का टीला के नाम से जाना जाएगा. बाद में साल 1783 के आसपास, सिख मिलिट्री लीडर बघेल सिंह धालीवाल ने गुरु नानक जी के सम्मान में मजनू का टीला गुरुद्वारा बनवाया था.
मजनू का टीला और महावत से जुड़ी कहानी
वैसे तो इस जगह को लेकर बहुत सारी कहानियां फेमस हैं. लेकिन एक प्रचलित कहानी के मुताबिक, जब गुरु नानक देव जी अपने साथियों के साथ यहां (मजनू का टीला) पर बैठे हुए थे, उसी समय उन्होंने एक महावत को रोते हुए सुना. जो अपने हाथी की मौत पर रो रहा था. उसका कहना था कि उसके परिवार की जीविका इसी हाथी के सहारे चलती है. महावत की कहानी सुन कर गुरु नानक ने उस हाथी को जिंदा कर दिया. जिसके बाद से वो महावत भी उनका भक्त बन गया. और यहीं उनके साथ रहने लगा. कहानी का एक दूसरा वर्जन कहता है कि गुरु नानक देव ने हाथी के सिर पर पानी डाला था और वो उठ खड़ा हुआ. बाद में उन्होंने समझाया कि सिर में गर्मी चढ़ जाने के कारण बेहोश था. पानी से होश में आ गया. और इस तरह उन्होंने महावत को चमत्कार के चक्कर में न पड़ने की सीख दी.
किस वजह से फेमस है मजनू का टीला?
इस इलाके में तिब्बती शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या रहती है. स्थानीय लोग इस जगह को 'दिल्ली का लिटिल तिब्बत' नाम से जानते हैं. यहां कई तरह के तिब्बती रेस्तरां और खाने-पीने की चीजों के लिए मशहूर है. यहां जाने पर आपको ऐसा लगेगा कि आप तिब्बत में ही आ गए हैं.
Note- इस स्टोरी में मजनू का टीला से जुड़ी जो भी कहानियां बताई गईं है वो या तो प्रचलित कथाओं का हिस्सा है या इलाके के लोगों द्वारा समय-समय पर लेखकों, पत्रकारों और यूट्यूबर्स को बताई गईं है. जनश्रुतियों को सत्यापित करने या नकारने के लिए किसी तरह का डॉक्युमेंट है या नहीं, इसकी जानकारी हमें नहीं है.
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