साउथ कोरिया ने अपने पक्के दुश्मन नॉर्थ कोरिया के साथ क्या सलूक किया, आप सोच भी नहीं सकते
नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने भी ये नहीं सोचा होगा.
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उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की परमाणु हथियारों की महत्वाकांक्षा पूरे कोरियन प्रायद्वीप के लिए बहुत बड़ा खतरा है...
कोरियन प्रायद्वीप. दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया. 1950 में लड़े. खूब लड़े. रूस और अमेरिका के बीच शीत युद्ध चल रहा था. उसकी एक बिसात यहां भी बिछी थी. उत्तर कोरिया के करीब 75,000 सैनिकों ने धावा बोल दिया. दक्षिण की मदद को अमेरिका आया. उत्तर की पीठ पर सोवियत था. लगा तीसरा विश्व युद्ध छिड़ जाएगा. ऐसा नहीं हुआ. युद्ध खत्म हुआ. जुलाई 1953 में. लेकिन युद्ध की आहट कभी मंद नहीं हुई. हमेशा लगता है अभी छिड़ा, अभी छिड़ा. हर दूसरे हफ्ते अखबारों में मिल जाता है इसका जिक्र. उत्तर कोरिया संकट. परमाणु संकट. अमेरिका धमकाते-धमकाते थक गया. लेकिन उत्तर कोरिया कान नहीं देता. छका रहा है सबको. सबसे ज्यादा परेशान दक्षिण कोरिया ही है. पड़ोसी जो है. फिर भी दक्षिण कोरिया ने कमाल कर दिखाया है. वो इंसानियत दिखाई है कि दीया लेकर खोजने से भी मिसाल नहीं मिलेगी.

कोरियन युद्ध के दौरान अमेरिकी मरीन्स सोल को आजाद कराने के लिए लड़ते हुए. ये तस्वीर सितंबर 1950 की है.
दुश्मन देश में रहने वाले जरूरतमंदों की ऐसे कौन करता है मदद? दक्षिण कोरिया ने मदद का हाथ बढ़ाया है. उत्तर कोरिया में रहने वाली गर्भवती औरतों की ओर. बच्चों की ओर. करीब 52 करोड़ रुपये (8 मिलियन डॉलर) का सामान भेजेगा. खाने-पीने की चीजें. दवाइयां. टीके. पौष्टिक सामान. किम जोंग उन. उत्तर कोरिया का तानाशाह. उल्टी खोपड़ी. पूरा ध्यान चाकू पर सान चढ़ाने में लगाता है. परमाणु हथियार के लिए सनकी. उसे ये अपने लिए जरूरी लगता है. अमेरिका की नीयत पर भरोसा नहीं उसको. सोचता है ताकतवर हो जाऊं, तो हमला करने की हिम्मत नहीं करेंगे. इस चक्कर में सारा खर्च हथियारों पर ही कर देता है शायद. सरकार की बस ये ही जिम्मेदारी है जैसे. कोई भूखा मरता है, तो मरे! दक्षिण कोरिया पड़ोसी है. वहां की बदहाली उससे नहीं छुपी. जानता है. लड़ाई की तैयारी में उत्तर कोरिया के आम लोग पिस रहे हैं. उसको तकलीफ है इस बात की. सो मदद करने जा रहा है.

कई विश्लेषकों का ये भी कहना है कि उत्तर कोरिया की तानाशाही हुकूमत अपनी नाकामियों से जनता का ध्यान हटाने के लिए विध्वंसक सैन्य नीति के रास्ते पर चल रही है.
अपने दोस्तों को नाराज करके भी दक्षिण कोरिया कर रहा है मदद जापान और अमेरिका इस फैसले से नाराज होंगे. होते रहें. जापान ने तो कह भी दिया. फैसले पर दोबारा विचार करने को. अमेरिका और जापान को लगता है कि उत्तर कोरिया का पूरी तरह बायकॉट होना चाहिए. कोई रहम न दिखाई जाए उस पर. लेकिन सोल (साउथ कोरिया की राजधानी) ने मन बना लिया है. उधर सुरक्षा परिषद ने प्योंगयांग (उत्तर कोरिया की राजधानी) पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए. प्रतिबंध जितने कड़े होंगे, उत्तर कोरिया की आम आबादी उतनी बदहाल होगी. उनके संसाधन और कम होंगे. डॉनल्ड ट्रंप ने UN में खूब धमकी दी. कहा, पूरा सफाया कर देंगे. जापान भी खूब चिढ़ा हुआ है. हमारी मैथिली में कहते हैं. अगिन चॉ, बाई चॉ. मतलब गुस्से में एकदम लाल. अमेरिका और जापान कौन हैं? दक्षिण कोरिया के दोस्त. सबसे ज्यादा खतरा किसको है उत्तर कोरिया से? दक्षिण कोरिया को. फिर भी मदद कौन कर रहा है? दक्षिण कोरिया. इसके लिए उसकी खूब तारीफ होनी तो बनती है.

नॉर्थ कोरिया किसी रहस्य से कम नहीं है. इसके अंदरूनी हालात के बारे में दुनिया को बहुत कम जानकारी है. इसे 'मिस्ट्री लैंड' भी कहा जाता है.
दक्षिण कोरिया की जनता खुश नहीं है फैसले से, लेकिन सरकार ने मन बना लिया है संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े देखिए. उत्तर कोरिया में करीब दो लाख बच्चों को जानलेवा कुपोषण है. बच्चों को पेट भर खाना नहीं मिलता. पोषक तत्व को कौन रोए! दवाइयां मयस्सर नहीं होतीं. उत्तर कोरिया की आबादी है करीब ढाई करोड़. इनमें से करीब 1 करोड़ 80 लाख को भर पेट खाना नहीं मिलता. 5 साल और इससे कम उम्र के बच्चों का बुरा हाल है. इनमें मृत्युदर है प्रति 1,000 पर 25 बच्चे. दक्षिण कोरिया के मौजूदा राष्ट्रपति हैं मून जे-इन. वहां के लोग उत्तर कोरिया की मदद करने के फैसले से खुश नहीं हैं. फिर भी मून ने मन बना लिया है. सरकारें जनसमर्थन के लिए क्या नहीं करतीं! लेकिन मून अपने ही लोगों को नाराज करके भी दुश्मन देश के लोगों की मदद कर रहे हैं. अब ऐसी इंसानियत कम ही नजर आती है. राजनेताओं से तो इसकी रत्ती भर भी उम्मीद नहीं होती. मून और उनकी सरकार को इस फैसले पर हमारा सलाम.
- फ्रॉम इंडिया. विद लव.
वो राष्ट्रपति, जो दो प्रधानमंत्रियों की मौत और दो युद्ध का गवाह रहा
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