आज पूर्ण सूर्यग्रहण कहां दिखेगा, किसे दिखेगा, कैसे देखना है और कैसे नहीं देखना है, सब जानें
डेढ़ साल में एक बार पड़ता है पूर्ण ग्रहण (total Solar Eclipse). लेकिन अगर कोई एक जगह से पूर्ण ग्रहण देख ले, तो उसी जगह से ग्रहण देखने के लिए उसे लगभग 400 वर्ष ज़िंदा रहना पड़ेगा.

सोमवार, 8 अप्रैल को पूर्ण सूर्यग्रहण लगेगा. उत्तरी अमेरिका, मैक्सिको, अमेरिका और कनाडा से दिखेगा. भारत से नहीं दिखेगा, क्योंकि हमारा देश इस वाले ग्रहण (total solar eclipse) के पथ से बाहर है. दिखे या न दिखे, किसी भी जगह के लिए इस तरह का सूर्यग्रहण बहुत दुर्लभ होता है. अगर कोई एक जगह से पूर्ण सूर्यग्रहण देख ले, तो उसी जगह से ग्रहण देखने के लिए उसे लगभग 400 वर्ष ज़िंदा रहना पड़ेगा.
Solar Eclipse क्या होता है?ये जानने से पहले जानना ज़रूरी है कि एक्लिप्स या ग्रहण क्या होता है? जब एक सेलेस्टियस (खगोलीय) बॉडी दूसरे के सामने आकर उसे पूरा या आधा छिपा दे.
ग्रहण दो प्रकार के होते हैं:
- चंद्र ग्रहण (lunar eclipse) के दौरान पृथ्वी की छाया चंद्रमा को ढक लेती है. ऐसा तब होता है, जब पूर्णिमा के दौरान सूरज, धरती और चांद एक सीध में हों और चंद्रमा की कक्षीय सतह (ऑर्बिटल प्लेन) पृथ्वी की ऑर्बिट के बहुत क़रीब हो. चूंकि चांद और सूरज के बीच धरती आ जाती है, तो सूरज की रोशनी चांद तक पहुंच नहीं पाती और धरती के वायुमंडल से जो रोशनी लड़ कर लौटती है, वही चांद के पास रोशनी का एकमात्र स्रोत बन जाता है.
- सूर्यग्रहण (solar eclipse) के दौरान चांद, सूर्य और धरती के बीच आ जाता है. लेमैन की भाषा में: जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चांद आ जाए, तो लेमैन कहेगा कि सूरज को ग्रहण लग गया है. सूरज की रोशनी पूरी या आंशिक तौर पर ढक जाती है. इससे दुनिया के कुछ हिस्सों पर भारी छाया पड़ती है.
ग्रहण के तो दो प्रकार होते हैं. सूर्यग्रहण चार प्रकार के होते हैं - पूर्ण सूर्यग्रहण, वार्षिक सूर्यग्रहण, आंशिक सूर्यग्रहण और संकर (हाइब्रिड) सूर्यग्रहण.
- पूर्ण ग्रहण: ये सबसे दुर्लभ है. चंद्रमा एक बहुत बड़े ब्रह्मांड लेवल के सिक्के की तरह सूरज को पूरी तरह से ढक लेता है. कुछ देर के लिए दिन धुंधलके में बदल जाता है और ढक जाने के बाद जितना सूरज बचा रहता है, वो एक गोलाकार रोशन लाइन बनकर दिखती है.
- वलयाकार ग्रहण: चांद तो सूरज से बहुत बहुत छोटा है. पूर्ण ग्रहण के केस में तो चांद की पोज़िशन धरती के पास होती है, इसीलिए वो सूरज को पूरा-पूरा ढक लेता है. मगर बाक़ी दिन तो चांद सूरज को पूरा ढकने के लिए बहुत दूर है. इसीलिए चांद के बीच में आने के बावजूद सूरजा का इतना हिस्सा दिखता है, जैसे किसी चमकदाप वड़े पाव का वड़ा हो.

- आंशिक ग्रहण: जब चांद केवल आंशिक रूप से सूरज को ढके. सूरज को दिया दिखाने मात्र. सबसे ज़्यादा आंशिक ग्रहण ही होता है.
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- हाइब्रिड ग्रहण: ये वाला थोड़ा ट्रिकी है. शुरू में चांद थोड़ी देर के लिए सूर्य को पूरी तरह से ढक देता है. पूर्ण ग्रहण की तरह. लेकिन फिर धीरे-धीरे दूर चला होता जाता है. वलयाकार ग्रहण के जैसे. इससे होता ये है कि धरती पर केवल कुछ जगहों पर ही अंधेरा या छाया दिखाई देती है. जबकि बाक़ी जगहों पर आग का घेरा दिखाई देता है.
इतना अनोखा क्यों है पूर्ण ग्रहण?सूर्यग्रहण केवल अमावस्या के दौरान देखा जाता है, जब चंद्रमा और सूरज पृथ्वी के एक ही तरफ़ हों. हालांकि, इसका मतलब ये नहीं है कि हर अमावस ही ग्रहण लग जाएगा. साल में दो से पांच बार ही होता है. ऐसा क्यों? इसलिए कि जिस तल पर धरती सूरज का चक्कर लगाती है, चांद उस तल पर धरती का चक्कर नहीं लगाता. इसीलिए जब चांद, सूर्य और पृथ्वी के बीच होता है, तो उसकी छाया पृथ्वी पर पड़ने के लिए या तो बहुत ऊंची या बहुत नीची होती है. ऐसे समझिए कि ऐंगल सही नहीं बैठता.
इसलिए हर साल सूर्यग्रहण की गिनती दो से पांच के बीच होती है. पूर्ण ग्रहण लगभग हर 18 महीने में एक बार होता है और जैसा कि पहले लिखा कि अगर कोई एक जगह से पूर्ण सूर्यग्रहण देख ले, तो उसी जगह से ग्रहण देखने के लिए उसे लगभग 400 वर्ष ज़िंदा रहना पड़ेगा.
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जब हर 18 महीने में एक पूर्ण ग्रहण पड़ता ही है, तो 400 साल क्यों? देखिए, जब किसी प्रकाश स्रोत के सामने कोई चीज़ रख दी जाए, तो दो छायाएं बनती हैं - अम्ब्रा और पेनम्ब्रा. अम्ब्रा ज़्यादा गाढ़ा होता है, पेनम्ब्रा कम.
तो पूर्ण ग्रहण केवल तभी दिखाई देता है, जब कोई उपच्छाया (umbra) में खड़ा होता है. सूर्यग्रहण के दौरान विश्व का एक प्रतिशत से भी कम भाग कवर होता है. यही कारण है कि एक समय में बहुत कम लोगों को पूर्ण ग्रहण देखने को मिलेगा.
क्यों नहीं देखना चाहिए ग्रहण?हमारी आंखों को सूरज की रोशनी चाहिए. मगर सूर्यग्रहण नहीं. भले ही चांद का सूरज को ढकना मनोरम दृश्य है, फ़ोटो भी अच्छी आती है. लेकिन ग्रहण को नंगी आंखों से देखना सेहत के लिए ख़तरनाक़... बहुत ख़तरनाक़ हो सकता है. वैसे तो आप बहुत तेज़ रोशनी एकदम से देख लें, तो पलक ख़ुद झपक जाती है. इससे हमारी आंखें बच जाती हैं. हालांकि, ग्रहण के दौरान ढका-छिपा हुआ सूरज हमें धोखा देता है. हमें पलकें झपकाने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती. इससे सोलर रेटिनोपैथी हो सकती है, रेटिना पर सनबर्न पड़ सकता है. दृष्टि धुंधली हो सकती है, धब्बे पड़ सकते हैं, यहां तक कि दृष्टि का स्थायी नुक़सान भी हो सकता है.
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इसलिए ग्रहण के वक़्त कुछ एहतियात बरतने चाहिए.
- नंगी आंखों से ग्रहण को मत देखें. उचित सुरक्षा के साथ ही देखें. बच्चों-बूढ़ों को तो बिल्कुल न देखने दें.
- सूर्यग्रहण वाले चश्मे का इस्तेमाल करें. ऐसा करने से पहले चश्मों को टेस्ट जरूर कर लें.
- चश्मा हटाने के वक़्त पहले नज़र हटा लें, फिर चश्मा हटाएं.
- जो इस बात का जश्न मनाते हैं कि फ़ोटो खींचकर देख लेंगे, उन्हें भी ऐसा नहीं करना है. अगर आपके फ़ोन, दूरबीन, टेलीस्कोप या कैमरे में सौर फ़िल्टर नहीं है, तो लेंस ख़राब होने की ज़िम्मेदार कंपनी की नहीं होगी. आपकी होगी.
भारत में तो ग्रहण दिखेगा नहीं. यूट्यूब पर लाइव स्ट्रीम होगा. वहां ये एहतियात रखने की ज़रूरत नहीं है.