ड्रैगन के खा जाने से लेकर भालू की लड़ाई तक: सूर्य ग्रहण के पीछे दुनियाभर में ये कहानियां चलती हैं
जानिए राहु-केतु के अलावा क्या मिथक हैं दुनियाभर में.
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26 दिसंबर 2019 को इस दशक का आखिरी एनुलर एक्लिप्स लगा. इसमें सूरज को चाँद पूरी तह नहीं ढक पाटा और उसके चारों तरफ अंगूठी जैसी लकीर दिखाई पड़ती है जिसे रिंग ऑफ फायर कहा जाता है. (तस्वीर: पिक्साबे/विकिमीडिया)
विष्णु ने मोहिनी रूप धरा. देवताओं और दैत्यों को एक-एक पंक्ति में बिठा दिया. देवताओं को अमृत पिला दिया, दैत्यों को नहीं दिया. ये देखकर स्वर्भानु नाम का दैत्य आकर देवताओं की पंक्ति में आ बैठा. सूर्य और चन्द्र ने ये देख लिया और उसका भेद खोल दिया. स्वर्भानु अमृत पूरा पी पाता, इससे पहले ही उसका सिर काट दिया गया. चूंकि अमृत गले तक उतर चुका था, इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई. दो भागों में बंट जाने के बाद उसे राहु और केतु के नाम से जाना गया. चूंकि सूर्य और चन्द्र ने स्वर्भानु की पोल खोली थी, इसलिए राहु और केतु ने प्रण किया कि वो दोनों को ग्रसेंगे. इसलिए राहु सूर्य को और केतु चांद को ग्रस लेता है.

हिंदू मिथक में सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की यही कहानी चलती है.
सूर्यग्रहण. यानी सूरज के ऊपर छाया पड़ना. किसकी? चंद्रमा की. यानी जब धरती और सूरज के बीच में चांद आ जाता है, तो उसकी परछाईं सूरज पर पड़ती है. इस तरह सूर्यग्रहण होता है. ये तो हुई साइंस की बात. वैज्ञानिकों ने खूब जांच-परखकर, स्टडी करके ये जानकारी हमें दी. अब हम स्कूलों में पढ़ते हैं. लेकिन उससे पहले जब लोगों को इस बारे में पता नहीं था, तो कई मिथक चलते थे. दुनिया के अलग-अलग धर्मों में भी इनसे जुड़ी कहानियां चलती हैं. अलग-अलग देशों में. आइए, उनकी भी कहानी सुनाते हैं आपको.
चीनी मिथक
चीन के लोग मानते हैं कि एक अदृश्य ड्रैगन सूरज को खा जाता है. उस ड्रैगन को डराने और भगाने एक लिए वो जोर-जोर से ड्रम बजाया करते थे. यही नहीं, आसमान में तीर भी चलवाए जाते थे. सूरज को चीन में राजसत्ता का प्रतीक माना जाता था. इसलिए ग्रहण के दौरान राजा अपना ज्यादा ध्यान रखते और वेजिटेरियन खाना खाते थे.

वाइकिंग मिथक
वाइकिंग लोगों के मिथक भी हिन्दू मिथक की तरह ही है. ये वो लोग थे, जो नॉर्वे देश के आसपास के इलाके में रहते थे. वो लोग भी मानते थे कि स्कोल और हाती नाम के दो भेड़िए सूरज और चांद का पीछा करते रहते हैं. जब वो उन्हें निगलने में कामयाब हो जाते हैं, तब ग्रहण लगता है. स्कोल सूरज को और हाती चांद का पीछा करता है. इनको डराकर भागने के लिए जोर-जोर से आवाज़ की जाती थी.

नेटिव अमेरिकन जनजातियों के मिथक
पोमो नाम की जनजाति ये मानती थी कि एक भालू मिल्की वे गैलेक्सी पर चलता है. जब वो सूरज और चांद से मिलता है, तो दोनों के बीच बहस होती है कि पहले कौन रास्ता देगा. इसी बहसा-बहसी की वजह से ग्रहण लगता है, जब भालू सूरज या चांद को ढक लेता है. चेरोकी जनजाति का मानना था कि एक मेंढक सूरज और चांद को खा जाता है. तेवा जनजाति का मानना था कि सूरज लोगों से नाराज़ होकर अंडरग्राउंड चले जाते थे. लेकिन उनकी नाराजगी दूर होने पर वो वापस आ जाते थे.
कोरियन मिथक
इन लोगों का मानना था कि उनके राजा के आदेश पर कुत्तों का एक झुंड छोड़ा जाता था. ये आग खाने वाले कुत्ते होते थे. इनका काम होता था सूरज को चुराना. लेकिन वो उसके करीब जाकर उसे थोड़ा ही खा पाते थे, जिसकी वजह से ग्रहण लगता था.
इसी तरह कई लोगों के बीच कई तरह की मान्यताएं चलती हैं. कइयों का मानना है कि सूरज और चांद पति-पत्नी हैं, और जब वो एक-दूसरे के पास आते हैं, तो अपनी प्राइवेसी बनाए रखने के लिए अंधेरा कर देते हैं.
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