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सूर्य ग्रहण देखने से आंखों में क्या गड़बड़ होती है?

मना करने की असली वजह यहां जान लें.

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मोदी जी सेफ्टी वाले चश्मे पहने हुए हैं. इस फोटो के ऊपर उनका मज़ाक भी उड़ाया गया, लेकिन इसमें एक बढ़िया सीख भी है. (सोर्स - सोशल मीडिया)
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आयुष
26 दिसंबर 2019 (Updated: 26 दिसंबर 2019, 04:15 PM IST)
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सूर्यग्रहण
. कुछ मिनट ठहरने वाला नज़ारा. बहुत सारे लोगों के लिए धार्मिक. कुछ लोगों के लिए साइंटिफिक. इस एक नज़ारे के पीछे कितनी सारी कहानियां हैं. कहानियां अच्छी हैं लेकिन सच्ची नहीं हैं. तौल के बात करूं तो इस पसेरी भर के ईवेंट के साथ किलो भर की मिथ्या है और क्विंटल भर का डर. रही बात साइंस की, तो साइंस एक तोले की है. साइंस बस इतनी सी है -
कुछ देर के लिए पृथ्वी और सूरज के बीच में चांद आ जाता है.

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इस साइंस को थोड़ा और इलेबोरेट करके समझा देते. लेकिन ये आपको आसानी से मिल जाएगा. अभी हम सूर्यग्रहण से जुड़ी एक हिदायत की बात करेंगे.
सूर्यग्रहण के दौरान सूरज को नहीं देखना चाहिए.
वैसे तो ग्रहण में हमें बहुत सारी अंट-शंट बातों से डराया जाता है
, लेकिन इस बात में सच है. और इस सच के पीछे साइंस है.
इस आर्टिकल में हम बताएंगे कि सूर्यग्रहण के दौरान सूरज को देखने में क्या दिक्कत है?

सूरज को आंख क्यों नहीं दिखाते?

दिक्कत ग्रहण में नहीं सूरज में है. ग्रहण हो या न हो, सूरज को डायरेक्टली नहीं देखाना चाहिए.क्यों नहीं देखना चाहिए? सूरज तो हम से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है. इतनी दूर से वो हमारी आंखों को नुकसान कैसे पहुंचा सकता है?
फिल्म गंगाजल में बच्चा यादव का चर्चित डायलॉग है. समझ आया तो ठीक है, नहीं तो ये आपके लिए नहीं था. (सोर्स - गंगाजल)
फिल्म गंगाजल में बच्चा यादव का चर्चित डायलॉग है. समझ आया तो ठीक है, नहीं तो ये आपके लिए नहीं था. (सोर्स - गंगाजल)

इस बात को समझने के लिए आपको दो चीज़ें पता होनी चाहिए.
1. मैग्नीफाइंग ग्लास
आपने कभी न कभी मैग्नीफाइंग ग्लास तो ज़रूर देखा होगा. वो ग्लास जिससे देखने पर छोटी चीज़ें बड़ी दिखती हैं. खुरापाती बच्चे इस ग्लास से न्यूज़पेपर पर आग लगाते हैं. इस ग्लास से आग कैसे लगती है? आग लगती है सूरज की रोशनी से.
बाहर धूप में पेपर के साथ मैग्नीफाइंग ग्लास नहीं रखना चाहिए. (सोर्स - विकिमीडिया)
बाहर धूप में पेपर के साथ मैग्नीफाइंग ग्लास नहीं रखना चाहिए. (सोर्स - विकिमीडिया)

मैग्नीफाइंग ग्लास एक लैंस होता है. ये लैंस सूरज से आने वाली किरणों को एक जगह फोकस कर देता है. नॉर्मली किसी कागज़ पर सूरज की किरणें गिरने से आग नहीं लगती. क्योंकि वो किरणें पूरे कागज़ पर बिखरी होती हैं. लेकिन जब वही किरणें लैंस से एक जगह इकठ्ठी होती हैं तो वहां आग लगाने लायक गर्मी पैदा हो जाती है. पुरानी कहावत है - एकता में शक्ति होती है.
2. आंख का डायग्राम
बायोलॉजी की किताब में आंख का डायग्राम देखिए. सबकुछ नहीं देखना है, सिर्फ दो हिस्से देखिए - लैंस और रेटिना. हमारी आंख के अंदर रोशनी लैंस से होकर जाती है. अपनी आंख का लैंस मैग्नीफाइंग ग्लास वाले लैंस से लगभग 4 गुना ज़्यादा पावरफुल होता है. ये वही मैग्नीफाइंग ग्लास आग वाला खेल है और इस खेल में जलने वाला कागज़ है रेटिना. ये रेटिना क्या होता है?
बायोलॉजी की किताब में बहुत लोग देख के छोड़ देते थे. ये आर्टकल पढ़कर रेटिना और लैंस याद न रहा तो व्यर्थ ही समझिए. (सोर्स - विकिमीडिया)
बायोलॉजी की किताब में बहुत लोग देख के छोड़ देते थे. ये आर्टकल पढ़कर रेटिना और लैंस याद न रहा तो व्यर्थ ही समझिए. (सोर्स - विकिमीडिया)

रेटिना होता है थिएटर का पर्दा. थिएटर में फिल्म प्रोजेक्टर से लाइट आती है और एक पर्दे पर फिल्म चलती है. इसी तरह अपनी आंख भी एक थिएटर है. यहां लैंस से जो रोशनी आती है वो रेटिना पर पूरी तस्वीर बनती है. हमारा दिमाग फाइनल तस्वीर रेटिना से ही उठाता है.
जानने लायक ये दो ही बातें थीं - मैग्नीफाइंग ग्लास और आंख का डायग्राम. अब सोचने और सबक लेने वाली बातें हैं.
सबक ये कि अगर हम डायरेक्ट सूरज को देखेंगे तो हमारी आंखों का लैंस रोशनी को रेटिना पर फोकस कर देगा. ये रोशनी रेटिना को डैमेज कर सकती है. और इस डैमेज को नाम दिया गया है - सोलर रैटिनोपैथी.
बिना पलकें झपकाए डायरेक्ट सूरज की ओर देखना बहादुरी नहीं मू्र्खता का काम है.
ये रेटिना की फोटो है. काला वाला हिस्सा डैमेज्ड है. (सोर्स - विकिमीडिया)
ये रेटिना की फोटो है. काला वाला हिस्सा डैमेज्ड है. (सोर्स - विकिमीडिया)
चलिए, इतनी बात तो समझ में आती है कि सूरज को देखना डेंजरस है. फिर ग्रहण वाले सूरज के बारे में क्या स्पेशल है. अलग से क्यों चेताया जाता है कि सूर्यग्रहण वाले सूरज को नहीं देखना चाहिए.

ग्रहण वाला सूरज

सबसे बड़ा कारण है - चुल. जी हां! लोगों को ग्रहण वाला सूरज देखने की चुल मचती है. किसी नॉर्मल दिन कोई शायद ही सूरज को देखे. या कोई देखे भी तो चकाचौंध के मारे आंखें हटानी पड़े. ग्रहण वाला सूरज देखने का मौका कम मिलता है. और रेयर चीज़ों को देखने का अलग ही मोटिवेशन होता है. अगर चेताया न जाए तो इस टाइम पर लोग सूरज को देख-देख के आंखें खराब कर लेंगे.
ग्रहण वाले सूरज के बारे में एक और बात है. हमारी आंखें ग्रहण वाले सूरज को अलग तरीके से जज करती हैं.
आपने आंख की पुतली के बारे में सुना होगा. आंख की पुतली लैंस से ठीक पहले होती है और फैलती-सिकुड़ती है. अगर आंखो से ज़्यादा रोशनी अंदर जाती है तो पुतली सिकुड़ जाती है. ताकि कम रोशनी अंदर जाए और रेटिना डैमेज न हो.

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ग्रहण वाले सूरज से नॉर्मल सूरज के मुकाबले कम रोशनी आती है. हमारी पुतलियां उतना नहीं सिकुड़तीं, जितना उन्हें सिकुड़ना चाहिए. हम पलकें भी कम झपकाते हैं. और सूरज से आने वाली बहुत सारी रोशनी अंदर रेटिना पर जाकर उसे डैमेज कर देती है.

रातोंरात आंख का सत्यानाश

सूरज को देखने से ज़्यादातर लोग पूरी तरह से अंधे नहीं होते. उनका सेंट्रल विज़न खराब हो जाता है. सेंट्रल विज़न मतलब केंद्रीय दृष्टि. हमारी दृष्टि का सबसे अहम हिस्सा - जिसके दम पर हम फोकस कर पाते हैं. पढ़ पाते हैं. ड्राइव कर पाते हैं. साफ-साफ लोगों के चेहरे देख पाते हैं.
डायरेक्ट सूरज की तरफ देखने से हमारे रेटिना की कोशिकाएं डैमेज होती हैं. और ऐसा ज़रूरी नहीं कि ये कोशिकाएं तुरंत ही डैमेज हों. मान लीजिए किसी ने दिन में ग्रहण देखा. हो सकता है डैमेज होने के कुछ देर बाद तक उसकी कोशिकाएं काम करती रहें. लेकिन जब वो रात में सोने जाए तब ये कोशिकाएं अपना काम त्याग देंगी. कई कोशिकाओं की रातोंरात मौत हो जाती है. और अगले दिन वो व्यक्ति आइने में अपना चेहरा तक नहीं देख पाएगा.
मोदी जी ने हांथ में सेफ्टी वाला ग्लास पकड़ा है. लेकिन फिर पहना कौन सा है? गुड क्वेस्चन. (सोर्स - सोशल मीडिया)
मोदी जी ने हांथ में सेफ्टी वाला ग्लास पकड़ा है. लेकिन फिर पहना कौन सा है? गुड क्वेस्चन. (सोर्स - सोशल मीडिया)

इसलिए ज़्यादा होशियारी में न रहिएगा कि हमने तो ग्रहण देख लिया और कुछ नहीं हुआ. कायदे से ग्रहण देखने के लिए स्पेशल चश्मे आते हैं. इन चश्मों से ग्रहण देखने पर आंखें सुरक्षित रहती हैं. लोगों ने और दूसरे जुगाड़ भी निकाल रखे हैं.
जुगाड़ू बनिए. समझदार बनिए. अपनी क्यूरियोसिटी की भूंख मिटाना अच्छा है. लेकिन मूर्खता झलकाती बहादुरी को साइड में रखिए.


वीडियो - चंद्रग्रहण के नाम पर कैसे फैलाया जा रहा है अंधविश्वास

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