आपके स्मार्टफोन में लगे सोने को निकालने वाला केमिकल भी मिल गया है
आपके स्मार्टफोन, लैपटॉप और कंप्यूटर में सोने का प्रयोग किया जाता है. हालांकि, इनकी मात्रा काफी कम होती है. इसे निकालने का तरीका भी मौजूद है.
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भारत में सोना बहुत जरूरी चीज है. आर्थिक कारण तो हैं ही, सांस्कृतिक वजहों से भी भारतीयों के जीवन में सोना अहम स्थान रखता है. सोने में इन्वेस्टमेंट भी होशियारी मानी जाती है. जिस तरह से इसके दाम बढ़ रहे हैं, सेफ और हाई रिटर्न की गारंटी तो सोने में निवेश करने में ही है. क्या आप जानते हैं, जो स्मार्टफोन आपके हाथ में है, उसमें भी सोना लगा होता है. सिर्फ फोन में ही नहीं, टीवी, कंप्यूटर और लैपटॉप जैसे डिवाइसेज भी बिना सोने के नहीं बनते. सबमें बहुत कम ही मात्रा में सही लेकिन सोना लगा होता है. सवाल ये है कि क्या इस सोने को निकाला जा सकता है?
जवाब है, जरूर. लेकिन एक कहावत है, ‘जितने की मुर्गी नहीं, उतने का मसाला.’ फोन में इतना कम सोना होता है कि उसकी कीमत से ज्यादा तो उसे निकालने के लिए केमिकल्स पर खर्चा हो जाएगा. इसके अलावा, सोना निकालने वाले केमिकल्स एनवायरमेंट के लिए भी सही नहीं होते लेकिन, हाल ही में एक अच्छी खबर आई है कि वैज्ञानिकों ने ऐसा केमिकल खोज लिया है जिसकी मदद से बहुत सुरक्षित तरीके से न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक कचरे से बल्कि खदानों से भी सोना निकाला जा सकता है.
ऐसा नहीं है कि इसके पहले सोना निकालने की कोई व्यवस्था नहीं थी. केमिकल के जरिए सोना खदान से निकाला जाता है लेकिन अभी जिस साइनाइड साल्ट और पारा मेटल का इस्तेमाल इसके लिए होता है, वो थोड़ा खतरनाक है. ये तरीके ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं और सायनाइड तथा पारे जैसे केमिकल जमीन और पानी को गंदा करते हैं. इससे लोगों की जिंदगी पर बुरा असर पड़ता है.
वैज्ञानिक लंबे समय से ऐसा तरीका ढूंढ रहे थे जो सेफ हो और पर्यावरण के लिए बेहतर हो. अब उनकी ये कोशिश रंग लाई है. एक ऐसा नया तरीका ईजाद किया गया है जिससे सोना न सिर्फ खदानों से बल्कि पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसे- फेंके हुए मोबाइल, कंप्यूटर सर्किट बोर्ड वगैरह से भी निकाला जा सकता है.
क्या है तरीका?ट्राइक्लोरोआइसोस्यान्यूरिक एसिड या शॉर्ट में TCCA नाम का एक केमिकल होता है. इसे आमतौर पर सैनिटाइजर या डिसइंफेक्टेंट में इस्तेमाल किया जाता है. जिससे सोने को अलग करना है, उसे इस केमिकल में डाल दिया जाता है. फिर इसमें हैलाइड नाम का एक और केमिकल मिलाते हैं. इससे सोना केमिकल में घुल जाता है. बाद में सोने को इस घोल से निकालने के लिए एक खास तरह का पॉलीसल्फाइड पॉलिमर इस्तेमाल किया जाता है. यह पॉलिमर स्पंज की तरह काम करता है और सिर्फ सोने के कणों को पकड़ता है. बाकी धातुओं को नहीं.
जब सोना इसमें पूरी तरह समा जाता है तो इस पॉलिमर को गर्म करके सोना अलग कर लिया जाता है.
वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को खदानों के सोने और इलेक्ट्रॉनिक कचरे दोनों पर आजमाया और पाया कि ये तरीका न सिर्फ कारगर है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बहुत सेफ है.
अब सवाल है कि हमारे फोन- लैपटॉप में सोना क्यों यूज होता है?
तो इसका जवाब है कि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज में सोना गजब की चीज है. इसमें इलेक्ट्रिसिटी का फ्लो बहुत शानदार होता है. हवा और नमी से इस पर जंग नहीं लगती. इससे डिवाइस की उम्र बढ़ जाती है. यह इतना मुलायम होता है कि बहुत पतला तार बनाना हो या शीट, यह आसानी से किसी भी आकार में ढल जाता है. कुल मिलाकर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज की परफॉर्मेंस और उम्र बढ़ाने के लिए सोना बहुत जरूरी चीज है.
फोन में सोना होता कितना है?अलग-अलग फोन के हिसाब से अलग-अलग मात्रा में सोना लगा होता है. औसतन एक फोन में 0.034 ग्राम सोने का इस्तेमाल किया जाता है. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज में सबसे ज्यादा सोना सर्वर-ग्रेड मदरबोर्ड में इस्तेमाल होता है. इसमें इसकी मात्रा 1 ग्राम तक हो सकती है. वहीं, डेस्कटॉप कंप्यूटर के मदरबोर्ड में 0.15 ग्राम तक सोना लगा होता है.
इलेक्ट्रॉनिक कचरे को लेकर बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 40 स्मार्टफोन से आप सिर्फ 1 ग्राम सोना निकाल सकते हैं. अमेरिकन बूलियन नाम के पोर्टल के मुताबिक, दुनिया भर में जो सोना निकाला जाता है, उसका करीब 7-10 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ फोन, लैपटॉप या इलेक्ट्रॉनिक चीजों में जाता है. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार, साल 2020 में करीब 290 टन सोना इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री ने इस्तेमाल किया.जिस तरह से मोबाइल, कंप्यूटर जैसी चीजों की मांग भी बढ़ रही है, इस इंडस्ट्री में सोने की डिमांड और ज्यादा बढ़ने की संभावना है.
एक बात और साफ कर दें. ऐसा जरूरी नहीं कि सिर्फ महंगे या लग्जरी डिवाइसों में ही सोना लगता है. आजकल तकरीबन हर फोन, टैबलेट, टीवी, लैपटॉप में सोने का इस्तेमाल किया जाता है.
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