रासायनिक हथियारों का ऐसा परीक्षण, जिसने 6 हजार जिंदगियां छीन लीं
अमेरिका के यूटा राज्य में स्थित Dugway Proving Ground जहां Chemical Weapon बनाए गए. इन वेपन के परीक्षण के कई गंभीर परिणाम हुए. इससे हजारों भेड़ों की जान चली गई. जो सालों बाद दुनिया के समाने आए थे. जबकि पहली बार इस तरह के हथियार बनाने का ख्याल कीटनाशकों से आया था.
अमेरिका के पश्चिम में बसा यूटा राज्य. ये जगह न्यूयॉर्क (New York) और कैलिफ़ोर्निया (California) जैसे राज्यों की तरह चर्चित नहीं है लेकिन अपने भीतर कई खतरनाक रहस्य छिपाए हुए है. इन्हीं में से एक है 6 हज़ार से अधिक भेड़ों की अचानक हुई मौत का राज़. 17 मार्च, 1968 की आधी रात. यूटा में स्थित एक सैन्य केंद्र के निदेशक, कीथ स्मार्ट के घर फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ थे यूटा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. बोड, जिनकी आवाज़ में गहरी चिंता झलक रही थी.
उन्होंने बताया कि यूटा के स्कल वैली नाम के एक स्थान पर हज़ारों भेड़ें मृत पाई गई हैं. यह जगह उनके सैन्य केंद्र से मात्र 27 मील की दूरी पर थी. कुछ दिन पहले ही उनके केंद्र से एक विमान उड़ा था. क्या यह घटना उस उड़ान से जुड़ी थी? सेना ने साफ़ इंकार कर दिया, लेकिन बाद में जब सच्चाई सामने आई तो असलियत ने सबके होश उड़ा दिए. क्या था हजारों भेड़ों की मौत का रहस्य? इस बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे.
डगवे प्रूविंग ग्राउंड (Dugway Proving Ground)कहानी की शुरुआत होती है, यूटा के रेगिस्तान में 800,000 एकड़ में फैले डगवे प्रूविंग ग्राउंड से. एक विशाल मिलिट्री सेंटर जहां टारगेट रेंज, प्रयोगशालाएं और सैन्य बंकर मौजूद हैं. बाहर से एक सामान्य मिलिट्री सेंटर दिखाई देने वाली इस जगह के अंदर 1960 के दशक में कुछ और भी चल रहा था. जिसकी भनक किसी को नहीं थी.
डगवे प्रूविंग ग्राउंड को 1940 के दशक में इसे इसलिए बनाया गया था ताकि अमेरिकी सेना सुरक्षित तरीके से अपने परीक्षण कर सके. 1950 के दशक में कोरियाई युद्ध के दौरान इसे फिर से सक्रिय किया गया. 1958 तक यह अमेरिकी सेना के रासायनिक, जैविक और रेडियोलॉजिकल वेपन्स स्कूल का आधिकारिक केंद्र बन चुका था. मार्च 1968 में, जब भेड़ों की मौत की घटना हुई, यहां एक खतरनाक पदार्थ का परीक्षण चल रहा था. यह पदार्थ इतना खतरनाक था कि इसकी एक बूंद भी किसी इंसान को मिनटों में मार सकती थी.
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दरअसल एक भारतीय मूल के वैज्ञानिक, रणजीत घोष ने एक कीटनाशक ईजाद किया था. रणजीत इंपीरियल केमिकल इंडस्ट्रीज नाम की कंपनी में काम करते थे. उन्होंने 'Amiton' नाम का कीटनाशक बनाया था. जिसे खास खेती के लिए इस्तेमाल किया जाना था. लेकिन जब किसानों ने इसका इस्तेमाल शुरू किया, पता चला कि ये जरुरत से ज्यादा ज़हरीला है. 'Amiton' का इस्तेमाल करने से ,लोगों की तबीयत ख़राब होने लगी. लिहाजा जल्द ही इसे बाज़ार से हटा लिया गया.
Amiton की कहानी यहीं ख़त्म हो जाती. लेकिन इसी बीच केमिकल वेपन्स बनाने वाली कंपनियों की नज़र इस पर पड़ गई. उन्होंने इसे और भी खतरनाक बना दिया. इस तरह 'Amiton' से एक नए, अत्यंत घातक पदार्थ का जन्म हुआ - जिसे कोडनेम 'VX' दिया गया. VX एक ऑर्गोफॉस्फेट कम्पाउंड है, जो ‘नर्व एजेंट’ की श्रेणी में आता है. इसे 'नर्व एजेंट' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह शरीर की तंत्रिकाओं यानी नर्व्स के बीच संचार को बाधित करता है, जिसके चलते मांसपेशियों में ऐंठन होती है, रेस्पिरेटरी सिस्टम काम करना बंद कर देता है और इसके संपर्क से व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.
यह अत्यंत घातक पदार्थ है, जो त्वचा के संपर्क में आने या सांस के ज़रिए शरीर में प्रवेश करता है. VX का प्रभाव इतना जल्दी होता है कि कुछ मिनटों के भीतर ही ये जानलेवा साबित हो सकता है. केवल कुछ मिलीग्राम VX आदमी की जान ले सकता है, जिसके चलते इसे दुनिया के सबसे खतरनाक रासायनिक हथियारों में से एक माना जाता है. 1968 की उस रात यूटा में हजारों भेड़ें VX के संपर्क में आईं और मारी गई.
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कैसे मारी गईं भेड़ें?दरअसल डगवे प्रूविंग ग्राउंड में उस रोज़ तीन परीक्षण किए जाने थे. पहले परीक्षण में एक तोप से VX दागा गया. दूसरे में 160 गैलन VX को खुले में जलाया गया. तीसरे और सबसे महत्वपूर्ण परीक्षण में एक टन VX हवाई जहाज से छिड़का गया. ये सब एक्सपेरिमेंट इंसानी आबादी से दूर होने थे. लेकिन तीसरे एक्सपेरिमेंट के दौरान एक भयानक गलती हो गई.
दरअसल जिस विमान से VX छिड़का जाना था, उसका स्प्रे नोज़ल टूट चुका था. जैसे-जैसे विमान ऊपर उठा, नर्व एजेंट रिसता रहा. उस दिन तेज़ हवाएं चल रही थीं, जो इस जहर को सीधा स्कल वैली की ओर ले गईं.
अगले दिन, वहां चरने वाली भेड़ें अचानक बीमार पड़ने और मरने लगीं. कुछ ही दिनों में हज़ारों भेड़ें मर चुकी थीं. सरकार और स्थानीय लोगों के आंकड़ें अलग-अलग हैं, लेकिन अनुमान है कि 3,483 से 6,400 के बीच भेड़ें मारी गईं.
स्कल वैली के निवासी ‘रे पैक’ उस रोज़ अपने घर के आंगन में काम कर रहे थे जब उन्हें अचानक कान में दर्द महसूस हुआ. वे जल्दी सो गए. अगली सुबह उनके घर के बाहर का दृश्य भयावह था. ज़मीन मरे हुए पक्षियों से पटी थी. दूर एक मरता हुआ खरगोश तड़प रहा था. ‘रे पैक’ चीजों को समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि अचानक वहां, एक हेलीकाप्टर उतरा. उसमें से वैज्ञानिक और उपकरण निकले. वैज्ञानिकों ने जल्दबाज़ी में जानवरों के शव इकट्ठा किए, पेक परिवार का रक्त परीक्षण किया, और फिर बिना कोई स्पष्टीकरण दिए चले गए. पेक परिवार हैरान और भयभीत था.
सेना ने तुरंत मामले को दबाने की कोशिश की. उन्होंने स्वीकार किया कि उस समय एक रासायनिक परीक्षण हुआ था और यह भी कहा कि शायद विमान में कोई खराबी आई होगी. लेकिन उन्होंने यह मानने से इनकार कर दिया कि भेड़ों की मौत उनके परीक्षण की वजह से हुई थी. इसके बाद स्थानीय लोगों को मुआवजा देकर मामले को निपटाने की कोशिश शुरू हो गई. हालांकि मामला दबा नहीं.
जल्द ही ये बात सामने आ गई कि डगवे प्रूविंग ग्राउंड सिर्फ एक सैन्य केंद्र नहीं था, बल्कि यह रासायनिक और जैविक हथियारों के लिए अमेरिकी सरकार का मुख्य परीक्षण स्थल बन चुका था. द गार्जियन और न्यू यॉर्क टाइम्स जैसे प्रमुख समाचार पत्रों ने 1960 और 1970 के दशक में इस केंद्र पर कई डिटेल्ड रिपोर्ट्स छापी. जिनसे पता चलता था कि यहां किए गए परीक्षणों के परिणाम सिर्फ स्कल वैली तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने कई अन्य स्थानों पर भी असर डाला. अखबारों के माध्यम से धीरे धीरे खबर फ़ैली और जल्द की लोगों में गुस्सा पनपने लगा.
ये वो दौर था जब अमेरिकी जनता वियतनाम युद्ध से पहले ही परेशान थी. केमिकल वेपन्स के एक्सपेरिमेंट ने उन्हें और भी आक्रोशित कर दिया. 1969 में मामला और भी बिगड़ा जब अमेरिकी मीडिया को CHASE (Cut Holes And Sink 'Em) प्रोग्राम के बारे में पता चला. इस कार्यक्रम के तहत सेना खतरनाक रासायनिक पदार्थों को समुद्र में डुबो देती थी. जहाज़ों को मस्टर्ड गैस, सेरिन और VX जैसे ज़हरीले पदार्थों से भरकर 250 मील दूर समुद्र में डुबोया जाता था. यह खुलासा जनता के लिए और भी चिंताजनक था. क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम हो सकते थे.
उदाहरण के लिए स्कल वैली में हुए एक्सपेरिमेंट्स के चलते जिन लोगों पर असर हुआ था. उन्होंने इसके अंजाम लम्बे वक्त तक भुगते. रे को भयंकर सिरदर्द होने लगा और उनका शरीर में सुन्न हो गया. आगे चलकर उनकी बेटियों को भी समस्याएं हुईं - उन्हें बार-बार गर्भपात का सामना करना पड़ा. हालांकि इन स्वास्थ्य समस्याओं और VX के संपर्क में आने के बीच कोई पक्का संबंध स्थापित नहीं हुआ था, लेकिन पेक परिवार को यकीन था कि उनकी बीमारियों की वजह नर्व एजेंट ही था.
सरकार ने लंबे समय तक सच्चाई को छिपाए रखा. लेकिन 30 साल बाद, 1998 में, एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ. सरकार ने एक 30 साल पुरानी रिपोर्ट जारी की, जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा था - "VX का स्तर इतना ज़्यादा था कि भेड़ें मर सकती थीं." यह वही VX था - जिसका एक्सपेरिमेंट स्कल वैली के पास किया गया था. इस सबूत के बावजूद, सेना ने अपनी गलती स्वीकार नहीं की. इतना ही नहीं, एक और दिलचस्प बात सामने आई.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुए जिनेवा कन्वेशन में युद्ध में केमिकल और बायोलॉजिकल हथियारों के बैन पर एक प्रोटोकॉल जारी हुआ था. इस प्रोटोकॉल के तहत युद्ध के दौरान ऐसे हथियारों का उपयोग बैन था. लेकिन इनकी टेस्टिंग और स्टोरेज पर कोई पाबंदी नहीं थी. लिहाजा अमेरिका में साल 1997 तक केमिकल हथियारों को स्टोर करता रहा . 1997 में अमेरिका ने UN समझौते पर हस्ताक्षर किए. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार हथियारों की आखिरी खेप 2023 में नष्ट हुई थी.
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