वही है सच्चा दोस्त, वही है सच्चा भाई, जब मांगो तो दे दे अपना वाई-फाई
वाई-फाई ने अलग किस्म का कल्चर विकसित किया है. सच्चा दोस्त वो है जो वाई-फाई हॉट स्पॉट देने के बाद 'हो गया तेरा, बंद कर दूं' न पूछे.
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फोटो - thelallantop
वाई-फाई ने एक अलग किस्म की संस्कृति विकसित की है. आदमी संयमी हो गया है. आम आदमी ने तो इसी के नाम पर सरकार बना ली. आदमी संयमी हुआ तो व्हाट्सएप पर आया हुआ वीडियो भी तब तक डाउनलोड नहीं करता जब तक मुफ्त का वाई-फाई न मिल जाए. नई फिल्म का ट्रेलर भी मुफ्त के वाई-फाई में देखता है, फेसबुक पोस्ट सेव करने का जो सिस्टम चला, उसने अलग फायदा करा दिया है. आदमी इंट्रेस्टिंग चीजें ऑफिस में मुफ्त वाई-फाई में डाउनलोड करता है. इसके अलग फायदे हुए हैं, लोग देर तक ऑफिस में रुकते हैं.आपका सच्चा दोस्त कौन है? वो जो मौक़ा पड़ने पर आपके लिए जान दे दे, नहीं. सच्चा दोस्त वो है जो मांगते ही वाई-फाई का हॉटस्पॉट दे दे और देने के बाद 'हो गया तेरा, बंद कर दूं' न पूछे.
हर चीज के अच्छे पहलू होते हैं तो बुरे पहलू भी, वाई-फाई के इस्तेमाल में कोई बुराई नहीं है. महंगा नेट पैक इंसान को उसकी औकात बता देता है. ऑनलाइन लड़ाइयां भी जल्द खत्म हो जाती हैं क्योंकि आदमी नेट पैक की महत्ता समझता है. सबको पता है जीवन और नेट पैक बहुमूल्य हैं उन्हें छोटी चीजों पर बर्बाद नहीं किया जा सकता.पर उनका क्या हो जो मुफ्त का वाई-फाई पाते ही सारे ऐप्स इंस्टाल करने लगते हैं. जीबियों डाटा चाट जाते हैं. इनको देख तो बस वो लोग याद आते हैं, जिन्हें भोज का निमंत्रण दे दो तो घर पर डेढ़ दिन उपवास कर लेते थे कि अब तो न्यौते में ही खाएंगे. ये खुले वाई-फाई को शादी वाला खाना मानते हैं. यमराज ने इनके लिए जरुर नरक में बिना नेट कनेक्शन वाला कमरा तैयार रखा होगा.