9 जुलाई 2019 (Updated: 9 जुलाई 2019, 10:31 AM IST) कॉमेंट्स
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यह लेख डेली ओ से लिया गया है जिसे नैरिता मुखर्जी ने लिखा है.
दी लल्लनटॉप के लिए हिंदी में यहां प्रस्तुत कर रही हैं नेहा.
‘कबीर सिंह’ और ‘प्रीति सिक्का’ एक दूसरे को थप्पड़ मारते हैं, बच्चों की तरह एक दूसरे पर चिल्लाते हैं, गले लगते हैं और कसम खाते हैं कि कभी अलग नहीं होंगे. मेकर्स के नाम पर्दे पर आना शुरू हो जाते हैं और लोग कुर्सियों से उठने लगते हैं. कुछ के लिए ये अल्हड़ प्रेम कहानी की हैप्पी एंडिंग थी, वहीं कईयों के लिए ये अनकंफर्टेबल मूमेंट से भरी लव स्टोरी से ज्यादा कुछ नहीं है.
प्रीति और कबीर आखिरकार मिलते हैं और फिल्म खत्म हो जाती है, बिना ये बताए कि आगे उनके जीवन में क्या होगा. उनकी शादी का सीन फिल्म की हैप्पी एंडिंग दिखाने के लिए पर्याप्त है.
कबीर मेडिकल रिसर्च फील्ड में जा सकता है, क्योंकि उसका लाइसेंस कैंसिल हो चुका है. प्रीति एक सक्सेसफुल डॉक्टर है. दोनों का एक बच्चा है और दोनों मुंबई में मिलकर उसकी परवरिश करेंगे.
ये सब हमारी इमेजिनेशन का नमूना है, क्योंकि जब किसी फिल्म को देखते और पसंद करते हैं, तो उसके कैरेक्टर्स के साथ बहुत गहराई से जुड़ जाते है. ऐसा सोचना जरूरी तो नहीं है, लेकिन जैसे फिल्म की हैप्पी एंडिंग हमें अच्छा महसूस कराती है, वैसे ही हमारी कल्पना हमें हैप्पी एंडिग महसूस कराती है. इसलिए हम इस तरह सोचने लगते हैं.
कबीर सिंह और अर्जुन रेड्डी फिल्म के डायरेक्टर संदीप रेड्डी वंगा ने हाल ही में फिल्म क्रिटिक अनुपमा चोपड़ा के साथ एक इंटरव्यू किया. उनसे ‘कबीर सिंह’ के कैरेक्टर को लेकर बात की.
संदीप ने कहा, 'कबीर सिंह के पूरे क्लास के सामने मेरी बंदी है कहने में कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि लोग शादी में हज़ार, दो हज़ार लोगो को बुलाकर किसी लड़की के साथ शादी करते हैं, उसके जरिये आप क्या साबित करना चाहते हैं.'
थप्पड़ वाले सीन की फिल्म में क्या जरूरत थी, इसके सवाल पर संदीप ने कहा, 'अगर आप अपनी प्रेमिका को थप्पड़ नहीं मार सकते, जब चाहें तब छू नहीं सकते तो ये ‘सच्चा प्यार’ नहीं हो सकता.'
कबीर सिंह के एंगर मैनेजमेंट इश्यू के बारे में बात करते हुए संदीप हंसते हुए कहते हैं, 'बच्चा होने के बाद कबीर सिंह बदल जाएगा, जाहिर है उसका गुस्सा भी कम हो जाएगा.'
ऐसा सोचने वाले संदीप इकलौते इंसान नहीं हैं. ऐसे कई लोग हैं, जो मानते है कि इंसान के कंधों पर जिम्मेदारी उसे जिम्मेदार बना देती है. इसीलिए बेरोजगार और नाकारा लोगों को भी शादी योग्य वर माना जाता है, क्योंकि उसके पीछे भी यही सोच होती है कि शादी और बच्चे होने के बाद जिम्मेदारी आ जाएगी और सुधर जाएगा. इसलिए आज भी लोग शादी में दहेज मांगते हैं और वो जो चाहते थे न मिलने पर पत्नियों को पीटते हैं.
ओह, हिंसा तो प्रेम दिखाने का एक तरीका है.
दिक्कत ये है कि ऐसा कभी नहीं होता. लोग कभी इतने नहीं बदलते कि एकदम कोई और इंसान बन जाए. और इसका खामियाजा किसे भुगतना पड़ता है, ये समझना मुश्किल नहीं.
औरत को, जो साफतौर पर एक ‘अच्छे आदमी’ को सही रास्ते पर लाने में विफल रही.
संदीप ने इंटरव्यू में बताया कि उनके बेटे के का नाम अर्जुन है, क्योंकि इस फिल्म की शूटिंग के दौरान उसका जन्म हुआ, लेकिन वो नहीं चाहेंगे कि उनका बेटा वाकई अर्जुन रेड्डी जैसा बने.
संदीप रेड्डी वांगा का रुढ़िवादी और महिला विरोधी नजरिया और इस नजरिये को महिला विरोधी और रुढ़िवादी न मानने वाली सोच को बार-बार दोहराने का कोई मतलब नहीं. लेकिन ये कहे बिना विडंबना बहुत ही आकर्षक होगी कि कबीर सिंह बदल सकता है, लेकिन संदीप रेड्डी वांगा नहीं.
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