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जब रामविलास पासवान संसद में संजय गांधी से भिड़ गए, बोले- "कहां फरियाना है? चांदनी चौक या सीपी?"

संजय गांधी में ऐसा क्या था कि लोग उनसे मुहब्बत और नफरत, दोनों करते थे. सुनिए उनके पांच अनसुने किस्से.

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आज संजय गांधी का 74वां जन्मदिन है
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अभय शर्मा
14 दिसंबर 2020 (Updated: 14 दिसंबर 2020, 12:48 PM IST) कॉमेंट्स
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संजय गांधी. न जाने कितनी पहचानें उनसे जुड़ी हैं. इमरजेंसी के गुनाहगार, मारुति उद्योग लिमिटेड के संस्थापक, कांग्रेस की 1977 की हार के ज़िम्मेदार, इंदिरा की 1980 में सत्ता में वापसी के सूत्रधार वगैरह-वगैरह. यदि आज जीवित होते, तो अपने जीवन के आठवें दशक में होते. लेकिन 1980 की गर्मियों में हवा में कलाबाजी के जुनून ने उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी. महज 35 साल तक जिंदा रहा यह व्यक्ति देश के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखकर चला गया.

लेकिन आज हम उनके इन अध्यायों की चर्चा नही करेंगे. क्योंकि उन्हें पढ़-सुनकर पहले ही आपके कान पक चुके होंगे. आज हम आपको संजय गांधी से जुड़े पांच ऐसे किस्सों से रूबरू कराएंगे, जिनके बारे में आपने शायद ही पहले कभी सुना हो.


संजय गांधी के व्यक्तित्व और उनके कामकाज के तौर-तरीकों के चर्चे आजतक होते हैं.
संजय गांधी के व्यक्तित्व और उनके कामकाज के तौर-तरीकों के चर्चे आजतक होते हैं.

किस्सा नंबर 1 : जब संजय गांधी के 'कारण' सेंट्रल बैंक के चेयरमैन की रुखसती हुई -

यह 1974-75 का दौर था. संजय गांधी अपने ड्रीम प्रोजेक्ट 'आम आदमी की कार' (जिसे बाद में मारूति उद्योग लिमिटेड का नाम दिया गया) के लिए ज़मीन और पैसे की तलाश में थे. ज़मीन तो उन्हें दिल्ली के पास गुड़गांव में मिल भी गई थी लेकिन पईसा नहीं मिल पा रहा था. ऐसे में एक दिन उन्होंने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन धर्मवीर तनेजा के सामने 2 करोड़ रूपये की मांग रख दी और कहा कि 'इसके लिए रूल-रेग्युलेशन मत देखो. बस कैश इशू कर दो.'

इसके जवाब में तनेजा ने संजय से कहा,


"इतनी बड़ी रकम को मैं अकेला जारी नहीं कर सकता. क्योंकि इसे सबसे पहले इसे बैंक के एग्जिक्युटिव बोर्ड के समक्ष रखना होगा और उससे अनुमति लेनी होगी."

इसके बाद संजय गांधी आपे से बाहर हो गए और धर्मवीर तनेजा को अंजाम भुगतने की धमकी दी. तनेजा ने अंजाम भुगता भी क्योंकि कुछ ही दिनों बाद उन्हें उनके पद से हटा दिया गया. उनको हटाने से सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारी काफी नाराज़ हुए और जनरल मैनेजर आर सी पोचखानवाला के नेतृत्व में बैंक के प्रतिनिधिमंडल ने वित्त मंत्री सी सुब्रह्मण्यम और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक से मिलकर उनकी वापसी की गुहार लगाई. लेकिन वह दौर 1971 की चुनावी जीत के बाद का दौर था, जिसमें 1 सफदरजंग रोड (प्रधानमंत्री आवास) शायद ही किसी की सुनता था.
वैसे मज़ेदार बात यह है कि धर्मवीर तनेजा को सेंट्रल बैंक का चेयरमैन भी संजय गांधी ने ही बनवाया था. तनेजा संजय को बचपन से जानते थे. इसलिए जब संजय को कार फैक्ट्री के रोड रोलर के लिए तत्काल 15 लाख रूपये की आवश्यकता पड़ी तब सेंट्रल बैंक के जनरल मैनेजर की हैसियत से धर्मवीर तनेजा ने इतनी रकम को चुपचाप इशू कर दिया था. इसके बाद संजय गांधी को लगा कि 'आगे भी इस आदमी की ज़रूरत पड़ेगी.' इसके लिए संजय इंदिरा गांधी के सामने जिद पकड़ कर बैठ गए कि 'तनेजा को सेंट्रल बैंक का चेयरमैन बनाया जाए.' अप्रैल 1974 में तनेजा चेयरमैन बन भी गए.  लेकिन बड़ी रकम देने के सवाल पर वे संजय गांधी की मदद नही कर सके और 1 साल पूरा होते-होते रुख़सत कर दिए गए.
कहा जाता है कि इंदिरा गांधी अक्सर संजय गांधी की जिद के आगे झुक जाती थीं.
कहा जाता है कि इंदिरा गांधी अक्सर संजय गांधी की जिद के आगे झुक जाती थीं.

किस्सा नंबर 2 : जब संजय गांधी एस के मिश्रा से उलझ पड़े 

70 का दशक लगभग आधा बीत चुका था. देश इमरजेंसी और उसके पहले के गुजरात नव निर्माण आंदोलन के दौर से गुज़र रहा था. उस दौर में हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे बंसीलाल को रक्षा मंत्री बनाकर दिल्ली लाया गया. तब बंसीलाल ने हरियाणा कैडर के IAS अधिकारी एस के मिश्रा को बतौर जॉइंट सेक्रेटरी रक्षा मंत्रालय में तैनात कराया. एस के मिश्रा बेहद तेज-तर्रार अधिकारी माने जाते थे और यही कारण था कि हरियाणा के तीनों लाल (देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल) उनपर भरोसा करते थे. यहां तक कि जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने एस के मिश्रा को अपना प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाया. यही एस के मिश्रा जब रक्षा मंत्रालय में तैनात थे, तब उन्हें संजय गांधी का एक संदेश मिला. जिसमें वे एविएशन रूल को धता बताते हुए दिल्ली से जम्मू के लिए एक सीधे रूट की परमीशन चाहते थे. उन दिनों इंदिरा के करीबी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जम्मू के निकट किसी स्थान पर आध्यात्मिक साधना के लिए अक्सर जाया करते थे और इस बार संजय गांधी चाहते थे कि वे खुद विमान उड़ाकर धीरेन्द्र ब्रह्मचारी को जम्मू ले जाएं.

जब इस बाबत बंसीलाल ने एस के मिश्रा से पूछा तो उन्होंने बताया कि इसके लिए PDA यानी प्री डिटरमाइंड रूट की परमीशन लेनी पड़ती है और इसके लिए मैंने एयर चीफ मार्शल हृषिकेश मुलगांवकर से पूछा था लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

मिश्रा ने यही बात संजय गांधी को भी बता दी, जिससे संजय गांधी गुस्सा हो गए. उनके गुस्से को देखकर एस के मिश्रा भी गुस्सा हो गए और संजय को कह दिया,


"मैं इस तरह के व्यवहार का आदी नही हूं और आगे से आप मुझे इस डिपार्टमेंट में मत दिखना. अन्यथा मैं नौकरी छोड़ कर चला जाऊंगा."
यह पूरा प्रसंग एस के मिश्रा ने अपनी किताब फ्लाइंग इन हाई विंड्स में विस्तार से लिखा है और यह भी बताया है कि कुछ दिनों बाद संजय गांधी से जब मेरी मुलाकात हुई, तो उन्होंने उस घटना पर अफसोस जाहिर किया और कहा कि 'उस दिन आप सही थे.'
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की गिनती गांधी परिवार के करीबी लोगों में होती थी.
धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की गिनती गांधी परिवार के करीबी लोगों में होती थी.

किस्सा नंबर 3 : गुस्साए संजय गांधी वापस दिल्ली लौट गए 

1977 का लोकसभा चुनाव हो रहा था. ऐतिहासिक चुनाव, जिसमें पहली बार कांग्रेस की हार हुई थी. इस चुनाव में संजय गांधी कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में से एक हुआ करते थे. चुनाव प्रचार के दौरान एक दिन उन्हें मध्यप्रदेश के मंदसौर में कांग्रेस कैंडीडेट बंसीलाल गांधी के पक्ष में एक चुनावी सभा करनी थी. लेकिन मंदसौर में कोई हवाई पट्टी नही थी. लिहाजा संजय गांधी का हवाई जहाज नीमच की हवाई पट्टी पर उतरा. उतरते ही संजय गांधी ने अगवानी कर रहे स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं से पूछा,


"यहां से मंदसौर कितनी दूर है?"
इसपर कार्यकर्ताओं ने उन्हें बताया कि मंदसौर लगभग 25 किलोमीटर दूर है.
इसके बाद वे एक कार में बैठे और साथ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीताराम जाजू को बिठाया. इसके बाद खुद ही कार ड्राइव करते हुए मंदसौर की ओर बढ़ चले. गाड़ी जैसे ही 25 किलोमीटर आगे पहुंची, संजय ने गाड़ी रोक दी और साथ बैठे सीताराम जाजू से पूछा,
"ये कौन सी जगह है?"
जाजू ने उन्हें जवाब दिया,
"मल्हारगढ़."
फिर संजय ने पूछा,
"मंदसौर अभी कितनी दूर है?"
इसपर जाजू ने जवाब दिया,
"जितनी दूर अभी आए हैं उतनी ही दूर अभी और चलना है."
इतना सुनना था कि संजय गांधी ने गाड़ी वापस मोड़ दी और नीमच पहुंच कर दिल्ली के लिए निकल गए. उधर मंदसौर में सभास्थल पर जैसे ही संजय गांधी के बीच रास्ते से वापस लौटने की सूचना पहुंची, वहां हंगामा शुरू हो गया और कांग्रेस उम्मीदवार बंसीलाल गांधी के खिलाफ नारेबाज़ी होने लगी. जब चुनाव का नतीजा आया तो बंसीलाल गांधी भारतीय लोकदल के लक्ष्मीनारायण पांडे से लगभग 50 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक संजय गांधी की बीच रास्ते से वापसी बंसीलाल गांधी की हार का बड़ा कारण बन गई.
हालांकि संजय गांधी के बारे में उन्हें करीब से जानने वाले लोग मानते हैं कि उनको गलतबयानी एकदम पसंद नही थी. कोई काम समय पर नही हो पाया - इसे कोई उन्हें साफ-साफ बता दे, तो वे बुरा नही मानते थे. लेकिन गलतबयानी को वे एकदम बर्दाश्त नही करते थे. साथ ही समय के वे इतने पाबंद थे कि उनके अपॉइंटमेंट भी बड़े अजीबोगरीब होते थे. जैसे मिस्टर X को 10 बजकर 7 मिनट, मिस्टर Y को 11 बजकर 19 मिनट - इस तरह से वे अपॉइंटमेंट दिया करते थे.
संजय गांधी को साफगोई पसंद इंसान माना जाता था.
संजय गांधी को साफगोई पसंद इंसान माना जाता था.

किस्सा नंबर 4 : जब चंद्रशेखर ने इंदिरा-संजय को भीड़ के गुस्से से बचाया -

तारीख थी 9 अक्टूबर 1979.

स्थान पटना का श्रीकृष्ण मेमोरियल हाॅल.

जयप्रकाश नारायण का पार्थिव शरीर रखा हुआ था और उनके पार्थिव शरीर का दर्शन करने देश के तमाम नेता और समाज के अलग-अलग क्षेत्र में काम करनेवाले लोग पहुंच रहे थे. दिल्ली से इंदिरा गांधी और संजय गांधी भी जे पी के अंतिम दर्शन करने पहुंचे. दोनों जैसे ही श्रीकृष्ण मेमोरियल हाॅल पहुंचे, उन्हें देखते ही वहां उपस्थित छात्र संघर्ष समिति, युवा वाहिनी और जनता पार्टी युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूट पड़ा. आक्रोशित नौजवानों का काफिला इंदिरा-संजय की तरफ बढ़ने लगा. आक्रोशित भीड़ को देखकर संजय गांधी और इंदिरा गांधी - दोनों बुरी तरह घबरा गए. तभी इसपर जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर की नजर पड़ी और उन्हें यह भांपते देर नहीं लगी कि 'कोई बड़ा हादसा हो सकता है.' वे भागते हुए इंदिरा गांधी और संजय गांधी के पास पहुंचे और इंदिरा-संजय के आसपास अपनी बाहों का घेरा बनाने की कोशिश की. साथ ही आक्रोशित भीड़ को बुरी तरह डपटा. तब जाकर आक्रोशित नौजवान पीछे हटे. उस घटना के चश्मदीद रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर बताते हैं,


"यदि चंद्रशेखर ने तत्काल मामला संभाला नही होता तो उस दिन जिस प्रकार का गुस्सा दिख रहा था, उससे कोई भी बड़ा हादसा हो सकता था. चंद्रशेखर के व्यक्तित्व का ही असर था कि लड़के मान गए थे."

जेपी को श्रद्धांजलि देने इंदिरा गांधी और संजय गांधी - दोनों पटना पहुंचे थे.
जेपी को श्रद्धांजलि देने इंदिरा गांधी और संजय गांधी - दोनों पटना पहुंचे थे.

किस्सा नंबर 5 : जब रामविलास पासवान और संजय गांधी भिड़ गए 

यह 1980 का साल था. संसद का बजट सत्र चल रहा था. इंदिरा गांधी की नई-नई सरकार बनी थी और यह पहला ही सत्र था. इसी दौरान एक दिन लोकसभा में लोकदल के सांसद रामविलास पासवान बोल रहे थे. तभी पहली बार के सांसद संजय गांधी उन्हें लोकसभा चुनाव में मिले सबक को याद दिलाते हुए कुछ व्यंगात्मक टिप्पणी कर बैठे. इस पर रामविलास पासवान गरम हो गए और कहा,


"ऐ संजय गांधी, हम 1969 में विधायक बने थे और अब दूसरी बार लोकसभा में आया हूं. इसलिए मुझसे तमीज़ से बात करो. मैं बेलछी में नही बल्कि देश की संसद में बोल रहा हूं और यहां रंगबाज़ी नही चलेगी. और अगर रंगबाज़ी ही करनी है तो बताओ, कहां फरियाना है - चांदनी चौक में या कनाॅट प्लेस में?"
इसके बाद लोकसभा में दोनों तरफ से मामला गरमाने लगा और तब इंदिरा गांधी ने बीच-बचाव किया और बोलीं,
"रामविलास जी, आप वरिष्ठ हैं इसलिए संजय गांधी को माफ कर दीजिए. संजय तो न्यूकमर है और उसे अभी संसदीय परंपराओं के बारे में बहुत कुछ सीखना है."
इसके बाद लंच ऑवर में इन्दिरा गांधी ने दोनों (संजय और रामविलास) को मिलवाया और गिले-शिकवे दूर कराए.
रामविलास पासवान की भी एक बार संजय गांधी से कहासुनी हो गई थी.
रामविलास पासवान की भी एक बार संजय गांधी से कहासुनी हो गई थी.

लेकिन संजय गांधी संसदीय परंपराओं के बारे में कुछ सीख पाते, उससे पहले ही 23 जून 1980 को एक विमान हादसे में उनका निधन हो गया. 1980 का बजट सत्र संजय गांधी के संसदीय जीवन का पहला और आखिरी संसद सत्र साबित हुआ.

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