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यूक्रेन जैसे देश में डॉक्टर बनने क्यों जाते हैं भारतीय छात्र?

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच विदेश में पढ़ रहे भारतीय छात्र चर्चा का विषय बन गए हैं.

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गुरुवार 3 मार्च को यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्रों की तस्वीर. (साभार- पीटीआई)
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शिवेंद्र गौरव
3 मार्च 2022 (Updated: 3 मार्च 2022, 04:57 PM IST) कॉमेंट्स
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रूस की सैन्य कार्रवाई के बीच यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के मुद्दे पर काफी कुछ कहा जा रहा है. इसी दौरान केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी (Prahlad Joshi) के एक बयान पर विवाद हो गया है. उन्होंने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा कि विदेश में पढ़ने वाले 90 फीसदी मेडिकल स्टूडेंट नीट एग्जाम (NEET) पास नहीं कर पाते हैं. हालांकि बाद में उन्होंने ये भी कहा कि इस बारे में बहस करने का ये सही वक़्त नहीं है. केंद्रीय मंत्री के इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हुई. किसी ने भारत में मेडिकल की कम सीटों का हवाला देते हुए तंज कसा तो किसी ने पूछ लिया कि मंत्रियों के बच्चे जो विदेश में पढ़ते हैं, क्या वो भी किसी एग्जाम में फेल हो जाते हैं. ये तमाम रिएक्शन्स असल मुद्दे पर चर्चा करने का इशारा करते हैं. आखिर ऐसी क्या वजह है कि मेडिकल और बाकी रोजगारपरक डिग्रियां लेने के लिए भारतीय छात्रों को विदेश जाना पड़ता है? क्या विदेशों में MBBS और बाकी कोर्सेज़ की पढ़ाई सस्ती है? सवाल ये भी है क्या विदेशी पढ़ाई को अपने देश में पूरी मान्यता है या उसके बाद भी यहां कोई एग्जाम देना बाकी रह जाता है? कितने स्टूडेंट्स विदेश जाते हैं? रेडशीर एक भारतीय मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म है. इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ विदेश जाकर पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की तादात तेजी से बढ़ रही है. 2021 में भारतीय छात्रों ने विदेश में पढ़ाई करने के लिए करीब 2 लाख करोड़ रुपए खर्च किए हैं. साल 2024 तक ये खर्च सालाना 5 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा पहुंचने का अनुमान है. रिपोर्ट के मुताबिक़, 2019 में करीब 7 लाख 70,000 भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ रहे थे. 2024 तक ये तादात मोटा-माटी 20 लाख तक पहुंच सकती है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि पिछले 3-4 सालों में भारतीयों के लिए पढ़ाई की सबसे पसंदीदा जगह अमेरिका की बजाय कनाडा हो गया है. इसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, रूस, चीन और यूक्रेन जैसे देशों का नंबर आता है. रेडशीर की रिपोर्ट के मुताबिक़ हिन्दुस्तान में ही रहकर पढ़ाई करने वाले छात्रों और विदेश जाने वालों में एक बड़ा फर्क है. वो ये कि भारत में ही रहकर पढ़ने वाले स्टूडेंट्स में से करीब 84 फ़ीसद जनरल कोर्स करते हैं. मात्र 16 फ़ीसद स्पेशलाइज्ड कोर्सेज़ में दाखिला लेते हैं. जबकि इसके ठीक उलट विदेशी यूनिवर्सिटीज़ में पढने वाले 70 फ़ीसद भारतीय छात्र कंप्यूटर ऐप्लिकेशन, साइंस और टेक्नोलॉजी से जुड़े स्पेशल कोर्सेज़ की पढ़ाई करते हैं. इन भारतीय छात्रों में सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे प्रदेशों के हैं. हालांकि कोविड संकट के चलते विदेशी शिक्षा के लिए ऑनलाइन माध्यमों पर निर्भरता बढ़ी है. विदेश क्यों जाना पड़ता है? अब सवाल ये है कि विदेशी शिक्षा के प्रति भारतीय छात्रों के इस रुझान की वजहें क्या हैं. व्यापक स्तर पर कहा जाए तो कई कारण हैं. रेडशीर की रिपोर्ट के मुताबिक़, विदेशी शिक्षा के बाद नौकरी और कमाई के अवसर अपने यहां से अच्छे हैं. भारतीय विश्वविद्यालयों से निकलने वाले छात्रों को औसतन 3.5 लाख से 7 लाख रुपए सालाना की नौकरी मिलती है, जबकि इंग्लैंड की यूनिवर्सिटीज़ से निकलने वाले स्टूडेंट्स को सालाना 50 लाख से 70 लाख रुपए की नौकरी मिल जाती है. इन यूनिवर्सिटीज का रहन-सहन और माहौल भी यहां से कहीं बेहतर है. विदेश में पढ़ने जाने वाले स्टूडेंट्स को कई तरह की स्कॉलरशिप्स भी मिल जाती हैं. जैसे ऑस्ट्रेलिया अवॉर्ड्स स्कॉलरशिप, GREAT स्कॉलरशिप, Forte स्कॉलरशिप वगैरह. लेकिन सबसे बड़ी वजह बताई जाती है भारतीय शिक्षा प्रणाली की खामियां, जैसे कि टीचर-स्टूडेंट रेश्यो, प्रैक्टिकल नॉलेज की बदहाली इत्यादि. ये एक व्यापक मापदंड है, किसी ख़ास कोर्स की बात नहीं है. अलग-अलग कोर्सेज़ के हिसाब से विदेश पढ़ने जाने वाले भारतीयों की वजहें अलग-अलग हैं. जैसे इंजीनियरिंग या मैनेजमेंट स्ट्रीम के भारतीय छात्र बेहतर शिक्षा और अन्य जो वजहें हमने आपको अभी बताई हैं, उनके चलते विदेश जाना पसंद करते हैं. लेकिन मेडिकल सेक्टर के छात्रों का संकट और समस्याएं कहीं अलग और बड़ी हैं. विदेश से मेडिकल की पढ़ाई डॉक्टर बनने का सपना लिए विदेश जाने वाले 60 फीसद भारतीय छात्र चीन, रूस और यूक्रेन का रुख करते हैं. इनमें से सबसे ज्यादा चीन जाते हैं. वजह, यहां यूक्रेन और रूस के मुकाबले पढ़ाई सबसे सस्ती है. इन देशों में भारतीय प्राइवेट कॉलेजेज़ से कम खर्च आता है. कितना कम? इसे समझने के लिए हमने यूक्रेन में अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्र अशहर अली से बात की. अशहर उत्तराखंड के रहने वाले हैं. उनके पिता भी डॉक्टर हैं. हमसे बातचीत में अशहर कहते हैं कि 2015 में जब उन्होंने NEET का एग्जाम दिया था, तब उनके 430 नंबर आए थे. इसके बाद उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज तो मिला नहीं, लेकिन कुछ प्राइवेट कॉलेज मिल रहे थे. लेकिन उनका सालाना खर्च यूक्रेन की कीव मेडिकल यूनिवर्सिटी के सालाना खर्च से कई गुना था. ऐसे में उन्होंने यूक्रेन चले जाना बेहतर समझा. भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए NEET यानी नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट देना होता है, जिसमें अनुमानतः हर साल करीब 7 लाख कैंडिडेट पास हो जाते हैं. लेकिन भारत के मेडिकल संस्थानों में करीब 1 लाख स्टूडेंट्स के लिए ही सीट्स अवेलेबल हैं. इनमें भी सरकारी कॉलेज की सीटों की संख्या बहुत कम है. हालांकि उन कॉलेजों की फीस कम है. इनमें दाखिले के लिए NEET में अच्छा स्कोर चाहिए होता है. वहीं प्राइवेट कॉलेजेज़ में कम नंबर लाने पर भी एडमिशन हो जाता है, लेकिन वहां पढ़ना बहुत महंगा सौदा है. मैनेजमेंट कोटा से एडमिशन लेने के लिए भी लाखों रुपए डोनेशन के नाम पर धरा लिए जाते हैं. अशहर कहते हैं कि अगर भारत में ही रहकर किसी अच्छे प्राइवेट मेडिकल कॉलेज से MBBS की डिग्री लेनी है तो कुल मिलाकर 4 साल में करीब 50 लाख रुपए के आस-पास खर्च हो जाता है. जबकि यूक्रेन में ये खर्च इसके आधे से भी कम है. दूसरा कि लगभग सभी विदेशी मेडिकल यूनिवर्सिटीज़ में एडमिशन आसानी से हो जाता है. बस एक सामान्य सा क्वालिफाइंग टेस्ट देना होता है. पढ़ाई के अलावा बाकी कितना खर्च आता है? इस पर अशहर कहते हैं कि यूक्रेन में हॉस्टल में रहने का खर्च करीब 1 लाख रुपए सालाना है. खाने पर आप जो भी खर्च कर लें, कैंपस में ही कैंटीन है, जहां भारतीय और पाकिस्तानी मूल के काफ़ी लोग सर्विस देते हैं. अशहर से हमारा अगला सवाल पाठ्यक्रम को लेकर था, जवाब में हमें दो चीजें पता चलीं. एक कि यूक्रेन में MBBS और MD का पाठ्यक्रम अलग नहीं है. एक सम्मिलित कोर्स है, जिसके लिए दो बार एग्जाम देना पड़ता है. एक परीक्षा तीसरे साल के अंत में और एक छठवें साल के अंत में देनी होती है. वहीं भारत में MBBS के बाद MD या MS जैसे पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज़ में दाखिले के लिए अलग से एंट्रेंस एग्जाम देना होता है. इसे NEET PG कहते हैं. इसमें आने वाले मार्क्स के हिसाब से MD या अन्य PG कोर्सेज़ में दाखिला मिलता है. यूक्रेन की एजुकेशन और साइंस मिनिस्ट्री के मुताबिक़ यहां करीब 18,000 भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. अशहर बताते हैं कि यहां इतनी तादात होने की वजह ये है कि भारतीय छात्रों को पूरा कोर्स इंग्लिश में मिल जाता है, अच्छी इंग्लिश बोलने वाले टीचर्स ही पढ़ाते हैं, जबकि रूस और बाकी यूरोपीय देशों में लैंग्वेज की दिक्कत है. वहां ज्यादातर नेटिव लैंग्वेज के ही स्पीकर्स हैं. दूसरी वजह ये भी है कि यूक्रेन में MBBS की डिग्री को इंडियन मेडिकल काउंसिल, वर्ल्ड हेल्थ काउंसिल वगैरह से मान्यता मिली हुई है. इसके चलते यहां भारतीयों के साथ-साथ अन्य देशों के भी मेडिकल एस्पिरेंट्स की बड़ी तादात है. हालांकि अशहर ये भी बताते हैं कि यूक्रेन में मेडिकल की प्रैक्टिकल नॉलेज में दिक्कत आती है. इसकी वजह ये है कि हॉस्पिटल्स वगैरह में वहां के आम नागरिक यूक्रेनियन भाषा में बोलते हैं, जिसे समझना आसान नहीं होता. नेशनल मेडिकल काउंसिल की शर्तें विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों के लिए चुनौतियां और भी हैं. यूक्रेन जैसे देशों से MBBS करने के लिए नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) की कुछ शर्तें हैं. इन्हें भी संक्षिप्त में समझ लें. NMC के मुताबिक़ किसी भारतीय छात्र को विदेशी यूनिवर्सिटीज़ से MBBS करने के लिए भी NEET क्वालिफ़ाई करना होता है. माने कट-ऑफ मार्क्स से ऊपर लाने ही हैं, उसके बाद ही MBBS के लिए किसी फॉरेन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया जा सकता है. वैसे ये कट-ऑफ मार्क्स इतने ज्यादा नहीं होते कि क्वालिफ़ाई न किया जा सके. एक दिक्कत और भी है. NMC की वेबसाइट पर उपलब्ध एक सर्कुलर के मुताबिक़, विदेशी यूनिवर्सिटीज़ से MBBS कर लेने के बाद भी एक स्क्रीनिंग टेस्ट देना होता है और कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं. इनके बाद ही भारत में बतौर डॉक्टर प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिल सकता है. मसलन, भारत में प्रैक्टिस करने का लाइसेंस तभी मिलेगा, जब उस देश में भी प्रैक्टिस करने का लाइसेंस लिया गया हो जहां से MBBS की डिग्री ली है. वहीं जिन छात्रों ने अंग्रेजी की बजाय किसी और भाषा में विदेशी यूनिवर्सिटीज़ से MBBS किया है, वो भारत में प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे. हालांकि विदेश में मेडिकल सेक्टर के अलावा MBA और बाकी प्रोफ़ेशनल कोर्सेज़ में भी दाखिला लेने के लिए GMAT, GRE, ILTS, TOFEL, MCAT जैसे टेस्ट पास करने होते हैं. इनके बाद ही विदेशी यूनिवर्सिटीज़ में एडमिशन हो पाता है. लेकिन ऐसे ज्यादातर कोर्सेज़ पूरे कर लेने के बाद वापस भारत आने पर कोई ऐसी शर्त नहीं है जो यहां नौकरी से रोकती हो. इतना जरूर है कि सर्टिफिकेशन वगैरह मान्यता प्राप्त संस्थानों का होना चाहिए. इन प्रोफेशनल कोर्सेज़ और इनके लिए जरूरी एग्जाम्स पर दोबारा विस्तार से चर्चा करेंगे. फिलहाल यही उम्मीद कर सकते हैं कि युद्धग्रस्त यूक्रेन में फंसे सभी भारतीय छात्रों की सकुशल वापसी हो.

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