The Lallantop
Advertisement

मैगजीन को चिट्ठी लिखकर कहा : मैंने अभी-अभी पढ़ा मैं मर चुका हूं

रुडयार्ड किपलिंग, वो आदमी जिसने हमारे बचपन की सबसे अच्छी याद जंगल बुक लिखी थी.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
आशीष मिश्रा
30 दिसंबर 2016 (Updated: 17 जनवरी 2017, 03:12 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
जंगल बुक याद है? किसको न याद होगा. गाना भी याद होगा. हां,वही चड्डी वाला. अच्छा ये पता है न आपको कि असल जंगल बुक रुडयार्ड किपलिंग ने लिखी थी. उनका बड्डे होता है, 30 दिसम्बर को.  दिसंबर के इसी रोज़ 1865 में ऐलिस किपलिंग और जॉन लॉकवुड किपलिंग के घर ललन हुए थे. नाम रखा गया जोसेफ रुडयार्ड किपलिंग. मौत का दिन है 18 जनवरी. और इन दो तारीखों के बीच उनका सारा काम समाया है. अब क्योंकि हमको पता है आप बस इंटरेस्टिंग चीजों में इंटरेस्टेड है. तो आगे हम इनके बारे में रेरामेंटिक बात बताएंगे.

बम्बई नगरिया में हुए थे पैदा 

वैसे थे तो ये ब्रिटिश. पर क्योंकि उस समय हमारा देश था अंग्रेजों का गुलाम और अंग्रेज अपने यहां से ज्यादा हमारे यहां रहते थे. इनके पापा उसी साल सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में पढ़ाने आ गए थे. तो इनका जन्म मुंबई में हुआ था.सर जे. जे. इंस्ट्यूट ऑफ एप्लाइड आर्ट के उसी कम्पाउंड में जहां बाद के सालों में कई डीन रह गए हैं.

मम्मी भी कम फेमस नहीं थी  

रुडयार्ड के मामा यूके के प्रधानमंत्री थे. उनकी अम्मा के बारे में इंडिया के वायसराय ने एक बार कहा था कि सुस्ती और मिसेज किपलिंग कभी एक ही कमरे में मौजूद नहीं रह सकते. ये बताने का सिर्फ ये मतलब था कि वो इतनी फेमस थीं कि वायसराय भी उनको पर्सनली जानता था.

झील के नाम पर पड़ा था नाम 

इंग्लैंड के स्टेफोर्डशायर में है रूडयार्ड झील. वहीं रुडयार्ड के मम्मी-पापा पहली बार मिले वहीं उनका पिरेम-परसंग आगे बढ़ा. तो जब पहिलौठी लड़का हुआ तो मारे मोह के उसका नाम रुडयार्ड धर दिया.

दो किताबों के बूते बनी जंगल बुक 

रुडयार्ड ने पेंच के जंगल देखे, देखकर बमबम हो गए. वहीं से जंगल बुक का आइडिया आया. एक इंस्पायरेशन और थी आर.ए. स्ट्रैंडेल की किताब ‘स्योनी’. और जो मोगली का कैरेक्टर आया वो विलियम हेनरी स्लीमैन की किताब एन अकाउंट आफ वुल्फस: नर्चरिंग चिल्ड्रेन इन देअर डेन्स  से जिसमें उस भेडिय़ा-बालक का जिक्र था. जो स्योनी जनपद के संत बावड़ी गांव के पास पाया गया था.

दो-दो बार मरे किपलिंग 

वैसे तो किपलिंग की मौत 18 जनवरी 1936 को हुई थी. लेकिन एक पत्रिका ने उसके पहले ही उनकी मौत की खबर छाप दी थी. इधर से इनकी चिट्ठी गई  "मैंने अभी-अभी पढ़ा मैं मर चुका हूं, मुझे अपने कस्टमर वाली लिस्ट से हटाना भी मत भूलना."

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement