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आजाद भारत में RSS पर तीन बार बैन क्यों लगाया गया?

4 फरवरी 1948 को पहली बार RSS पर बैन लगाया गया था.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अबतक 3 बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है.
4 फ़रवरी 2021 (Updated: 4 फ़रवरी 2021, 13:48 IST)
Updated: 4 फ़रवरी 2021 13:48 IST
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS 95 बरस का हो चुका है. इन 95 वर्षों में उसने अपना बहुत विस्तार भी किया है. कई अनुषांगिक संगठन खड़े किए हैं और आज देश के कोने-कोने में हजारों शाखाएं चलती है. लेकिन RSS की इस 95 बरस की यात्रा में 3 ऐसे मौके भी आए जब उसे सरकार की तरफ से प्रतिबंध झेलने पड़े. इन प्रतिबंधों और इसकी वजहों के कारण RSS को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा.

आइए जानते हैं कि वह कौन-कौन से मौके थे जब RSS पर प्रतिबंध लगाया गया.


पहली बार प्रतिबंध  : महात्मा गांधी की हत्या

30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे नामक एक सिरफिरे और अतिवादी ने महात्मा गांधी की गोलीबारी मारकर हत्या कर दी. इस हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया. देश ही नहीं बल्कि दुनिया को झकझोर दिया. इस घटना के बाद RSS के लोगों पर इसकी साज़िश रचने का शक जाहिर किया जाने लगा. जिसका नतीजा यह हुआ कि 5 दिन बाद यानी 4 फरवरी 1948 को सरकार ने RSS पर बैन लगा दिया. RSS के तत्कालीन सरसंघचालक एमएस गोलवलकर समेत संघ के कई कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए.

इस पूरे मामले पर हमने बात की RSS पर किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी से. विजय त्रिवेदी की हाल ही में RSS पर एक किताब आई है. इस किताब का नाम है 'संघम शरणम गच्छामि'. बकौल विजय त्रिवेदी,

"जिस दिन महात्मा गांधी की हत्या हुई, उस दिन बाला साहब देवरस चेन्नई में थे और उन्होंने इस घटना की कड़ी निंदा की थी. महात्मा गांधी की हत्या की खबर को सुनकर वे नागपुर लौट गए और अपने सारे कार्यक्रम स्थगित कर दिए थे. हालांकि फिर भी उनको गिरफ्तार किया गया और लंबे समय तक जेल में रखा गया. बाद में जब पुलिस जांच की रिपोर्ट आई तब उसमें कहा गया कि गांधी जी की हत्या में RSS का कोई हाथ नहीं है. लेकिन तब इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया. गांधी जी की हत्या और उसके बाद लगे प्रतिबंधों के कारण संघ के अंदर भी मतभेद शुरू हो गए थे और एक वक्त तो ऐसी नौबत आ गई थी कि लगा कि संघ टूट जाएगा. इसी दरम्यान सरकार और RSS के लोगों के बीच बातचीत भी हुई. संघ के बड़े नेता बाला साहब देवरस ने सरदार पटेल से कहा भी कि 'यदि आप बैन नहीं हटाएंगे तो हमलोग अपनी राजनीतिक पार्टी बना लेंगे.' फिर काफी मशक्कत के बाद  11 जुलाई 1949 को सरकार ने संघ पर से सशर्त प्रतिबंध हटा लिया और टूट की नौबत नहीं आई." 


महात्मा गांधी के साथ सरदार पटेल जिनकी पहली बार RSS पर बैन लगाने में बड़ी भूमिका थी.
महात्मा गांधी के साथ सरदार पटेल जिनकी पहली बार RSS पर बैन लगाने में बड़ी भूमिका थी.

लेकिन इस मामले पर सरकार में बैठे लोग कुछ और बयां कर रहे थे. 27 फरवरी 1948 को गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी में पटेल ने लिखा,

"गांधी की हत्या में RSS शामिल नहीं था. ये काम हिंदू महासभा के एक कट्टर धड़े का था, जो सीधे सावरकर के नेतृत्व में काम कर रहा था. उसी ने ये साजिश रची. मगर गांधी की हत्या का स्वागत किया संघ और महासभा ने. ये लोग गांधी की विचारधारा, उनकी सोच के सख्त खिलाफ थे. मगर इसके अलावा मुझे नहीं लगता कि संघ या हिंदू महासभा के किसी और सदस्य पर इस अपराध का इल्जाम लगाना मुमकिन है. RSS के अपने पाप और अपराध हैं, जिनका उसे जवाब देना है. मगर ये काम उन्होंने नहीं किया."

इस चिट्ठी के लगभग 5 महीने बाद पटेल ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी एक चिट्ठी लिखी. लेकिन उनकी इस चिट्ठी में RSS को लेकर उनकी धारणा कुछ बदली-बदली सी थी. उनको लिखी इस चिट्ठी में पटेल लिखते हैं,
"गांधी जी की हत्या का केस अभी कोर्ट में है. इसीलिए RSS और हिंदू महासभा, इन दोनों संगठनों के शामिल होने पर मैं कुछ नहीं कहूंगा. लेकिन हमारी रिपोर्ट्स में इस बात की पुष्टि होती है कि जो हुआ, वो इन दोनों संगठनों की गतिविधियों का नतीजा है. खासतौर पर RSS के किये का. देश में इस तरह का माहौल बनाया गया कि इस तरह की भयानक घटना मुमकिन हो पाई. मेरे दिमाग में इस बात को लेकर कोई शक नहीं कि हिंदू महासभा का कट्टर धड़ा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल था. RSS की गतिविधियों के कारण भारत सरकार और इस देश के अस्तित्व पर सीधा-सीधा खतरा पैदा हुआ.
"
लेकिन जब इस मामले में सरकार को सीधे तौर पर RSS के खिलाफ कुछ नहीं मिला तब 11 जुलाई 1949 को RSS पर से प्रतिबंध हटा लिया गया. लेकिन ध्यान रखिए, यह प्रतिबंध सशर्त हटाया गया था. प्रतिबंध हटाने की शर्त यह थी कि,
*RSS अपना संविधान बनाएगा और अपने संगठन में चुनाव करवाएगा.

* RSS किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेगा और खुद को सांस्कृतिक गतिविधियों तक सीमित रखेगा.

प्रतिबंध हटने के बाद RSS ने सीधे तौर पर तो राजनीति में हिस्सा नहीं लिया लेकिन 1951 में अपने सपोर्ट से श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में जनसंघ नाम की पार्टी बनवा दी. आगे चलकर 1980 में जनसंघ के लोगों ने ही भारतीय जनता पार्टी का गठन किया.
3 बार बैन लगने के बावजूद RSS ने अपने संगठन का काफी विस्तार किया है.
3 बार बैन लगने के बावजूद RSS ने अपने संगठन का काफी विस्तार किया है.
दूसरी बार प्रतिबंध : इमरजेंसी के दौर में

यह 1975 का साल था और जून का महीना. महात्मा गांधी की हत्या के शक में गिरफ्तार किए गए बाला साहब देवरस अब RSS के सरसंघचालक बन चुके थे. लेकिन इसी दौर में गुजरात और बिहार से शुरू हुआ स्टूडेंट मूवमेंट देशव्यापी रूप ले चुका था. सर्वोदयी नेता जयप्रकाश नारायण इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. रेलवे और पोस्टल हड़ताल की वजह से पूरे देश का माहौल पहले से ही सरकार विरोधी बन गया था. उधर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली के चुनावी मुकदमें में भी बुरी तरह उलझ चुकी थीं. इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला भी उनके खिलाफ गया था और उनपर इस्तीफे का दबाव बढ़ता जा रहा था. इन सब परिस्थितियों में अपने लिए कोई रास्ता निकलता नहीं देख इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की रात देश में इमरजेंसी लगाने का ऐलान कर दिया. 26 जून को मीडिया की आवाज दबाने के इरादे से प्रेस सेंसरशिप को भी लागू कर दिया गया. तमाम विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था. कुछ कांग्रेस के स्वतंत्र सोच रखनेवाले नेता भी गिरफ्तार किए गए. और इन सबके साथ-साथ RSS के सरसंघचालक बाला साहब देवरस भी गिरफ्तार कर लिए गए. स्टूडेंट्स और विपक्षी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ संघ के कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में गिरफ्तार किए गए. 4 जुलाई 1975 को RSS पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिया गया.


RSS पर दूसरी बार इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने बैन लगाया था.
RSS पर दूसरी बार इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने बैन लगाया था.

बाद में जब इमरजेंसी हटी और चुनाव हुए, तब उस चुनाव में इंदिरा गांधी की हार हो गई और विपक्षी एकता के नाम पर बनी जनता पार्टी सत्ता में आ गई. जनता पार्टी ने सत्ता संभालते ही RSS पर से प्रतिबंध हटा लिया.

 इस पूरे मामले पर विजय त्रिवेदी कहते हैं,

"उस दौर में इंदिरा गांधी अपने करीबी लोगों से निजी बातचीत में कहती भी थीं कि 'मुझे और मेरी पार्टी को इन सोशलिस्टों से कोई खतरा नहीं है. मुझे असल खतरा इन RSS वालों से है क्योंकि इनका सांगठनिक आधार मजबूत है. इसी दौरान RSS के लोगों के द्वारा इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखकर माफी मांगने की बातें भी सामने आई. हालांकि संघ के लोग इससे इनकार करते हैं. फिर  इमरजेंसी के अंतिम दिनों में विपक्ष के कुछ लोग मुंबई में रामनाथ गोयनका के घर मिले. उनमें RSS के भी कुछ लोग शामिल थे. वहां इमरजेंसी के बाद की परिस्थितियों पर विचार किया गया. तय किया गया कि जयप्रकाश नारायण से बात की जाएगी. लेकिन जयप्रकाश नारायण ने कह दिया कि चुनाव होता है तो सब लोग एक पार्टी बनाकर एक यूनिट की तरह चुनाव लड़ो. हालांकि जार्ज फर्नांडीस और मधु दंडवते जैसे सोशलिस्ट नेताओं को इंदिरा गांधी के सत्ता में रहते होने वाले चुनाव के निष्पक्ष होने का भरोसा ही नहीं था लेकिन फिर भी सबने जेपी की बात मानी और जनता पार्टी बनी. जनता पार्टी 1977 का लोकसभा चुनाव भी जीती और 23 मार्च 1977 को मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने. मोरार जी देसाई ने सत्ता संभालते ही RSS पर से प्रतिबंध हटा दिया."


तीसरी बार प्रतिबंध : बाबरी विध्वंस के बाद

80 के दशक के एकदम शुरुआत में ही RSS के राजनीतिक मुखौटे की तरह काम करनेवाला जनसंघ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नए अवतार में सामने आ चुका था. पहली बार भाजपा ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन केवल 2 सीटों पर सिमट गई. लेकिन कुछ ही वर्षों के भीतर इसे एक बड़ा मुद्दा मिल गया. यूं कहें कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया. फरवरी 1986 में अयोध्या के विवादित परिसर का ताला खोल दिया गया और वहां से मंदिर-मस्जिद की राजनीति शुरू हो गई. इस मंदिर-मस्जिद के मुद्दे के इर्द-गिर्द राजनीतिक खेमेबाजी शुरू हो गई और यहां से भाजपा और RSS ने मंदिर मुद्दे को लपक लिया. इस मुद्दे पर 1986 से 1992 के बीच खूब टकराव हुआ, हिंसा हुई, लोगों की जानें गई. इस मामले की चरम परिणति 6 दिसंबर 1992 को तब देखने को मिली जब अयोध्या में उन्मादी, अराजक और सिरफिरे लोगों की भीड़ ने विवादित ढांचे का गुंबद गिरा दिया. इस घटना के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी धर्मनिरपेक्ष पहचान को लेकर चिंता सताने लगी. देश में कई जगह हिंसा होने लगी और माहौल खराब होने लगा. इस घटना में भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के साथ-साथ RSS के शामिल होने की बात कही जाने लगी. नतीजतन तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने यूपी समेत 4 राज्यों की भाजपा सरकारों को बर्खास्त कर दिया और विध्वंस की घटना के 4 दिन बाद 10 दिसंबर 1992 को RSS पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद एक बार फिर पुलिस इंक्वायरी हुई. लेकिन इस इंक्वायरी में भी सीधे तौर पर RSS के खिलाफ कुछ नहीं मिला. और अंततः 4 जून 1993 को सरकार ने RSS पर से प्रतिबंध हटा लिया.


RSS पर तीसरी बार 1992 में नरसिंह राव की सरकार ने बैन लगाया था.
RSS पर तीसरी बार 1992 में नरसिंह राव की सरकार ने बैन लगाया था.

इस प्रकार हम देखते हैं कि इन 3 में से 2 अवसरों (इमरजेंसी के मौके को छोड़कर) पर RSS का नाम एक बेहद संगीन मामले में घसीटा गया और इसे बैन किया गया. हालांकि कोई सबूत न मिलने पर बैन हटाया भी गया. इन दोनों मामलों - चाहे वह 1948 में महात्मा गांधी की हत्या हो या 1992 में विवादित ढांचे का गुंबद गिराने के मामले की साजिश, इसमें जो भी लोग या संगठन शामिल रहे हों, उनकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है. ऐसी घटना को अंजाम देने और उसकी साजिश रचने वाले लोग चाहे-अनचाहे देश और समाज के तालिबानीकरण की बुनियाद रखने की कोशिशें करते हैं.


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