बच्चे मां-बाप का ध्यान रखने से मना न कर पाएं, इसके लिए कौन-सा कानून है?
भारत में वरिष्ठ नागरिकों के क्या हैं अधिकार.

लाइव हिंदुस्तान में छपी खबर के अनुसार रोहिणी के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एके पांडे ने आदेश दिया कि बुजुर्ग दम्पती का ख्याल रखना पोते की जिम्मेदारी है. और उनके बारे में समय-समय पर जांच करने के लिए प्रोटेक्शन अधिकारी की नियुक्ति की जा रही है. अदालत ने ये भी आदेश दिया कि पोता उनकी देखभाल करे, और उनकी दवाइयों का खर्च उठाए. अगर वो अदालत के आदेश अक पालन नहीं करता तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

क्या हैं बुजुर्ग नागरिकों के अधिकार?
इस तरह की खबरें अक्सर पढ़ने को मिलती हैं. कई बार ऐसे मामले भी देखने में आते हैं जहां लोग अपने घर के बुजुर्गों को कहीं बाहर छोड़ आते हैं, क्योंकि वो उनकी ज़िम्मेदारी नहीं उठाना चाहते. लेकिन भारत का कानून इस मामले में बुजुर्गों को क्या अधिकार देता है?
संविधान क्या कहता है?
वरिष्ठ नागरिक या सीनियर सिटिज़न वो है जिसकी उम्र 60 वर्ष या इससे अधिक हो. उनके लिए प्रावधान भारत के संविधान के भाग चार में डिरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी (राज्य के नीति निर्देशक तत्व) के तहत आते हैं.
1. इसके अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि राज्य अपने आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के भीतर ऐसे प्रावधान बनाए जो बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी, और विकलांगता के मामलों में लोगों की मदद कर सकें. उन्हें नौकरी, पढ़ाई, और पब्लिक मदद आसानी से मिल सके, ऐसा उपाय किया जाए.

2.चूंकि ये नीति निर्देशक तत्व हैं इसलिए इनकी अवहेलना को किसी अदालत में चैलेंज नहीं किया जा सकता. लेकिन ये बताते हैं कि राज्य यानी स्टेट की जिम्मेदारियां क्या हैं जो उसे पूरी करनी चाहिए. और किसी भी नीति को बनाते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि वो इन डिरेक्टिव प्रिंसिपल्स को फॉलो करे.
कानून क्या कहता है?1. क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) 1973 के सेक्शन 125 के अनुसार पत्नी, बच्चों और पेरेंट्स की जिम्मेदारी उठाना एक बालिग़ और सक्षम व्यक्ति की जिम्मेदारी है.
2. अगर सक्षम होने और पर्याप्त आर्थिक संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद कोई व्यक्ति अगर अपने पेरेंट्स की देखभाल से मना करता है, तो मजिस्ट्रेट को ये अधिकार है कि उस व्यक्ति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दें.
3. यही नहीं, अगर आदेश का पालन नहीं होता तो मजिस्ट्रेट उसे सज़ा भी दे सकते हैं. ये सज़ा तीन महीने की जेल, या पांच हजार का जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं.
4. भारत सरकार की नेशनल पॉलिसी फॉर ओल्डर पर्सन्स 1999 के तहत वरिष्ठ नागरिकों के लिए कई प्रावधान बनाए गए हैं. जैसे ट्रेन के टिकटों में 30 फीसद छूट. वहीं अगर वरिष्ठ नागरिक महिला हों, तो ये छूट 50 फीसद हो जाती है.
5. इस पॉलिसी के अनुसार एयर इंडिया को भी वरिष्ठ नागरिकों को इकॉनमी क्लास में सीट बुक करते समय 50 फीसद की छूट देनी है. उन्हें बोर्डिंग और डीबोर्डिंग के दौरान भी प्रायोरिटी पर रखा जाए, ऐसे निर्देश हैं.
6. इनकम टैक्स के सेक्शन 88 बी, 88 डी, और 88 डीडीबी के तहत वरिष्ठ नागरिकों को टैक्स में छूट मिलने का प्रावधान है.
7. सीनियर सिटीजन की कैटेगरी में आने वाले नागरिक (60 से 80 वर्ष की उम्र वाले) तीन लाख रुपए सालाना तक अगर कमाते हैं, तो ये पूरी तरह टैक्स फ्री होगा. वहीं सुपर सीनियर सिटिज़न (80 वर्ष और ऊपर) के लिए ये लिमिट सालाना पांच लाख है.
परिवार के लिए क्या नियम हैं?1. 'मेंटेनेस एंड वेलफेयर और पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007' के मुताबिक़ कोई भी ऐसा वरिष्ठ नागरिक जो अपनी कमाई से अपनी देखभाल करने में सक्षम न हो, उसकी मदद करना उसके परिवार (बेटा, बेटी, बहू, दामाद, पोते, पोती) का फर्ज है.
2. इस एक्ट के तहत रिश्तेदारों को भी कवर किया गया है. यहां रिश्तेदार का अर्थ उस व्यक्ति से है जो किसी भी वरिष्ठ नागरिक की मृत्यु के बाद उनकी चल/अचल संपत्ति का वारिस होगा.
3. अगर किसी भी वरिष्ठ नागरिक के बच्चे/बहू/दामाद उनकी देखभाल करने में अक्षम रहते हैं, तो इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. और उनसे मेंटेनेंस (गुजारा भत्ता) की मांग की जा सकती है. इसकी लिमिट दस हज़ार रुपए महीना तय की गई है.
4. इस एक्ट के तहत एक प्रावधान और है. अगर किसी सीनियर सिटिज़न ने अपनी संपत्ति (चल-अचल दोनों जैसे कैश या घर-जायदाद) अपने बच्चे/बच्चों के नाम की है, इस शर्त के साथ कि उनका वारिस उनकी देखभाल करेगा और उनकी ज़रूरतें पूरी करेगा. लेकिन वो ऐसा नहीं करता और ये बात कोर्ट में साबित हो जाती है, तो ये ट्रांसफर फ्रॉड माना जाएगा और इसे रद्द कर दिया जाएगा. यही नहीं, वरिष्ट नागरिक को ये अधिकार होगा कि वो दी गई प्रॉपर्टी/कैश वारिस से वापस ले लें.
5. इन सभी मामलों का निपटारा करने के लिए ट्रिब्यूनल बनाने का प्रावधान किया गया है. ये ट्रिब्यूनल शिकायत आने पर या स्वतः संज्ञान लेकर भी किसी मामले का निपटारा कर सकते हैं. एक्ट ये कहता है कि संबंधित पार्टी को नोटिस दिए जाने के बाद अधिकतम 90 दिनों के भीतर मामले का निपटारा कर दिया जाना चाहिए. इसमें एक बार अधिकतम 30 दिन का एक्सटेंशन लिया जा सकता है.
6. हिंदू पर्सनल लॉ के 'हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेस एक्ट' 1956 के तहत सेक्शन 20 में भी इस से जुड़ी जानकारी दी गई है. इसमें भी जो वरिष्ठ नागरिक अपनी देखभाल करने आर्थिक/शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हैं, उनकी देखभाल करना उनके बेटे-बेटी की ज़िम्मेदारी है.
ऐसे वरिष्ठ नागरिक, जिनका कोई वारिस नहीं है, उनकी देखभाल करना राज्य की ज़िम्मेदारी माना जाता है. इसके लिए वृद्धाश्रम, मेडिकल फैसिलिटी इत्यादि का सही इंतजाम करना राज्य को करना चाहिए, ऐसा कानून कहता है. लेकिन बाल-बच्चों के होते हुए भी घर के बूढ़े सदस्यों को उनके हाल पर छोड़ देने की खबरों से अखबार पटे रहते हैं. हाल में ही ऐसा मामला सामने आया था जब लीलावती दादी के नाम से मशहूर हुई महिला का वीडियो वायरल हुआ था. उन्होंने बताया था कि कैसे वो दिल्ली से अपने बीमार बेटे का ख्याल रखने के लिए मुंबई आईं. लेकिन उनके बेटे ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया. उसके बाद वो बांद्रा स्टेशन पहुंचीं और वहीं इंतज़ार में बैठी रहीं.
उनके पति का देहांत हो गया था, और उनके बच्चे उन्हें साथ रखना नहीं चाहते थे. इसलिए वो वहीं स्टेशन पर बैठी हुई थीं. वहां से जर्नलिस्ट बरखा दत्त ने उनका इंटरव्यू लिया जिसके बाद वो वायरल हो गईं. दिल्ली के रहने वाले सोशल इंटरप्रेन्योर किरण वर्मा ने इसके बाद घोषित किया कि लीलावती दादी उनके साथ रहेंगी. यही नहीं, उन्होंने उनके लिए कैम्पेन भी चलाया. ताकि उन्हें आर्थिक रूप से मदद मिल सके. और वह अपने लिए एक नई जिंदगी शुरू कर सकें. एक लीलावती दादी को तो घर और लोगों का प्रेम मिल गया जिसने उन्हें बचा लिया. लेकिन ऐसे कई दादा-दादियां, नाना-नानियां अपने लिए हक खोज करते हुए जिंदगी बिता देते हैं. और कई तो कोर्ट तक भी नहीं जा पाते.
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