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  • Remembering iconic song of Madhuri Dixit from the movie sailaab choreographed by Saroj Khan

सरोज ख़ान और माधुरी की जुगलबंदी हुई और हिंदी सिनेमा को एक शाहकार गीत मिल गया

नहीं, हम 'एक दो तीन' की बात नहीं कर रहे हैं.

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बिलाशक ये गाना माधुरी के गानों में नंबर वन है.
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मुबारक
3 जुलाई 2020 (Updated: 3 जुलाई 2020, 05:31 AM IST) कॉमेंट्स
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कुछ गानों की विशेषता बयान करने के लिए विशेषणों को नए सिरे से गढ़ने की ज़रूरत महसूस होती है. घिसी-पिटी उपमाओं का सहारा लेकर उनकी ख़सूसियत बताना अन्याय सा लगता है. मुझे तो ये भी लगता है कि ऐसे गाने बनाए नहीं जाते, बस बन जाते हैं. तारीख गवाह है कि जब-जब भी किसी अद्भुत कृति का क्रिएशन हुआ है, उसमें बेहद कम एफर्ट लगा है. वो बस अनायास ही बन जाती है. फिर चाहे वो कोई कालजयी कहलाने वाला उपन्यास हो, क्लासिक फिल्म हो या 'सैलाब' का ये गाना. जो माधुरी और सरोज ख़ान की जुगलबंदी का शायद सबसे शानदार प्रॉडक्ट है. madhuri1 ये बात कौन नहीं जानता कि माधुरी जितनी उम्दा एक्ट्रेस थीं, उससे कहीं ज़्यादा उम्दा डांसर थीं. डांस को स्टेप्स के रूटीन से निकालकर एक्सप्रेशंस की लुभावनी दुनिया में ले गई वो. उनका डांस महज़ सिंक्रोनाइज्ड लटके-झटके नहीं होता था, बल्कि चेहरे की रेखाओं में परफेक्ट उतार-चढ़ाव की प्रदर्शनी होती थी. अद्भुत अनुभव होता था माधुरी को नाचते हुए देखना. इस गाने में तो उन्होंने अपने चेहरे को किताब ही बना डाला है. एक एक एक्सप्रेशन हाथ बढ़ाकर चुन लो.
"हमको आजकल है इंतज़ार.....कोई आए, ले के प्यार.."
मुझे नहीं लगता कि उन्मुक्त होकर नाचती माधुरी से ज़्यादा लुभावना दृश्य हिंदी सिनेमा के परदे पर कुछ और रहा होगा. मधुबाला की मुस्कुराहट, दिलीप साहब की 'ऐ भाई' वाली पुकार, शाहरुख़ का मोहन भार्गव जैसे कुछेक अपवाद छोड़े जा सकते हैं. इस गाने में तो माधुरी ने जैसे एफर्टलेस डांसिंग का एवरेस्ट छू लिया है. इस गाने की एक ख़ास बात ये भी है कि ये कहीं से भी आइटम सॉंग नहीं लगता. ये एक मुकम्मल प्रेमगीत है, जिसमें प्रतीक्षा की कसक भी है और किसी ख़ास की आमद का यकीन भी. मैं महसूस कर सकता हूं कि पाबंदियों की पगडंडी पर चलते भारतीय समाज में कई लडकियां अपने बंद कमरे में अगर कभी नाचती होंगी, तो ऐन ऐसे ही नाचती होंगी. इसी उन्मुक्तता के साथ. यकीन और वहम के बीच कहीं झूलती हुई. मछुआरन की पोशाक में नागिन सी लहराती माधुरी इस गीत में जितनी सुंदर लगी है, उतनी फिर कभी न लग पाई. अपने आइकॉनिक सॉंग 'धक धक करने लगा' में भी नहीं. 8 मिनट लंबे गाने में तमाम वक़्त जो मुस्कुराहट उनके होठों से चिपकी रहती है, उससे नज़र हटाना नामुमकिन सा लगता है. जैसे कोई चुम्बक हो, जिसने जकड़ लिया हो. क्रश शब्द का मतलब इस गाने को देखने के बाद ही समझ आया था. इस गाने के एक फ्रेम में ढोल की बीट पर माधुरी अपने कांधे, सर और कमर से गजरे के फूल उछालती है. वो इतना अद्भुत सीन बन पड़ा है कि उसके लिए कोरियोग्राफर सरोज ख़ान के घर ताज़िंदगी रोज़ाना एक बुके भिजवाया जाना चाहिए. इस गाने की एक और ख़ासियत है कि इसमें लीड सिंगर ने सिर्फ एक लाइन गाई है. 'हमको आजकल है इंतज़ार, कोई आए, ले के प्यार'. बाकी सबकुछ कोरस गाता है. कोरस के तमाम सवालों का जवाब माधुरी इस एक ही बात से देती है. ये कुछ अलग प्रयोग था, जो बेहतरीन बन पड़ा था. कोरियोग्राफी बेमिसाल है. कोई हैरानी की बात नहीं कि इसके लिए सरोज ख़ान को बेस्ट कोरियोग्राफर का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. लीड सिंगर अनुपमा देशपांडे की मेरे लिए एक ही पहचान है. कहीं उनका नाम आता है तो, मैं पूछ लेता हूं 'वो सैलाब वाली'? हालांकि उन्होंने इसके अलावा भी बहुत कुछ गाया है. 'सैलाब' 1990 में आई थी. 2020 चल रहा है. अब तक जादू बरकरार है. आगे भी रहने की गारंटी है. हमारे साथी निखिल के शब्दों में कहा जाए तो ये गाना बनाया नहीं गया है, 'मुमकिन' हुआ है. खुद ही देख लो.

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