The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Remembering Balbir Singh Sr. Indian Hockey Legend regarded as all time great like Major Dhyan Chand

ट्रिपल ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट लेजेंड, जिन्हें हॉकी खेलने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था

बलबीर सिंह सीनियर, जो ध्यानचंद तो नहीं, लेकिन ध्यानचंद से कम भी नहीं.

Advertisement
Img The Lallantop
1956 Melbourne Olympics के दौरान भारतीय तिरंगा लेकर चलते और दूसरी तस्वीर में Hockey Gold लेने पोडियम पर चढ़े Balbir Singh Sr (फोटो ट्विटर से साभार)
pic
सूरज पांडेय
26 मई 2020 (Updated: 26 मई 2020, 03:10 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
इंडियन हॉकी में बड़ा रुतबा रखने वाले बलबीर सिंह सीनियर नहीं रहे. हॉकी प्रेमियों की मानें, तो बलबीर कहीं से भी मेजर ध्यानचंद से कम नहीं थे. भले ही बलबीर और ध्यानचंद एकसाथ कभी नहीं खेले, लेकिन अक्सर इन दोनों की तुलना की जाती थी. यह कुछ ऐसा ही था, जैसे लोग विराट कोहली की तुलना अक्सर सचिन तेंडुलकर से करते हैं. बलबीर के जाने के बाद तमाम क़िस्से सुनाए जा रहे हैं. हमने इन तमाम क़िस्सों में से कुछ खास आपके लिए इकट्ठा किए हैं.

# जब हुए गिरफ्तार

अपनी जवानी के दिनों में बलबीर का खेल बेहद मशहूर था. देश ग़ुलाम था. और उस वक्त अंग्रेजों के लिए खेलना अच्छी बात नहीं मानी जाती थी. ऐसे में जब पंजाब पुलिस ने बलबीर से अपनी हॉकी टीम के लिए खेलने को कहा, तो हां करने का सवाल ही नहीं था. पंजाब पुलिस के चीफ जॉन बेनेट की बात सुनते ही बलबीर अमृतसर छोड़ दिल्ली चले आए. खेल पत्रकार शैलेश चतुर्वेदी के मुताबिक, बलबीर ने एक बार उनसे बात करते हुए कहा था,
'नई दिल्ली स्टेशन के पास जो स्टेडियम है... करनैल सिंह स्टेडियम. मैं उसके पास था. मैंने देखा कि कुछ पुलिस वाले मुझे खोज रहे थे. मैं कुछ कर पाता, उससे पहले ही उन्होंने मेरे हाथों में बेड़ियां डाल दीं. यकीन कर सकते हो? मुझे खिलाड़ी बनाने के लिए गिरफ्तार किया गया.'
साल 1945 में पंजाब पुलिस से जुड़े बलबीर साल 1961 में उनसे अलग हुए. साल 1948 में भारत ने ब्रिटेन को हराकर आज़ादी के बाद अपना पहला हॉकी गोल्ड मेडल जीता. इस जीत से पहले जब टीम लंदन पहुंची थी, तो इनकी अगुवाई इसी जॉन बेनेट ने की थी.

# लकी नंबर 13

1952 हेलसिंकी ओलंपिक के लिए भारत ने 18 मेंबर की टीम चुनी. इस टीम में दो गोलकीपर, तीन डिफेंडर, पांच मिडफील्डर और आठ फॉरवर्ड थे. उस दौर में प्लेयर्स को जर्सी नंबर प्लेइंग ऑर्डर के हिसाब से मिलते थे. बलबीर को 13 नंबर मिला. ओलंपिक से पहले टीम डेनमार्क गई. वहां एक लड़की ने बलबीर से कहा कि 13 नंबर तो अनलकी माना जाता है, फिर तुम 13 नंबर की जर्सी क्यों पहनते हो? बलबीर की ऑटोबायोग्राफी के मुताबिक, इसके ज़वाब में बलबीर ने कहा-
'उत्तर भारत की भाषाओं में 13 को तेरा पढ़ते हैं, यह भगवान को पुकारने का एक तरीका भी है. मेरे लिए, यह एक लकी नंबर है, मैं अपनी सारी परफॉर्मेंस को ऊपरवाले को डेडिकेट करता हूं.'
अपनी ऑटोबायोग्राफी में बलबीर आगे लिखते हैं,
'ओलंपिक के पहले मैच में उन्हें स्टेडियम तक ले जाने वाली वैन के नंबर्स का जोड़ 13 था. और पूरे टूर्नामेंट में भारत ने 13 गोल मारे. 13 नंबर के साथ मेरी कई सारी यादें हैं, जो हमेशा ही मेरे दिमाग में रहेंगी. मेरा घर #1534, ऑफिस #562, मेरी पर्सनल कार #3163 और मेरी ऑफिस की कार #2902, सबका जोड़ 13 ही आता है.इतना ही नहीं, स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट में मेरी वरिष्ठता को लेकर जो कोर्ट केस चल रहा था, उसकी कुल 13 रिकॉर्ड फाइल कोर्ट में भेजी गईं. और मैं केस जीत गया. कौन कहता है कि 13 नंबर अनलकी है!'

# ध्यानचंद कनेक्शन

बलबीर सिंह और ध्यानचंद कभी एक साथ नहीं खेले. लेकिन अक्सर इन दोनों की तुलना होती है. कम ही लोग जानते हैं कि बलबीर ध्यानचंद के बड़े फैन थे और उन्हीं की तरह बनना चाहते थे. BBC के मुताबिक, जब ध्यानचंद 1936 बर्लिन ओलंपिक में खेले, तब बलबीर कक्षा आठ में पढ़ते थे. उस वक्त गोलकीपर की पोजिशन पर खेलने वाले बलबीर ने इस ओलंपिक के दौरान पहली बार ध्यानचंद का नाम सुना. इसी के बाद से उन्होंने अपनी प्लेइंग पोजिशन बदली और ध्यानचंद जैसा बनने की दिशा में आगे बढ़े. बाद में उन्होंने अपने करियर में काफी कुछ अचीव किया. इनमें से कई चीजें तो एकदम ध्यानचंद जैसी ही रहीं. जैसे, ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक गोल्ड जीते. फिर अगले ओलंपिक हुए 1948 में और बलबीर ने 1948, 1952 और 1956 में ओलंपिक गोल्ड जीता. बलबीर को कई बार लगता था कि उन्हें ध्यानचंद जितनी चर्चा नहीं मिली. और यह सच भी है.

# टूटी उंगली के साथ खेले

साल 1956. ओलंपिक गेम्स में हॉकी का फाइनल खेला गया. भारत ने पाकिस्तान को हराकर अपना छठा गोल्ड मेडल जीता. कप्तान के रूप में यह बलबीर का पहला गोल्ड मेडल था. पिछले ओलंपिक फाइनल में पांच गोल मारने वाले बलबीर इस फाइनल में एक भी गोल नहीं कर पाए. आज भी लोग सोचते हैं कि ऐसा क्यों हुआ ? उस ओलंपिक में भारतीय टीम के सदस्य रहे तुलसीदास बलराम ने उस फाइनल का एक क़िस्सा साझा किया है. टूर्नामेंट में चौथे नंबर पर रही भारतीय फुटबॉल टीम के अहम सदस्य रहे बलराम ने ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन की वेबसाइट पर लिखा,
'1956 ओलंपिक की बहुत सारी यादें हैं... खासतौर से जिस तरह बलबीर ने कमाल का खेल दिखाया और भारत ने फाइनल में पाकिस्तान को मात दी. बलबीर पाजी का डेडिकेशन गज़ब का था. उनकी उंगली में प्लास्टर लगा था और उन्होंने मैच से पहले पेन-किलर इंजेक्शन लिए थे. मैंने अपने पूरे खेल करियर में उनके जैसा अनुशासन में रहने वाला, डेडिकेटेड और ईमानदार खिलाड़ी नहीं देखा.'
बलबीर कभी भी चोट के साथ खेलने से पीछे नहीं हटे. अपने कॉलेज के दिनों में एक बार मैच के दौरान उनका एक दांत टूट गया था. मैच के दौरान एक टैकल ग़लत पड़ा और बलबीर का दांत टूट गया. इसके बाद भी वह मैदान से नहीं हटे. टूटे दांत की जगह चीनी भरकर उन्होंने पूरा मैच खेला. # बलबीर को बलबीर सिंह 'सीनियर' पुकारा जाता था. इसके पीछे का भी एक क़िस्सा है. दरअसल टीम इंडिया के लिए बलबीर सिंह नाम के कुल छह प्लेयर्स खेले हैं. बलबीर सिंह दोसांझ उनमें से सबसे सीनियर थे. इसीलिए उन्हें बलबीर सिंह 'सीनियर' बुलाया जाता था. एक दौर में तो इंडियन हॉकी टीम में चार बलबीर सिंह एकसाथ खेलते थे. # 1975 में जब इंडियन हॉकी टीम ने अपना इकलौता वर्ल्ड कप जीता, बलबीर टीम के मैनेजर थे. बलबीर की अंतिम इच्छा यही थी कि वह इंडियन हॉकी टीम को ओलंपिक या वर्ल्ड कप जीतते हुए देखें.
तीन बार के हॉकी गोल्ड मेडलिस्ट बलबीर सिंह सीनियर से ही फिल्म 'गोल्ड' में हिम्मत सिंह का रोल प्रेरित था

Advertisement