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कितने ताकतवर होते हैं किसी राज्य के राज्यपाल?

राजस्थान में कलराज मिश्र और अशोक गहलोत में ठनी हुई है.

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जुलाई 2020 के पहले तक अशोक गहलोत और कलराज मिश्र के रिश्ते सीएम-राज्यपाल के रूप में अच्छे रहे थे.
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28 जुलाई 2020 (Updated: 30 जुलाई 2020, 12:14 PM IST) कॉमेंट्स
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कलराज मिश्र. राजस्थान के राज्यपाल. अशोक गहलोत. राजस्थान के मुख्यमंत्री. दोनों के बीच अभी तनातनी देखने को मिली. गहलोत जल्द से जल्द विधानसभा का सत्र बुलाना चाहते थे. अपनी मांग को लेकर उन्होंने कांग्रेस विधायकों के साथ राजभवन पर धरना दिया. साथ ही तीन बार कैबिनेट मीटिंग बुलाकर असेंबली सेशन की मांग की. लेकिन राज्यपाल मिश्र उनसे सहमत नहीं हुए. उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए सत्र बुलाने की वजह और जरूरत जाननी चाही. इस पर दोनों पक्ष अड़ गए. इस टकराव से एक बार फिर राज्यपाल का पद चर्चाओं में है. इस आर्टिकल में राज्यपाल की शक्तियों और अधिकारों के बारे में चर्चा करेंगे.
सबसे पहले राज्यपाल से जुड़ी कुछ बेसिक बातें
संविधान का आर्टिकल 153 कहता है कि राज्य में राज्यपाल होना जरूरी है. लेकिन किसी भी प्रदेश का एक ही राज्यपाल होगा. हालांकि एक व्यक्ति दो या दो से ज्यादा राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है. यह नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाती है. राज्य में राज्यपाल की स्थिति उसी तरह होती है, जिस तरह देश में राष्ट्रपति की होती है. हालांकि राज्यपाल को राज्य में केंद्र सरकार का प्रतिनिधि माना जाता है, लेकिन वह राष्ट्रपति के नाम पर ही काम करता है.
राज्यपाल का कार्यकाल पांच साल का होता है. लेकिन नए राज्यपाल के पद संभालने तक यह जिम्मेदारी पुराने वाले राज्यपाल के पास ही रहती है. राज्यपाल को उसकी नियुक्ति की शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय का चीफ जस्टिस दिलाता है.
राजस्थान विधानसभा के एक सत्र के दौरान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी (बाएं) के साथ राज्यपाल कलराज मिश्र.
राजस्थान विधानसभा के एक सत्र के दौरान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी (बाएं) के साथ राज्यपाल कलराज मिश्र.

कौन बन सकता है राज्यपाल
संविधान के आर्टिकल 157 और 158 में राज्यपाल पद के लिए योग्यता बताई गई है. इसके तहत वह व्यक्ति जो-
# भारत का नागरिक हो # 35 साल की आयु पूरी कर चुका हो # किसी भी लाभ के पद पर न हो # संसद या विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य न हो # सक्रिय राजनीति से दूर हो.
वह राज्यपाल बन सकता है.
अगर किसी सांसद या विधायक को राज्यपाल बनाया भी जाता है, तो उसे शपथ लेने से पहले सांसदी या विधायकी छोड़नी होगी. राज्यपाल की नियक्ति में कुछ परंपराएं भी समय के हिसाब से बनी है. इसके तहत जो व्यक्ति जिस राज्य का मूल निवासी होता है, उसे वहां का राज्यपाल नहीं बनाया जाता है. साथ ही राज्यपाल की नियुक्ति से पहले मुख्यमंत्री से पहले सलाह भी ली जाती है. हालांकि इन परंपराओं का पालन करना अनिवार्य नहीं होता है.
विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर राजस्थान में राज्यपाल कलराज मिश्र और सीएम अशोक गहलोत के बीच टकराव है.
विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर राजस्थान में राज्यपाल कलराज मिश्र और सीएम अशोक गहलोत के बीच टकराव है.

राज्यपाल की शक्तियां क्या हैं
राज्यपाल के पास दो तरह की शक्तियां होती हैं.
एक, राज्य का संवैधानिक मुखिया होने के नाते.
दूसरी, आपातकालीन शक्तियां.
संवैधानिक मुखिया के रूप में राज्यपाल के पास तीन तरह की शक्तियां होती हैं
1. कार्यपालिका शक्तियां (Executive Powers)
इसके तहत मुख्यमंत्री की नियुक्ति, मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति जैसे काम होते हैं. आर्टिकल 164 के अनुसार, राज्यपाल सामान्य तौर पर राज्य की विधानसभा में बहुमत प्राप्त पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है. परन्तु यदि किसी एक पार्टी को बहुमत न मिला हो, तो ऐसी पार्टी या गठबंधन दलों के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, जिसके विधानसभा में बहुमत साबित करने की संभावना होती है.
2. विधायी शक्तियां (Legislative Powers)
यह शक्तियां कानूनी मामलों से जुड़ी हैं. राज्यपाल को राज्य के विधानमंडल यानी विधानसभा और विधान परिषद के सत्र को बुलाने और समाप्त करने का अधिकार होता है. वह राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्य विधानसभा को भंग भी कर सकता है. राज्य के विधानमंडल से पास हुए किसी भी बिल को क़ानून बनने के लिए राज्यपाल की सहमति जरूरी होती है. लेकिन राज्यपाल बिल को वापस भी भेज सकता है. साथ ही राज्यपाल राज्य की कैबिनेट के कहने पर किसी बिल को लेकर अध्यादेश भी जारी कर सकता है. हालांकि अध्यादेश को छह महीने के अंदर विधानसभा में बिल के रूप में पास कराना जरूरी होता है.
3. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)
किसी भी राज्य का बजट राज्यपाल के नाम से ही पेश किया जाता है. राज्यपाल की अनुमति के बिना धन विधेयक को राज्य की विधानसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता. धन विधेयक का मतलब है टैक्स में बदलाव, राज्य के उधार लेने जैसे मामले.
इसके अलावा आर्टिकल 161 के तहत राज्यपाल राज्य की अदालत से सजा पाए किसी अपराधी की सजा में कमी कर सकता है. या फिर सजा को माफ भी कर सकता है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों का एक गुट 24 जुलाई को राजभवन गया. यहां पर उन्होंने जल्द से जल्द विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की. (Photo: PTI)
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों का एक गुट 24 जुलाई को राजभवन गया. यहां पर उन्होंने जल्द से जल्द विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की. (Photo: PTI)

राज्यपाल की आपातकालीन शक्तियां क्या हैं
राज्यपाल को कुछ आपातकालीन शक्तियां भी मिली होती हैं. इन्हें राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों (Discretionary Powers) के रूप में भी जाना जाता है. राज्यपाल को यह शक्तियां असाधारण और आपात स्थितियों के लिए मिलती हैं. इनके तहत राज्यपाल विशेष हालात में बिना राज्य कैबिनेट की सलाह के अपने विवेक से फैसला ले सकता है. इसके तहत-
# यदि राज्यपाल को लगता है कि सरकार संविधान के तहत नहीं चल रही है. या सरकार नाकाम हो गई. या चुनाव में किसी दल को सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं मिलता है और सरकार बनने का रास्ता नहीं निकलता, तो वह राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकता है. सिफारिश मंजूर होने पर आर्टिकल 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू होता है. इसमें राज्य का पूरा कामकाज राज्यपाल के हाथ में आ जाता है.
# राज्यपाल राज्य की विधानसभा में पास हुए किसी बिल को राष्ट्रपति के विचार के लिए रख सकता है. इसकी कोई समय-सीमा नहीं. अक्सर ऐसा तब किया जाता है, जब राज्यपाल किसी बिल से सहमत न हो.
किसी राज्य में सरकार और राज्यपाल के बीच अक्सर आपातकालीन  शक्तियों के चलते टकराव होता है. अभी राजस्थान में भी राज्यपाल कलराज मिश्रा विवेकाधीन शक्तियों की ही दुहाई दे रहे हैं.
अच्छा, राजस्थान में राज्यपाल-मुख्यमंत्री में क्या पंगा है?
सीएम गहलोत असेंबली सेशन बुलाना चाहते थे. उनका कहना है कि इसमें कोरोना को लेकर चर्चा की जाएगी. हालांकि अटकलें यह है कि गहलोत इस सेशन के जरिए बहुमत परीक्षण कराना चाहते हैं. वहीं राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि विधानसभा सत्र बुलाने के लिए 21 दिन पहले नोटिस देना होता है. अगर कुछ विशेष हालात हैं, तो अलग बात है. इसका जिक्र मंत्रिपरिषद को करना चाहिए. मामला यहीं पर अटक गया.
राज्यपाल बनने से पहले कलराज मिश्र बीजेपी के कद्दावर नेता रहे हैं.
राज्यपाल बनने से पहले कलराज मिश्र बीजेपी के कद्दावर नेता रहे हैं.

इसमें संविधान क्या कहता है
राज्यपाल संविधान के आर्टिकल 174 के तहत विधानसभा का सत्र बुलाता है. हालांकि इसमें वह आर्टिकल 163 के तहत राज्य कैबिनेट की सलाह से भी बंधा होता है. यानी राज्य कैबिनेट जब भी कहे, तब राज्यपाल को असेंबली सेशन बुलाना होता है. लेकिन आर्टिकल 163 ही राज्यपाल को विशेष अधिकार भी देता है, जिसमें वह अपने विवेक से फैसला ले सकता है. बस यहीं पर कलराज मिश्र हावी हो गए. जानकारों का कहना है कि कोरोना काल, जो कि असाधारण स्थिति है, उसमें विधानसभा सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल का पूरी तरह संतुष्ट होना जरूरी है.
क्या कभी ऐसे मामलों में कोर्ट-कचहरी भी हुई है
जी हां. साल 2016 में दो बार ऐसा हुआ. एक बार उत्तराखंड और दूसरी बार अरुणाचल प्रदेश को लेकर. इन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाने पर अपनी मर्जी से फैसला नहीं ले सकता. उसे सीएम और कैबिनेट की सलाह पर विधानसभा सत्र बुलाना होगा.
अपडेट
राजस्थान में सियासी हंगामा अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट से शुरू हुआ था, जो सीएम अशोक गहलोत बनाम राज्यपाल कलराज मिश्र हो गया. हालांकि अब मामला सुलझ गया है. विधानसभा सत्र बुलाने में कलराज मिश्र की ही चली. उन्होंने 21 दिन को नोटिस के आधार पर 14 अगस्त से विधानसभा सत्र बुलाने को मंजूरी दे दी है.

राज्यपालों की आपातकालीन शक्तियों से जुड़े किस्से आप यहां पढ़ सकते हैंं.




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