बीरेन सिंह ने इस्तीफा लिखा तो महिलाओं ने क्यों फाड़ दिया?
मणिपुर का सच यही है कि वहां यथा स्थिति बरकरार है. जो जहां था वो वहीं पर है और संघर्ष की आग में मणिपुर का जलना अब भी जारी है.

आज से करेक्ट 16 दिन पहले हमने लल्लनटॉप शो में तमिलनाडु की बात की थी. एम के स्टालिन के मंत्री वी सेंथिल बालाजी को गिरफ़्तार कर लिया था. ED ने. अब 29 जून को ख़बर आई कि जेल-याफ़्ता मंत्री बालाजी को बर्ख़ास्त कर दिया है. राज्यपाल ने. केंद्र से नियुक्त: राज्यपाल.
मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि वो अदालती लड़ाई लड़ेंगे. फिर बताया गया कि बर्ख़ास्तगी को होल्ड पर डाल दिया गया है. और, ये स्टालिन की सिफ़ारिश पर नहीं; दिल्ली की "सलाह" पर हुआ है. बहस छिड़ गई, कि क्या केंद्र से नियुक्त एक गवर्नर, किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटा भी सकता है या नहीं? गवर्नर आर एन रवी का ये क़दम अभूतपूर्व है. सत्ता पक्ष से लेकर तमाम राजनीतिक दल इस पर सवाल उठा रहे हैं. फ़िलहाल, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से मशवरे के बाद आर एन रवि आगे फै़सला करेंगे.
आज जानने की कोशिश करेंगे कि राज्यपाल की शक्तियां और भूमिका क्या है? क्या राज्यपाल का ये फ़ैसला किसी राजनीति का हिस्सा है? और, अब राज्य सरकार के पास क्या विकल्प हैं? क्या ये मुद्दा विपक्षी एकता की बैठक में भी डिस्कस होगा?
14 जून को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सेंथिल बालाजी को गिरफ़्तार किया था. 'कैश फ़ॉर जॉब' माने नौकरी के बदले पैसा लेने के मामले में. वो मनी लॉन्ड्रिंग समेत कई कार्रवाइयों में फंसे हुए हैं और अभी न्यायिक हिरासत में हैं. द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, बीती शाम राजभवन से पत्र आया कि बालाजी जांच को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए उन्हें कैबिनेट से बर्ख़ास्त करने का निर्णय लिया गया है. इस पत्र में ये भी लिखा था कि 31 मई को ही गवर्नर ने सूबे के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन को बालाजी को कैबिनेट से बर्ख़ास्त करने के लिए कहा था. ग़ौर करिए: 31 मई को, गिरफ़्तारी से दो हफ़्ते पहले.
सूत्रों ने हिंदू को बताया कि गवर्नर के कहने के बावजूद स्टालिन ने कोई ऐक्शन नहीं लिया. जवाब में कथित तौर पर अनुचित भाषा का इस्तेमाल किया. गवर्नर पर आरोप लगाए कि वो अपनी संवैधानिक लिमिट से आगे बढ़ रहे हैं. सूत्रों के हवाले से छपा कि आर एन रवि, स्टालिन के जवाब से निराश हुए थे.
उस पत्र के बाद दूसरा पत्र आया 29 जून को. पांच पन्नों की इस चिट्ठी में आर एन रवि ने लिखा कि "उनकी सलाह के बावजूद" स्टालिन ने बालाजी को कैबिनेट में बनाए रखा. स्टालिन पर "unhealthy bias" के आरोप लगाए. और, राज्यपाल रवि ने संविधान के अनुच्छेद 154, 163 और 164 के तहत उन्हें दी गई शक्तियों से सेंथिलबालाजी को "तत्काल प्रभाव" से मंत्रिपरिषद से बर्ख़ास्त कर दिया.
राज्यपाल के इस निर्णय की CM स्टालिन ने भरसक आलोचना की. राज्यपाल के फ़ैसले को असंवैधानिक बताया और कहा, इससे कानूनी रूप से निपटा जाएगा. पांच घंटे बाद, गवर्नर ने अपना फ़ैसला वापस ले लिया. क्यों? मीडिया रपटों की कहें, तो गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें "सलाह" दी कि इस मसले को लेकर उन्हें पहले अटॉर्नी जनरल की राय लेनी चाहिए. ऐसा गवर्नर रवि ने आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री स्टालिन को सूचित किया है. साथ ही ये भी कहा कि बर्खास्तगी का आदेश अगले कम्यूनिकेशन तक स्थगित रहेगा.
मतलब अब अटॉर्नी जनरल की राय का इंतज़ार किया जा रहा है. इधर - आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक़ - स्टालिन ने सचिवालय में वरिष्ठ मंत्रियों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ बैठक की है.
इस बीच पक्ष और विपक्ष की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. कांग्रेस ने कहा कि राष्ट्रपति को तमिलनाडु के राज्यपाल को बर्खास्त कर देना चाहिए क्योंकि कोई भी वकील उन्हें किसी मंत्री को तब तक बर्खास्त करने की सलाह नहीं दे सकता, जब तक कि उनके ख़िलाफ़ आरोप साबित नहीं हो जाते. राज्यपाल के फ़ैसले में "हड़बड़ी" कई विपक्षी दलों ने सवाल खड़े किए हैं.
राजनीति पर हम आएंगे, मगर पहले ये समझ लेते हैं कि किसी मंत्री को बर्ख़ास्त करने के लिए राज्यपाल के पास कौन से अधिकार हैं? जिस तरह बिना मंत्रीमंडल की राय-मशवरे के बिना सेंथिल बालाजी को बर्खास्त किया गया, क्या ये फैसला संविधान के दायरे में आता है? जैसा हमने आपको बताया कि स्टालिन ने इस मामले को अदालत तक ले जाने को कहा है.
राज्यपाल आरएन रवि का निर्णय, राज्यपाल की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहा है. राजभवन को सक्रिया राजनीति के दलदल में धकेल रहा है. संविधान विशेषज्ञों ने हमें अनुच्छेद 164(1) के बारे में बताया. जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल ही मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेगा. बाक़ी मंत्रियों की नियुक्ति भी राज्यपाल ही करेगा. मुख्यमंत्री की सलाह पर. और मंत्री राज्यपाल की मर्ज़ी तक पद पर बने रहेंगे. हालांकि, एक तरफ़ तो ये प्रावधान है. दूसरी तरफ़ सुप्रीम कोर्ट के फैसले और व्याख्याएं हैं. मिसाल के तौर पर 1974 का शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य केस. आला अदालत की सात जजों वाली संविधान बेंच ने कहा था कि राज्यपाल को औपचारिक संवैधानिक ताक़तों का इस्तेमाल केवल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के हिसाब से ही करना चाहिए.
यानी गवर्नर के फ़ैसले की टाइमिंग पर सवाल जायज़ हैं. इसीलिए तमिलनाडु की राजनीति समझने वालों से हमने पूछा कि क्या राज्यपाल का ये फैसला राजनीति से प्रेरित है? और, क्या ये फ़ैसला आने वाले वक्त में तमिलनाडु की राजनीति को प्रभावित करेगा?
राज्य सरकार, मुख्यमंत्री और मंत्री बालाजी. तीनों ही क़ानूनी विकल्प तलाश रहे हैं/होंगे. मगर राज्य की राजनीति का कैनवस बड़ा भी हो सकता है. बेंगलुरु में अगले हफ्ते विपक्षी दलों की बैठक है. ख़बर है कि दिल्ली सरकार आज केंद्र के ऑर्डिनेंस के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट चली गई है. बीते कुछ महीनों से वो लगातार अपनी जिरह के पक्ष में समर्थन जुटा रहे हैं. मतलब, सेफ़ली ये कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी, तमिलनाडु के हालिया घटनाक्रम को भुना सकती है. कह सकती है कि दिल्ली के बाद जो तमिलनाडु में हुआ, वो दूसरे राज्यों में भी हो सकता है. हमने राजनीति बूझने वालों से ये भी पूछा कि क्या अब स्टालिन भी "राज्यपाल बनाम राज्य सरकार" का मोर्चा बुलंद कर सकते हैं?
देश के अलग-अलग राज्यों में "राज्यपाल बनाम राज्य सरकार" की टसल चल रही है. राज्यपालों का राजनीति में दख़ल बढ़ा है. महाराष्ट्र, बंगाल, दिल्ली, तमिलनाडु इसी लिस्ट के राज्य हैं. और, ग़ौर करने वाली बात है कि ये संघर्ष "केवल" उन राज्यों में है, जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं है. ज़ाहिर है.
अब तमिल नाडु से आपको ले चलते हैं मणिपुर. देश के नक्शे में ऊपर की तरफ़ बढ़ेंगे, तो सीधे जा कर राइट. मणिपुर में आज का दिन काफी नाटकीय रहा. किंतु-परंतु, अगर-मगर, संभावनाओं और आशंकाओं से भरपूर. जहां एक तरफ फिर से हिंसा की घटनाओं में तेजी देखी गई, वहीं दूसरी तरफ राजनीति ने भी तेज़ी पकड़ी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, हिंसाग्रस्त राज्य के दो दिन के दौरे पर हैं. लगातार लोगों से मिल रहे हैं. पीड़ित परिवारों, बच्चों, महिलाओं के साथ तस्वीरें आ रही हैं. राहुल लगातार सरकार पर निशाना साध रहे हैं और उनकी पार्टी मुख्यमंत्री के इस्तीफे के लिए दबाव बना रही है.
आज सुबह जब खबर आई कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह राज्यपाल से मिलने जा रहे हैं, तो लगा कि कांग्रेस पार्टी का बनाया दबाव काम कर गया है. खबर ये भी आई कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह राज्यपाल अनुसूइया उइके को इस्तीफ़ा देने जा रहे हैं.
लेकिन उससे पहले उन्होंने अपने घर पर विधायकों के साथ मीटिंग की. करीब 20 विधायक इसमें शामिल हुए. करीब 2 बजकर 20 मिनट पर बीरेन सिंह 20 विधायकों के साथ राज्यपाल आवास जाने के लिए अपने आवास से बाहर निकले. लेकिन घर के बाहर भारी भीड़ इकट्ठा थी. ये भीड़ इस्तीफे के फैसले का विरोध कर रही थी. उन्हें वापस घर में जाना पड़ा. थोड़ी देर बाद कुछ मंत्री बाहर आए और एक लेटर पढ़ा. ये मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का इस्तीफा था. जो राज्यपाल को सौंपा जाना था. और फिर आया कहानी में ट्विस्ट. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक़, ये लेटर मुख्यमंत्री आवास के बाहर इकट्ठा महिलाओं की भीड़ को दे दिया गया. जिन्होंने इसे फाड़कर फेंक दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, ये महिलाएं मीरा पैबी संगठन से जुड़ी हुई थीं. हमने पहले भी आपको कई एपिसोड्स में बताया है कि मीरा पैबी मैतेई महिलाओं का एक प्रभावशाली संगठन है.
इसके बाद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इस्तीफ़ा देने के अपने फैसले को बदल दिया. उन्होंने ट्वीट कर स्पष्ट किया कि वे इस्तीफा नहीं दे रहे हैं.
हिंसा शुरू होने के पहले दिन से ही एन बीरेन सिंह से इस्तीफ़े की मांग हो रही है. मणिपुर से लेकर दिल्ली तक. कांग्रेस से लेकर गठबंधन के सहयोगी तक. खुद उनकी अपनी पार्टी के स्थानीय नेता भी मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग कर चुके हैं. तो फिर यहां सवाल ये उठता है कि जो बीरेन सिंह दो महीने तक लगातार डटे रहे वो आज इस्तीफा देने के लिए कैसे तैयार हो गए?
मुख्यमंत्री के एक करीबी के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने इस्तीफे के फैसले के पीछे की कहानी को भी बताया है. मैतेई मणिपुर का सबसे प्रभावशाली समुदाय है. राजनीति से लेकर ब्यूरोक्रेसी तक मैतेई का दबदबा है. मणिपुर की 60 में से करीब 40 सीटों पर मैतेई समुदाय का प्रभाव है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, बीते दिन मैतेई समुदाय के एक व्यक्ति की हिंसा में मौत हो गई. बॉडी इम्फाल आई तो श्रद्धांजलि देने हजारों की संख्या में भीड़ इकट्ठा हुई. भीड़ नारेबाजी भी कर रही थी. और क्या लग रहे थे नारे? "मुख्यमंत्री बीरेन सिंह इस्तीफा दो."
इस श्रद्धांजलि सभा में इकट्ठी भीड़ में बड़ी मीरा पैबी से जुड़ी महिलाओं की भी थी. नारेबाजी और प्रदर्शन बढ़ता गया तो मणिपुर पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. और भीड़ को तितर-बितर किया. इंडियन एक्सप्रेस ने मुख्यमंत्री के एक करीबी के हवाले से लिखा है, "मुख्यमंत्री कल की घटना के बाद भावुक हो गए थे. उन्हें लगा कि अगर उन्होंने लोगों का विश्वास खो दिया है तो आगे बने रहने का कोई मतलब नहीं है. यही कारण है कि उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला लिया."
और फिर उसके बाद जो कुछ हुआ उसके बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं. उसी मीरा पैबी संगठन की महिलाएं जो कल इस्तीफा मांग रही थीं उन्होंने आज इस्तीफा फाड़कर फेंक दिया. मुख्यमंत्री को धरती पुत्र बता रही हैं. सन ऑफ सॉयल. मुख्यमंत्री आवास के बाहर खड़ी महिलाओं ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को लोगों को प्रोटेक्ट करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए. अगर वे इस्तीफा दे देंगे तो राष्ट्रपति शासन लग जाएगा. जो ठीक नहीं होगा.
वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी ने आज मोइरांग में दो अलग-अलग राहत शिविरों कोन्जेंगबाम राहत शिविर और मोइरांग कॉलेज राहत शिविर का दौरा किया. उन्होंने राहत शिविर में रहने वाले लोगों से बात की और उनका हाल चाल जाना. दो महीने से चल रही हिंसा की वजह से लगभग 50 हजार से अधिक लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं. पूरे राज्य में 300 से अधिक राहत शिविर संचालित किए जा रहे हैं.
राहुल गांधी के राहत शिविर दौरों की तस्वीर शेयर करते हुए कांग्रेस पार्टी ने कहा,
"राहुल ने लोगों को ये भरोसा दिलाया कि एक सब ठीक हो जाएगा. नफरत के खिलाफ मोहब्बत की यात्रा आज भी जारी है."
मोइरांग के बाद राहुल गांधी ने इम्फाल में राज्यपाल अनुसूइया उइके से भी मुलाकात की. इसके अलावा उन्होंने इम्फाल में सिविल सोसायटी के लोगों से भी बात की. इसके बाद उन्होंने मीडिया से भी बात की. इससे पहले राहुल गांधी ने बीते दिन चुराचांदपुर और हियांगतम में राहत शिविरों का दौरा किया था.
इस पूरे नाटकीय घटनाक्रम के बावजूद मणिपुर का सच यही है कि वहां यथा स्थिति बरकरार है. जो जहां था वो वहीं पर है, विवाद बरकरार है और संघर्ष की आग में मणिपुर का जलना अब भी जारी है.
वीडियो: मणिपुर में राहुल गांधी का काफिला क्यों रोका गया? बीजेपी-कांग्रेस ने साधा एक-दूसरे पर निशाना