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क़िस्सागोई 32: जब महाकवि निराला ने दिया था अपना 'निराला' परिचय

ताल्लुकेदार समेत पूरी सभा सन्न रह गई थी.

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निराला के बहुत सारे क़िस्से हिंदी जगत में मशहूर हैं. त्याग और तपस्या की मूर्ति के तौर पर जाने जाते हैं महाकवि निराला.
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3 अगस्त 2020 (Updated: 3 अगस्त 2020, 01:36 PM IST) कॉमेंट्स
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क़िस्सागोई में आज बात हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की. एक दफ़ा की बात है. लखनऊ के एक ताल्लुकेदार ने कई गणमान्य कवियों को आपनी कोठी पर दावत दी. काव्य संध्या का आयोजन था. निराला जी को भी निमंत्रण गया. निराला जी इस तरह कहीं जाते नहीं थे. अपनी फक्कड़-मिज़ाजी के लिए मशहूर थे. मगर जब दोस्तों ने ज़ोर डाला तो निराला जी चले गए. आयोजन से पहले शाम को तालुकेदार साहब अपने मुंशी के साथ हाज़िर हुए. मुंशी एक एक करके सारे कवियों का परिचय तालुकेदार साहब से करवा रहा था और नंबर आने पर हर कवि अपनी जगह पर खड़ा होकर खुद को धन्य मानते हुए ये परिचय सुन रहा था. निराला जी को ये तरीक़ा पसंद नहीं आया.

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उन्होने सोचा कि मुंशी क्यों परिचय करवा रहा है. ताल्लुकेदार को ख़ुद कवियों से उनका परिचय प्राप्त करना चाहिए था. अगर नहीं है परिचय तो बुलाया ही क्यों. जब निराला जी का नंबर आया तो उन्होने मुंशी को परिचय देने से रोक दिया और खुद तालुकेदार को अपना परिचय देते हुए कहा- हम वो हैं जिनके दादा की पालकी को आपके दादा ने अपने कंधे पर ढोया था. सब लोग निराला का ये अंदाज़ सुनकर हक्के-बक्के रह गए. निराला का इशारा उस घटना की तरफ़ था जब महाकवि भूषण की पालकी को ख़ुद महाराज छत्रसाल ने उठाया था और इस तरह भूषण के कवित्त्व का सम्मान किया था. निराला ने जब ये घटना वहां मौजूद लोगों को याद दिलाई तो सब उनके तेवर के क़ायल हो गए.

एक क़िस्सा और... इलाहाबाद में एक साहित्यकार थे. पंडित ज्योति प्रसाद मिश्र 'निर्मल'. निराला जी के आत्मीय थे और उनसे निराला जी की दोस्ताना नोक-झोंक चलती रहती थी. एक बार निराला ने निर्मल से कहा-  भई निर्मल ये तुमने अपने नाम में निर् निर् क्या लगा रखा है. इस पर निर्मल बोले- ये निर् तो आपके नाम में भी है. निराला को इसी मौक़े का इंतज़ार था. बोले- मेरे नाम से अगर निर् निकाल भी दो तब भी मैं आला रहूंगा. मगर तुम्हारे नाम से निर् निकाल दिया जाए तो सिर्फ़ मल बचेगा.


निराला पर भारतर सरकार ने टिकट भी जारी किया था.
निराला पर भारतर सरकार ने टिकट भी जारी किया था.

एक बार जयशंकर प्रसाद, बनारसीदास चतुर्वेदी और निराला जी बनारस में थे. बनारसीदास ने प्रसाद जी को सुनाते हुए कहा- बनारस में अब कुछ नहीं बचा है. ये पिछड़ा शहर है, लोग भी पिछड़े हैं. प्रसाद जी मेज़बान होने का धर्म निभाते हुए चुप रहे मगर निराला ने जवाब दिया कि चतुर्वेदी जी, बनारस का जलवा आप क्या जानें. बनारस की महिमा देखिए कि मां-बाप अपने बच्चों का नाम बनारसीदास रखना पसंद करते हैं.


हिमांशु बाजपेयी
हिमांशु बाजपेयी

हिमांशु बाजपेयी. क़िस्सागोई का अगर कहीं जिस्म हो, तो हिमांशु उसकी शक्ल होंगे. बेसबब भटकन की सुतवां नाक, कहन का चौड़ा माथा, चौक यूनिवर्सिटी के पके-पक्के कान और कहानियों से इश्क़ की दो डोरदार आंखें.'क़िस्सा क़िस्सा लखनउवा' नाम की मशहूर क़िताब के लेखक हैं. और अब The Lallantop के लिए एक ख़ास सीरीज़ लेकर आए हैं. नाम है 'क़िस्सागोई With Himanshu Bajpai'. इसमें दुनिया जहान के वो क़िस्से होंगे जो सबके हिस्से नहीं आए. हिमांशु की इस ख़ास सीरीज़ का ये था क़िस्सा नंबर बत्तीस.




ये क़िस्सा भी सुनते जाइए:

क़िस्सागोई: जब 1993 में सुनिल गावस्कर दंगाई भीड़ के सामने जाकर खड़े हो गए

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