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BJP के 'दुलारे', कांग्रेस के PM नरसिम्हा राव की कहानी

क़िस्से भारत के उस प्रधानमंत्री के जिन्हें कोई नायक समझता है, कोई 'खलनायक'! अब नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न दिया है.

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भारत के दसवें प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव. (फ़ोटो - इंडिया टुडे)
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9 फ़रवरी 2024 (Updated: 13 फ़रवरी 2024, 12:18 IST)
Updated: 13 फ़रवरी 2024 12:18 IST
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पामुलापति वेंकट नरसिम्हा राव (PV Narsimha Rao). ये नाम सुनकर क्या-क्या याद आता है? खाटी नेता, पूर्व-प्रधानमंत्री, आर्थिक सुधार, दूरदृष्टि, बाबरी मस्जिद विध्वंस और ..? नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के पूर्व-प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न (Bharat Ratna) देने का एलान किया है. प्रधानमंत्री ने लिखा कि राव के दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने, देश की समृद्धि और विकास के लिए एक ठोस नींव रखी थी. सो, आज उनके कुछ क़िस्से पढ़िए.

40 साल की राजनीतिक यात्रा

जन्म 28 जून, 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर ज़िले में हुआ. तीस साल बाद 1951 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के सदस्य बने. 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधानसभा के सदस्य और 1977 से 1998 तक लोकसभा के सदस्य रहे.

विधायकी: साल 1957 में मंथनी सीट - जो अब तेलंगाना में पेद्दापल्ली जिले में है - वहां से जीतकर विधायक बने. वहीं से तीन बार और जीते - 1962, 1967 और 1972 में. 1962 वाली जीत के बाद राव आंध्र प्रदेश सरकार में मंत्री बने और 1971 में मुख्यमंत्री. क़ानून, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बड़े-बड़े विभागों का कार्यभार संभाला. भूमि सुधार और भूमि हदबंदी क़ानून को सख़्ती से लागू किया. अपने कार्यकाल के दौरान राजनीति में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की वकालत की, फिर हासिल किया. साल 1973 तक मुख्यमंत्री रहे.

सांसदी: फिर 1977 में राव ने आंध्र प्रदेश के हनमकोंडा से सांसदी जीतकर राष्ट्रीय राजनीति में दाख़िला लिया. 1980 में उसी निर्वाचन क्षेत्र से फिर चुने गए. उन्हें इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री बनाया गया. बाद में वह इंदिरा सरकार में गृह मंत्री भी रहे.

ये भी पढ़ें - नरसिम्हा राव और अटल के बीच ये बात न हुई होती, तो भारत परमाणु राष्ट्र न बन पाता

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद साल 1984 के चुनावों में कांग्रेस भारी बहुमत से जीती थी. तब राव ने महाराष्ट्र के रामटेक से चुनाव लड़ा और ख़ुद भी भारी अंतर से जीते. राजीव गांधी प्रधान मंत्री बने और उन्होंने राव को योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया. राजीव मंत्रिमंडल में उन्हें रक्षा मंत्री भी बनाया गया था.

1991 के आम चुनाव में कांग्रेस ने 487 सीटों पर चुनाव लड़ा और 232 पर जीती. हालांकि, राव ने चुनाव नहीं लड़ा था. राजीव गांधी की हत्या हो गई और हत्या के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए कई नाम आए. मुख्यतः तीन नामों पर अटकलें लग रही थीं – शंकर दयाल शर्मा, प्रणब मुखर्जी और नरसिम्हा राव. लिखा जाता है कि शंकर दयाल शर्मा उप-राष्ट्रपति थे, उनका रायसिना हिल्स छोड़ने का इरादा नहीं था. प्रणब ने दावेदारी रखी, मगर उनका नाम जमा नहीं. फिर राव के नाम पर सहमति बनी. और, जब उन्हें 21 जून, 1991 को उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया, तब वो सांसद भी नहीं थे. हालांकि, कुछ महीने बाद ही वो आंध्र प्रदेश के नंदयाल से उपचुनाव लड़कर जीत गए.

जब नरसिम्हा राव ने मनमोहन से कहा - गड़बड़ हुई तो तुम पर थोप दूंगा

1991 में भारत में आर्थिक सुधार हुए थे. कोटा-कंट्रोल का सिस्टम ख़त्म किया गया. लाइसेंस-राज की जगह ओपन कम्पटीशन ने ले ली. भारत के मार्केट को विदेशी कंपनियों के लिए खोला गया. डॉलर के मुक़ाबले रुपया गिराया गया. ताकि एक्सपोर्ट ज़्यादा हो सके. इन सुधारों को नई औद्योगिक नीति के तहत लागू किया गया.

मगर ये फ़ैसला आसान नहीं था. सरकार जाने की नौबत आ जाती. तुरंत जनता कहती कि 'लुटेरों ने देश को विदेशियों के हाथ बेच दिया'. जनता का डर इतना था कि नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह से साफ़ कह दिया था, 

"अगर ये फ़ैसला सफल रहा तो सारा क्रेडिट 'हम लोगों' का रहेगा. अगर जनता ने बवाल किया, तो मैं बोल दूंगा कि ये फ़ैसला सिर्फ़ तुम्हारा था."

जयराम रमेश की किताब 'To The Brink & Back' में छपा पूरा क़िस्सा यहां पढ़ें.

भरी संसद में मस्जिद बनवाने का वादा किया था

6 दिसंबर, 1992. वो तारीख़, जब बाबरी मस्जिद को ढहाया गया था. तब पी. वी. नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे. उन्होंने अगले दिन यानी 7 दिसंबर, 1992 को संसद में भाषण दिया. ये भाषण राव की लिखी किताब ' अयोध्या - 6 दिसंबर 1992' में छपा है. वादा:

"मेरी सरकार सांप्रदायिक ताक़तों के ख़िलाफ़ खड़ी होगी. इस घिनौने कार्य को भड़काने वाले लोगों के ख़िलाफ़ हम संविधान के हिसाब से सख़्त कार्रवाई करेंगे. और मैं वादा करता हूं कि क़ानून ऐसे लोगों को ज़रूर पकड़ेगा, फिर चाहे वे कोई भी हों."

इस भाषण के अंत में नरसिम्हा राव ने एक और वादा किया था - 'मस्जिद को गिराना बर्बर कार्य था, सरकार इसका पुनर्निर्माण करवाएगी.'

ये भी पढ़ें - जिस समय बाबरी मस्जिद गिराई जा रही थी, तब क्या नरसिम्हा राव पूजा पर बैठे थे?

राव के इस भाषण में सफ़ाई है, शिकायत है, घटनाक्रम है, अफसोस है और एक वादा. वादा हमने बता दिया, बाक़ी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

मरने से पहले सोनिया गांधी से क्या बोल गए थे?

24 नवंबर, 2004. पूर्व-प्रधानमंत्री का घर अक्सर ख़ाली ही रहता था, क्योंकि राव बीमार थे. पांच महीनों से ही एम्स में भर्ती थे. किडनी, दिल और फेफड़ों में शिकायत रहती थी और इसकी जांच के लिए स्पेशल वॉर्ड में इलाज चल रहा था.

राव अस्पताल के अपने वॉर्ड में ही एक क़िस्म के सत्याग्रह पर बैठ गए. बिस्तर के बग़ल में कुर्सी पर. न कुछ खाया न पीया. ख़बर दिल्ली में फैल गई. परिवार को गृह मंत्री शिवराज पाटिल का फोन आया, कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी विजिट करना चाहती हैं. फिर सोनिया आईं भी. साथ में पाटिल और अहमद पटेल भी थे. पटेल ने राव को पानी का गिलास दिया. राव गुस्से में बोले,

"तुम लोग मुझ पर मस्जिद तुड़वाने का इल्ज़ाम लगाते हो और अब पानी पिलाते हो?"

राव रुक-रुककर बोलते रहे. कहा, किससे गलतियां नहीं होतीं? मगर मुझे ऐसी ग़लती के लिए जिम्मेदार क्यों ठहराया जा रहा है, जो मैंने की ही नहीं?

सोनिया रात 2.30 बजे अस्पताल से निकलीं. फिर राव को नींद का इंजेक्शन दिया गया. अगली सुबह जब उठे, तो बस एक बात पूछी - "कल रात मैं कुछ ज़्यादा तो नहीं बोल गया?"

विनय सीतापति की किताब 'हाफ़ लायन' से और क़िस्से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

राव ने ठंडी छोड़ी बेनजीर की चाय

साल 1996 की बात है. कश्मीर मुद्दे पर हाथ जला चुकीं पाकिस्तान की पूर्व-प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉन मेजर को एक ख़त लिखा. वो चाहती थीं कि मेजर उनके और नरसिम्हा राव के बीच एक 'चाय पर चर्चा' अरेंज करवाएं. भुट्टो सीधे तौर पर तो राव को ख़त नहीं लिख सकती थीं. ऐसा करना पाकिस्तान में उनकी सेहत के लिए हानिकारक साबित होता. इसलिए उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री से दरख़्वास्त की. इतना ही नहीं बेनज़ीर चाहती थीं, कि ये मुलाक़ात 'इत्तेफ़ाक़न' लगे.

साल 2020 में नेशनल आर्काइव्स द्वारा डीक्लासिफाइड किए गए कुछ दस्तावेज़ से इस वाक़ये का पता चला था. ब्रिटिश हाई कमीशन के अनुसार, राव ने मेजर का ख़त दो बार ग़ैर से पढ़ा और किनारे रख दिया. ये कहते हुए कि बेनज़ीर को अभी चाय के बारे में भूल जाना चाहिए, क्योंकि भारत में इलेक्शन होने वाले हैं.

वैसे तो उस साल हुए चुनावों में राव की रुख़सती हो गई, और भुट्टो की सरकार भी बर्ख़ास्त कर दी गई. और, जो चाय बेनजीर राव को पिलाना चाहती थी, वो ठंडी की ठंडी ही रह गई.

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