विद्रोह के मास्टरमाइंड प्रिगोझिन से मीटिंग का खुलासा कर पुतिन ने बाज़ी पलट दी?
- क्या पुतिन ने प्रिगोझिन को माफ़ी दे दी है? - रूस की नई चाल से क्या बदलने वाला है? - और, इस बार की नेटो समिट में क्या ख़ास है?

अप्रैल 1949 में वॉशिंगटन डीसी में 12 देशों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (NATO) की नींव रखी. इसमें नॉर्थ अमेरिका के 02 और यूरोप के 10 देश शामिल थे. इस मौके पर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने कहा था,
‘जिन्हें लगता है कि ये नॉर्थ अटलांटिक के देशों के द्वारा की गई आक्रामक संधि है, वे पूरी तरह से ग़लत हैं. हमें लगता है कि युद्ध को रोका जा सकता है. हम इस बात पर भरोसा नहीं करते हैं कि इतिहास की अंधी लहर अभी भी कायम है जो इंसानों को अपने साथ बहा ले जाती हैं. अपने समय में हमने बहादुर नौजवानों को कठिनतम परिस्थितियों और अटूट सेनाओं से पार पाते देखा है. हौसले और दूरदृष्टि से भरे लोग अभी भी अपनी नियति तय कर सकते हैं. वे ग़ुलामी या आज़ादी, युद्ध या शांति चुन सकते हैं. मुझे इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि वे क्या चुनना पसंद करेंगे.’
नेटो की स्थापना की तात्कालिक कारण सोवियत संघ का विस्तारवाद था. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ, दोनों ने अस्त-पस्त पड़े देशों को अपने पाले में खींचना शुरू कर दिया था. सोवियत संघ ने कई देशों में सेना भी भेजी थी. इसको रोकने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में नेटो बनाया गया था. नेटो की स्थापना को 74 बरस बीत चुके हैं. 31 दफा इसकी समिट भी हो चुकी है. लेकिन अभी तक उसकी चुनौती नहीं बदली है. पहले सोवियत संघ और विघटन के बाद रूस ने नेटो को हलकान कर रखा है. 11 जुलाई 2023 को लिथुआनिया की राजधानी विलिनस में नेटो की 32वीं समिट शुरू हो गई है. इसमें स्वीडन की मेंबरशिप से इतर सबसे ज़्यादा चर्चा रूस-यूक्रेन युद्ध पर होने वाली है. चर्चा ये कि रूस को कैसे रोका जाए और यूक्रेन को कैसे बचाया जाए.
ये सब होता, उससे पहले ही रूस ने अपनी चाल से सबको चौंका दिया है. 10 जुलाई को रूसी सत्ता-प्रतिष्ठान के केंद्र क्रेमलिन ने बड़ा खुलासा किया. बताया, जून में बग़ावत के बाद वैग्नर के 35 कमांडर्स राष्ट्रपति पुतिन से मिले थे. इसमें वैग्नर का मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन भी था. दिलचस्प ये है कि उसी ने मॉस्को पर चढ़ाई का ऐलान किया था. तब पुतिन ने बिना नाम लिए उसको गद्दार और धोखेबाज तक कहा था. उसके ठिकानों पर छापेमारी हुई थी. सरकारी मीडिया चैनलों ने उसकी ख़ूब लानत-मलानत की थी. प्रिगोझिन को निर्वासन में बेलारूस भेजने की रिपोर्ट्स भी आईं थी. लेकिन नए खुलासे ने पूरी कहानी पलट दी है.

- क्या पुतिन ने प्रिगोझिन को माफ़ी दे दी है?
- रूस की नई चाल से क्या बदलने वाला है?
- और, इस बार की नेटो समिट में क्या ख़ास है?
सोवियत संघ के दौर में एक जोक ख़ूब सुनाया जाता था.
एक बार जेल में गार्ड ने एक राजनैतिक क़ैदी से पूछा,
तुम्हें कितने बरस की सज़ा मिली है?
- क़ैदी बोला, 10 साल.
तुम्हारा ज़ुर्म क्या था?
- कुछ नहीं.
क्या बात करते हो? ये तो सरासर झूठ है. बिना किसी ज़ुर्म के तो सिर्फ़ 05 साल की सज़ा मिलती है.
अब एक इंटरव्यू की कहानी सुनिए.
मार्च 2018. रूस में पुतिन पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ हुई. इसमें पुतिन से पूछा गया,
क्या आप माफ़ी देने में भरोसा रखते हैं?
पुतिन: हां. लेकिन सबको नहीं.
किस मामले में माफ़ी की कोई गुंज़ाइश नहीं है?
इस पर पुतिन ने कहा था, विश्वासघात करने वालों को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता.
कट टू 2023.
तारीख़, 24 जून 2023.
रूस में विद्रोह हो चुका है. प्राइवेट मिलिटरी ग्रुप वैग्नर राजधानी मॉस्को की तरफ़ कूच कर चुकी है. प्रिगोझिन आर्मी चीफ़ और डिफ़ेंस मिनिस्टर को धमकी देता है. उसके लड़ाके रूसी सैनिकों की हत्या करते हैं. सेना के दफ़्तरों पर कब्ज़ा करते हैं.
इस बीच पुतिन का संबोधन आता है.
वो कहते हैं,
इस घटना ने हमारी एकजुटता को नुकसान पहुंचाया है. ये हमारे अपने लोगों का ‘विश्वासघात’ है. जो कभी हमारे दोस्त थे, वे हमारे ख़िलाफ़ जंग लड़ रहे हैं. हमारे मुल्क और हमारे लोगों की पीठ में छुरा घोंपा गया है.
इस संबोधन में एक शब्द गौर करने लायक था. विश्वासघात.
पुतिन ने ज़ोर देकर कहा कि विद्रोह करने वाले गद्दार हैं. उन्हें बख़्शा नहीं जाएगा.
24 जून की शाम तक वैग्नर के लड़ाके मॉस्को के क़रीब पहुंच चुके थे. राजधानी में कर्फ़्यू लगा दिया गया था. मॉस्को तक जाने वाली सड़कों को उखाड़ दिया गया. सुरक्षा-व्यवस्था चाक-चौबंद की गई. लड़ाई की पूरी तैयारी हो चुकी थी.
लेकिन उसी समय एक अपडेट आई. प्रिगोझिन ने अपने टेलीग्राम चैनल पर कहा कि हम पीछे हट रहे हैं. पता चला कि बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडर लुकाशेन्को के कहने पर डील हो गई है. दावा किया गया कि वैग्नर के लड़ाके बेस कैंप में लौट जाएंगे. उनके ख़िलाफ़ कोई मुकदमा नहीं चलेगा. प्रिगोझिन निर्वासन में बेलारूस चला जाएगा. उसे क्षमादान दिया जाएगा. कहा गया कि पुतिन ने इस डील पर हामी भर दी है.
यहीं पर विद्रोह खत्म हो गया.
इसके बाद तीन बड़े सवाल खड़े हुए.
पहला, प्रिगोझिन का क्या होगा?24 जून के बाद से प्रिगोझिन को पब्लिक में नहीं देखा गया है. उसकी कोई वीडियो या फ़ोटो बाहर नहीं आई है. उसकी मौजूदा लोकेशन के बारे में भी पता नहीं चला है.
जो जानकारी बाहर आई, वो दूसरे लोगों और मीडिया रपटों के हवाले से.
मसलन,
26 जून को टेलीग्राम पर प्रिगोझिन के नाम से एक ऑडियो रिलीज़ हुआ. वो बोला, हम पुतिन का तख़्तापलट नहीं करना चाहते थे. हमारा मार्च वैग्नर को बचाने के लिए था.
27 जून को प्रिगोझिन के प्राइवेट जेट को बेलारूस की राजधानी मिंस्क में देखा गया. उसी शाम ये जेट वापस रूस लौट गया. लुकाशेन्को ने कंफ़र्म किया कि प्रिगोझिन बेलारूस पहुंच चुका है.
06 जुलाई को लुकाशेन्को अपनी बात से पलट गए. बोले, प्रिगोझिन हमारे यहां नहीं है. वो सेंट पीटर्सबर्ग में हो सकता है. इसी शहर में वैग्नर ग्रुप का हेडक़्वार्टर है.
इस बीच सरकारी मीडिया ने प्रिगोझिन की छवि को नेस्तनाबूद करने की पूरी कोशिश की. उसका आपराधिक रेकॉर्ड खंगाला गया. उसके ठिकानों पर छापेमारी वाली ख़बरों का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया.
एक रोज़ पुतिन ने ये भी कहा कि हमने पिछले एक साल में वैग्नर को लगभग 08 हज़ार करोड़ रुपये दिए हैं. उसकी पड़ताल की जाएगी.
ऐसे में दूसरा सवाल लाजिमी था, क्या वैग्नर को भंग कर दिया जाएगा?वैग्नर ने पुतिन को चुनौती देने का अपराध किया था. पुतिन के पिछले 24 बरसों का इतिहास देखने पर पता चलता है कि ये अक्षम्य है. माना गया कि वैग्नर को खत्म कर उसको रेगुलर आर्मी का हिस्सा बना दिया जाएगा. वैग्नर इस समय सेंट्रल अफ़्रीकन रिपब्लिक (CAR), मैडागास्कर, माली, सीरिया, लीबिया और सूडान जैसे देशों में मौजूद है. उन्हें वापस बुलाने की अफ़वाह भी उड़ी.
फिर 26 जून को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि वैग्नर को वापस नहीं बुलाया जाएगा. वे पहले की तरह काम करते रहेंगे.
पुतिन ने विद्रोह करने वालों को तीन ऑप्शन दिए थे. घर लौट जाएं, बेलारूस चले जाएं या रूसी सेना को जॉइन कर लें.
सबसे ज़्यादा संभावना बेलारूस वाले विकल्प पर थी. 08 जुलाई को बीबीसी रशिया के एडिटर स्टीव रोजेनबर्ग को बेलारूस में वैग्नर के लिए बने कैंप्स का एक्सेस मिला. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक, उन कैंप्स में वैग्नर का कोई नामोनिशान नहीं है. वहां उनका एक भी लड़ाका नहीं पहुंचा है.
अब तीसरे सवाल की तरफ़ चलते है. सवाल ये कि क्या पुतिन की कुर्सी कायम रह पाएगी?वैग्नर के विद्रोह ने सबसे बड़ी चुनौती पुतिन के सामने खड़ी की थी. 24 बरसों में पहली बार किसी ने उनके ख़िलाफ़ सशस्त्र विद्रोह की हिमाकत की थी. पश्चिमी मीडिया संस्थानों ने इसे पुतिन के पतन के तौर पर पेश किया. कहा गया, वो कमज़ोर हो चुके हैं. उनका वर्चस्व ख़तरे में है. उन्हें किसी भी दिन कुर्सी से हटाया जा सकता है. कई जगहों पर उनके संभावित उत्तराधिकारियों की लिस्ट भी पब्लिश हुई. ये तक कहा गया कि रूस में फूट पड़ गई है. और, यूक्रेन युद्ध में उनकी हार पक्की हो चुकी है.
फिर आई 10 जुलाई 2023 की तारीख़.
क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की. उन्होंने प्रिगोझिन के बारे में जो कुछ बताया, उसने सारे दावों को ध्वस्त कर दिया था.
पेस्कोव के मुताबिक,
- विद्रोह के पांच दिन बाद यानी 29 जून को क्रेमलिन में प्रिगोझिन और पुतिन की मीटिंग हुई. इसमें वैग्नर के 35 कमांडर्स शामिल हुए थे. उन्हें पुतिन ने मिलने के लिए बुलाया था.
- कमांडर्स ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने राष्ट्रपति और कमांडर-इन-चीफ़ पुतिन के प्रति वफ़ादारी का दावा किया.
- पेस्कोव ने ये नहीं बताया कि बैठक में आर्मी चीफ़ और डिफ़ेंस मिनिस्टर शामिल हुए या नहीं. प्रिगोझिन की पूरी नाराज़गी इन्हीं दोनों को लेकर थी.
10 जुलाई को रूस ने आर्मी चीफ़ वलेरी गेरासिमोव का वीडियो रिलीज़ किया. वो विद्रोह के बाद पब्लिक में नहीं दिखे थे.
माना जा रहा है कि पूरी जद्दोज़हद ये साबित करने के लिए हो रही है कि रूस में सब ठीक है. हमने अमिताभ सिंह से पूछा कि क्या इसके पीछे पुतिन की कोई चाल है? इस मीटिंग की ख़बर को इतने दिनों तक छिपाकर क्यों रखा गया? अमिताभ बताते हैं,
‘ये तो पक्का दिखता है कि रूस में पुतिन की सत्ता कमज़ोर पड़ रही है, ऐसा शख्स जो विद्रोह का मास्टरमाइंड रहा हो, पुतिन उसके साथ मीटिंग कर रहे हैं. इसे जनता में गलत संदेश गया होगा’
क्रेमलिन के मुताबिक, प्रिगोझिन और वैग्नर के दूसरे कमांडर्स ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने वफ़ादारी निभाने की बात भी कही. ये भी चर्चा हुई कि उनका युद्ध में कैसे इस्तेमाल किया जाएगा. क्या पुतिन फिर से वैग्नर को आजमाने का ज़ोखिम लेंगे? इसपर अमिताभ कहते हैं.
‘दोनों के बीच कोई समझौता हुआ है, लेकिन वो समझौता क्या हुआ है वो किसी को पता नहीं है. लेकिन इससे पुतिन को नुकसान ज़रूर हुआ है. क्योंकि उन्होंने एक ऐसी जगह समझौता किया जहां समझौता अमूमन नहीं किया जाता’
अगर पुतिन ने प्रिगोझिन को माफ़ी दी तो इससे उनका ही दावा ग़लत साबित होगा कि वो गद्दारों को नहीं बख़्शते. लेकिन क्या उनके पास कोई दूसरा रास्ता बचा था? शायद नहीं.
प्रिगोझिन के चैप्टर को यहीं पर रोकते हैं. लेकिन ज़िक्र आगे भी होगा क्योंकि अगला विषय भी पिछले से जुड़ा है.
अगला चैप्टर है नेटो समिट का. लिथुआनिया की राजधानी विलिनस में नेटो के 31 सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं की मीटिंग शुरू हो चुकी है. इसमें सबसे ज़्यादा ज़ोर रूस-यूक्रेन युद्ध और यूक्रेन की नेटो मेंबरशिप पर रहेगा. युद्ध के 500 दिन पूरे हो चुके हैं. यूक्रेन के पास मौजूद हथियारों का स्टॉक खत्म हो रहा है. पिछले दिनों अमेरिका ने लगभग 06 हज़ार करोड़ के हथियारों का नया पैकेज भेजने का ऐलान किया. माना जा रहा है कि इससे यूक्रेन को मुकाबला करने में थोड़ी मदद मिलेगी. कुछ समय पहले तक यूक्रेन मज़बूत स्थिति में दिख रहा था.
वैग्नर के विद्रोह के बाद कहा जा रहा था कि पुतिन कमज़ोर पड़ गए हैं. उनका अपने ही लोगों पर कंट्रोल नहीं है. उनकी कुर्सी ख़तरे में है. लेकिन रूस ने पुतिन और प्रिगोझिन की मीटिंग वाली जानकारी नेटो की समिट से ठीक पहले रिलीज़ की. इस ख़बर ने कमज़ोर पड़ते रूस और पुतिन वाले दावे पर विराम लगा दिया है. हमने मनोहर पर्रिकर - इंस्टिट्यूट फ़ॉर डिफ़ेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस (MP-IDSA) में एसोसिएट फ़ेलो स्वस्ति राव से पूछा, स्वस्ति कहती हैं,
‘मुझे लगता है ये मीटिंग एक तरह से डैमेज कंट्रोल ही है. पुतिन की इमेज रूस में ऐसी है कि वो देश की सभी संस्थाओं को एक सैट चलाकर चलते हैं, लेकिन इस मामले में ये पांसा उल्टा पड़ता दिखाई दिया. इसलिए ये मीटिंग आयोजित की गई होगी ताकि लोगों तक संदेश जा सके.’
आगे चलने से पहले नेटो का इतिहास समझ लेते हैं.
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ महाशक्ति बनकर उभरे. अमेरिका तो पूंजीवादी था, लेकिन सोवियत संघ की कम्युनिस्ट विचारधारा को फैलाना चाहता था. इससे अमेरिका और यूरोप के उसके मित्र देशों को ख़तरा महसूस हुआ. उन्हें लगा कि सोवियत संघ आगे चलकर उन्हें निशाना बना सकता है. वे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना और आपस में एकजुटता भी बढ़ाना चाहते थे. अप्रैल 1949 में 12 देशों ने मिलकर नेटो की स्थापना की.
नेटो के दो आर्टिकल्स सबसे ज़्यादा चर्चा में रहते हैं.
पहला है, आर्टिकल फ़ोर.
इसके मुताबिक,
जब भी किसी सदस्य देश को अपने ऊपर या किसी दूसरे मेंबर पर ख़तरा महसूस हो तो वे मिलकर उस पर चर्चा करेंगे. वे ज़रूरी सूचनाएं भी आपस में साझा करेंगे.
ये कदम सैन्य संघर्ष की आशंका को कम करने के लिए ज़रूरी है. इस तरह की बातचीत का पहला मंच नॉर्थ अटलांटिक काउंसिल (NAC) है. ये नेटो की डिसिजन मेकिंग बॉडी है.
1949 में नेटो की स्थापना के बाद से आर्टिकल 4 को कुल 7 बार लागू किया जा चुका है. उदाहरण के लिए, तुर्की ने इसका इस्तेमाल 2015 में किया था. तब सीरिया की सीमा के पास एक आत्मघाती बम हमले में 30 लोग मारे गए थे.आर्टिकल 4 के इस्तेमाल के बाद मीटिंग बैठाई गई. उसके बाद NAC ने कहा कि नेटो तुर्की के खिलाफ आतंकी हमले की कड़ी निंदा करता है. हालांकि, इस मामले में आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई.
अब दूसरे आर्टिकल की तरफ़ चलते हैं.
आर्टिकल फ़ाइव.
इसमें साझा सुरक्षा की बात दर्ज़ है. इसके मुताबिक, अगर नेटो के किसी सदस्य देश पर हमला होता है तो उसे सभी नेटो देशों पर हमला माना जाएगा. उस हालात में सबको साथ मिलकर उसका मुक़ाबला करना होगा. 11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर आतंकवादी हमले के बाद आर्टिकल फ़ाइव लागू किया गया था. तब अमेरिका के नेतृत्व में नेटो सेनाओं को अफ़ग़ानिस्तान में तैनात किया गया था.
अब नेटो का स्ट्रक्चर समझ लेते हैं.
नेटो में फिलहाल 31 सदस्य देश हैं. नॉर्थ अमेरिका से अमेरिका और कनाडा हैं. बाकी के 29 सदस्य यूरोप से हैं. सबसे नया-नवेला मेंबर है, फ़िनलैंड. उसको अप्रैल 2023 में मेंबरशिप मिली. उसने और स्वीडन ने साथ में आवेदन दिया था. लेकिन स्वीडन के नाम पर तुर्किए ने आपत्ति जता दी. नेटो में किसी भी नए मेंबर को शामिल करने के लिए पहले से मौजूद सभी सदस्य देशों की सहमति ज़रूरी है.

अब जानकारी आई है कि नेटो समिट से पहले तुर्किए ने आपत्ति हटा ली है. वो स्वीडन की सदस्यता पर राज़ी हो गया है. ये कैसे हुआ और तुर्किए हामी क्यों नहीं भर रहा था?
स्वीडन उत्तरी यूरोप का एक छोटा सा देश है. नई उमर के लोग स्वीडन को फ़ेमस यू-ट्यूबर प्यूडीपाइ की वजह से भी जानते हैं. स्वीडन एक ख़ुशहाल देश है. लोगों का रहन-सहन अच्छा है. प्रोफे़शनल और पर्सनल ज़िंदगी के बीच बैलेंस मिलेगा. बच्चों के लिए मुफ़्त स्कूली शिक्षा. पर्यावरण को लेकर सजगता. मज़बूत लोकतंत्र. धर्मनिरपेक्षता. अभिव्यक्ति की आज़ादी. स्वतंत्र मीडिया. इन्हीं सब वजहों से हर साल हेप्पिनेस इंडेक्स की फेहरिस्त में स्वीडन टॉप के देशों में नज़र आता है. वो पिछले 200 बरसों से न्यूट्रल रहा है. लेकिन जब रूस ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ स्पेशल मिलिटरी ऑपरेशन शुरू किया, उसे अपने भविष्य पर संकट महसूस हुआ. मई 2022 में उसने फ़िनलैंड के साथ नेटो की सदस्यता के लिए अप्लाई कर दिया. नेटो वाले उन्हें अपने में मिलाने के लिए तैयार थे. लेकिन तुर्किए नाराज़ था.
उसने आरोप लगाया कि स्वीडन और फ़िनलैंड, दोनों कुर्दिस्तान वर्किंग पार्टी (PKK) का समर्थन करते रहे हैं. PKK तुर्किए की सरकार के ख़िलाफ़ हथियारबंद संघर्ष चलाती आई है. तुर्किए उन्हें आतंकी संगठन मानता है. वो कई बार कह चुका है कि दोनों को PKK का समर्थन बंद करना होगा और घोषित आतंकियों को वापस लौटाना होगा.
फिर स्पेन के मैड्रिड में नेटो शिखर सम्मेलन शुरू हुआ. दोनों देशों की सदस्यता पर चर्चा शुरू हुई. इसमें तुर्किए ने वीटो का इस्तेमाल कर दिया. कहा, हम इसका विरोध करते हैं. तुर्किए ने शर्त रखी कि 33 कुर्द लड़ाकों को हमें सौंप दिया जाए, जिन्होंने 2016 में तख्तापलट की साजिश रची थी.
जिन 33 लोगों को प्रत्यर्पित करने की मांग की गई थी, उनमें तुर्किए का पत्रकार ब्यूएन कीन्स भी था. कीन्स पर 2016 में अर्दोआन के ख़िलाफ़ तख्तापलट की साज़िश रचने के आरोप लगते हैं. स्वीडन राज़ी नहीं हुआ.
फिर 19 दिसंबर 2022 को स्वीडन की सुप्रीम कोर्ट ने कीन्स के प्रत्यर्पण पर रोक लगा दी. इससे तुर्किए नाराज़ हो गया.
08 जनवरी 2023 को स्वीडन के पीएम का भी बयान आया. बोले, हम तुर्किए की संभी मांगों को पूरा नहीं कर सकते. लेकिन हमें उम्मीद है कि तुर्किए हमें नाटो में शामिल होने की मंज़ूरी ज़रूर देगा.
फिर जनवरी 2023 में स्वीडन का एक वीडियो वायरल हुआ. इसमें प्रदर्शनकारी अर्दोआन के पुतले को रस्सी से उलटा लटका रहे थे. उनकी तुलना इटली के फासीवादी तानाशाह मुसोलिनी से की गई थी. इस वीडियो से तुर्किए गुस्सा हो गया. स्वीडन को माफ़ी मांगनी पड़ी.
फिर जून 2023 में स्वीडन में कुरआन जलाने का वाकया हुआ. इसने तुर्किए को फिर से नाराज़ किया. ऐसा लग रहा था मानो स्वीडन का नेटो में शामिल होने का सपना, सपना ही रह जाएगा. मगर फिर नेटो समिट से ठीक पहले अर्दोआन ने स्वीडन के नाम पर हामी भर दी है.
उन्होंने इस्तांबुल में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, नेटो के लगभग सभी सदस्य EU के सदस्य हैं. तुर्किए 50 साल से ज़्यादा समय से EU के दरवाज़े पर खड़ा है. अगर आप हमारे लिए रास्ता खोलेंगे तो हम भी स्वीडन के लिए रास्ता खोलेंगे, जैसा हमने फ़िनलैंड के लिए खोला था.
इसके साथ एक खबर और आई कि अर्दोआन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ EU की सदस्यता के मसले पर फोन में बात-चीत की.
इसके अलावा और एक ख़बर चल रही है कि तुर्किए के इस फैसले के बदले अमेरिका उसे F-16 फ़ाइटर जेट्स देगा.
इस बार की नेटो समिट में यूक्रेन की मेंबरशिप पर भी चर्चा हो रही है. इस पर रूस पहले भी आपत्ति जता चुका है. क्या इस समिट में यूक्रेन की मेंबरशिप का रास्ता खुल सकता है? और, क्या नेटो अपनी एकजुटता बनाकर रख पाएगा? इसपर स्वस्ति कहती हैं,
‘ये बहुत मुश्किल नज़र आता है कि यूक्रेन को इस बार नेटो की सदस्यता मिले. आप जानते हैं कि नेटो के किसी भी सदस्य देश पर हमला समूचे नेटो पर हमला माना जाता है और सभी को उस देश का बचाव करना होता है, ऐसे में यूक्रेन पहले से युद्ध में है. तो नेटो यूक्रेन को सदस्यता नहीं देगा. हालांकि उसका रास्ता हमेशा खुला हुआ है. पर उसकी सदस्यता इस बात पर निर्भर करती है कि युद्ध कब खत्म होगा.’
वीडियो: दुनियादारी: अमेरिका, यूक्रेन को क्लस्टर बम भेजेगा, NATO के देश नाराज़ क्यों हुए?