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वेद प्रकाश शर्मा : जिसने साहित्य को बस स्टैंड और गद्दे के नीचे तक पहुंचा दिया

जिसकी एक किताब की बिक्री में हिंदी के लगभग सारे लेखक आ जाएंगे, वो नहीं रहे.

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अनिमेष
18 फ़रवरी 2017 (Updated: 18 फ़रवरी 2017, 07:55 AM IST) कॉमेंट्स
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वेद प्रकाश शर्मा नहीं रहे. इस खबर के बाद “उनका जाना हिंदी साहित्य के लिए भारी क्षति है.” जैसी लाइन इस्तेमाल नहीं की जाएगी. वेद प्रकाश शर्मा पल्प लिखने वाले लेखक थे. पल्प मतलब लुगदी कागज पर छपा साहित्य. बचपन में 'बालहंस' और गंभीर होने के बाद 'हंस' पढ़ने के बीच हम सब चोरी छिपे इन लुग्दियों को पढ़ते रहे. शायद हम सब के साथ ऐसा हुआ हो कि लुग्दी के नशे में डूबे रहने वाले हमारे चाचा, बड़े भाई हमें सलाह देते हों कि तुम ये सब किताबें मत पढ़ा करो. ये किताबें पढोगे तो आवारा हो जाओगे.
सुरेंद्र मोहन पाठक के हार्पर कॉलिंस से छप कर पल्प से उठकर पॉपुलर की श्रेणी में चले जाने के बीच शर्मा अपनी जगह पर रहे. वर्दी वाला गुंडा के 8 करोड़ कॉपी बिकने के रिकॉर्ड के साथ. आलोचक उनको खारिज करते रहे. तमाम लिट फेस्ट में पॉपुलर और साहित्य की बहस के बीच वर्दी वाला गुंडा और दहेज में रिवॉल्वर का नाम लिख कर बहस होती रहीं. मगर शर्मा जी इन सबसे दूर रहे, या कहें कि उन्हें दूर रखा गया. दिल्ली से मेरठ की दूरी शर्मा जी के मामले में तो इतनी ज़्य़ादा हो गई जितनी 1857 के गदर के समय में बागी सिपाहियों के लिए भी नहीं रही होगी.
आज भी जब उनके जाने की बात हो रही है. तो हवाला दिया जा रहा है कि आमिर खान उनसे मिले थे. आमिर ने उनसे स्क्रिप्ट डिस्कस की थी. आमिर खान की सिनेमाई समझ को सलाम करते हुए मुझे पूछना है सबसे. 173 उपन्यास लिखने वाले का परिचय एक फिल्म स्टार से मिलना क्यों लिखा जाए? शर्मा जी ने 'इंटरनेशनल खिलाड़ी' और 'सबसे बड़ा खिलाड़ी' जैसी फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी. ये कहना बहुत ही क्लीशेड होगा मगर सच है कि अगर वो इंजीनियरिंग कॉलेज से आकर ये सब करते तो सुपर स्टार होते. सिर्फ इतना ही क्यों आपको एक किताब (वर्दी वाला गुंडा) का 8 करोड़ बिकना अतिश्योक्ति लगता हो तो इसका सिर्फ एक प्रतिशत ले लीजिए. 8 लाख, हिंदी साहित्य में आज जितनी भी नई किताबें ज़्यादा बिकने वाली श्रेणीं में आती हों सबकी बिक्री का टोटल इस आंकड़े के उन्नीस ही बैठेगा. वेद प्रकाश शर्मा को पहले मान्यता न देना और हिंदी के रिवाइव होने के दौर में उनका खारिज करना, हिंदी पट्टी के उस साहित्यिक सामंतवाद की निशानी है जिसमें किसी न किसी रूप में एलीट होना ही अंतिम लक्ष्य है. क्या तर्क देंगे आप? अगर आलोचकों के खारिज करने के कारण वेद प्रकाश शर्मा को कहीं गिना नहीं जाता है, तो नामवर सिंह ने तो फणीश्वर नाथ रेणु और मैला आंचल को भी खारिज किया था. आज कोर्स में मैरीगंज गांव के किस्से पढ़ाते समय क्या नामवर जी के मानस शिष्य इसे आलोचकों द्वारा खारिज उपन्यास बताते हैं. सुरेंद्र मोहन पाठक की दीवानगी, उनके फैन क्लब के कारण उन्हें लिट फेस्ट और तमाम आयोजनों में बुलाया जा रहा है या उनके बड़े प्रकाशक के चलते ये संभव हुआ है. याद रखिए तमाम नई हिंदी वाले लेखक (सभी प्रकाशनों के मिलाकर) भी इसलिए कौतुहल का विषय हैं कि वो IIT, IIM से पढ़कर, लंदन में रहकर हिंदी में लिखते हैं. खुशवंत सिंह के किस्सों और काशी का अस्सी (जिसमें भोले नाथ के साथ भो** के की बात होती है) को पढ़ते हुए ‘वर्दी वाला गुंडा’ को एक असाहित्यिक और भौंडा साहित्य टाइटल घोषित करने के बीच वेद प्रकाश शर्मा का हमारे बीच से जाना बस एक ‘खबर’ भर है. उन्होंने क्या लिखा और कैसा लिखा इस पर बात करने, रिव्यू करने की क्षमता हमारे पास नहीं है मगर हम शर्मा जी के लेखक बनने का किस्सा सुना सकते हैं.

लेखक बनने का किस्सा

शर्मा जी के लेखक बनने की कहानी रोचक है, वे ओम प्रकाश शर्मा, गुलशन नंदा, इब्ने सफी, सबको पढ़ते थे, लेकिन पसंद वेद प्रकाश कांबोज को करते थे, शर्मा कांबोज को गुरु मानते थे. कांबोज के दो अहम किरदार थे विजय और रघुनाथ. कांबोज को पढ़कर उन्हें हमेशा लगता था कि वे इससे बेहतर लिख सकते हैं. 1972 में हाइस्कूल का पेपर देने के बाद गर्मी की छुट्टियों में उन्हें पैतृक गांव बिहरा भेज दिया गया. वे अपने साथ कोई एक दर्जन उपन्यास ले गए थे. वहां उनका न कोई दोस्त था, न कोई फ्रेंड सर्कल. उन्होंने लिखना शुरू किया और लिखते-लिखते एक कॉपी, दो कॉपी, कई कॉपी भर गईं. मेरठ पहुंचने पर यह बात उनके पिता को मालूम हुई. वे शाम को घर आए और उन पर लट्ठ बजाना शुरू कर दिया. कहा, ‘‘अब तक तो पढ़ै था, अब इसनै लिख दिया. इसनै तो उपन्यास लिख दिया. यह लड़का तो बिगड़ गया.’’ पिटाई के बाद पिता ने बोला, ‘‘क्या लिखा है, तैने? मुझै लाके दे.’’ किशोर वेद प्रकाश ने कॉपियां उन्हें लाकर दे दीं. पिता ने सुबह कहा, ‘‘बहोत अच्छा लिखा है तैने. यह दिमाग में कहां से आ गई?’’ पिता स्क्रिप्ट लेकर प्रेस में कंपोजिंग सिखाने ले गए. वहां मानो उनकी किस्मत उनका इंतजार कर रही थी. वहां लक्ष्मी प्रेस के मालिक जंग बहादुर बैठे थे. बहादुर ने कुछ पन्ने पढ़े और इसके बाद क्या हुआ ये दुनिया जानती है. हां ये ज़रूर हो सकता है कि कल कोई सुपर स्टार वेद प्रकाश शर्मा के लिए ट्वीट-श्वीट कर ले, अंग्रेज़ी का कोई प्रकाशन ‘बेस्ट ऑफ शर्मा’ के नाम से एक हार्ड बाउंड बुक सेट निकाल दे और हम सब अपने-अपने बुक शेल्व में उसे जगह दे दें. आप वर्दी वाला गुंडा की शुरुआत पढ़िए और देखिए डिस्क्रिपश्न कितना सजीव हो सकता है.

"लाश ने आंखें खोल दी.

ऐसा लगा जैसे लाल बल्ब जल उठे हों.

एक हफ्ता पुरानी लाश थी वह. कब्र के अंदर, ताबूत में दफ्न.

सारे जिस्म पर रेंग रहे गंदे कीड़े उसके जिस्म को नोंच-नोंचकर खा रहे थे. 

कहीं नरकंकाल वाली हड्डियां नज़र आ रही थीं तो कहीं कीड़ों द्वारा अधखाया गोश्त लटक रहा था—

कुछ देर तक लाश उसी ‘पोजीशन’ में लेटी लाल बल्ब जैसे नेत्रों से ताबूत के ढक्कन को घूरती रही.

फिर!"


पढ़ें वेद प्रकाश शर्मा का इंटरव्यू :

उसने नहीं वेद प्रकाश शर्मा ने कहा था...

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