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TMC में दूसरे सबसे कद्दावर नेता रहे सुवेंदु दा क्या सबसे मुश्किल दौर में ममता का साथ छोड़ देंगे?

कौन हैं सुवेंदु अधिकारी, जिन्हें चुनाव से पहले बीजेपी लपकने में लगी है.

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सुवेंदु अधिकारी की फ़ाइल फ़ोटो.
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डेविड
4 दिसंबर 2020 (Updated: 4 दिसंबर 2020, 09:17 AM IST) कॉमेंट्स
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सुवेंदु अधिकारी. ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस यानी TMC में ममता बनर्जी के बाद दूसरे कद्दावर नेता रहे हैं. सरकार में ट्रांसपोर्ट मंत्री भी रहे. 27 नवंबर को उन्होंने इस्तीफा दे दिया. हुगली रिवर ब्रिज आयोग का अध्यक्ष पद भी छोड़ दिया. मंत्री पद से हटते ही उन्होंने अपनी जेड प्लस सुरक्षा वापस कर दी. सरकारी आवास भी छोड़ दिया.
सुवेंदु अधिकारी के इस तरह इस्तीफे से ममता बनर्जी की पार्टी में खलबली की सी स्थिति है. अटकलें लग रही हैं कि वो TMC छोड़कर BJP में शामिल हो सकते हैं. हालांकि अब तक ऐसा नहीं हुआ है. उन्हें मनाने का दौर जारी है. TMC के नेता कह रहे हैं कि 'ऑल इज वेल' लेकिन सुवेंदु की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
आखिर कौन हैं सुवेंदु अधिकारी. पश्चिम बंगाल में उनकी राजनीतिक हैसियत क्या है? अगर वो TMC छोड़ते हैं, तो ममता बनर्जी को कितना नुकसान होगा? इन सबके बारे में और सुवेंदु के बारे में बात करने से पहले हमें उस अधिकारी परिवार के बारे में जानना होगा, जो पश्चिम बंगाल की राजनीति में पिछले दो दशकों से सक्रिय है.
11 TMC में सुवेंदु को मनाने का दौर जारी है.

अधिकारी परिवार का गढ़ है पूर्वी मिदनापुर जिला 

पश्चिम बंगाल का पूर्वी मिदनापुर जिला. अधिकारी परिवार का गढ़ माना जाता है. अधिकारी परिवार का कोई ना कोई सदस्य लगातार यहां से सांसद और विधायक बनता रहा है. इस जिले और आसपास के क्षेत्रों में TMC के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने का श्रेय अधिकारी परिवार को ही जाता है.
शिशिर अधिकारी. अधिकारी परिवार के मुखिया. तीसरी बार के सांसद. 79 साल के शिशिर अधिकारी ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी. पहली बार 1982 में विधायकी का चुनाव लड़ा. कांग्रेस के टिकट पर. कांथी दक्षिण सीट से. जब कांग्रेस से अलग होकर ममता बनर्जी ने 1998 में अपनी पार्टी बनाई, तो वह ममता के साथ हो लिए. तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में शुमार रहे. 2001 में कांथी दक्षिण सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2006 में एक बार फिर से विधायक बने, लेकिन एगरा सीट से.
Sisir Adhikari 2019 के लोकसभा चुनाव में शिशिर अधिकारी तीसरी बार सांसद चुने गए.

2009 के लोकसभा चुनाव में शिशिर अधिकारी ने TMC के टिकट पर सांसदी का चुनाव लड़ा. कांथी से. जीतकर मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए-2 में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री बने. 2014 और 2019 का चुनाव भी उन्होंने कांथी से लड़ा. इस समय TMC के लोकसभा सांसद हैं,और पूर्वी मिदनापुर के तृणमूल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष भी हैं.

पिता के बाद बेटा राजनीति में

सुवेंदु अधिकारी. शिशिर अधिकारी के बेटे हैं. सुवेंदु ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस के स्टूडेंट फ्रंट से की थी. कांथी के प्रभात कुमार कॉलेज में वह स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेटरी बने. मात्र 25 साल की उम्र में कांथी से पार्षद चुन लिए गए. सुवेंदु अधिकारी ने 2001 में मुगबेराई विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए.
2004 में सुवेंदु ने तुमलुक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. विधायकी हारने वाले सुवेंदु सांसदी भी हार गए. लगातार दो हार के बाद सुवेंदु ने अपनी पिता की ओल्ड कांथी दक्षिण सीट से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा. लेकिन तीन साल बाद लोकसभा चुनाव में तुमलुक से सांसदी का चुनाव जीतने के बाद विधायकी से इस्तीफा दे दिया. इसी सीट से 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की.
इसके बावजूद 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वह विधायकी का चुनाव लड़ने मैदान में उतरे. पूर्वी मिदनापुर जिले की नंदीग्राम सीट से. जीत मिलने के बाद उन्होंने सांसद की सीट खाली कर दी, और ममता बनर्जी की दूसरी बार बनी सरकार में मंत्री बन गए. सुवेंदु के भाई दिव्येंदु अधिकारी कांथी लोकसभा सीट से सांसद हैं, जबकि सौमेंदु कांथी नगर पालिका के अध्यक्ष हैं.

नंदीग्राम आंदोलन ने पलट दी किस्मत

साल 2007. पश्चिम बंगाल में लेफ्ट की सरकार के खिलाफ ममता बनर्जी ने मोर्चा खोल दिया था. पूर्वी मिदनापुर के नंदीग्राम में एक बड़ा आंदोलन हुआ. सुवेंदु के सियासी कद को बढ़ाने में इस आंदोलन ने बड़ी भूमिका निभाई. ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए नंदीग्राम आंदोलन के कर्ता-धर्ता सुवेंदु रहे. इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उन्होंने आंदोलन खड़ा किया. आंदोलनकारियों की पुलिस और माकपा कैडरों के साथ खूनी झड़प हुई. पुलिस की प्रदर्शनकारियों पर गई गोलीबारी में कई लोगों की मौत के बाद आंदोलन और उग्र हो गया. इससे तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार को झुकना पड़ा. नंदीग्राम और हुगली जिले के सिंगूर में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन ने तृणमूल कांग्रेस की पश्चिम बंगाल में पकड़ को और मजबूत किया. उसे 34 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज वाम मोर्चा को हटाने में सफलता दिलाई.
8 नंदीग्राम आंदोलन ने 34 साल से ज्यादा के वाम मोर्चे की सरकार को उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

पार्टी में भूमिका बढ़ी

नंदीग्राम आंदोलन में सुवेंदु के रणनीतिक क्षमता को देखते हुए ममता बनर्जी ने उन्हें जंगलमहल में तृणमूल के विस्तार का काम सौंपा. इसी के तहत मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया आदि जिले आते हैं. वाम मोर्चा का गढ़ कहे जाने वाले इन जिलों में सुवेंदु ने पार्टी की पकड़ को मजबूत बनाया. इसके अलावा उन्होंने मुर्शिदाबाद और मालदा में भी तृणमूल को बढ़त दिलाने के काम को अंजाम दिया. संगठन पर बेहतर पकड़ के बूते ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने 2011 के बाद 2016 में भी शानदार प्रदर्शन किया.
लंबे समय तक ममता बनर्जी ने सुवेंदु की संगठनात्मक क्षमता का इस्तेमाल राज्य के कई हिस्सों में किया. TMC के ऑब्जर्वर के रूप में काम किया. सुवेंदु की पार्टी और पार्टी संगठन पर तगड़ी पकड़ है. उनका दबदबा हल्दिया पोर्ट एरिया में है. हल्दिया इंडस्ट्रियल एरिया के ट्रेड यूनियनों में भी उनकी मजबूत पकड़ है.
4 सुवेंदु अधिकारी भले ही राजनीतिक परिवार से आते हों लेकिन उन्हें जमीन से जुड़ा हुआ नेता माना जाता है.

जब प्राइवेट कंपनियों की CSR (Corporate social responsibility) पॉलिसी नहीं होती थी, सुवेंदु ने ये सुनिश्चित किया कि Mitsubishi, इंडियन ऑयल और Haldia Petrochemicals जैसी कंपनियां स्थानीय लोगों के विकास में मदद करें. हल्दिया इंडस्ट्रियल टाउन को विकसित करने में अधिकारी का योगदान बहुत बड़ा है. सामुदायिक केंद्र, ट्यूबवेल, सार्वजनिक शौचालय और बस टर्मिनल बनाने से लेकर क्लब स्थापित करने और बेरोजगार युवाओं को नौकरियों में शामिल करने तक, सुवेंदु अधिकारी ने बहुत कुछ किया. उनका दावा है कि उन्होंने अपने जिले में 80 हजार लोगों को जॉब दिया.
पार्टी के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं का मानना है कि पश्चिम बंगाल में TMC के बड़े नेताओं में पहला नाम 'दीदी' यानी ममता बनर्जी का आता है, जिन्हें राज्य के हर हिस्से में लोग पसंद करते हैं. इस मामले में अगर ममता को कोई टक्कर दे सकता है तो वो हैं 'दादा' यानी सुवेंदु अधिकारी.

2014 से हो गई थी अनबन की शुरुआत!

2014 से पहले तक सब सही चल रहा था, लेकिन मामला तब गड़बड़ होने लगा, जब ममता बनर्जी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को संगठन में ले आईं. हालांकि सुवेंदु ने ये साफ कर दिया कि वह किसी और नेता के इशारे पर काम नहीं करेंगे. वह सिर्फ ममता बनर्जी का ही 'आदेश' मानेंगे. पिछले कुछ सालों से वह पार्टी की रैलियों और महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से गायब ही रहे हैं. 2017 में उन्होंने तबीयत खराब होने के चलते TMC की संगठनात्मक मीटिंग्स में हिस्सा नहीं लिया था. साल 2020, मार्च में वह पार्टी के एक बड़े कार्यक्रम से गायब रहे. इसी साल अगस्त में झारग्राम में हुए एक सरकार के कार्यक्रम में भी वो नहीं आए. इससे ममता की बहुत किरकिरी हुई.
पिछले कुछ महीनों से सुवेंदु पार्टी की नीतियों और कुछ नेताओं को लेकर खुलकर अपनी नाराजगी जता रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, वह ममता बनर्जी से कह चुके थे कि पश्चिम बंगाल में होने वाली राजनीतिक हिंसा, जबरन वसूली और कुछ नेताओं के अड़ियल रवैये की वजह से पार्टी को नुकसान हो रहा है.
10 पावर पॉलिटिक्स को लेकर TMC मे सुवेंदु अधिकारी (बाएं) और अभिषेक बनर्जी (दाएं) की नहीं बनती.

द क्विंट की खबर के मुताबिक, मंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले सुवेंदु अधिकारी ने नंदीग्राम और रामनगर में दो रैलियां की थीं. नंदीग्राम की रैली में उन्होंने अभिषेक बनर्जी पर तंज कसा था. हालांकि रामनगर में उनकी टोन थोड़ी नरम पड़ी. इन दो रैलियों के बीच सुवेंदु के घर प्रशांत किशोर उनसे मुलाकात करने पहुंचे, लेकिन उनके पिता शिशिर अधिकारी से ही मिल पाए. सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और उनकी कंसल्टेंसी फर्म I-PAC तृणमूल के लिए रणनीति तैयार कर रही है. मीडिया में ऐसी खबरें आईं कि प्रशांत किशोर चाहते थे कि पार्टी में विरोधियों को दरकिनार किया जाए. ये वो लोग थे, जो पार्टी में ज्यादा ताकत और ओहदे की तलाश में थे, जैसे कि सुवेंदु.

विवादों से नाता

शुभेंदु अधिकारी कई बार विवादों में भी घिरे. नंदीग्राम आंदोलन के दौरान हुए खूनी संघर्ष को लेकर उन पर कमेटी के लोगों को हथियार उपलब्ध कराने के आरोप लगे. हालांकि उन्होंने इन्हें खारिज किया. सारदा घोटाले में भी उनका नाम आया. सीबीआई ने 2014 में सारदा समूह के वित्तीय घोटाले में कथित भूमिका को लेकर उनसे पूछताछ भी की थी. दरअसल कंपनी के एक पूर्व कर्मचारी ने आरोप लगाया था कि सारदा के प्रमुख सुदीप्तो सेन कश्मीर भागने से पहले सुवेंदु अधिकारी से मिले थे. हालांकि सुवेंदु इन आरोपों से इनकार करते रहे.
2019 में गढ़ नहीं बचा पाए
2019 का लोकसभा चुनाव. बीजेपी ने 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल की. ममता बनर्जी की पार्टी ने सुवेंदु अधिकारी का गढ़ मानी जाने वाली लोकसभा की 13 सीटों में से 9 गंवा दीं. पुरूलिया, झारग्राम, मुर्शिदाबाद, मालदा, पूर्वी मिदनापुर, पश्चिमी मिदनापुर, बांकुड़ा और बिशनपुर. ये वो एरिया हैं, जहां सुवेंदु को मास लीडर के रूप में जाना जाता है, लेकिन यहां ममता की पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, TMC में कुछ नेताओं का मानना है कि अगर सुवेंदु और अधिकारी परिवार, ममता का साथ छोड़ता है तो इसका असर उन 110 सीटों पर तो पड़ेगा ही, जहां इस परिवार का इंफ्लुएंस हैं. ये संख्या 294 सीटों तक भी जा सकती है. ममता को इस बात का अंदाजा है कि सुवेंदु के जाने से पार्टी को कितना नुकसान हो सकता है. यही कारण है कि उन्हें मनाने की कोशिशें जारी हैं. ममता ने साफ कर दिया है कि इस विधानसभा चुनाव में 294 सीटों पर ऑब्जर्वर सुवेंदु ही होंगे.
फिलहाल TMC सुवेंदु अधिकारी को पार्टी में रोकने में तो कामयाब हो गई है, लेकिन विवाद खत्म नहीं हुआ है. हो सकता है कि आने वाले कुछ ही दिनों में सुवेंदु तृणमूल में अपनी स्थिति साफ कर दें.

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