लालू, नीतीश और मजबूत BJP के सामने बिहार की राजनीति में कहां दिखते हैं प्रशांत किशोर?
Nitish Kumar के साथ अपनी पहली राजनीतिक पारी में असफल रहने वाले Prashant Kishor अब खुद अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं.

क्या बिहार एक नई राजनीतिक पार्टी के उदय के लिए तैयार है? क्या लालू, नीतीश और बीजेपी के मजबूत संगठन की मौजूदगी में बिहार किसी नए नेता का राजनीतिक जन्म हो सकता है? क्या 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में एक नई पार्टी लालू और नीतीश का खेल बिगाड़ सकती है? ये सारे सवाल इसलिए क्योंकि पॉलिटिकल कन्सल्टेंट से पॉलिटिशियन बने प्रशांत किशोर ने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने का एलान कर दिया है.
28 जुलाई को प्रशांत किशोर ने घोषणा कर दी कि 2 अक्तूबर, 2024 को उनकी पार्टी अस्तित्व में आ जाएगी. और 2025 में उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव भी लड़ेगी. उन्होंने कहा, “एक करोड़ सदस्य 2 अक्टूबर को गांधी जयंती को मौके पर जन सुराज की नींव रखेंगे. पहले दिन 1.50 लाख लोगों को पदाधिकारी नामित करने के साथ शुरुआत होगी.”
नीतीश कुमार के साथ अपनी पहली राजनीतिक पारी में असफल रहने वाले प्रशांत किशोर अब खुद अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं. इस घोषणा के दौरान उन्होंने कहा कि वो अपनी पार्टी के अध्यक्ष नहीं होंगे. एक दलित नेता उनकी पार्टी का पहला अध्यक्ष होगा. उन्होंने कहा कि जो 25 लोग, पांच हजार लोगों को पार्टी का सदस्य बनाने की क्षमता रखते हैं, वो पार्टी अध्यक्ष पद के लिए अप्लाई कर सकते हैं.
दरअसल, अध्यक्ष पद की रेस से खुद को अलग करके प्रशांत किशोर ये जाहिर करना चाह रहे हैं कि उन्हें पद की लालसा नहीं है. इस विषय पर इंडियन एक्सप्रेस के सीनियर असोसिएट और लेखक एडिटर संतोष सिंह कहते हैं,
“बिहार में समाजवादी राजनीति अब उबाऊ हो चुकी है. इसलिए प्रशांत किशोर ने दलित अध्यक्ष का दांव खेलकर OBC राजनीति से आगे निकलने का संदेश दिया है. दलित अध्यक्ष बनाने से उन पर ब्राह्मण या जातिवाद होने का कोई आरोप नहीं लग पाएगा. और ये पद की लालसा का भी आरोप नहीं लगेगा.”
पार्टी बनने से पहले ही प्रशांत ने पार्टी की राजनीति की लाइन लेंथ तय करना शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि समाज में 5 समूह हैं, सामान्य, ओबीसी, ईबीसी, एससी-एसटी और मुस्लिम. दलित समुदाय सबसे अधिक वंचित हैं, इसलिए जन सुराज का पहला अध्यक्ष दलित वर्ग से ही आएगा. लेकिन दलित राजनीति पर दस्तक देने के साथ ही PK ने अति-पिछड़ा वर्ग पर सेंधमारी करने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि अगले साल चुनाव में 70 उम्मीदवार अति-पिछड़ा वर्ग से होंगे. उन्होंने कहा,
“हम ये नहीं सोचेंगे कि यादव मतदाता लालू को वोट देते हैं और कोइरी और कुर्मी नीतीश को वोट देते हैं. अगर यादव लगभग 15% हैं, तो हम परिणाम की परवाह किए बिना उनकी आबादी के हिसाब से उम्मीदवार उतारेंगे. चूंकि राज्य की आबादी में ईबीसी की हिस्सेदारी लगभग 36% है, इसलिए निश्चिंत रहें कि हम अगले साल के विधानसभा चुनावों में समुदाय से लगभग 70 उम्मीदवार उतारेंगे.”
प्रशांत आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं. हालांकि, ये वही हैं जिन्होंने 6 महीने पहले जातिवादी राजनीति के भविष्य को नकार दिया था. इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई से बात करते हुए इसी साल 31 जनवरी को प्रशांत किशोर ने कहा था,
“जमीनी स्तर पर जाति आधारित राजनीति का कोई महत्व नहीं है. जाति भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण फैक्टर है, लेकिन यह एकमात्र निर्धारक नहीं है.”
पटना के बापू सभागार में हुई प्रशांत किशोर की इस सभा में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर भी मौजूद रहीं. कर्पूरी ठाकुर बिहार के सर्वमान्य नेता तो थे ही, लेकिन उन्हें अति-पिछड़ों के बड़े नेता के तौर पर जाना जाता था. उनकी अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान देने का एलान कर दिया.
जाहिर है जागृति का प्रशांत किशोर की सभा में शामिल होना एक राजनीतिक संदेश था. संदेश अति-पिछड़े वर्ग के लिए. जिस समाज को उन्होंने 70 सीटें देने का वादा भी कर दिया. PK की इस पॉलिटिक्स पर इंडिया टुडे के विशेष संवाददाता पुष्यमित्र कहते हैं,
कितने सफल होंगे प्रशांत किशोर?“इसे ही अस्मितावादी राजनीति कहते है, जिसे अब तक प्रशांत किशोर नकारते आ रहे थे. अब तक वो रोजगार, युवाओं, भ्रष्टाचार की बात करते आए हैं. लेकिन उन्हें ये एहसास हो गया है कि राजनीति में जड़े जमाने के लिए जाति का सहारा लेना पड़ेगा. इसलिए उन्होंने दलित और अति-पिछड़ों की बात की है. राज्य में EBC की आबादी 36 प्रतिशत है, जो चुनाव में बड़ा प्रभाव डालती है.”
बिहार में ऊपरी तौर पर देखा जाए तो ऐसा कोई राजनीति वैक्यूम नहीं है जिसे भरने के लिए नए नेता की जरूरत हो. लालू पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद जो राजनीतिक जमीन उनकी पार्टी ने खोई थी, उस पर तेजस्वी यादव ने अब अपनी पकड़ बना ली है. कमजोर होते नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव ने नया ऑक्सीजन दे दिया है. और बीजेपी लगातार संगठन को मजबूत करने में जुटी है. ऐसे समय में प्रशांत किशोर बिहार में सियासत में अपनी जगह बनाने निकले हैं.
इस पर संतोष सिंह कहते हैं,
“प्रशांत किशोर ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपनी पार्टी बनाने से पहले राज्य के 60 प्रतिशत हिस्से को पैदल कवर किया है. उन्होंने राज्य में अपना संगठन खड़ा किया है. जिसके बलबूते पर वो पार्टी बनाने जा रहे हैं. अपनी पदयात्रा के दौरान प्रशांत ने शिक्षा, रोजगार, और चिकित्सा के मुद्दे पर लोगों से बात की. उन्होंने कहा कि इनके लिए आपको बाहर नहीं जाना पड़ेगा. ये वो मुद्दे हैं जो लोगों से सीधे तौर पर जुड़ते हैं. प्रशांत ने लोगों से सीधा कनेक्शन बनाने की कोशिश की है. उनकी पार्टी को चुनाव में कितनी सीटें मिलेंगी इसकी भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती, लेकिन चुनाव में उनका असर देखने को जरूर मिलेगा.”
PK ने 2 अक्टूबर, 2022 को बिहार में जन सुराज यात्रा शुरू की थी. इस दौरान उन्होंने राज्य के गांव-गांव का दौरा किया. छोटी-छोटी सभाओं को संबोधित किया. और लोगों से मिलकर उनसे सीधा संपर्क साधने की कोशिश की. यात्रा के ठीक दो साल बाद इस साल गांधी जयंती पर उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू करने का एलान किया है.
इस पर पुष्यमित्र भी वही दोहराते नज़र आए जो संतोष सिंह ने कहा. वो कहते हैं,
“प्रशांत ने राज्य भर में घूम-घूमकर पंचायतों और उनके प्रधानों से संपर्क स्थापित किया है. जमीन पर उनका संगठन मजबूत है. जहां गए वहां कमेटी बनाई है. वोट सीटों में कन्वर्ट होंगे या नहीं इस पर दावा नहीं किया जा सकता है. लेकिन चुनाव में लोग प्रशांत किशोर को वोट करते हुए जरूर दिखेंगे.”
बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं. NDA और INDIA गठबंधन से इतर प्रशांत किशोर की पार्टी राज्य में तीसरे मोर्चे पर तौर पर उभर सकती है. अब PK अपनी दूसरी सियासी पारी में कितना सफल होंगे ये चुनाव बाद सामने आ जाएगा.
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