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कहानी अलका लांबा की, जिनके इस्तीफे के स्टाइल ने आम आदमी पार्टी की किरकिरी करा दी

क्या लौट के बुद्धू घर को आ रहे हैं?

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ये मुलाकात इक बहाना है, प्यार का सिलसिला पुराना है.
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मुबारक
6 सितंबर 2019 (Updated: 6 सितंबर 2019, 02:39 PM IST) कॉमेंट्स
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2019 का अगस्त महीना. 4 तारीख. चांदनी चौक, दिल्ली से आम आदमी पार्टी विधायक अलका लांबा ने एक बयान दिया. कहा,
'मैंने अपने लोगों से बात की और ये तय हुआ कि मुझे आम आदमी पार्टी से सारे रिश्ते तोड़ लेने चाहिए. मैं जल्द ही लिखित में आम आदमी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दूंगी.'
आम आदमी पार्टी ने तुरंत रिएक्ट किया. उनके प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने चुटकी लेते हुए ट्वीट किया.
'वो दर्जनों बार ऐसी घोषणा कर चुकी हैं. रेज़िग्नेशन लेटर भेजने में महज़ एक मिनट लगता है. हम तो ट्विटर तक पे इस्तीफा कबूल कर लेंगे.'
saurabh bhardwaj tweet

33 दिन का समय लगा लेकिन आखिरकार अलका लांबा ने इस चैलेंज की ईंट का जवाब पत्थर से दे ही दिया. 6 सितंबर को उन्होंने ट्वीट करके ही इस्तीफा दिया. देखिए वो ट्वीट.
alka lamba tweet

इस्तीफे वाले ट्वीट के तकरीबन एक घंटे बाद उन्होंने एक और ट्वीट किया. अरविंद केजरीवाल को टैग करते हुए. कहा,
'अरविंद केजरीवाल जी, आपके प्रवक्ता ने - आपकी ही इच्छानुसार - मुझसे पूरे घमंड में कहा था कि पार्टी मेरा इस्तीफा ट्विटर पर भी कबूल कर लेगी. सो मेरा आम आदमी पार्टी की सदस्यता से, जो अब ख़ास आदमी पार्टी बन चुकी है, इस्तीफा मंज़ूर कर लीजिए.'
alka lamba tweet1

और इस तरह 2013 में कांग्रेस छोड़ने के बाद आम आदमी पार्टी में शुरू हुए अलका लांबा के सफर का फाइनल डेस्टिनेशन आ गया. सुनते हैं कि वो फिर से कांग्रेस में जाएंगी. कुछ दिन पहले सोनिया गांधी से हुई उनकी मुलाक़ात भी इस उड़ती खबर के सच होने की संभावना बयान करती है. बहरहाल, इस ट्विटर ड्रामे के बाद हमने सोचा कि क्यों न अलका लांबा की गुजश्ता ज़िंदगी पर एक नज़र दौड़ाई जाए. वो ज़िंदगी, जिसमें छात्र राजनीति, कांग्रेस, एनजीओ, अन्ना आंदोलन और कंट्रोवर्सी जैसे तमाम की-वर्ड्स हैं.

पॉलिटिक्स में किशोरी

अलका लांबा का जन्म शहर-ए-दिल्ली में हुआ. 21 सितंबर 1975 को. वो दौर, जब देश में आपातकाल जारी था. आपातकाल, जो कांग्रेस ने लगाया था. कांग्रेस, जिसकी अलका लांबा आगे चलकर नेता बनीं.
स्कूलिंग, कॉलेज सब दिल्ली से हुआ. खूब पढ़ी-लिखी हैं. केमिस्ट्री में एमएससी किया है. दिल्ली यूनिवर्सिटी से. बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी से MEd भी किया है.
अलका लांबा के राजनीति में 25 साल पूरे हो गए हैं.
अलका लांबा के राजनीति में 25 साल पूरे हो गए हैं.

अभी किशोरों की उम्र के आगे लगने वाला 'टीन' हटा भी नहीं था कि राजनीति की ज़मीन पर पांव पड़ गया. महज़ 19 (नाइंटीन) साल की उम्र में. साल था 1994. अलका ने कांग्रेस का स्टूडेंट विंग NSUI जॉइन कर लिया. सालभर बाद ही डूसू का चुनाव लड़ा और बहुत बड़े मार्जिन से प्रेसिडेंट चुनी गईं. पॉलिटिकल करियर का ग्राफ ऊपर की दिशा में ही बढ़ता रहा. अगले साल वो NSUI की राष्ट्रीय संयोजक बनीं और उसके अगले साल राष्ट्रीय अध्यक्ष. 2002 में ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं. फिर आया बड़ा ब्रेक.
साल 2003. छात्र राजनीति में कदम रखने के नौ साल बाद अलका को विधायकी का टिकट मिल गया. कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली की मोती नगर सीट से मैदान में उतारा. सामने थे बीजेपी के कद्दावर नेता मदन लाल खुराना. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री. अलका को हारना तो था ही लेकिन फाइट ज़रूर दी उन्होंने. तकरीबन 15 हज़ार वोटों से हार गईं. हालांकि उनकी ये हार उनके करियर में बाधा नहीं बनी. कांग्रेस का उनमें विश्वास बढ़ता ही गया. 2006 में उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (AICC) में शामिल किया गया. फिर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमिटी का जनरल सेक्रेटरी भी बना दिया गया. 2007 से 2011 तक वो AICC की सेक्रेटरी भी रहीं.
फिर हवाएं बदलने लगीं.

अन्ना वाला आंदोलन

अन्ना हज़ारे के बहुचर्चित आंदोलन से कौन नावाकिफ होगा? इस देश की सूरत बदलकर रख दी थी उस आंदोलन ने. 'आम आदमी पार्टी' का वृक्ष जो आज फला-फूला नज़र आता है, उसके बीज इसी आंदोलन में बोए गए थे. ये वही आंदोलन है, जिसने शक्तिशाली कांग्रेस पार्टी के पतन की नींव में पत्थर भरे थे. 2011 का लगभग पूरा साल इस आंदोलन के नाम रहा. अगले साल आम आदमी पार्टी बनी.
आम आदमी पार्टी के साथ अलका का साथ लगभग पांच साल का रहा, जबकि कांग्रेस के साथ उन्होंने 20 साल बिताए हैं.
आम आदमी पार्टी के साथ अलका का साथ लगभग पांच साल का रहा, जबकि कांग्रेस के साथ उन्होंने 20 साल बिताए हैं.

पार्टी के शुरुआती दिनों में अलका लांबा पार्टी पर हमलावर रहीं. फिर मिज़ाज बदल गया. धीरे-धीरे अलका अपनी ही पार्टी की आलोचना करने लगीं. कहने वाले कहते हैं कि 2013 के विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलना अलका के रुष्ट, असंतुष्ट होने की सबसे बड़ी वजह थी. बहरहाल, जो भी वजह हो उनका कांग्रेस से तगड़ा मोहभंग हो गया था. दिसंबर 2013 में उनका दिया ये बयान ही पढ़ लीजिए. इसमें टिकट न मिलने का दर्द भी है और आम आदमी पार्टी की तारीफ़ भी.
'कोई भी कांग्रेसी नेता गांधीवादी नहीं है. मैं तीन साल से राहुल और सोनिया गांधी से मिलने की कोशिश कर रही हूं लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि उनके सिस्टम में तगड़ा झोल है. ख़ासतौर से राहुल गांधी ने जो टिकट वितरण के नियम बनाए हैं उनमें. वो आम आदमी पार्टी की तरह कैडर या कार्यकर्ताओं के संपर्क में नहीं रहते.'
यही वो दिन थे, जब उनका झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ होने लगा था. आखिरकार दिसंबर, 2013 में उन्होंने पार्टी जॉइन कर ही ली. ऐन उस वक्त के आसपास जब केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे थे.

आम आदमी पार्टी ने क्या दिया?

एक शब्द में कहें तो विधायकी दी. जब आम आदमी पार्टी कांग्रेस की बैसाखियां त्याग कर अपने दम पर सरकार बनाने उतरी, तो उन्होंने अलका लांबा को भी टिकट दिया. चांदनी चौक से. अलका जीत गईं. बावजूद इसके कि सामने चार बार से विधायक की कुर्सी पर जमा हुआ नेता था. हालांकि ये भी उतना ही सच है कि 2015 के उन दिल्ली चुनावों की जीत किसी व्यक्ति-विशेष की कम और नई पार्टी के तूफानी क्रेज़ की ज़्यादा थी. खैर, वो जो भी था, अलका लांबा एमएलए बन गईं. अब तक हैं. बस पार्टी छोड़ दी है उन्होंने.
पार्टी छोड़ते वक्त उन्होंने जो कहा है वो कुछ-कुछ वैसा ही है जैसा 2013 में कांग्रेस के लिए कहा था. अब सुनते हैं कि जल्द ही कांग्रेस जॉइन करने वाली हैं. सर्कल पूरा हुआ.
ये तबकी तस्वीर है जब अलका लांबा ने सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमंत्री बनने से इंकार करने पर प्रोटेस्ट किया था.
ये तबकी तस्वीर है जब अलका लांबा ने सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमंत्री बनने से इनकार करने पर प्रोटेस्ट किया था.

गो इंडिया फाउंडेशन

अलका लांबा एक एनजीओ की चेयरपर्सन भी हैं. नाम है 'गो इंडिया फाउंडेशन'. इसकी शुरुआत 2006 में हुई थी. ये एनजीओ मुख्यतः महिलाओं से जुड़ी समस्याओं पर काम करता है. 2010 में इस एनजीओ ने सुर्खियां भी बटोरीं थीं. एनजीओ ने 15 अगस्त, 2010 को देशभर के ढाई सौ शहरों में ब्लड डोनेशन कैम्पेन चलाया. भारत का 63वां स्वतंत्रता दिवस था और गोल रखा गया 63 हज़ार यूनिट खून जमा करने का. कैम्पेन उम्मीद से ज़्यादा कामयाब रहा. 65 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने रक्तदान किया उस दिन. सलमान ख़ान, आमिर ख़ान, रितेश देशमुख, दिया मिर्ज़ा जैसी बॉलीवुड हस्तियों ने इस कैम्पेन को प्रमोट किया था.

पति का घर हड़प लिया !

थोड़ा फ्लैशबैक. साल 2003. अलका मोतीनगर से विधायकी का चुनाव लड़ रहीं थीं. हाल ही में उनका डिवोर्स हुआ था. उनके पति लोकेश कपूर ने उन पर आरोपों की झड़ी लगा दी. पहला तो ये कि अलका ने उनका घर हड़प लिया. आरोप लगाया कि अलका ने उनके सुभाष नगर वाले फ्लैट पर गैरकानूनी कब्ज़ा किया हुआ था. बकौल लोकेश कपूर वो लोग सालभर तक उस फ्लैट में रहे और फिर अलका ने उन्हें बाहर फिंकवा दिया. यही नहीं उसमें अपना पॉलिटिकल ऑफिस ही बना लिया. इसके अलावा लोकेश कपूर ने उन पर हैरेस करने के आरोप भी लगाए. उनके मुताबिक़ अलका ने उन्हें और उनके परिवार को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के रास्ते में रोड़ा समझा था. अपने बेटे की कस्टडी को लेकर भी लोकेश ने नाराज़ी ज़ाहिर की थी जो कि अलका के पेरेंट्स के पास था.
हालांकि इस मामले पर अलका ने कभी कोई सफाई या बयान नहीं दिया.
लोकेश कपूर का एक आरोप ये भी था कि अलका कोर्ट के आदेश के बावजूद बेटे से मिलने नहीं देती.
लोकेश कपूर का एक आरोप ये भी था कि अलका कोर्ट के आदेश के बावजूद बेटे से मिलने नहीं देती.

गुवाहाटी मॉलेस्टेशन केस

साल 2012 में गुवाहाटी में एक घटना घटी. एक टीन एज की लड़की को एक बार के बाहर लगभग 30 लोगों की भीड़ ने मॉलेस्ट किया. देशभर में इस पर उग्र प्रतिक्रिया हुई. अलका लांबा उस वक्त राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य थीं. उन्हें आयोग की तरफ से गुवाहाटी भेजा गया. अलका ने भुक्तभोगी लड़की से मुलाकात की, उसके बाद एक प्रेस कांफ्रेंस की और गलती से लड़की का नाम ज़ाहिर कर दिया. तुरंत आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया. लोग इस गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये की निंदा करने लगे. महिला आयोग ने भी तुरंत कार्रवाई की. अलका की फैक्ट फाइंडिंग टीम से छुट्टी कर दी.
अलका ने इस मामले पर सफाई दी थी कि उन्होंने विक्टिम के कहने पर ही ऐसा किया था. प्लस उन्हें मीडिया से उम्मीद थी कि वो नाम बीप कर देंगे.
गुवाहाटी मॉलेस्टेशन केस में अलका को चौतरफा आलोचना झेलनी पडी.
गुवाहाटी मॉलेस्टेशन केस में अलका को चौतरफा आलोचना झेलनी पडी.

जब तोड़फोड़ का केस हो गया

एमएलए बनने के कुछ ही महीनों बाद अलका लांबा एक तोड़फोड़ के मामले में फंस गईं. किस्सा तब शुरू हुआ जब अलका लांबा की सिर पर पट्टी बंधी एक तस्वीर घूमने लगी. अलका का आरोप था कि उनपर पत्थरों से हमला हुआ है. वो भी एक पुलिसवाले की मौजूदगी में. उनका कहना था कि वो कश्मीरी गेट इलाके में एंटी-ड्रग्स कैम्पेन कर रही थी जब उनपर हमला हुआ.
दूसरे दिन मामले में ट्विस्ट आ गया. एक CCTV फुटेज सामने आई जिसमें अलका एक दुकान में घुसती हैं और काउंटर पर रखा कुछ सामान फेंक देती हैं. अलका ने इसपर सफाई दी कि उन्होंने किसी दुकान में तोड़फोड़ नहीं की. ये भी कहा कि ये वही दुकान है जिसके बाहर उनपर अटैक हुआ था और जो बीजेपी विधायक ओपी शर्मा की मिल्कियत था. बकौल अलका वीडियो अटैक के बाद का था.
खैर, इस मामले में उनपर केस भी दर्ज हुआ था जो बाद में ड्रॉप कर लिया गया.
ये तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब सर्क्युलेट हुई और कईयों इसके फर्ज़ी होने के दावे किए.
ये तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब सर्क्युलेट हुई और कईयों इसके फर्ज़ी होने के दावे किए.

कैसे बिगड़े रिश्ते आम आदमी पार्टी से?

यूं तो राजनीति की दुनिया में खुशियों और नाराज़गियों की अक्सर कोई न कोई बैक स्टोरी हुआ करती है. पर कोई न कोई दर्शनी वजह भी ज़रूर होती है, जो आम जनता को परोसी जाती है. अलका लांबा-आम आदमी फाइट का ट्रिगर मोमेंट राजीव गांधी-भारत रत्न अवॉर्ड केस माना जाता है. फिर से एक बार दिसंबर का महीना था. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया. राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने का. वजह 1984 के सिख विरोधी दंगों को बताया गया. प्रस्ताव पास भी हो गया.
बाद में अलका लांबा का ट्वीट आया कि उनसे जबरन प्रस्ताव का सपोर्ट करवाया गया था. वो सहमत नहीं थीं इसलिए वॉक आउट कर दिया. उन्होंने ये भी कहा था कि इस घटना के बाद मुख्यमंत्री ने उनसे इस्तीफा मांगा था.
इस्तीफा, जो अब जाकर दिया गया. ट्विटर पर. इस्तीफा, जिसने आम आदमी पार्टी की किरकिरी करा दी है. इस्तीफा, ऐन वैसा ही इस्तीफा, जो कभी कांग्रेस को सौंपा गया था अलका द्वारा.
आज उसी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ अलका लांबा की तस्वीर घूम रही है. सर्कल पूरा हो रहा है.


वीडियो:

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