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बनारस की गलियों में आजकल गंगा मइय्या का वास है!

पति-पत्नी और कैमरा की चौदहवीं किस्त. बनारस से जलमग्न.

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25 अगस्त 2016 (Updated: 24 अगस्त 2016, 05:03 AM IST) कॉमेंट्स
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ashish-and-aradhana-singh-1पति पत्नी और वो कैमरा की चौदहवीं किस्त आपके सामने है. इस सीरीज में पति हैं डॉ. आशीष सिंह. जो शौकिया फोटोग्राफर हैं. पत्नी हैं आराधना. जो तस्वीरों के कैप्शन को कहानी सा विस्तार देती हैं. और जो कैमरा है. वो इनके इश्क राग का साथ देता एक शानदार भोंपा है. बनारस में घुटने तक भरे पानी से आंखों देखी लेकर आये हैं. 
  बनारस की गलियों की चहल-पहल में गंगा का गेरुआ पानी भी जुगलबंदी कर रहा था. सारे घाट और उनसे सटी गलियां, मोहल्ले गंगा की आगोश में थे. बाढ़ में ज़िन्दगी हाथों से छूट कर बह जाने की तैयारी में थी. मगर बनारसी लोग अपने जिद्दीपन और अकड़ के साथ उसे यूं ही बह जाने देने को तैयार नहीं. डीएम के ऑर्डर से स्कूलों में पच्चीस तारीख़ तक छुट्टी घोषित हुई. बच्चे बेहद ख़ुश हैं. बाढ़ देखने की ज़िद तो है ही, साथ हैं उनके अनगिनत सवाल. "मम्मा, हमारे घर बाढ़ आ जाएगी तो हम किस होटल में रुकेंगे? क्या-क्या खायेंगे? हमारे पैसे तो नहीं डूबेंगे ना?""मम्मा स्कूल में फ्लड विक्टिम्स के लिए बिस्किट मंगाए गए थे. वो हमें भी मिलेंगे ना जब हमारे घर बाढ़ आ जाएगी?"benaras 3 काश! बाढ़, सूखे, भूकम्प जैसे नेचुरल डिज़ास्टर से जूझते लोगों की ज़िन्दगी भी इन्हीं सवालों के जैसी मासूम होती. कितना कुछ छूट रहा है. और कितना कुछ आने वाले दिनों में छूट जाएगा. ख़त्म हो जाएगा. राहत दल के साथ एक तहसीलदार साहब खड़े थे. उनका सरकारी फ़ोन बजा. बड़बड़ाने लगे कि उनका नम्बर कैसे बंट गया. फिर भी फ़ोन उठाते ही आवाज़ बड़ी नॉर्मल हो गई. दिलासा देते हैं कि बस मोहल्ले में बोट भेजने ही वाले हैं. घबराएं नहीं. फ़ोन के उस तरफ़ वाला शख्स उनसे जाने क्या कहता है कि वो भड़क उठे, "अरे! हम पर काहे ग़ुस्सा हो रहे हैं? हम बाढ़ लेकर थोड़े न आए हैं आपके यहां. रखिए फ़ोन तब न बोट पहुंचेगी आपके पास."Benaras एक पुर्तगाली टूरिस्ट कपल अपने डूबे हुए गेस्ट हाउस से अपना सामान लेकर जा रहा था. उनका कोई इलेक्ट्रॉनिक गैज़ेट पानी में गिर गया तो लड़की थोड़ी मायूस हो गयी. वहीं खड़ी औरत उन्हें समझाते हुए बोलने लगी, "जाने दीजिए. हमारे तो पूरे घर में गंगा मइया बह रहीं हैं. क्या किया जाए? नो प्राब्लम. नो प्राब्लम"2 benaras लोग बाढ़ में आधे डूबे हुए सेल्फ़ी ले रहे थे. गलियों में बच्चे छई-छप्पा-छई खेलते दिख रहे थे. दूसरी तरफ़ डूबे हुए मंदिरों के सामने कितने हाथ खुद को डूबने से बचाने के लिए जुड़े हुए थे. स्कूल, कॉलेज राहत शिविरों में तब्दील हो रहे थे. हर जगह एक ही चर्चा - "केतना पानी बढ़ल? केतना घटल?""शीतला माई डूब गइली. ख़ाली झंडा दीखाई देत हौ.""राजघाट पुल से नीचे पानी का बहाव देखकर चक्कर आ रहा है.""अबही सन् अठ्हत्तर वाला बाढ़ नाहीं आइल. अबे गोदौलिया में नाव नाहीं चलत." टूरिस्टों को गंगा आरती और घाटों का आनन्द नहीं उठा पाने का मलाल था. वो खुद को दिलासा दे रहे थे, "हां, गंगा आरती और बोटिंग तो नहीं कर पाए. पर बाढ़ का आनन्द भरपूर लिया." आनन्द सुनकर खीझ होती है, पर इसे झुठलाया नहीं जा सकता. क्यूंकि सुना है कि दर्शक के लिए तो हर बात इन्टरटेन्मेंट है. बगल में खड़ा लड़का अपनी मां से कहने लगा, "रोज़ मछली खाए के मिली. मछली सस्ताइल बा." डूबे हुए जनरल-स्टोर से दूध का पाउडर ख़रीदते बुज़ुर्ग स्टोर वाले को सलाह देने लगे - "दूध के पैकेट का बंदोबस्त करिए. पाउडर वाले दूध की चाय मज़ा नहीं देती." Benaras राहत में जुटी सरकारी टीम आपस में बात कर रही थी, "गंगा मइया अब एक महीने छुट्टी लेने नहीं देंगी." आशीष अपनी खींची तस्वीरें दिखाते हुए पूछ रहे थे, "जलमग्न काशी या जल में मगन काशी." मुझे अचानक फणीश्वरनाथ रेणु का लिखा एक रिपोर्ताज याद आया- 'डायन कोसी.' मैंने आशीष से कहा, "नो कैप्शन प्लीज़ ."
इस सीरीज की बाकी किस्तें पढ़ने के लिए नीचे के टैग 'पति पत्नी और कैमरा' पर क्लिक करें.

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